अपने बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाना तथा उनके कल्याण के लिए अपने जीवन में हरसंभव कुर्बानियां देना प्रत्येक माता-पिता व बच्चों के अभिभावकों का दायित्व है। दुनिया के अधिकतर समाज के लोगों द्वारा अपना यह दायित्व निभाया भी जाता है। परंतु अभी भी पूरे विश्व में खासतौर पर एशियाई देशों में ऐसे अनेक माता-पिता व अभिभावक देखे जा सकते हैं जिनकी कुंठित व स्वार्थपूर्ण सोच उनके अपने ही बच्चों के भविष्य को न केवल अंधकारमय बना देती है बल्कि अपने माता-पिता तथा अभिभावकों से उपेक्षित ऐसे ही बच्चे आगे चलकर समाज को दुष्प्रभावित भी करते हैं। हमारा देश भाारतवर्ष भी ऐसे गैरजि़म्मेदार माता-पिता व अभिभावकों से अछूता नहीं है।
समाचार पत्रों में प्राय: ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जिनसे पता चलता है कि कहीं किसी ने अपने नवजात शिशु को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया। कभी किसी बालकन्या को कोई माता-पिता रेलगाड़ी में ही छोड़कर या बस अड्डे या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर बिठाकर अपनी ही बेटी के प्रति अपनी जि़म्मेदारियों से मुंह मोड़कर फऱार हो जाते हैं। कई अभिभावक व माता-पिता अपने मानसिक व शारीरिक रूप से विक्षिप्त किसी संतान को देश में किसी दूर-दराज़ स्थान पर या लावारिस बच्चों की परवरिश करने वाले किसी अनाथालय या आश्रम में छोड़ आते हैं। यह तो भला हो हमारे समाज में ऐसे उच्च विचार रखने वाले उन चंद लोगों का जिन्होंने अपने दरवाज़े इसी प्रकार के गैरजि़म्मेदार व अयोग्य अभिभावकों के लिए खोल रखे हैं जहां उनकी उपेक्षित व उनपर बोझ प्रतीत होने वाली संतानों की परवरिश की जाती है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के समीप एक पूरा गांव इसी प्रकार के विकलांग व मानसिक रोगियों के लिए दशकों से अपनी सेवाएं देता आ रहा है। प्रतिदिन कई माता-पिता अपने मंदबुद्धि अथवा विकलांग बच्चों को यहां छोडऩे आते हैं। और इस गांव के लोग मां-बाप को बोझ प्रतीत होने वाली उनकी संतानों को बड़े ही प्यार व सत्कार से अपने घरों में रखकर उसे उसकी मरज़ी के अनुसार जीने का पूरा अवसर देते हैं। उसका दवा-इलाज करते हैं तथा काफी हद तक उसे सामान्य करने का भी प्रयास करते हैं। कितने अजीबोगरीब है, भारतीय समाज के यह दो पहलू। एक ओर तो माता-पिता अपने ही खून को केवल इसलिए अपने से दूर करते हैं, क्योंकि मंदबुद्धि या विकलांग होने के कारण वह बच्चा उन्हें अपने ऊपर बोझ प्रतीत होने लगता है तथा उनकी रोज़मर्रा की सामान्य जि़ंदगी को प्रभावित करता है। या फिर उनके घर व परिवार में आने-जाने वाले उनके अतिथियों या रिश्तेदारों के समक्ष वे स्वयं को उस विक्षिप्त बच्चे की वजह से अपमानित महसूस करते हें। और दूसरी ओर ईश्वर ने इसी समाज में ऐसे लोग भी पैदा किए हैं जो दूसरों को बोझ लगने वाली उनकी संतानों के लिए रहमत का सबब बनते हैं। जबकि इन दोनों के बीच न कोई खून का रिश्ता होता है न ही धर्म-जाति या बिरादरी का। केवल मानवता के रिश्ते के चलते यह समाजसेवी इन बच्चों की सहायता करते हैं। ऐसे लोग ईश्वर के किसी अवतार से कम नहीं हैं।
परंतु जो अभिभावक या माता-पिता अपने विकलांग या मानसिक रोगी बच्चे को न तो किसी उचित ठिकाने पर पहुंचा पाते हैं न ही स्वयं उसकी परवरिश ठीक ढंग से कर पाते है। वे अपने बच्चे को या तो इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ देते हैं या उसे उसकी इच्छाओं व संसारिक ज़रूरतों से वंचित रखते हैं। नतीजतन ऐसे बच्चे बड़े होकर इसी समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं तथा समाज को दूषित करने का काम करने लगते हैं। ऐसे बच्चे मां-बाप की उपेक्षा के चलते गलत लोगों की संगत का शिकार हो जाते हैं। इसके पश्चात यह बुरी संगत उन्हें नशीली सामग्री का व्यापार, चोरी, भीख मांगना, ठगी करना, रेलगाड़िय़ों में झाड़ू लगाने, रेलवे प्लेटफॉर्म पर अपनी जि़ंदगी गुज़ारने या इससे भी भयावह किस रास्ते पर ले जाती है कुछ पता नहीं होता। गोया ऐसे उपेक्षित बच्चे केवल अपने माता-पिता या अभिभावकों की लापरवाही के चलते न केवल अपने जीवन व भविष्य को समाप्त कर डालते हैं बल्कि इनकी आपराधिक गतिविधियों का खामियाज़ा आम लोगों को भी किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है।
कुछ समय पूर्व दक्षिण भारत के एक इलाके की एक रिपोर्ट पढ़कर पता चला कि एक सुनसान इलाके में ईसाई मिशनरीज़ द्वारा एक ऐसा ही अनाथालय चलाया जा रहा है। जहां विकलांगों तथा शारीरिक व मानसिक रोगियों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है। और उन्हें अपने ही अनाथालय में पूरे सम्मान के साथ रखा भी जाता है। इस अनाथालय से कुछ दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग है। जिसपर 24 घंटे ट्रैफिक चलता रहता है। खबरों के अनुसार कई ऐसे माता-पिता जो शर्म के मारे अनाथालय में जाकर अपना परिचय नहीं देना चाहते हैं वे अपने रोगी बच्चों को उसी अनाथालय के समीप राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही छोडक़र वहीं से भाग जाते हैं। $खबरों के ही अनुसार यदि रात के समय कोई बीमार या विक्षिप्त लडक़ी किसी ट्रक ड्राईवर के हत्थे लग जाती है फिर उसे और अधिक अत्याचार का सामना करना पड़ता है। ऐसे अभिभावकों के लिए कौन से शब्द प्रयोग करने चाहिए जोकि केवल अपने निजी ऐशो-आराम के चलते अपनी ही पैदा की हुई संतान के इतने बड़े दुश्मन बन जाते हैं? जबकि इस बच्चे की विकलांगता या उसके मानसिक रोगी होने में उस बच्चे का अपना कोई भी दोष नहीं। यदि वैज्ञानिक शोध की तह में जाएं तो बच्चे ही इस शारीरिक दुर्दशा के लिए भी कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में स्वयं माता-पिता ही जि़म्मेदार होते हेँ।
पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने किन्नर समाज द्वारा चलाए जा रहे लंबे संघर्ष के बाद एक निर्णय सुनाया जिसमें किन्नर समाज को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इस फैसले के बाद उपेक्षित किन्नर समाज के कई शिक्षित लोगों द्वारा अपनी मनोस्थिति को लेकर टीवी चैनल्स पर लंबी चर्चाएं की गईं। इस चर्चा व बहस में भी यही बातें सामने निकल कर आर्इं कि कुल मिलाकर इस समाज के लोग भी आखिर किसी न किसी संपूर्ण पुरुष व स्त्री जैसे सामान्य माता-पिता की ही संतानें होती हैें। परंतु उनके परिवार में पैदा होने वाला जो बच्चा बड़ा होकर लिंग के आधार पर संदिग्ध प्रतीत होने लगता है। अथवा उसके भीतर पुरुष अथवा स्त्री में पाए जाने वाले हारमोनस प्राकृतिक रूप से बढ़ते हुए नज़र नहीं आते। फिर यह माता-पिता अपने उसी बच्चे से पीछा छुड़ाने की युक्ति ढूंढ़ने लगते हैं। उन्हें इस बात का डर सताने लगता है कि उनके घर में हिजड़ा या किन्नर बच्चा देखकर समाज उन्हें क्या कहेगा? वे सोचने लगते हैं कि यह बच्चा उनकी बदनामी का कारण बन सकता है तथा लोग उनसे इस बच्चे के चलते रिश्ता भी खत्म कर सकते हैं। ऐसे माता-पिता यहां तक सोचते हैं कि एक किन्नर संतान के कारण उनके दूसरे सही सलामत व संपूर्ण बच्चों की शादी-विवाह के रिश्ते भी बाधित हो सकते हैं। और इन्हीं शंकाओं से घिरकर वे अपने मानसिक रूप से पूरी तरह सही सलामत व संपूर्ण होशो-हवास रखने वाले बच्चे को बचपन में ही जाकर किन्नर समाज के हवाले कर आते हैं। अब आगे चलकर वह बच्चा अपने जीवन में कितने उतार-चढ़ाव देखता है, किन दु:ख-तकलीफों से गुज़रता हुआ अपना शेष जीवन बिताता है, इन वास्तविताओं से माता-पिता पूरी तरह से मुंह मोड़ लेते हैं।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जहां कहीं भी लावारिस बच्चे किसी भी बुरी संगत का शिकार नज़र आते हैं या समाज के लिए वे खतरा बन जाते हैं उसमें इन बच्चों से अधिक कुसूर उन माता-पिता का ही है जो अपनी ही पैदा की हुई संतानों को शारीरिक अथवा मानसिक तकलीफ में उनका साथ देने व उनका हौसला बढ़ाने की बजाए महज़ अपनी ऐशपरस्ती की खातिर उससे पीछा छुड़ाकर उसके जीवन को नरक में ढकेलने का काम करते हैं। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि ऐसे ही माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को अंधकारमय तो बनाते ही हैं, साथ-साथ इन बच्चों के कारण समाज को पहुंचने वाली क्षति के भी यही जि़म्मेदार हैं।
पाकिस्तानी बॉर्डर पर जहाँ स्कूल प्रिंसिपल बच्चों को माइक पर सिखाते हैं -” हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है, बड़ों के पाँव छूना गुलामी की निशानी है…………”
सच कहा मित्र आपने – पूरे देश का वही हाल है- गुजरात के रिलायंस टाउनशिप में आज(11-4-13) को हैदराबाद के मूल निवासी मि.अकबर नाम के के.डी.अम्बानी विद्या मंदिर में कार्यरत एक फिजिक्स टीचर ने आत्महत्या कर लिया है, पर रिलायंस वाले उसे हाइवे की दुर्घटना बनाने में लगे हैं, आसपास की जनतांत्रिक संस्थाएँ रिलायंस की हराम की कमाई को ड्कार के सो रही हैं। शिक्षक जैसे सम्मानित वर्ग के साथ जब ये हाल है तो आम कर्मचारी कैसे होंगे ? आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं ।पहले भी एक मैथ टीचर श्री मनोज परमार का ब्रेन हैमरेज स्कूल मीटिंग में ही हो गया थ। मैंने पहले ही सावधान किया था पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और 30 साल के एक नौजवान को हम बचा नहीं पाए सब उस कत्लखाने में चले आते हैं काश लोग लालच में न आते बात को समझ पाते………. पाकिस्तानी बार्डर के उस इलाके में जहाँ स्कूल प्रिंसिपल बच्चों को हिंदी दिवस के दिन माइक पर सिखाते हैं -” हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है, बड़ों के पाँव छूना गुलामी की निशानी है, गाँधीजी पुराने हो गए उन्हें भूल जाओ, सभी टीचर अपनी डिग्रियाँ खरीद कर लाते हैं तथा आपके माँ-बाप भी डाँटें तो पुलिस में केस कर सकते हो।” असहमति जताने पर 11सालों तक स्थाई रूप में काम कर चुके आकाशवाणी राजकोट के वार्ताकार तथा सबसे पुराने योग्य-अनुभवी हिंदी शिक्षक/ शिक्षिकाओं व उनके परिवारों को बड़ी बेरहमी से प्रताड़ित करके निकाला जाता है। स्थानीय विधायकों, रिलायंस अधिकारियों के साथ-साथ धृतराष्ट्र की तरह अंधी राज्य सरकार भी बार-बार निवेदन के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं —– पूरा खानदान ही खूनी है, मुकेश अम्बानी पेट्रोल – डीजल के दाम बढ़वाकर महँगाई बढ़वाकर देश को लूट रहे हैं, मना करने पर रातोंरात श्री जयपाल रेड्डी को हटवाकर वीरप्पा मोइली को पेट्रोलियम मंत्री बनवाकर लूट जारी रखे हैं। नीता अम्बानी के.डी. अम्बानी विद्या मंदिर रिलायंस स्कूल जामनगर ( गुजरात ) की चेयरमैन हैं और वहाँ हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ जानवरों जैसा सलूक होता है । कई लोगों ने प्रताड़नाओं से तंग आकर आत्मह्त्या तक कर लिया है, जिनपर लिखित और मौखिक शिकायत करने के बाद तथा महामहिम राष्ट्रपति-राज्यपाल और प्रधानमंत्री का जाँच करने का आदेश आने के बावजूद भी रिलायंस की हराम की कमाई डकार कर गुजरात सरकार चुप बैठी है । जहाँ शिक्षक-शिक्षिकाएँ ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हों वहाँ की शिक्षा के बारे में आप सोच सकते हो !