ट्रंप की चेतावनी से सहमा डब्लूएचओ

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लिमटी खरे

विश्व स्वास्थ्य संगठन अर्थात डब्लूएचओ पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा शंका जाहिर करने के बाद भी डब्लूएचओ के सदस्य देशों के द्वारा डोनाल्ड ट्रंप की बात पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। इसी बीच कोरोना के चलते डब्लूएचओ की भूमिका पर जांच का प्रस्ताव अवश्य ही स्वीकार कर लिया गया है।

इस पूरे मामले में अगर गहराई से नजर डाली जाए तो इसमें तीन बातें प्रमुख रूप से सामने आती दिखती हैं। इस महामारी के बारे में विस्त्रत जानकारी, इसका इलाज और इसकी रोकथाम के उपाय ही प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं। ये सारी बातें अब जांच के बाद ही पता चल पाएंगी। कहा जा रहा है कि जरूरी सूचनाओं के न मिल पाने के कारण इस महामारी का टीका या दवा बनने का काम अटका हुआ है।

इसके बाद बात की जाए वायरस की उत्पत्ति की। इस मामले में इस वायरस के अस्तित्व में आने, एवं मनुष्यों में तेजी से फैलने के मामले में चीन या डब्लूएचओ के द्वारा क्या किया गया! शुरूआती दौर में वायरस के बारे में चीन या डब्लूएचओ के द्वारा जानकारी तो साझा की गई पर वे जानकारियां सतही ही मानी जा सकती हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है कि चीन और डब्लूएचओ के द्वारा जानकारियां छिपाने का प्रयास भी किया गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। जांच तो इस विषय पर भी होना चाहिए कि क्या चीन और डब्लूएचओ का इस तरह से बर्ताव करने के पीछे कोई छिपा हुआ उद्देश्य भी था!

इस मसले पर एक अहम सवाल आज भी अनुत्तरित ही है। जिस तरह की बातें सोशल मीडिया और मीडिया में आ रही हैं, उस पर अगर यकीन किया जाए तो क्या इस तरह के वायरस को किसी प्रयोगशाला में बनाया जाकर किसी षणयंत्र के तहत लोगों के बीच छोड़ा गया है। इस बात को अमेरिका के राष्ट्रपति जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे डोनाल्ड ट्रंप बार बार दुहरा भी रहे हैं।

देखा जाए तो इस तरह की वैश्विक महामारियां एक दशक या दो दशकों में नहीं आतीं हैं। इस तरह की महामारियां सदियों में एकाध बार ही आती हैं। जब भी इस तरह की महामारियां आती हैं तो उसे ईश्वर या प्रकृति का प्रकोप बताया जाता रहा है। पहली बार किसी आपदा के लिए मनुष्य या प्रयोगशाला को जिम्मेदार माना जा रहा है। इस वायरस को मानव जनित वायरस माना जा रहा है जो गंभीर बात है। इसके लिए लोगों को भरोसा दिलाने की जवाबदेही डब्लूएचओ के कांधों पर ही आहूत होती है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रूख डब्लूएचओ के प्रति काफी कड़क ही नजर आ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के महासचिव टेड्रोस घेब्रेयेसस के नाम लिखा चार पेज का एक पत्र भी सार्वजनिक किया है। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि डब्लूएचओ को चाहिए कि आने वाले एक माह में चीन पर अपनी निर्भरता समाप्त कर ले और स्वतंत्र रूख अख्तियार कर ले, वरना आने वाले दिनों में अमेरिका डब्लूएचओ की सदस्यता को तजकर डब्लूएचओ की फंडिंग भी रोक देगा।

यहां उल्लेखनीय बात यह भी है कि जैव हथियारों के विकास, विस्तार और इनके भण्डारण को नियंत्रित करने के लिए बायोलॉजिकल एण्ड टॉक्सिन वेपंस कन्वेक्शन के तहत 1975 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संधि भी की जा चुकी है। अब समय आ गया है जबकि कम से कम इस अंतर्राष्ट्रीय संधी के प्रकाश में ही सही इस पर सख्ती से अमल और इस तरह के जैविक हथियारों की लगातार जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक कवायद की जाकर ग्लोबल ढांचा तैयार कर लिया जाए।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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