मैं कौन हूं? अथ अहं ब्रह्मास्मि

—-विनय कुमार विनायक
मैं कौन हूं?
मन्वन्तर-दर-मन्वन्तर
मनु के बेटों का
मनु की व्यवस्था से
पूछा गया सवाल पूछता है
फिर-फिर मनु का बेटा!
यह जानकर भी
कि जबाव देगा नहीं
व्यवस्थाकार
मानक बनाने वाला
मैं का/मैन का/मन का,
अहंब्रह्मास्मि का व्याख्याता,
समस्त सृष्टि में विशिष्ट होता!
सुविधानुसार संज्ञा-सर्वनाम को
विशेष्य-विशेषण की कसौटी में
अपनी तरह से परखने वाला,
सार को असार/असार को
सार कहने वाला!
भूत-भविष्य-वर्तमान का नियोजक
सुकरात को जहर पिलाने वाला,
कभी जीवित ईसा को शूली चढ़ाकर
मुर्दा इंसान बताते
तो कभी मृत ईसा को
जीवित कर भगवान बनाते!
कभी तुमने ही सहोदर बुद्ध को
स्वमत विरोधी जानकर
देश निकाला दिया था,
किन्तु क्या बुद्ध मर गए?
शायद नहीं और शायद हां भी!
किन्तु क्या तुम जीवित बचे?
नहीं एकदम नहीं,
पर तुम हारे कहां?
चुराकर उनका हीं सिद्धांत
आत्मसात किया/
कोरामीन पी जिया
तुष्टिकरण नीति अपनाकर!
बुद्ध समर्थकों को
बहलाया/फुसलाया!
उनके अनात्मवादी/
अवतारवाद विरोधी नेता को
ईश्वरावतार घोषित कर
ढकेल दिया तैंतीस कोटि
देव मूर्तियों की भीड़ में!
दुश्मन को मारने की कला
कोई सीखे तो तुमसे!

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