”भगवान” माने जाने वाले डाक्टरों का इलाज कौन कर सकता है ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

पी एम मोदी भी अस्पतालों में गरीबों की अनदेखी से चिंतित हैं।

   ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट यानी एम्स के एक समारोह में प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों डाक्टरों द्वारा गांवो और गरीब मरीज़ों की अनदेखी का मुद्दा उठाकर एक बार फिर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी नज़र हर क्षेत्र में सुधार और गुणवत्ता के साथ गरीबों के साथ होने वाली उपेक्षा को खत्म करने की है। उधर बिहार से ख़बर मिल रही है कि वहंा बाहुबली सांसद पप्पू यादव ने तो बाकायदा ऐसे डाक्टरों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है जो रोगियों को नोट छापने की मशीन मानकर मानवता की बजाये पैसे को ही सब कुछ समझ बैठे हैं। हालांकि इस बात पर कई लोग असहमत हो सकते हैं कि पप्पू यादव जैसा चर्चित और विवादित सांसद किस मुंह से डाक्टरों के खिलाफ आवाज़ उठा सकता है? एक माफिया को नैतिकता की बात करना शोभा नहीं देता?

    लेकिन हमारा मानना है कि यह विषय से भटकने की बात होगी क्योेंकि पीएम मोदी हों या एमपी पप्पू सभी की कमियां तलाश करो तो कुछ ना कुछ मिल ही जायेंगी लेकिन हमंे निष्पक्षता और तटस्थता से यह देखना चाहिये कि मुद्दा क्या है? यह सवाल गौण हो जाता है कि समस्या उठा कौन रहा है? अगर गहराई से देखा जाये तो देश में सौ फीसदी ईमानदार नेता और जनप्रतिनिधि तलाश करना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जायेगा। बिहार में पप्पू यादव ने डाक्टरों की मनमानी और कमीशनखोरी को लेकर जो सवाल उठाये हैं ऐसा नहीं है कि ईमानदार और साफ सुथरी छवि के डाक्टर नहीं हैं लेकिन यह सच है कि आज उनकी तादाद काफी कम रह गयी है। विडंबना यह है कि बिहार से शुरू हुए इस आंदोलन का जवाब डाक्टर अपने पेशे में घुस आये ब्लैकशीप को निकाल बाहर करने की बजाये अपने संगठन के बल पर जनता की आवाज़ को दबाना चाहते हैं।

   डाक्टरों ने आंदोलन का जवाब हड़ताल से देने की धमकी दी है। इसका मतलब साफ है कि वे अपनी जवाबदेही और नैतिकता से बचना चाहते हैं। अगर पप्पू यादव की छवि के हिसाब से आंका जाये तो यह आंदोलन चालू होते ही खत्म हो गया होता लेकिन उन्होंने मुद्दा ऐसा उठाया है जिसको लेकर आम जनता पहले से ही गुस्से और नाराज़गी से भरी हुयी है। डाक्टरों के खिलाफ इस आंदोलन को जो लोग सपोर्ट कर रहे हैं वे पप्पू यादव के साथ नहीं हैं बल्कि डाक्टरों की लूट और महंगे इलाज के खिलाफ हैं। पप्पू यादव का दो टूक कहना है कि जिस डाक्टर को लोग पहले भगवान मानते थे आज वह लालच और स्वार्थ मंे इतना अंधा हो चुका है कि उसको गरीब की सेहत और उसकी जान तक की बिल्कुल चिंता नहीं है। वह कमीशन खाने के चक्कर में शैतान तक बनने को तैयार रहता है।

   उनका दावा है कि सरकारी डाक्टर अपनी ड्यूटी ठीक से करने की बजाये प्राइवेट पै्रक्टिस करके अधिक से अधिक धन कमाना चाहते हैं तो प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल तो मरीजों की खाल उतारने को तैयार बैठे रहते हैं। उनका आरोप है कि वे लोगोें को करैंसी और कमोडिटी मानकर चल रहे हैं। उनको इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि गरीब आदमी इलाज के लिये इतनी बड़ी रकम कहां से लायेगा? खुद सरकार के आंकड़े गवाह है कि हर साल लगभग 3 करोड़ मीडियम क्लास लोग गंभीर बीमारी की चपेट में आकर इलाज कराने के चक्कर में गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। ऐसे बीमारों की भी बड़ी संख्या है जो महंगा इलाज ना करा पाने की वजह से या तो घर पर ही तिल तिल कर मरने को मजबूर हैं या फिर नीम हकीम, तांत्रिक और झोलाछाप डाक्टरों के झांसे मेें आकर आत्महत्या तक को मजबूर हो जाते हैं।

    पप्पू अपने आरोपोें के पक्ष में ठोस सबूत पेश करते हुए कहते हैं कि यह एक साज़िश है कि अधिकांश सरकारी अस्पतालों की पैथालॉजी, एक्स रे और ब्लड बैंक जैसी सुविधायें ख़राब पड़ी रहती हैं और मरीजों को बाहर पैसा ख़र्च कर महंगे टैस्ट कराने पड़ते हैं जिस में डाक्टरों का भारी कमीशन होता है। ऐसे ही सस्ती जैनरिक दवायें ना लिखकर जानबूझकर डाक्टर वो महंगी ब्रांडेड दवायें लिखते हैं जिनसे उनको मोटा कमीशन मिलता है। अच्छे और स्पेशलिस्ट डाक्टरों ने अपनी फीस भी 500 से लेकर 2000 तक कर रखी है जो बहुत ज़्यादा है। इसकी वजह डाक्टरी की पढ़ाई प्राइवेट सैक्टर में बेहद महंगा होना बताया जाता है लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकारी क्षेत्र में नाम मात्र की फीस पर पढ़े डाक्टर  कम फीस लेने को तैयार हैं? नहीं वे भी इस लूट और ठगी के गोरखधंधे में बराबर के शरीक पाये जा रहे हैं।

   ऐसे ही अल्ट्रासाउंड पर बताया जाता है कि मुश्किल से 80 से 100 रू. की लागत आती है जिसपर 100 प्रतिशत लाभ लेकर अगर 200 रु. भी वसूल लिये जायें तो किसी को कोई एतराज़ नहीं होगा जबकि शायद ही किसी और पेशे में इस तरह 100 प्रतिशत नफ़ा लिया जाता हो लेकिन डाक्टर इस काम के 500 से 3000रू. तक ले रहे हैं। गड़बड़ी इतनी है कि डाक्टर और नर्सिंग होम इस तरह के भुगतान का बिल और रसीद भी नहीं देते। ज़रूरत ना होने पर भी हर मरीज़ को कमीशन खाने के चक्कर में पांच सात टैस्ट लिखे जा रहे हैं।

    इसका हल यही हो सकता है कि चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और नियम कानून का पालन सरकार सुनिश्चित करे जिससे उनको अपनी फीस और अन्य चार्ज का ना केवल बोर्ड लगाना अनिवार्य हो बल्कि हर तरह के भुगतान की रसीद देना भी कानूनन ज़रूरी बनाया जाये। कानून बनाने के साथ ही कानून लागू करने में भी ईमानदारी बरतनी होगी क्योंकि आज भी 20 प्रतिशत मरीज़ निशुल्क देखने और भर्ती करने का कानूनी प्रावधान है लेकिन शायद ही कोई डाक्टर इसका पूरी तरह पालन कर रहा हो? फिल्म अभिनेता आमिर खान ने अपने टीवी शो सत्यमेव जयतेमें भी डाक्टरों की इन शिकायतों को उठाया था लेकिन वो बात वहीं तक रह गयी। आज ज़रूरत ईमानदार डाक्टरों को सम्मान देने के साथ लालची डाक्टरों को सज़ा दिलाने की है लेकिन सारे समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट आने की वजह से हर वर्ग एक दूसरे की कमियां बताकर अपने पापों को छिपा रहा है।

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर,

 सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है ।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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