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मां गुमसुम सी सोचती कहूं किसको? - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
---विनय कुमार विनायकमानव जीवन में झमेले ही झमेले,छठी से अर्थी तक पीड़ा ही झेलते! सबका साथ रिश्तों का रेलम-पेला,यहां दुःख भोगे सब कोई अकेला! दुःख के दिन, अंगद पांव के जैसे,टस से मस की गुंजाइश ना होते! दर्द आवारा आशिक देखे ना दिन,झोपड़ी से महल तक दबोच लेते! सुख नेवला…