भारत को आंखें क्यों दिखा रहा है ड्रेगन!

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(लिमटी खरे)

चीन के द्वारा एक ओर तो दुनिया भर को कोरोना कोविड 19 के वायरस से तंग कर रखा है वहीं दूसरी ओर चीन अब भारत को आंखें दिखा रहा है। कोरोना कोविड 19 का संक्रमण चीन के वुहान प्रांत से ही आरंभ हुआ है। भारत और चीन के बीच लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कुछ समय से चल रहा विवाद अब गंभीर रूख अख्तियार करता दिख रहा है। खतरा तो इस बात का भी लग रहा है कि लगभग तीन साल पहले भूटान, तिब्बत और सिक्किम के त्रिकोण में उतपन्न हुई डोकलाम जैसी स्थितियों से एक बार फिर दो चार न हाना पड़े।

भारत का कुछ हिस्सा, नेपाल, पाकिस्तान और चीन के द्वारा काफी पहले दबाया जा चुका है। अब भारत अपनी सीमाओं को लेकर पहले से ज्यादा सतर्क है। उधर, चीन भी पूरी तरह सजग ही दिख रहा है। अब किसी भी देश के द्वारा दूसरे देश की सीमा पर कब्जा करना जरा मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है। आजाद भारत में हुक्मरानों को चाहिए था कि वे अब तक भारत के पड़ोसी देशों चाहे वह नेपाल हो, पाकिस्तान या चीन सभी के साथ आपसी सीमाओं पर एक बेहतर हल निकालकर सीमा को स्थायी रूप दे दिया जाता।

चीन के द्वारा एलओसी पर यदा कदा की जाने वाली हरकतों के साथ ही अनेक मामलों के कारण तनाव बढ़ने के लिए जिस तरह का माहौल तैयार हुआ है वह चिंता की बात मानी जा सकती है। उधर, चीन और अमेरिका के बीच चल रहा व्यापारिक युद्ध एवं वर्चस्व की जंग के कारण माहौल गरमाता दिखा, इतना ही नहीं कोरोना कोविड 19 वायरस के संक्रमण के कारण चीन और अमेरिका के रिश्तों में आई तल्खियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। आज दुनिया के अनेक देशों और चीन के बीच शीत युद्ध की स्थिति बनी दिख रही है।

देखा जाए तो भारत के रिश्ते अमेरिका और चीन से लंबे समय से अच्छे ही माने जा सकते हैं। भारत के व्यापारिक रिश्ते भी दोनों ही देशों के साथ बहुत ज्यादा फलते फूलते रहे हैं। माना जाता है कि चीन और अमेरिका दोनों को अपनी अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए भारत से सहयोग की दरकार है। इसके साथ ही एक आम धारणा यह भी बनती रही है कि वैश्विक धु्रवीकरण में भारत का झुकाव चीन के बजाए अमेरिका की ओर ज्यादा ही दिखता आया है।

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे शीतयुद्ध में बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच भारत को बहुत ही ज्यादा संभलकर रहने की जरूरत महसूस हो रही है। भारत के द्वारा जम्मू काश्मीर को लेकर जिस तरह के फैसले लिए हैं, उनको देखते हुए हमारी भविष्य की रणनीति भी तैयार होना चाहिए। भारत को इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि किसी भी कीमत पर हम अपना कंधा किसी और की बंदूक को रखने के लिए इस्तेमाल न होने दें।

देखा जाए तो भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा अर्थात एलओसी दुनिया भर में सबसे लंबी खुली सीमा के बतौर जानी जाती है। यहां अहम बात यह भी है कि लगभग आधी सदी अर्थात पचास सालों से इस सीमा पर गोलीबारी का इतिहास भी नहीं है, यह सिलसिला आगे भी बदस्तूर जारी रहे इस तरह की रणनीति बनाने की आज जरूरत महसूस हो रही है।

लद्दाख के पास पूर्वी ओर एलओसी के पास गलवां घाटी एवं पैंगोंग झील के आसपास कुछ दिनों से ड्रेगन अर्थात चीन के द्वारा जिस तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, उन्हें सामान्य तो किसी भी कीमत पर नहीं माना जा सकता है। लगभग एक सप्ताह में ही इस क्षेत्र में चीन के द्वारा लगभग एक सैकड़ा से ज्यादा तंबू गाड़कर यहां भारी मात्रा में सैनिकों को भी तैनात कर दिया गया है। क्षेत्र में बंकर बनाने के लिए भी कवायद होती दिख रही है।

चीन के द्वारा इस तरह की गतिविधियां क्यों की जा रही हैं, इस बारे में गंभीर होने की जरूरत है। इस तरह की कवायद कर क्या चीन भारत को धमकाना चाह रहा है! अगर धमकाना चाह रहा है तो क्या अमेरिका की उन कंपनियों जो चीन को छोड़कर वापस अमेरिका लौट रहीं हैं को भारत अपने देश में व्यापार के लिए स्थान न दे पाए, इसलिए किया जा रहा है! या फिर चीन एक बार फिर भारत के कुछ हिस्से पर अतिक्रमण कर उन क्षेत्रों को विवादित बनाना चाह रहा है! वैसे चीन की मंशा तो यही दिख रही है कि वह डोकलाम जैसा घटनाक्रम एक बार फिर दोहराने को आतुर है। इसके चलते वह भारत पर दबाव बनाने की सुनियोजित रणनीति पर चलता दिख रहा है, भले ही इसका कारण जो भी हो!

देखा जाए तो चीन के द्वारा जिन स्थानों पर सैनिकों का जमावड़ा किया जा रहा है वह भारत का अभिन्न अंग ही रहा है। वेसे पूर्वी लद्दाख की इस एलओसी को लेकर भारत और चीन के बीच एक अलिखित समझौता भी हुआ था जिसमें दोनों देशों के द्वारा एक दूसरे देश के क्षेत्र का सम्मान करने और एक दूसरे की सीमा में अतिक्रमण न करने की बात कही गई थी, अब चीन इस अलिखित समझौते का उल्लंघन करता दिख रहा है जो चिंता की बात मानी जा सकती है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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