मंत्रिपरिषद में फेरबदल से किसको क्या मिला

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र

देश में यह पहली बार हुआ है कि दो महीने के अंदर तीन बार रेल मंत्री बदले गये हैं। चेहरे बदलने से हालात नहीं बदलते, हालात बदलने के लिए ठोस योजनाओं की व कड़े फैसले लेने की जरूरत होती है। मनमोहन सरकार ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जिस तरह से फेरबदल करते हुए आरोपी व दागी चेहरों को फिर से मंत्री बनाया है उससे उनकी विश्वसनीयता पर फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं। इस फेरबदल से सरकार का भले ही अपना अलग तर्क हो पर इस सत्य को कत्तई नहीं इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे देश की गरीब जनता का कुछ भी भला नहीं होने वाला है

मंत्रिपरिषद में फेरबदल से किसको क्या मिला

मनमोहन सरकार के मंत्रिपरिषद में 28 अक्टूबर को हुए फेरबदल से कुछ सवालों ने फिर जन्म ले लिया है। फेरबदल के पहले यह कयास लगाया जा रहा थ कि देश की विकास को गति देने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता था, लेकिन जिस तरीके से दागी मंत्रियों की जांच की जगह मंत्रिपरिषद में फिर से जगह दी गई वह वास्तव में हतप्रभ करने वाली है। देश की जनता के सामने महंगाई जैसी भयावह समस्या बरकरार है, जिसके निदान की अपेक्षा वह सरकार से कर रही है, पर जिस तरह से लोकसभा चुनव को दृष्टिगत रखते हुए फेरबदल किया गया उसने जनता की सारी मंशा पर पानी फेर दिया है। विपक्ष महंगाई, भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है, ठीक उसी तरह सरकार भी मनमानी करने से नहीं बाज आ रहा है। कोल ब्लाक आवंटन में घोटाले की जांच अभी चल ही रही थी कि कानून मंत्री रहते हुए सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद की संस्था जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट पर विकलांगों के उपकरण मुहैया कराने के नाम पर जारी कोष का दुरुपयोग का मामला सामने आया। जिस पर विपक्ष के साथ पूरा देश जवाब मांग रहा था, कि इसी बीच मनमोहन सरकार ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल करते हुए कुछ नये चेहरे शामिल करतेे हुए सबका ध्यान बांटने का सफल प्रयास किया। कोल ब्लाक आवंटन में घोटाले की बात आने पर सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि वह इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने की दिशा में पहल करती। लेकिन मनमोहन सरकार ने पहले इस मामले को झुठलाने का प्रयास किया और अंत में मामला तूल पकड़ते देख जांच पर सहमति दिखाई। ठीक उसी तरीके से एक टीवी चैनल द्वारा कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की ट्रस्ट पर विकलांगों के उपकरण के लिए जारी राशि के दुरुपयोग की बात सामने आने पर पूरा केंद्रीय नेतृत्व मामले की जांच कराने की जगह सलमान के बचाव में उतर आया। केंद्रीय नेतृत्व को चाहिए था कि वह इन मामलों की निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कर्रावाई करती जिससे जनता के पैसों के दुरुपयोग से बचा जा सकता था साथ ही जनता के बीच विश्वास का जनादेश भी जाता। हैरत की बात तो यह है कि जिन मंत्रियों को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था उनको मंत्रिपरिषद की इस फेरबदल में फिर से स्थान दिया गया। जो साफ दर्शाता है कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ सकता। विपक्ष यह आरोप मढ़ रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मनमोहन सरकार ने यह फेरबदल किया है पर सवाल यह है कि क्या इससे जनता को महंगाई या भ्रष्टाचार जैसी समस्या से निदान मिल सकेगा। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश को फिर से मंत्रिमंडल में उसी पद पर बरकरार रखा गया तो वहीं दूसरी तरफ सलमान खुर्शीद को कानून मंत्री की जगह विदेश मंत्री बनाया गया। बात यही तक सीमित होती तो भी ठीक होता शशि थरूर को फिर से राज्य मंत्री के रूप में मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया। थरूर पहले विदेश राज्य मंत्री थे और अपनी महिला मित्र जो मौजूदा समय में पत्नी है को नियमों की अनदेखी कर लाभ पहुंचाने के मामले में मंत्री पद छोडऩा पड़ा था। जब ऐसे लोगों को मंत्रिपरिषद में जगह दी जाएगी तो उनसे आगे विकास की उम्मीद करना बेइमानी ही होगी। देश में यह पहली बार हुआ है कि दो महीने के भीतर तीन बार रेल मंत्री बदले गए। जिस तरीके से रेल मंत्रियों को बार-बार बदला गया उससे मनमोहन की बौद्धिक क्षमता पर भी सवाल खड़े होते हैं। 21 सितंबर 2012 को रेल मंत्री मुकुल राय के इस्तीफे के बाद 22 सितंबर को सीपी जोशी को कार्यवाहक रेल मंत्री बनाया गया था। जिन्हें मंत्रिपरिषद में हुए फेरबदल के दौरान हटाकर 28 अक्टूबर 2012 को पवन कुमार बंसल को रेल मंत्रालय दे दिया गया। इस फेरबदल पर भाजपा का बयान आया था कि इससे किसी का फायदा होने वाला नहीं है। शायद यह सही भी है। क्योंकि जिस तरह से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ऐतराज जताते हुए बयान दिया है कि इस फेरबदल ने मध्य प्रदेश के कांग्रेसियों को निराश किया है। इससे यह साफ होता है कि इस बदलाव से कांग्रेस के भीतर भी असंतोष है। फिलहाल इस फेरबदल से आम जनता को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। आर्थिक विकास दर को कायम रखने की दिशा में मनमोहन सरकार ने अब तक जितने प्रयास किये उसकी मार जनता को ही झेलनी पड़ी। गरीब परिवार के सामने जीवन यापन की समस्या पैदा हो गई है। विडंबना यह है कि आज जब केंद्रीय नेतृत्व जनहित, महंगाई व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घिरती है तो वह इससे निपटने के लिए उठाये गए कदमों के बारे में बताने की जगह विपक्ष को घेरते हुए राज्य सरकारों ने इस दिशा में क्या किया पूछने लगती है, जबकि जनता यह जानना चाहती है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कांग्रेस सरकार ने क्या किया। 2जी स्पेक्ट्रम, कोल ब्लाक आवंटन, वाड्रा व सलमान खुर्शीद आदि ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिनपर कांग्रेस ज्यादा दिन तक जनता को भ्रमित नहीं कर सकती।

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