प्यार करने वालों को किसी तरह की कोई आजादी क्यों नहीं है?

 डॉo सत्यवान सौरभ

हाल ही में तमिलनाडु के तिरुपर में 2016 में ऑनर कि लिंग के बहुचर्चित मामले में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला आया है। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी लड़की के पिता के साथ-साथ ,लड़की की मां और एक अन्य को बरी कर दिया है और पांच आरोपियों की सजा को  फांसी से बदल कर उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। लड़की कौशल्या के परिवार वालों ने कुमारलिंगम निवासी शंकर की हत्या इसलिए की क्योंकि वह दलित जाति का था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने कौशल्या से शादी कर ली, जो उच्च जाति की थी। कालेज में पढ़ते वक्त दोनों में प्रेम हो गया और दोनों ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी, जिससे कौशल्या के परिवार वाले काफी नाराज थे। इसके बाद 13 मार्च, 2016 को कुछ लोगों ने शंकर को बीच बाजार मौत के घाट उतार दिया था।

 कौशल्या ने अपने माता-पिता के खिलाफ खुद लड़ाई लड़ी। पति की मौत के बावजूद आज भी वह ससुराल में ही रह रही है। मगर कौशल्या मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से खुश नहीं है। उसका कहना है कि अपने मां-बाप को सजा दिलाए जाने तक वह चैन से नहीं बैठेगी और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देगी। प्रायः देखा गया है कि ऑनर किलिंग के मामलों  में लड़कियां टूट जाती हैं और इंसाफ पाने की कोई कोशिश नहीं करतीं। वह परिवार के दबाव में आ जाती हैं। यह पहला ऐसा मामला है जिसमें पीड़िता खुद इंसाफ पाने के लिए लड़ रही है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद ऑनर किलिंग की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की मांग आज तमिलनाडु सहित देश भर  में उठने लगी है

ऑनर किलिंग क्या है?

शब्द ‘ऑनर किलिंग’ उन जोड़ों की हत्या से रहा है जो  मध्ययुगीन दृष्टिकोण को तोड़ते हुए अंतरजातीय विवाह कर लेते हैं  परिवार या सामुदायिक सम्मान के लिए ऐसी हत्याओं को अन्जाम दिया जाता है । आमतौर पर  एक अरेंज मैरिज में प्रवेश करने से मना करना, एक ऐसे रिश्ते में होना जो उनके परिवार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया हो, शादी से बाहर सेक्स करना, बलात्कार का शिकार बनना, उन तरीकों से कपड़े पहनना जो अनुचित समझे जाते हैं, ऑनर किलिंग’ के कारण  बनते है। ऑनर किलिंग में पुरुष परिवार के सदस्यों द्वारा एक महिला या लड़की की निर्मम हत्या शामिल है । पितृसत्तात्मक समाजों में, लड़कियों और महिलाओं की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती है।

ऑनर किलिंग की एक और विशेषता यह है कि अपराधी अक्सर अपने समुदायों के भीतर नकारात्मक कलंक का सामना नहीं करते हैं, क्योंकि उनके इस व्यवहार को जायज माना जाता है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में, मुख्य रूप से भारतीय राज्यों पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ऑनर किलिंग ज्यादा होती है। ऑनर किलिंग दक्षिण भारत और महाराष्ट्र और गुजरात के पश्चिमी भारतीय राज्यों में भी व्यापक रूप से फैली हुई है। (हाल ही में, तिरुपुर जिले, तमिलनाडु में युवा दलित इंजीनियरिंग छात्र की पूरी सार्वजनिक दृष्टि से निर्मम हत्या कर दी गई थी)

ऑनर किलिंग का कारण

लोगों की अब तक भी मानसिकता ऐसी है कि वे एक ही गोत्र में या बाहर होने वाले विवाह को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।  विवाह में पसंद के अधिकार को समाज अभी भी नकारता है। और विशेष रूप से महिलाओं के लिए शादी का विकल्प चुनने का अधिकार अवैध है, यहां तक कि इसकी कल्पना भी करें। इसके बढ़ने का मूल कारण यह है कि औपचारिक शासन ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच सका है। खाप पंचायती विभिन्न तरीकों से अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं: वे दंपतियों से भुगतान की मांग करते हैं, उन पर सामाजिक या आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं, आदेश देते हैं कि उनका या उनके परिवारों का बहिष्कार किया जाए,  दंपति को तलाक दिया जाए और उन्हें परेशान किया जाए, या उनकी हत्या करो।

लिंगानुपात के अंतर में वृद्धि भी इसका कारण है। उस क्षेत्र में ऑनर किलिंग हो रही है जहाँ लिंगानुपात कम है और लड़कियों को विवाह के लिए खरीदा जा रहा है।राजनेताओं द्वारा खाप पंचायत की रक्षा करने का कारण खाप पंचायतों का मनोबल बढ़ रहा है जो अपने तुगलकी फरमान युवा पीढ़ी पर थोपते है अपने आप में प्रेम को सामाजिक अपराध मानते है।  ये प्रत्येक जाति का प्रतिष्ठा एक कारण है,  यह उच्च जाति तक सीमित नहीं है, दलित और आदिवासी जैसे उत्पीड़ित समुदायों के बीच भी  “सम्मान” अपराधों में लिप्त है ताकि यह साबित हो सके कि वे ऊपरी जाति से कम नहीं हैं।

एक व्यापक कानून की आवश्यकता:

ऑनर किलिंग संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 21, 39 (एफ) का उल्लंघन करता है।
2018 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो  के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में कुल 28 मामले, 2015 में 251 मामले और 2016 में 77 मामले ऑनर किलिंग के रूप में दर्ज किए गए। पिछले कुछ वर्षों में ऑनर किलिंग के मामले बढ़े हैं और सामाजिक विकास में बाधा बन गए हैं। आईपीसी और सीआरपीसी की धाराएं ऐसे मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है । ऑनर किलिंग की ये कार्रवाई भारत के संविधान में कुछ मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है, जिसमें जीवन का अधिकार और स्वतंत्रता शामिल है जिसमें शारीरिक अखंडता का अधिकार, और चुनने का अधिकार शामिल है महिलाओं को स्वतंत्र रूप से जीवनसाथी चुनने का अधिकार होना चाहिए।

ऑनर किलिंग जैसे अपराध को बर्बर अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए क्योंकि यह व्यक्ति की गरिमा के प्रति किया गया अन्याय है। इस तरह के अपराध के निरीक्षण हेतु ठोस प्रयास किये जाने चाहिए। 21वीं शताब्दी के आधुनिक युग में परंपरागत कारणों से किये गए अपराध के प्रति लोगों में जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए। राज्य के लिए ऐसे कार्यक्रमों और परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है जो लैंगिक इक्विटी में मदद करते हैं। उन समुदायों में असंतोष के स्वर उठे हैं जहाँ ऑनर किलिंग की सूचना मिली है। इन आवाजों को ताकत मिलनी चाहिए। महिला और बाल विभाग, सामाजिक कल्याण विभाग और राज्य महिला आयोग जैसी एजेंसियों को इन मुद्दों पर लगातार काम करना चाहिए। खाप पंचायत की वैधता से संबंधित मुद्दों को लोगों को स्पष्ट करना चाहिए।
महिलाओं की समस्याओं को केवल तब सुलझाया जा सकता है जब अन्य महिलाओं के साथ इस पर चर्चा की जाएगी। अगर खाप पंचायत के लोग अपने पंचायत समुदायों को जारी रखना चाहते हैं तो समानता के अधिकार के अनुसार खाप पंचायतों में एक या दो महिलाओं के बैठने का प्रावधान होना चाहिए ताकि समानता का अधिकार भी चले।  हमें ध्यान रखना होगा कि सम्मान के लिये किसी की जान लेने में कोई सम्मान नहीं है।

 डॉo सत्यवान सौरभ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here