बेघरों का दर्द कौन सुने

homeless in winterआराधना द्विवेदी

सर्दी का मौसम घर में रहने वाले लोगों के लिए तो बेहद रूमानी और खूबसूरत होता है, लेकिन इसी भारत के वे लोग जो एक अदद घर के अभाव में खुले आसमान के नीचे फुटपाथ पर अपना जीवन गुजारने को अभिशप्त हैं, के लिए सर्दी का मौसम बड़ा ही त्रासद हो जाता है. सर्दी आते ही लोग अपने लिए सर्दियों के तरह-तरह के इंतजामात करने लगते हैं, लेकिन वे लोग क्या करें जिनके पास एक घर तक नहीं है. उन्हें तो सर्दियों की वे भयानक राते ठिठुरते हुए फुटपाथ पर ही गुजारनी होती हैं. बेघर लोगों से सम्बंधित आंकड़ों पर एक नज़र डालें तो सन २०११ की जनगणना में देश में बेघरों की संख्या में कुछ कमी होने की बात करते हुए उनकी संख्या १७ लाख के आसपास बताई गई. संभव है कि अबतक इसमें कुछ कमी भी आई हो. हालांकि कुछेक सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन आंकड़ों को खारिज करते हुए देश में बेघरों की संख्या इन आंकड़ों से कहीं अधिक होने की बात कही जाती रही है. अब वास्तविकता जो भी हो, पर अगर हम जनगणना के उक्त आंकड़ों को ही सही माने तो भी सवाल उठता है कि आज जब हम आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना संजो रहे, ऐसे वक़्त में हमारे देश की आबादी के एक हिस्से के पास एक अदद घर का न होना हमारे इस सपने पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता है. जनगणना के आंकड़ों के ही अनुसार देश की राजधानी दिल्ली में करीब पचास हजार बेघरों के होने की बात कही गई थी. संभव है कि अबतक इस आंकड़े में भी कमी आई होगी, पर अगर देश की राजधानी में एक भी बेघर होता है तो ये देश के लिए बेहद शर्मनाक है. और दिल्ली के फुटपाथों का हाल तो छुपा नहीं है कि कैसे रात गए दिल्ली के फुटपाथ बेघर लोगों से भरे रहते हैं. अब गर्मियों के मौसम में तो ये बेगाह्र लोग जस-तस फुटपाथ पर अपना समय बीता लेते हैं, हालांकि इसमें भी कितने दफे किसी गाड़ी आदि के नीचे आ जाने से ऐसे लोगों को बेहद दर्दनाक मौत का शिकार भी होना पड़ता है. लेकिन इन बेघर लोगों की हालत ठंडी के मौसम में और भी दारुण हो जाती है. ठण्डी में बिना विशेष बिछौने-ओढ़ने के खुले आसमान के नीचे इन बेघर लोगों को ठिठुरते हुए रात बितानी पड़ती है. हालांकि ठंडी के मौसम में सरकारों द्वारा इन बेघर लोगों के लिए रैन बसेरों आदि के इंतजाम करने की बात की जाती हैं, पर उनकी हकीकत यह होती है कि सरकार के दावे कुछ और होते हैं और जमीन पर उनका क्रियान्वयन कुछ और. इसका प्रमाण ये है कि हर ठंडी घर व ठण्ड से बचने के लिए आवश्यक संसाधन न होने के कारण तमाम बेघर लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. अब अगर सरकारों द्वारा समुचित इंतजाम होते तो शायद ठण्ड से ये मौतें न होतीं. पर इस मामले में सरकारों से अधिक संवेदनशील व सजग तो हमारे न्यायालय दिखते हैं जिनके द्वारा अक्सर ठंडी के मौसम में सरकारों को बेघर लोगों के लिए समुचित रैन बसेरों के इंतजाम करने के निर्देश-आदेश दिए जाते रहते हैं. देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो इसको भी न्यायालय द्वारा बेघर लोगों के लिए रैन बसेरे आदि बनाने के निर्देश अक्सर ठंडी में दिए जाते रहते हैं. इस ठंडी जब दिल्ली में उसकी अपनी कोई सरकार नहीं है और राष्ट्रपति शासन के तहत उसका शासन केंद्र सरकार के ही हाथों में है, तब इन बेघर लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए सरकार की तरफ से रैन बसेरों के अतिरिक्त नए कम्बल व चाय-नास्ता आदि के इंतजाम की भी बात कही जा रही है. हालांकि अब यह देखने वाली बात होगी कि सरकार के ये इंतजामात सिर्फ उसकी कथनी तक ही रह जाते हैं या यथार्थ के धरातल पर भी उनका कुछ क्रियान्वयन होता है.

रैन बसेरा बेघर लोगों की समस्या का सिर्फ एक अस्थायी समाधान है जिससे बेघर लोगों को फौरी राहत मिलती है. बेघरी की समस्या के सन्दर्भ में असल जरूरत तो ये है कि अब इसको लेकर रैन बसेरे जैसे अस्थायी समाधानों के प्रति बहुत गंभीरता दिखाने की बजाय इसके स्थायी समाधान यानी बेघरों को उनका अपना एक अदद घर देने की दिशा में गंभीर हुआ जाय. ऐसा भी नहीं है कि इस दिशा में कुछ हुआ नहीं है. विभिन्न सरकारों द्वारा अपने-अपने शासनकाल में लोगों को घर उपलब्ध कराने के लिए तमाम योजनाएं व कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं. लेकिन विडम्बना ये है कि सरकार की ऐसी अधिकाधिक योजनाएं जरूरतमंद बेघर लोगों को लाभ पहुंचाने की बजाय कुछ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं तो कुछ का लाभ पहले से ही घर वाले संपन्न लोग उठा लेते हैं. यहाँ पहली जरूरत ये है कि सबसे पहले यह पता लगाया जाय कि देश में कुल कितने बेघर लोग हैं, फिर उन्हें चिन्हित किया जाय. उसके बाद चिन्हित लोगों के हिसाब से उनको घर उपलब्ध करवाने के लिए किसी योजना पर विचार किया जाय. अगर ऐसा किया जाता है तो संभव है कि हम अपने देश में मौजूद बेघरी की इस समस्या जो दुनिया में देश की काफी बुरी छवि बना रही है, पर काबू पा सकें.

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  1. सामयिक प्रसंशनीय लेख। लेखिका बहिन को धन्यवाद।

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