मुस्लिम महिलाओं पर ‘विवादित’ फतवे क्यों?

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– आशीष रावत

देश में कट्टपंथी मुसलमानों द्वारा एक माहौल बनाया जा रहा है जो देश के लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। हम देश में महिलाओं की भागदारी को प्राथमिकता देने की बात करते हैं। अगर मुट्ठीभर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा दिए गए मुस्लिम महिलाओं पर विवादित फतवों की परवाह करेंगे तो कहीं हमारे देश का महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम पीछे न छूट जाए। इस्लाम से जुड़े किसी मसले पर कुरान व हदीस के अंतर्गत जो हुक्म जारी किया जाता है उसे फतवा कहते हैं। फतवा केवल मुफ्ती ही जारी कर सकता है और मुफ्ती बनने के लिए शरिया कानून, कुरान और हदीस का अध्ययन जरूरी है।

ऐसे न जाने कितने विवादित फतवे मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ आए हैं। हाल ही में एक फतवा राफिया नाज़ नामक युवती के खिलाफ जारी किया गया। राफिया नाज़ रांची के एक अनाथालय में योग सिखाती हैं और यही बात कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों को सहन नहीं हुई। कई महीनों से राफिया नाज़ को लगातार परेशान और धमकाया जा रहा था। मोबाइल फोन पर एस.एम.एस. भेजकर धमकियां दी जा रही थीं। जब राफिया नाज़ ने हिम्मत दिखाकर इसकी शिकायत की तो 8 नवम्बर को 24 घंटे के भीतर ही तीन बार उनके घर पर पत्थरबाजी की गई। एक मुस्लिम युवती को सिर्फ इसलिए परेशान किया जा रहा है क्योंकि वो योग का प्रचार और प्रसार कर रही है। योग का प्रचार करने की वजह से राफिया नाज़ को धमकियां तक दी जा रही हैं। ये कैसे धर्म के ठेकेदार हैं जिन्होंने योग को नफरत की तलवारों से बांट दिया है?

दारूल उलूम देवबंद ने 7 अक्टूबर, 2017 को एक फतवा जारी करते हुए मुस्लिम महिलाओं के श्रंृगार करने पर प्रतिबंध लगा दिया। फतवे के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं के बाल कटाने, आइब्रो बनाने आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यह फतवा मौलाना मुफ्ती अरशद फारूकी ने जारी किया जो दारुल इफ्ता के प्रमुख हैं। दारुल इफ्ता दारुल उलूम का ही एक विभाग है। फतवे का समर्थन करते हुए दारुल उलूम देवबंद के मौलाना काजमी ने कहा, ‘दारुल उलूम को यह फतवा काफी पहले ही जारी कर देना चाहिए था। ब्यूटी पार्लर जाना अब मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रतिबंधित किया जाता है।’ दारुल उलूम देवबंद का कहना है कि वह दुनिया में इस्लाम की मौलिकता को कायम रखने के लिए काम कर रही है। इस विचारधारा से प्रभावित मुसलमानों को देवबंदी कहा जाता है।

एक शख्स ने दारूल उलूम देवबंद से फतवा मांगा कि क्या मुस्लिम महिलाओं द्वारा सोशल मीडिया में तस्वीरें डालना जायज है? दारूल उलूम देवबंद के फतवा विभाग के मुफ्ती तारिक कासमी ने कहा कि इस्लाम मुस्लिम महिलाओं के फोटो सोशल साइट पर लगाने की इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा कि इस्लाम में बिना जरुरत के फोटो खिंचवाना ही मुस्लिम महिलाओं व पुरुषों के लिए जायज नहीं है। ऐसे में फेसबुक एवं व्हाट्सप्प पर फोटो अपलोड करना जायज नहीं हो सकता। दारुल उलूम देवबंद में फतवों के लिए एक डिपार्टमेंट ऑनलाइन है। इस डिपार्टमेंट में पत्र भेजकर या आॅनलाइन फतवा लिया जा सकता है। एक फतवा में देवबंद के मौलाना और तंजीम उलेमा ए हिन्द के प्रदेश अध्यक्ष नदीम उल वाजदी ने मुस्लिम महिलाओं के नौकरी करने पर फरमान सुनाया। वाजदी ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं को नौकरी नहीं करनी चाहिए। सरकारी या गैर सरकारी किसी भी प्रकार की नौकरी से मुस्लिम महिलाओं को दूरी बनाकर रखनी चाहिए। मुस्लिम महिलाओं के नौकरी करने को मौलाना ने इस्लाम के खिलाफ बताया है।

हाल में ही वाराणसी में दीपावली के अवसर पर कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भगवान राम की आरती और हनुमान चालीसा का पाठ क्या कर दिया दारूम उलूम देवबंद की रातों की नींद हराम हो गई और उसने फतवा जारी करते हुए उन मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम से खारिज कर दिया। इन मुस्लिम महिलाओं ने तमाम कट्टरपंथी सोच समझ वालों को दरकिनार करते हुए दीप जलाकर दीपावली का पर्व मनाया। ये मुस्लिम महिलाएं भगवात राम को अपनी आस्था का केन्द्र मानती हैं और हर वर्ष दीपावली के मौके पर भगवान राम की आरती उतारने के साथ-साथ हनुमान चालीसा का पाठ कर दीप जलाती हैं। इस मामले में दारुल उलूम जकरिया के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारुकी समेत अन्य उलेमा ए कराम ने कहा कि मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत कर सकता है। जिन मुस्लिम महिलाओं ने दूसरे मजहबी अकीदे को अपनाते हुए यह सब किया है वह इस्लाम से भी खारिज हैं। इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी दूसरे मजहब के साथ मोहब्बत और नरमी तो बरती जा सकती है, लेकिन पूजा नहीं की जा सकती। इसलिए बेहतर है कि वह अपनी गलती मानकर दोबारा कलमा पढ़कर इस्लाम में दाखिल हों।

मुस्लिम महिलाएं रुढ़ीवादी और दमनकारी परम्पराओं से बाहर निकलने के लिए अपनी आवाज उठा रही हैं। ऐसे में इस तरह के फतवे या फरमान लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर ये लोग होते कौन हैं हमारे लिए कोई फैसला लेने वाले। यदि कोई समुदाय यह तर्क दे कि उसका मजहबी कानून महिलाओं के प्रति पक्षपात की अनुमति देता है तो क्या सभ्य समाज को इसकी अनुमति देनी चाहिए? है। मैं उन इस्लाम के ठेकेदारों से पूछना चाहता हूं कि कश्मीर में जो मुस्लिम समाज हमारी सेना पर पत्थरबाजी करके अलगाववादियों और आतंकवादियों को भगाने में सहायता करता है तो क्या उनके खिलाफ कभी फतवा जारी होगा?

 

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