इसके पीछे किसका हाथ है

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-अनिल अनूप

लखनऊ में दो कश्मीरी युवकों के साथ कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा की गई मार कुटाई को लेकर कश्मीर घाटी में रोष है और पीडीपी व नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं ने प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए कहा कि देश कश्मीर चाहता है लेकिन कश्मीरी नहीं। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला अगर दशकों पहले घाटी में पत्थरबाजों तथा आतंकवादियों विरुद्ध कुछ कहने व करने की हिम्मत रखते तो शायद जो दु:खद घटना लखनऊ में हुई वह न होती। इस घटना के पीछे किस का हाथ है और किस मकसद से यह घटना कराई गई है यह बातें तो छानबीन के बाद ही पता चलेंगी। लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि इस घटना को किसी तरह भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।
जम्मू बस स्टैंड पर हुए ग्रेनेड हमले में एक की जान गई और 32 घायल हुए। इस घटना की प्रतिक्रिया में न तो जम्मू क्षेत्र में और न ही देश के किसी अन्य भाग में कश्मीरियों पर किसी ने उंगली उठाई जबकि ग्रेनेड फेंकने वाला कश्मीरी ही था। इस स्थिति से समझा जा सकता है कि देश में कश्मीरियों के प्रति न तो नफरत है और न ही कोई विश्वास की कमी है। देश के विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संगठनों में कश्मीर के लोग आज भी शांतिपूर्वक काम कर रहे हैं। कश्मीरी लोग सेब, मेवों और शालें बेचने का काम देश में आज भी दुकानों पर तथा घर-घर जाकर कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जब कश्मीरी लोग घरों में जाकर अपना सामान बेचने जाते हैं तो घरों पर औरतें और बच्चे ही होते हैं। अगर मर्दों की गैर हाजिरी में कश्मीरी घरों में जाकर अपना सामान बेच सकते हैं तो फिर उनके प्रति नफरत और अविश्वास करने का आरोप लगाना गलत है।
पिछले दिनों जालंधर में कश्मीरी युवकों ने जो पढ़ाई करने यहां आए हुए थे उन पर पुलिस चौकी पर बम फेंकने का आरोप लगा था। मामले की छानबीन हो रही है। कुछ आरोपी पकड़े गए हैं और कुछ की तलाश जारी है। उपरोक्त घटना के बावजूद जालंधर में आज भी कश्मीर घाटी के लोग अपना व्यवसाय भी कर रहे हैं और विद्यार्थी पढ़ भी रहे हैं। हां आतंकियों का समर्थन और उनके किए कुकर्मों को समर्थन करने वालों पर अवश्य लोगों ने अपना गुस्सा निकाला और उसी कारण कुछ छात्र घाटी वापस भी चले गए।
कश्मीर घाटी से तीन दशक पहले निकाले गए कश्मीरी पंडितों की घर वापसी आज तक भी संभव नहीं हो सकी क्योंकि कश्मीर घाटी में आतंकियों का दबाव आज भी बना हुआ है। पाकिस्तान के समर्थन व सहयोग से आतंकी भारत में प्रवेश करते हैं और घाटी का ही एक छोटा सा वर्ग उन्हें पनाह देता है। घाटी के इस वर्ग की शह पर यह आतंकी भारतीय सेना पर बम व ग्रेनेड फैंकते हैं। जब सेना इन्हें घेर कर मारती है तो सेना पर पत्थर मारे जाते हैं। यह सिलसिला पिछले 3-4 दशकों से चल रहा है। घाटी में इतना कुछ घटित हो जाने के बावजूद भी देश के किसी भाग में कश्मीरियों के विरुद्ध किसी ने कुछ नहीं किया। घाटी में देशवासी आज भी अतीत की तरह घूमने जा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि देशवासी कश्मीरियों में विश्वास रखते हैं तथा उन्हें देश के नागरिकों के रूप में ही देखते हैं, लेकिन समस्या तब आती है जब घाटी के विभिन्न राजनीतिक दलों व धार्मिक संगठनों के नेता अपने को भारतीय कहने से हिचकिचाते हैं। भारत के संविधान की कसम खाकर भारत का नमक खाकर जब कोई पाकिस्तान का गुणगान करेगा तो उस वर्ग से नफरत ही होगी और उस वर्ग को कटघरे में खड़ा होना ही होगा।
भारतीय संविधान ने सब नागरिकों को अपनी भाषा, समुदाय, क्षेत्र तथा परम्पराओं को विकास करने का अधिकार अवश्य दिया है लेकिन इस अधिकार की आड़ में संविधान विरोधी कुछ करने का अधिकार किसी के पास नहीं है। घाटी में आज देश विरोधी तत्वों पर नकेल कसी जा रही है। सीमा के इस पार और उस पार आतंकी दबाव में हैं। भारत सरकार आतंकियों विरुद्ध एक निर्णायक लड़ाई लडऩे को तैयार है और ठोस कदम भी उठा रही है। ऐसे में जो आतंकियों के साथ खड़े दिखाई देंगे वह भी शक की निगाहों से देखे जाएंगे और इसी वर्ग पर उंगली भी उठेगी।
भारत का कश्मीर जिस तरह अभिन्न अंग है उसी तरह कश्मीरी भी भारतीय ही हैं और उन पर सब को विश्वास है। हां भारत विरोधियों पर अवश्य आज उंगली उठ रही है और इस वर्ग को अविश्वास की भावना से देखा भी जा रहा है। देश के संविधान व व्यवस्था में विश्वास करने वालों को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे आपसी प्यार व भाईचारा कमजोर हो। जम्मू में ग्रेनेड फेंकने वाले को भी उसके किए की सजा मिलनी चाहिए और लखनऊ में कश्मीरी युवाओं के साथ मारपीट करने वालों को भी उनके किए की सजा मिलनी चाहिए ताकि सबका विश्वास लोकतांत्रिक व्यवस्था में बना रहे।

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