pravakta.com
बात मुझे क्यों नहीं बताती ? - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
सुबह-सुबह से चें-चें चूँ-चूँ,खपरैलों पर शोर मचाती।मुर्गों की तो याद नहीं है,गौरैया थी मुझे जगाती। चहंग-चंहंग छप्पर पर करती,शोर मचाती थी आँगन में।उस की चपल चंचला चितवन,अब तक बसी हुई जेहन में।उठ जा लल्ला, प्यारे पुतरा,ऐसा कहकर मुझे उठाती। आँगन के दरवाज़े से ही,भीतर आती कूद-कूद कर।ढूँढ-ढूँढ कर चुनके दाने,मुँह…