महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाना सही रहेगा या नहीं।

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  भारत में जिस समय महिलाओं को उनके भविष्य और शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिये, उस समय उन्हें विवाह के बोझ से दबा दिया जाता है, आज अब 21वीं सदी में इस रुढ़िवादी प्रथा में बदलाव की आवश्यकता है, जो कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।

—प्रियंका सौरभ 

प्रधान मंत्री ने 74 वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को  संबोधन के दौरान लाल किले से महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने के लिए एक समिति/कानून के बारे में बताया। ये कानून बाल विवाह की न्यूनतम आयु को अनिवार्य रूप से बाल विवाह और नाबालिगों के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है। विवाह से निपटने वाले विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों के अपने मानक हैं।

भारत में विवाह की न्यूनतम आयु खासकर महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु सदैव एक विवादास्पद विषय ही रहा है, और जब भी इस प्रकार के नियमों में परिवर्तन की बात की गई है तो सामाजिक और धार्मिक रुढ़िवादियों का कड़ा प्रतिरोध देखने को भी मिला है। वर्तमान  नियमों के अनुसार पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 21 और 18 वर्ष है।

 केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने जया जेटली की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जो मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर को कम करने की अनिवार्यता और महिलाओं के बीच पोषण के स्तर में सुधार जैसे मामलों की जांच करेगी। यह गर्भावस्था, जन्म और उसके बाद, स्वास्थ्य, चिकित्सा भलाई और मां और नवजात, शिशु या बच्चे के पोषण की स्थिति के साथ विवाह और मातृत्व की उम्र के संबंध की जांच करेगी।

ये कानून शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), मातृ मृत्यु दर (एमएमआर), कुल प्रजनन दर (टीएफआर), जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) और बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) जैसे प्रमुख मापदंडों को भी देखेगा और संभावना की जांच करेगा कि अब वर्तमान 18 वर्ष से 21 वर्ष तक की महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाना सही रहेगा या नहीं।

विवाह और पोषण की आयु के बीच लिंक जीवविज्ञानी तथ्य है, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि किशोर माताओं (10-19 वर्ष) के लिए पैदा होने वाले बच्चों की आयु की तुलना में  युवा वयस्कों के लिए जन्म (20-24 वर्ष) 5% अंक अधिक स्ट्यूड (उनकी उम्र के लिए कम) होने की संभावना थी, वे वयस्क माताओं (25 वर्ष या उससे अधिक उम्र) के बच्चों की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक थे। किशोर माताओं से जन्म लेने वाले बच्चों में वयस्क माताओं के रूप में कम वजन के 10 प्रतिशत अंक अधिक होते हैं।

इसने अन्य कारकों को भी उजागर किया, जैसे किशोर माताओं के बीच कम शिक्षा और उनकी खराब आर्थिक स्थिति, जिसमें बच्चे की ऊंचाई और वजन माप के साथ सबसे मजबूत संबंध थे। इन सबके उपरांत यह सिफारिश की गई कि पहली शादी में बढ़ती उम्र, पहले जन्म में उम्र और लड़की की शिक्षा मातृ और बाल पोषण में सुधार के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण है।

विवाह के लिये महिलाओं और पुरुषों की न्यूनतम आयु एकसमान न होने का कोई भी कानूनी तर्क दिखाई नहीं देता है, हालाँकि कई लोग इसके विरुद्ध तर्क देते हैं मगर देखे तो इस प्रकार के तर्क अलग-अलग नियम संविधान के अनुच्छेद 14 ( समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन करते है।  विवाह के लिये महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग आयु समाज में रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है।  महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की उम्र में अंतर का कानून में कोई आधार नहीं है क्योंकि विवाह में शामिल होने वाले महिला पुरुष हर तरह से एक समान होते हैं और इसलिये उनकी हर साझेदारी भी एक समान होनी चाहिये।

दूसरी तरफ देखे तो महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के खिलाफ तर्क भी आये है,
किशोरों के लिए राष्ट्रीय गठबंधन की वकालत इस बात का दावा करती है कि लड़कियों के लिए विवाह की कानूनी उम्र को बढ़ाना केवल “कृत्रिम रूप से कम समझे गए विवाहित व्यक्तियों की संख्या का विस्तार, उनका अपराधीकरण करना और कानूनी संरक्षण के बिना कम उम्र की विवाहित लड़कियों सेक्स के लिए आकर्षित करना होगा।

इन सबके बीच महिलाओं की शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाने के पक्ष में कई तर्क हैं। लोकतान्त्रिक युग में लैंगिक-तटस्थता लाने की जरूरत है। महिलाओं में शुरुआती गर्भावस्था के जोखिमों को कम करने की आवश्यकता है। प्रारंभिक गर्भावस्था बढ़ी हुई बाल मृत्यु दर से जुड़ी होती है और माँ के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। न्यूनतम आयु को कम करने और नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने के कानूनों के बावजूद, भारत में बाल विवाह बहुत प्रचलित हैं।

प्रारंभिक गर्भावस्था बढ़ी हुई बाल मृत्यु दर से जुड़ी होती है और माँ के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इस प्रकार, एक बच्चे को ले जाने के लिए माँ के स्वास्थ्य और तत्परता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को महिलाओं और लड़कियों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण पर जोर देने की जरूरत है, साथ ही लक्षित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार अभियान के साथ-साथ महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने से लिंग-तटस्थता भी बढ़ेगी।

आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2017 में गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताओं के कारण 35000 महिलाओं की मृत्यु हुई थी। ये सच है कि भारत में जिस समय महिलाओं को उनके भविष्य और शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिये, उस समय उन्हें विवाह के बोझ से दबा दिया जाता है, आज अब 21वीं सदी में इस रुढ़िवादी प्रथा में बदलाव की आवश्यकता है, जो कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।

 महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने से महिलाओं को शिक्षित होने, कॉलेजों में प्रवेश करने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु अधिक समय मिलेगा । इस निर्णय से संपूर्ण भारतीय समाज खासतौर पर निम्न आर्थिक वर्ग को प्रगति का अवसर मिलेगा।
 — —प्रियंका सौरभ 

1 COMMENT

  1. Rati ratayi baten hain jo aapne likhi hain.
    Sarkar ko logo ke jivan me hastkshep jayada nhi badhana chahiye. Aaj aap ya lakhon ladkiyan vivah ki nuntam aayu nirdharit hone ke karan nhi padh rhi hain.
    Samaj me jagrukta aane se vivah aayu apne aap badh rhi hai. Kanooni pravdhan sirf archan paida karte hain.
    Jaise kisi ladki 20 sal ki umra me love mairrage kar liya to ye uski echha hai . Aayu badhane ke baad use police . Kanun ke pachre me parna padega.

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