यह सनसनीखेज समाचार किसको लाभान्वित कर रहे हैं ?

0
158

 विनायक शर्मा

कल अंग्रेजी के एक समाचारपत्र में छपे समाचार में यह दावा किया गया कि 16 और 17 जनवरी 2012 की रात भारतीय सेना की दो टुकड़ियां केंद्र सरकार को बिना बताए दिल्ली की तरफ बढ़ रही थीं और राजधानी के बेहद करीब तक आ गईं थीं. इस समाचारपत्र के अनुसार सेना की एक टुकड़ी 33वीं आर्मर्ड डिविज़न की मेकेनाइज्ड इनफैन्ट्री जो हिसार से दिल्ली की तरफ बढ़ रही थी वहीँ दूसरी ओर आगरा से भी 50 पैरा-ब्रिगेड की एक टुकड़ी दिल्ली की तरफ बढ़ रही थी. हालांकि रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा ने इस समाचार पत्र के समाचार पत्र का खंडन करते हुए कहा है कि – यह सेना का नियमित और सामान्य अभ्यास था. सेना को चुस्त दुरुस्त रखने और हर तरह के माहोल में तैयार रखने के लिए चलाये जा रहे नियमित अभ्यासों की यह एक साधारण सी धटना है जब उत्तर भारत में धुंध और कोहरे के दौरान सेना की दो टुकड़ियों ने रात्री में इस प्रकार के वातावरण में अपना सामान्य अभ्यास करने के लिए दिल्ली के नजदीक आगरा और हिसार से दिल्ली के लिए कूच किया. परन्तु मीडिया में इसे इस प्रकार से प्रसारित किया जा रहा है जैसे सेना किसी षड़यंत्र के चलते दिल्ली पर धावा बालने जा रही थी. आधी-अधूरी जानकारी के बल पर सनसनीखेज़ पत्रकारिता ( येलो जर्नालिसम ) में नाम कमाने के चक्कर में इस साधारण और बासी समाचार को संयोगों और सन्दर्भों के साथ इस प्रकार से परोसा गया कि एक बार तो यह सब सत्य ही प्रतीत हो रहा था. इस सारे प्रकरण में केवल मीडिया ही दोषी नहीं है, इसमें तो प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और रक्षा मंत्रालय आदि ही सबसे बड़े दोषी हैं जिन्होंने जनरल के उम्र विवाद जैसे एक साधारण से मुद्दे का सरकारी स्तर पर न्यायोचित ढंग से निपटारा नहीं किया जिसके चलते वी के सिंह को सर्वोच्च न्यायालय तक जाना पड़ा. उसके बाद से ही एक के बाद एक ऐसी घटना सामने आ रही है जिससे सरकार और सेना में विश्वास और भरोसे में कमी पैदा करने की नाकाम कोशिश ही माना जाना चाहिए. भारतीय सेना का वीरता, देश भक्ति और मर्यादाओं का अपना गौरवशाली इतिहास और परम्पराएँ रही हैं. पड़ोसी मुल्कों से उलट बगावत, तख्ता पलट और विद्रोह जैसे शब्दों का प्रयोग इस देश में न तो हुआ है और न ही होगा.

बताया जा रहा है कि सेना के स्थापित नियमों के अनुसार इसकी जानकारी सरकार को नहीं दी गई. सरकार को यह जानकारी सेना के गुप्तचर विभाग ने दी. रक्षा मंत्री को भी सूचित किया गया. रक्षा मंत्री ने प्रधानमन्त्री को बताया. सरकार तुरंत हरकत में आई और रक्षा सचिव मलेशिया जो उस समय मलेशिया में थे. को रातों रात बुलाया गया. रात ही में वे अपने दफ्तर पंहुचे. सेना में मिलिटरी आपरेशन के डायरेक्टर जनरल एके चौधरी को बुलाया गया. उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसे इसे महज़ धुंध के समय सेना की क्षमता नापने की एक रिहर्सल बताया. उनसे और जानकारी जुटाने और बताने को कहा गया. वो जुटाने के बाद भी उनका तर्क वही था. तब तक सरकार संभल चुकी थी. उसने सेना की दिल्ली की ओर कूच करती टुकड़ियों को वापिस भिजवाने में सफलता प्राप्त की. इस समाचार में सेना और सरकार पर बहुत से अन्य स्वप्निल सवाल भी खड़े करने का प्रयत्न किया गया.

सूत्रों की मानें तो सेना की टुकड़ियों के अभ्यास के बारे में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस यानी डीजीएमओ को पता था. वहीँ कंट्रोल रूम को टुकड़ियों के हर मूवमेंट के बारे में पता था. सेना के सूत्रों के मुताबिक रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा जब मलेशिया से देश लौटे तो अभ्यास इसलिए रोक दिया गया क्योंकि जनरल विवाद के कारण अविश्वास का माहौल बना हुआ था. सरकार के कहने पर टुकड़ियों को उनके बैरक में वापस भेज दिया गया था.

सेना के एक सामान्य और नियमित अभ्यास के कार्यक्रम को इस प्रकार से परोसा गया कि उस समाचार ने देश भर में सनसनी फैला दी. मान गए मीडिया को, कि एक साधारण सी घटना को उपलब्ध संयोगों और सन्दर्भों के साथ जोड़ते हुए सेना द्वारा कोहरे और धुंध में किये गए इस अभ्यास को इस प्रकार से परोसा जा रहा है कि देश भर में सनसनी की इतनी धुंध फैल जाये कि गैरवाजिब सवालों की ध्वनी के अतिरिक्त कुछ भी सुनाई दे. क्या यह समाचार सेना और सरकार में किसी प्रकार के मतभेद की ओर इशारा करता है ? या सेना की दो टुकड़ियों का १५-१६ जनवरी को जनरल की उम्र विवाद के फैसले वाले दिन को दिल्ली के आसपास उपस्थिति में सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ था ? क्या इस प्रकार के समाचार को अन्य संयोगों से जोड़कर मीडिया तक पहुचानेवाले देश में अस्थिरता फैलाने वाले दुश्मन और हथियारों के दलालों का तो हाथ नहीं है जो जनरल वी के सिंह और सरकार के मध्य मतभेद पैदा कर देश और सेना का मनोबल गिराने का कार्य कर अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए हैं.

अब सरकार की ओर से प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव की ओर से इस सारे प्रकरण को सिरे से ही नकारते हुए इसे तथ्यहीन बताया. वहीँ सेना ने इसे बेतुका बताते हुए कहा है कि यह एक वर्ष पहले पूर्व निर्धारित सालाना कार्यक्रम के तहत किया गया अभ्यास था और सीमान्तक्षेत्र में सैनिक हलचल से पैदा होने वाली अफवाहों से बचने के लिए ही इसे दिल्ली तक के लिए रखा गया था. आशा है कि देश और सेना को कमजोर करने वाले सवालों और चर्चाओं पर अब विराम लग जायेगा. फिर भी इतना तो स्पष्ट है कि इस प्रकार के विवादित समाचार सरकार और सेना में पनप रहे अविश्वास के वातावरण की ओर इशारा तो करते ही हैं. जहाँ मीडिया को इस प्रकार के संवेदनशील समाचारों को प्रकाशित और प्रसारित करने से पूर्व विषय की पूर्ण जानकारी लेनी चाहिए वहीँ सेना और देश को इस प्रकार के समाचारों और उठाये गए सवालों से सावधान रहने की आवश्यकता है.

Previous articleधन्यवाद एनिमीग्राफ
Next articleसेनाध्यक्ष की चिटठी से उठा बवाल
विनायक शर्मा
संपादक, साप्ताहिक " अमर ज्वाला " परिचय : लेखन का शौक बचपन से ही था. बचपन से ही बहुत से समाचार पत्रों और पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं में लेख व कवितायेँ आदि प्रकाशित होते रहते थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान युववाणी और दूरदर्शन आदि के विभिन्न कार्यक्रमों और परिचर्चाओं में भाग लेने व बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ. विगत पांच वर्षों से पत्रकारिता और लेखन कार्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर के अनेक सामाजिक संगठनों में पदभार संभाल रहे हैं. वर्तमान में मंडी, हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र में संपादक का कार्यभार. ३० नवम्बर २०११ को हुए हिमाचल में रेणुका और नालागढ़ के उपचुनाव के नतीजों का स्पष्ट पूर्वानुमान १ दिसंबर को अपने सम्पादकीय में करने वाले हिमाचल के अकेले पत्रकार.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here