जाने कब कौन किसे मार दे काफ़िर कह के..

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 जावेद अनीस

 

दिसम्बर 2012 को दिल्ली में “निर्भय काण्ड” ने सभी भारतीयों को गम और गुस्से से उबाल दिया था और इस हैवानियत को देख सुन कर पूरी दुनिया सहम सी गयी थी, नियति का खेल देखिये एक बार फिर सोलह दिसम्बर का दिन इंसानियत पर भारी साबित हुआ और इसे दोहराया गया है, इस बार यह हैवानियत हमारे पडोसी मुल्क में हुआ है जहाँ पिशाचों ने नन्हे फूलों के खूनों से अपने जन्नत के हवस की प्यास बुझाई है।

 

कुछ घटनायें ऐसी होती है जिन पर पूरी इंसानियत कॉप जाती है और लाखों–करोड़ों दिलों को एक साथ रुला देती है, इंसान सभी हदों–सरहदों को परे रखकर इसके खिलाफ आगे आकर एक सुर में चीख उठता है कि बस बहुत हो गया। बोल-चाल, भाषा में समानता और संस्कृतिक– सामाजिक जुड़ाव के कारण भारत के आवाम ने पाकिस्तान की धरती से उठी दर्द ओ गम की चीखों और भावनाओं को बहुत करीब से सुना और महसूस किया है, तभी तो पूरे हिंदुस्तान में सोशल मीडिया और सड़कों पर इस इबलीसी कृत के खिलाफ आवाज उठे हैं। भारत सरकार ने भी सारे मतभेदों को एक तरफ रखते हुए इस आतंक पाकिस्तान के साथ सद्भावना जाहिर की है।

 

पाकिस्तान गम और गुस्से में है, वहां की आवाम खुल कर इस “मजहबी आतंक” के खिलाफ सामने आई है, टीवी पर हम सब ने देखा कि पाकिस्तान की माँयें बिलखती हुई कह रही हैं कि “हम जेहनी बीमार हो चुके है”, एक मजलूम बाप बिलखता हुआ पुकार पड़ता है कि “कोई सुनने वाला है इस पाकिस्तान में? किस बात की लड़ाई लड़ी जा रही है? इन बच्चों ने आखिर क्या बिगाड़ा है? बच्चों को ऐसे कोई मारता है क्या? बस करो न यार। खुदा का वास्ता…”। एक छोटी सी बच्ची बहुत ही मासूमियत से पूछती है कि “दहशत अंकल हमें क्यों मारा जा रहा है”? और एक छोटा सा बच्चा बहुत बहादुरी से सामने आकर आतंकियों को चेतावनी देते हुए कहता है कि “आपकी गोलियां कम पड़ जायेंगी लेकिन हमारे सीने कम नहीं पडेंगें”।

 

कराची एयरपोर्ट पर हमले के बाद से पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन “ज़र्ब-ए-अज़्ब’ चलाया जा रहा था और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिल रही थी। हमला करने वाले संगठन ने जिम्मेदारी लेते हुए एलान किया है कि यह उसी का बदला है। पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 बच्चों को मारने वाला “तहरीके तालिबान” वही संगठन है जिसने मलाला के सिर में गोली मारी थी। हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इरादा जाहिर किया था कि वे आंतकियों के खिलाफ ऑपरेशन को पूरा होने तक अंजाम देंगे और वे अपनी जमीन को आतंकवाद के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे लेकिन इसके दूसरे ही दिन यह इरादा ढहता हुआ नज़र आया जब यह खबर सामने आई कि पाकिस्तान की अदालत ने ज़कीउर रहमान लखवी को मुंबई हमलों से जुड़े मामले में ज़मानत दे दी हैलखवी पर 2008 में हुए मुंबई हमलों की साज़िश रचने का आरोप हैं। पाकिस्तान का आतंकवाद के खिलाफ यही सलेक्टिव रवैया उसकी बर्बादी के लिए जिम्मेदार है। पेशावर का हमला कोई दो घंटे में नहीं हुआ है, इसकी तैयारी तो करीब तीन दशक पहले से चल रही थी जब जनरल जिया ने इस अभागे मुल्क की कमान सम्हालते हुए पकिस्तान को “इस्लामिक रिपब्लिक आफ पाकिस्तान” बना दिया था और फिर अफगानिस्तान में अमरीका के साथ मिलकर सोवियत संघ के काफिरों के खिलाफ मजहबी हत्यारों को पनाह देने और इनके नए फसल बोने की शुरुवात की गयी थी।

 

हम इंसानों में बच्चे सब से ज्यादा तटस्थ होते हैं, वे बड़ों द्वारा बांटी गये खांचो और सरहदों में खास यकीन नहीं रखते हैं, लेकिन फिर भी पूरी दुनिया में आतंक और हिंसा के सबसे बड़े और आसान शिकार बच्चे ही होते हैं। किसी ने सवाल पूछा है कि आखिर पूरी दुनिया में ये सारे खून खराबे और हैवानियत मजहब के ही नाम पे क्यों हो रहे है? इस्लामिक स्टेट, तालिबान, तेहरीक-ए-तालिबान, बोको हरम, या इन जैसे किसी भी मजहब के नाम पे चलने वाले आतंकी संगठन या इज़राईल जैसे “दहशत सरकारें ” हों, इनका वजूद कैसे बर्दाश्त किया जा रहा है ? इसकी जड़ो में तो वह दर्शन है जो दुनिया में एक खास तरह के धार्मिक सामाजिक-राजनीतिक को लागू करने का ख्वाब पाले है, जहाँ असहमतियों की कोई जगह नहीं है, उनकी सोच है कि या तो आप उनकी तरह बन जाओ नहीं तो आप का सफाया कर दिया जायेगा।

 

सआदत हसन मंटो ने 1948 में लिखा था कि “हिन्दुस्तान आज़ाद हो गया था। पाकिस्तान आलम-ए-वजूद में आते ही आज़ाद हो गया था, लेकिन इंसान दोनों मुमालिकों में ग़ुलाम था। ता’अस्सुब का ग़ुलाम, मज़हबी जूनून का ग़ुलाम, हैवानियत और बर्बरियत का ग़ुलाम” मंटो के कलम की सियाही तो कब की सूख गयी लेकिन उनकी यह तहरीर अभी भी दोनों मुल्कों का सच बनी हुई है।

हालांकि भारत इस मामले में काफी हद तक खुशनसीब साबित हुआ है कि उसे शुरू से ही “लोकतंत्र” का साथ मिल गया था। जबकि “मजहब” के नाम पर वजूद में आया पाकिस्तान उसी रास्ते पर आगे बढ़ा और इस दौरान जम्हूरियत भी उससे दूर ही रही। आज किसी को भी इस बात को मानने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी कि पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है।

 

एक राष्ट्र के तौर पे हमें पाकिस्तान की विफलता से सबक लेना चाहिये, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो पाकिस्तान के रास्ते पर चलना चाहते हैं, चंद महीनों पहले ही प्रख्यात न्यायविद फली एस. नरीमन ने मोदी सरकार को बहुसंख्यकवादी बताते हुए चिंता जाहिर की है कि बीजेपी-संघ परिवार के संगठनों के नेता खुलेआम अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयान दे रहे हैं लेकिन सीनियर लीडर इस पर कुछ नहीं कहते। जिस प्रकार से नयी सरकार बनने के बाद से संघ परिवार आक्रमक तरीके से लगातार यह सुरसुरी छोड़ रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र है, यहाँ के रहने वाले सभी लोग हिन्दू है,उससे चिंतित होना जरूरी जान पड़ता है।

पाकिस्तान के कवि अहमद अयाज़ कसूरी के एक कविता की दो लाईनें कुछ यूं हैं “जाने कब कौन किसे मार दे काफ़िर कह के, शहर का शहर मुसलमान हुआ फिरता है”, यह पंक्तिया वहां के हालात के लिए पूरी तरह मौजूं हैं, भारत में हमें पूरी तरह से चौकन्ना रहना पड़ेगा कि कहीं यह लाईनें हमारे लिए भी सच साबित ना हो जायें और उन लोगों पर काबू पाना होगा जो मुल्क को गाँधी के रास्ते को छोड़ कर गोडसे के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, क्योंकि इसका हासिल तो यही होगा कि भारत दूसरा पाकिस्तान बन के रह जायेगा और हम में से शायद ही कोई अपने मुल्क को दूसरा पकिस्तान देखना पसंद करे।

 

1 COMMENT

  1. javed anis ji, bharat me loktantra (prajatantra, jantantra) nahi hai balki gantantra (partytantra, dal ya daldal tantra) hai. isliye jab congress ki sarkar hogi to musalmano ki protsahan milega aur bjp ke sashan me hinduo ko. is desh ke bare me na to congress thik se sochta hai aur na hi bjp. in dono rajnitik dalo sahit sabhi rajnitik dalo ka namonishan rashtrahit me mitna/mitana atyanta awashyak hai. loktantra lane ke liye chunav pranali se namankan, jamanat rashi, chunav chinh tatha e.v.m. ko poorn roop se hatana hoga. pakistan adi anya desho me bhi galat chunav paddhati ke karan hi ashanti hai. yadi aapko rashtrahit me chintan karna hi hai to chunav ki galat pranali ko thik karne ka vichar kijiye baki sabhi samasyayen apne aap hi door ho jayega.

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