संकरी गलियों में चल रहे कारखानों पर कब लगेगी लगाम?

दिल्ली में आग लगने की बढ़ती घटनाएं

योगेश कुमार गोयल

            पिछले कुछ सममय से देश की राजधानी दिल्ली में विभिन्न स्थानों से इमारतों में भीषण आग लगने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। 8 दिसम्बर 2019 को दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में हुए भयावह अग्निकांड में 46 लोग काल के ग्रास बन गए थे लेकिन उसके बाद भी लगातार सामने आ रहे आग लगने के हादसे चिंता का सबब बन रहे हैं। 14 मार्च की दोपहर बाहरी दिल्ली के जी टी करनाल रोड स्थित जहांगीरपुरी इलाके में दो केमिकल फैक्टरियों में लगी भीषण आग ने एक बार फिर चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। दरअसल दिल्ली के अनेक इलाकों में संकरी गलियों में बहुत सारी ऐसी औद्योगिक इकाईयां बिना पर्याप्त सुरक्षा इंतजामों के चल रही हैं, जहां जरा सी लापरवाही अक्सर बड़े हादसों का कारण बनती रही है। हालांकि शनिवार को लगी भीषण आग में कोई हताहत तो नहीं हुआ लेकिन आग बुझाने में 25 दमकल गाडि़यों के साथ अनेक दमकल कर्मियों को कई घंटों तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

            दिल्ली में आग लगने की पिछले कुछ दिनों की ऐसी कुछ और घटनाओं पर नजर डालें तो 11 जनवरी को मायापुरी इलाके में एक जूता फैक्टरी में भीषण आग लगी थी। 2 जनवरी को पीरागढ़ी में एक फैक्टरी में आग लगने के बाद इमारत गिर गई थी और आग बुझाते समय एक दमकलकर्मी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 27 दिसम्बर को सदर बाजार इलाके में एक इमारत में, महारानी बाग क्षेत्र में एक दुकान में तथा वसंत विहार इलाके में एक आवासीय इमारत में भीषण आग लगी थी, जो कई घंटों की जद्दोजहद के बाद बुझाई जा सकी थी। 24 दिसम्बर को दिल्ली के नरेला इलाके में तीन फैक्टरियों में लगी भीषण आग को बुझाने में 36 दमकल वाहनों की मदद से डेढ़ सौ दकमलकर्मियों को सात घंटों तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। 22 दिसम्बर की रात किराड़ी इलाके में एक चार मंजिला इमारत के निचले हिस्से में बने कपड़ों के गोदाम में लगी आग में जलकर 9 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले साल 12 फरवरी को करोलबाग के होटल अर्पित में लगी भयानक आग में 17 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और तब खुलासा हुआ था कि करोलबाग के उस इलाके में चार मंजिल से ज्यादा नहीं बनाई जा सकती थी किन्तु उस होटल को भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षण के चलते छह मंजिला बनाया गया था।

            दिल्ली में लगातार सामने आ रहे आग लगने के ऐसे मामलों ने जहां हर किसी को भीतर तक झकझोरा है, वहीं सभी जिम्मेदार संस्थाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। कितनी बड़ी विड़म्बना है कि दिल्ली में आग लगने के बार-बार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें अक्सर जान-माल का भारी नुकसान भी होता है लेकिन ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लिया जाता। हालांकि इस तथ्य से तमाम जिम्मेदार संस्थाएं परिचित होती हैं कि दिल्ली के अनेक इलाकों में बरसों से बहुत सारी अवैध फैक्टरियां चल रही हैं, जिनमें सुरक्षा के कोई उपाय नहीं होते लेकिन फिर भी ऐसे कदम नहीं उठाए जाते, जिससे आग लगने के हादसों को टालने में मदद मिले। दिल्ली में ऐसे बहुत सारे इलाके हैं, जहां संकरी गलियों में अनेक फैक्टरियां या कारखाने चल रहे हैं और यह सब प्रशासन की नाक तले हो रहा है। कई इलाकों में तमाम नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते अवैध कारखाने कुकुरमुत्ते की भांति फैले हैं, जहां हल्की सी चिंगारी को भी दावानल बनते देर नहीं लगती। ऐसी लगभग तमाम औद्योगिक इकाईयों में आग से बचने के कोई इंतजाम नहीं होते लेकिन बार-बार होते ऐसे हादसों के बावजूद अगर उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती तो भला उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? संकरी गलियों में ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच बिजली की हाई वोल्टेज तारों का मकड़जाल भी बड़े हादसों को न्यौता देता प्रतीत होता रहा है। अक्सर देखा गया है कि दिल्ली में अग्निकांड की घटनाएं हों या बहुमंजिला इमारतें गिरकर उनके तले दबकर मासूम लोगों के मारे जाने की, ऐसी दर्दनाक घटनाओं में प्रायः पीडि़तों को मुआवजा देने की घोषाणाएं कर सरकारों द्वारा अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है और भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों, इसकी ओर से सब बेपरवाह हो जाते हैं। जब भी ऐसा कोई हादसा सामने आता है, ऐसी अव्यवस्थाओं पर खूब हो-हल्ला मचता है लेकिन चंद दिन बीतते-बीतते सब शांत हो जाता है और सारी व्यवस्था पुराने ढ़र्रे पर रेंगने लगती है। ऐसे में अहम सवाल यही है कि दिल्ली में आग लगने की लगातार सामने आ रही ऐसी घटनाओं का जिम्मेदार आखिर कौन है?

            विड़म्बना है कि 1997 के उपहार सिनेमा की भीषण आग में खाक हुई अनेक मासूम जिंदगियों की त्रासदी के बाद के इन 23 वर्षों में भी किसी ने कोई सबक सीखा। कोई भी बड़ा हादसा होने के बाद प्रशासनिक अमला तथा सभी राजनीतिक दलों के नेता घटनास्थल पर पहुंचकर एक-दूसरे पर दोषारोपण करके वहां से खिसक लेते हैं लेकिन हकीकत यही है कि अगर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए धड़ल्ले से चल रही फैक्टरियों पर सख्त कदम उठाने की पहल की जाए तो ऐसे हादसों पर आसानी से लगाम लग सकती है। विड़म्बना है कि इस बात का जवाब कहीं से नहीं मिलता कि संकरी गलियों में चल रहे अवैध कारखानों पर लगाम कब और कैसे लगेगी और जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित करने के लिए सख्त कदम कब उठाए जाएंगे? सवाल यह भी है कि ऐसी संकरी गलियों में 4-5 मंजिला इमारतें कैसे बन जाती हैं और कैसे उनमें बिजली के मीटर लग जाते हैं? कैसे उन आवासीय इमारतों के भीतर औद्योगिक कारखाने स्थापित करने की इजाजत मिल जाती है? फायर विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं होने के बावजूद अगर धड़ल्ले से ऐसे कारखाने दिल्ली के अनेक इलाकों में चल रहे हैं तो उसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है? बहुत से ऐसे कारखाने भी हैं, जिन्हें फायर विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र तो मिले हुए हैं लेकिन उनके पास आग बुझाने के जरूरी उपकरण ही नहीं हैं। आखिर उन्हें फायर विभाग द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र कैसे दे दिए गए? जवाब बिल्कुल सीधा और स्पष्ट है कि यह सब प्रशासन और कारोबारियों की मिलीभगत तथा भ्रष्ट मंसूबों की ही देन है। तो क्या हमारे देश में लोगों की जान इतनी सस्ती है कि सिस्टम इस तरह उनकी जिंदगी के साथ खेलता है?

            दो फैक्टरियों में शनिवार को लगी आग में भले ही कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन कई बार ऐसे हादसों में बहुत सारे लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। ऐसे में ये हादसे हमें सबक के साथ-साथ हर बार कड़वे अनुभव भी देकर जाते हैं लेकिन विड़म्बना है कि इस प्रकार के हादसों या गलतियों से कोई सबक नहीं लिया जाता। लोगों के स्मृति पटल में वर्ष 1997 का ‘उपहार कांड’ अब तक तरोताजा है, जो दिल्ली का अब तक का सबसे खौफनाक अग्निकांड माना जाता है। 13 जून 1997 को हादसे के वक्त सिनेमा हॉल में सैंकड़ों लोग मौजूद थे और आग लगने के बाद उन्हीं में से 59 लोग मारे गए थे। उपहार कांड के बाद से अब तक दिल्ली में भीषण आगजनी की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। उस भयावह हादसे को बीते करीब 23 वर्ष लंबा समय गुजर चुका है किन्तु आज भी स्थिति यह है कि आग लगने की घटनाओं के मामलों में एक-दूसरे पर दोष मढ़ने के अलावा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।

            दिल्ली में जगह-जगह पर न जाने कितनी ऐसी अवैध फैक्टरियां या व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं, जो हर कदम पर बड़े हादसों को न्यौता दे रही हैं लेकिन न जाने प्रशासन की तंद्रा कब टूटेगी? विभिन्न आवासीय क्षेत्रों में भी अक्सर अवैध फैक्टरियां चलने तथा सिनेमाघरों, होटलों, रेस्तरां इत्यादि में आग से सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम के अभाव की बातें सामने आती रही हैं लेकिन जिम्मेदार संस्थाओं द्वारा समय रहते उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। कोई बड़ा हादसा सामने आने पर सारी एजेंसियां एकाएक गहरी नींद से जागती हैं लेकिन जैसे ही मामला थोड़ा ठंडा पड़ता है, फिर से किसी दूसरी घटना के इंतजार में गहरी नींद सो जाती हैं। देश की राजधानी में भीषण आग लगने की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लग सके, इसके लिए सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ आम लोगों और नागरिक संस्थाओं का भी दायित्व है कि वे स्वयं भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार और जागरूक रहें।

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