काले धन पर श्वेत पत्र, सरकार की तरह कमजोर

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

केंद्र सरकार ने काले धन के विस्तार पर रोक लगाने के लिये सोमवार 21 मई को लोकसभा के पटल पर जो श्वेत-पत्र जारी किया। दरअसल उस श्वेत-पत्र को श्वेत ही रखा गया सरकार ने उस पर ज्यादा कुछ लिखने की कोशिश नही की शायद इस लिये कि कही ये काला न हो जाये। जब कि श्वेत-पत्र सरकार के द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला वो दस्तावेज है जिस में कानून, आयोग का मतलब, उद्देश्यों और उससे जुड़े तथ्यो की पूरी जानकारी होती है। श्वेत-पत्र के माध्यम से जिस विषय पर श्वेत-पत्र जारी होता है सरकार विपक्ष और संसद को ये जानकारी देती है कि उसने आधिकारिक रूप से अब तक क्या किया और क्या कार्यविधि रही। श्वेत-पत्र में कुछ छुपाया नही जाता। पर काले धन पर जारी इस श्वेत-पत्र में केवल विदेशो में जमा धन पर विभिन्न ऐजेंसियो के अनुमान देकर ही खाना पूर्ति की गई। काले धन से सम्बंधित मामले निपटाने को फास्ट टैक कोर्ट के गठन का जिक्र श्वेत-पत्र में कर व काले धन को रोकने के उद्देश्य से चार सूत्रीय रणनीति प्रणव दा और सरकार ने अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली। सवाल ये उठता है कि आखिर विदेशो में काला धन रखने वाले किसी भी व्यक्ति का नाम श्वेत -पत्र में आखिर क्यो नही खेला गया। वही सरकार ने इस श्वेत-पत्र में यह भी बताते की जहमत गंवारा नही की आखिर देश का तिना रूपया विदेशो में काले धन के रूप में जमा है। वर्श 2006 से 2010 के बीच विदेशी बैंको में काले धन में 14 हजार करोड़ की कमी तो दिखाई गई पर ये पैसा कहा गया इस को सरकार ने छुपा लिया।

श्वेत-पत्र में कालेधन के सृजन को रोकने व प्लास्टिक मनी के प्रयोग पर जोर दिया गया। इस मुद्दे पर सरकार ने ये भी कहा कि बैंको के डेबिट और क्रेडिट कार्ड तथा इलेक्ट्रोनिक्स ट्रांसफर के इस्तेमाल को देश में बढावा दिया जाना चाहिये। विपक्ष की मांगो और बाबा रामदेव के आंदोलनो के बाद भ्रष्टचार, मंहगाई के मुद्दे पर राजनीतिक रूप से घिरी केंद्र सरकार जागी है या फिर ये भी सरकार का ढोंग है अभी कहना मुश्किल है। लेकिन केंद्र सरकार का काले धन पर इस प्रकार का कमजोर श्वेत-पत्र जारी करने पर कुछ हासिल होगा कहा नही जा सकता क्यो की इस श्वेत-पत्र में ऐसा कुछ नही जिस का यूपीए डंका पीटे। क्यो की असलीयत में इस श्वेत-पत्र में कालेधन की पूरी तो क्या आधी हकीकत भी सामने नही आ पाई है। इस श्वेत-पत्र में न तो सरकार ने काली कमाई को विदेशी बैंको में ठिकाने लगाने वाले किसी व्यक्ति विशेष का नाम शामिल किया है और न ही ये बताया गया है कि भारत के किन किन लोगो ने टैक्स का कितना रूपया विदेशो में जमा कर रखा है।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनो काला धन मामले में केन्द्र सरकार के ढुलमुल रवैये पर सख्त एतराज जताते हुए कहा था की विदेशी बैंको में जमा काला धन राष्ट्रीय सम्पत्ति की लूट है। इस के साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने विदेशी बैंको में जमा काले धन का स्रोत, हथियार सौदो और मादक पदार्थो की तस्करी से देश को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई थी। इस के अलावा ग्लोबल फिनांशियल इंटेग्रिटी वाशिंगटन-डीसी आधारित एक संस्था है। यह संस्था अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता को बढावा देने के मकसद से अनुसंधान करती है इसी की एक रिर्पोट के मुताबिक वर्ष 2000 से 2008 के दौरान 104 अरब डालर (करीब 4680 अरब रूपये) काला घन भारत से बाहर भेजा गया था और इस के साथ ही काला धन विदेश भेजने वाले एषियाई देशो की सूची में भारत का स्थान पॉचवा थां।

भारत का इतना अधिक धन विदेशी बैंको में जमा है और मौजूदा सरकार खामोश है। पिछले दिनो घौड़ा फार्म मालिक हसन अली के दस विदेशी बैंक खातो का पता चला था। जिस पर सरकार ने हसन अली पर पचॉस हजार करोड रूपये की आयकर देनदारी निकाली थी कुछ छापे भी डाले गये थे। पर कुछ बडे नेताओ के उन से संबध निकल आये और मामला दबा दिया गया। सरकार के शीर्ष नेताओ और देश के प्रधानमंत्री की ईमानदरी पर किसी को शक नही, लेकिन सरकार भ्रष्टाचार और काले धन के मामले में क्यो रक्षात्मक नजर आती है। लूट के इस धन का बहुत सा भाग जिस स्विस बैंको में जमा है उस के प्रतिनिधि ने राष्ट्रसंघ में घोषणा की कि वह यह धन वापस करना चाहता है पर मनमोहन सरकार इस संबध में कोई उचित कार्यवाही करने को तैयार ही नही है आखिर क्यो।

काले धन के मुद्दे पर आज पूरा देश परेशान और इस परेशानी कारण है। मात्र 35 हजार की आबादी और 61.8 वर्गमील की परिधि वाला देश लिश्टेन्स्टाइन। जो दुनिया की अर्थ व्यवस्था को चूसने की पूरी ताकत रखता है। स्विट्जरलैंड और आस्ट्रिेया के बीच बसे भारत के किसी कस्बे से भी छोटे इस देश के राजा ‘‘प्रिंस एलोइस’’ एलटीजी बैंक के संचालक है। यहा का पर्यटन कार्यलय ही पर्यटक को पासपोर्ट पर मात्र दो फ्रांक (लगभग 96 रूपये) लेकर वीजा लग देता है। आप यहा अपने साथ लाया कितना भी धन लिश्टेन्स्टाईन प्रिंसपलिटी के बैंको में सुरक्षित जमा कर सकते है। यहॉ किसी भी व्यक्ति द्वारा लाये गये पैसे का स्रोत नही पूछा जाता। अगर आप इस धन को अपने नाम जमा नही करना चाहे तो आप इसे मात्र 0.1 प्रतिशत के मामूली ट्रांसफर चार्ज पर आप बेनामी ढंग से शाही परिवार के हवाले भी कर सकते है। जिस की निकासी इसी चार्ज पर कही भी संभव है। आयकर इतना मामूली है कि दुनिया भर के प्रभावशाली और भष्ट लोग यहा भागे चले आते है। इस कस्बेनुमा देश की बस ये ही हकीकत और इतनी सी कहानी है यहॉ पैसे की खेती होती है और पैसे की फसल काटी जाती है ये ही इस छोटे से देश का फंडा है जिस में आज बडे बडे देश उलझे है।

निसंदेह बाबा रामदेव के अभियान और उन के अनशन ने काले धन के विरूद्व अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर चर्च में ला दिया जिस के लिये बाबा रामदेव और उन के साथियो को इस का श्रेय अवश्य मिलना चाहिये क्यो कि इस के लिये बाबा को अपनी जान तक की बाजी लगानी पड़ी। लेकिन सवाल ये है कि क्या काले धन के विरूद्व हमारी लडा़ई इस श्वेत-पत्र तक ही सीमित रह जायेगी क्यो कि सरकारी स्तर पर काले धन के प्रति लंबी चुप्पी के कारण ही ऐसी स्थिति आती है। चाहे सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की इन में से किसी ने भी अपने अपने कार्यकाल में काले धन के खिलाफ कोई कड़ा कदम नही उठाया। जब कि ये किसी से छिपा नही कि पिछले दस, पंद्रह सालो से काले धन का आकार देश में समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप ले चुका है। देश के कुछ राजनेता, नौकरशाह और अपराधियो कि तिकड़ी कितनी तेजी से काले धन को विस्तार दे रही है सरकार अच्छी तरह जानती है। पिछले दिनो वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा ही था कि काला धन देश की अर्थ व्यवस्था में लग रहा है और इस में कोई बुराई नही है। सीधी से बात है जब जिन लोगो को काले धन के खिलाफ सख्त कानून बनाना चाहिये वो लोग ही इस मुद्दे पर लीपापोती और खानापूरी करने में लग जायेगे तब ऐसे कमजोर श्वेत-पत्र का औचित्य ही कहा रह जाता है और कहा रह जाती है वो उम्मीद की ये सरकार विदेशो में जमा काला धन कभी देश में ले आयेगी

3 COMMENTS

  1. काले धन पर श्वेत पत्र कैसे जरी हो सकता है ,उस पर तो ऐसा पत्र जारी करना एक असफल प्रयास हो सकता है.फिर इस पर तो कुछ करने के लिए सरकार मन से कभी भी तैयार नहीं थी और न है.जब इनके लोगों ने काफी कुछ पैसा वहां से निकाल लिया या दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया तब यह नाकारा पत्र जारी किया.
    सरकार उन लोगों के नाम बताना नहीं चाहती , क्योंकि इनके खुद के वहां पैसे जमा हैं.आज तक किसी भी नेता ने आगे बढ़ कर यह घोषणा नहीं की कि उसका बहार कोई पैसा जमा नहीं है,भाई जब पैसा जमा नहीं है तो घोषणा करने में क्या कठिनाई है.
    सोनिया गाँधी से लेकर निचे तक किसी भी राजनेता ने आगे बढ़ कर ऐसी घोषणा नहीं कि. साफ है कि इस हमाम में यह सब नंगे खड़े हैं और इस लिए बहाने बना कर इस मुद्दे को ताल रहें हैं. जो आगे बढ़ कर मांग करता है,उसे उलटे सीधे मुकदमों में उलझा कर छापे डलवा कर,फंसा देतें हैं ताकि वोही चोर कहलाये ,औए ये चोर ईमानदार बने रहें.धन्य है मेरे नेता धन्य है मेरा देश

  2. शादाब भाई ये सब इस निक्कमी सरकार के कारण ही हो रहा है देश के बुद्विजीवियो और कुछ प्रभावषाली अर्थषास्त्रीयो का ये मानना है कि देश के कुछ प्रभावशाली और भष्ट लोगो ने देश का एक बडा धन विदेशी बैंको में जमा करा रखा है। जिस पैसे से भारत तरक्की करता, कल कारखाने तरक्की के गीत गाते, जिस पैसे से स्वास्थ्य सेवाए देषवासियो को मिलती, ग्रामीण इलाको में सडको का जाल बुना जाता आज वो पैसा स्विस बैंक की कालकोठरी में बंद है और सरकार चुप है। राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर वर्षो चर्चा हुई पर नतीजा कुछ नही क्यो कि हमारी सरकार इस मुद्दे पर कुछ करना ही चाहती क्यो कि कुछ राजनेता इस की चपेट में आ सकते है। और इस मुद्दे पर सरकार भी गिर सकती है।

  3. शादाब जी आप का कहना एकदम सही है आर्थिक तरक्की के मामले में नए मुकाम बननाने का दावा करने वाला भारत आज भ्रष्टाचार, घोटालो, और काले धन के मामले में नित नये नये कीर्तिमान बना रहा है। आज माननीय उच्च न्यायालय व देश के कुछ लोगो के क्रियशील होने के बावजूद हमारी सरकार, देश के वरिष्ठ अर्थषास्त्री, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, सरकारी नुमाईन्दे व विपक्ष सहित पूरा भारत काले धन की समस्या से चिंतित नही है कि आखिर किस प्रकार इस समस्या से निबटा जाये साथ ही सरकार द्वारा इस मसले पर भी जोर आजमाईश नही की जा रही है। आखिर सरकार उन लोगो के नामो को क्यो सार्वजनिक नही कर रही जिन भारतीयो के नाम विदेषी बैंको में कुबेर का खजाना जमा है। आज देश में सकल घरेलू उत्पाद बढ रहा है, देश भी संपन्न हो रहा है पर देश का एक बडा वर्ग निरंतर गरीब होता जा रहा है दाने दाने को मोहताज होता जा रहा है। कल कारखानो में कर्मचारियो की छटनी हो रही है देश के कर्णधार नौजवान डिग्री लिये एक आफिस से दूसरे आफिस नौकरी के लिये चक्कर काट रहे है हर जगह नोवेकंसी का बोर्ड लगा है। देश में संसाधन बढे है हम मजबूत हुए है फिर भी ऐसा आखिर ऐसा क्यो हो रहा है।

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