भारत मुसलमानों के लिए स्वर्ग क्यों है ?

विश्व की कुल जनसंख्या में प्रत्येक चार में से एक मुसलमान है। मुसलमानों की 60 प्रतिशत जनसंख्या एशिया में रहती है तथा विश्व की कुल मुस्लिम जनसंख्या का एक तिहाई भाग अविभाजित भारत यानी भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में रहता है। विश्व में 75 देशों ने स्वयं को इस्लामी देश घोषित कर रखा है। पर, विश्व में  जितने भी बड़े-बड़े मुस्लिम देश माने जाते हैं, मुस्लिमों को कहीं भी इतनी सुख-सुविधाएं या मजहबी स्वतंत्रता नहीं है जितनी कि भारत में। इसीलिए किसी ने सच ही कहा है कि ‘मुसलमानों के लिए भारत बहिश्त (स्वर्ग) है।’ परन्तु यह भी सत्य है कि विश्व के एकमात्र हिन्दू देश भारत में इतना भारत तथा हिन्दू विरोध कहीं भी नहीं है, जितना ‘इंडिया दैट इज भारत’ में है। इस विरोध में सर्वाधिक सहयोगी हैं-सेकुलर राजनीतिक स्वयंभू बुद्धिजीवी तथा कुछ चाटुकार नौकरशाह। उनकी भावना के अनुरूप तो इस देश का सही नाम ‘इंडिया दैट इज मुस्लिम’ होना चाहिए .क्योंकि  विश्व  में भारत  एकमात्र  ऐसा  देश  है  जहाँ केवल   जनसंख्या   के  आधार  पर   मुसलमानों  की  जायज  नाजायज  मांगें  पूरी  कर दी जाती  हैं  , भले वह  देश   को  बर्बाद  करने में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ें  ,

1-कम्युनिस्ट देश तथा मुस्लिम 

आज   जो  कम्यूनिस्ट  सेकुलरिज्म  के  बहाने  मुसलमानों     के अधिकारों  की  वकालत  करते  हैं  , उन्हें  पता होना  चाहिए  कि कम्युनिस्ट  देशों  में  मुसलमानों   की  क्या  हालत  है।

विश्व के दो प्रसिद्ध कम्युनिस्ट देशों-सोवियत संघ (वर्तमान रूस) तथा चीन में मुसलमानों की जो दुर्गति हुई वह सर्व विदित है तथा अत्यन्त भयावह है। कम्युनिस्ट देश रूस में भयंकर मुस्लिम नरसंहार तथा क्रूर अत्याचार हुए। नारा दिया गया ‘मीनार नहीं, मार्क्स चाहिए।’ हजारों मस्जिदों को नष्ट कर हमाम (स्नान घर) बना दिए गए। हज की यात्रा को अरब पूंजीपतियों तथा सामन्तों का धन बटोरने का तरीका बताया गया। चीन में हमेशा से उसका उत्तर-पश्चिमी भाग शिनचियांग-मुसलमानों की वधशाला बना रहा। इस वर्ष भी मुस्लिम अधिकारियों तथा विद्यार्थियों को रमजान के महीने में रोजे रखने तथा सामूहिक नमाज बढ़ने पर प्रतिबन्ध लगाया गया।

2-यूरोपीय देश तथा मुस्लिम

सामान्यत: यूरोप के सभी प्रमुख देशों-ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, आदि में मुसलमानों के अनेक सामाजिक रीति-रिवाजों पर प्रतिबंध है। प्राय: सभी यूरोपीय देशों में मुस्लिम महिलाओं के बुर्का पहनने तथा मीनारों के निर्माण तथा उस पर लाउडस्पीकर लगाने पर प्रतिबंध है। बिट्रेन में इंडियन मुजहीद्दीन सहित 47 मुस्लिम आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। ब्रिटेन का कथन है कि ये संगठन इस्लामी राज्य स्थापित करने और शरीयत कानून को लागू करने का अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हिंसा का प्रयोग करते हैं। जर्मनी में भी बुर्के पर पाबन्दी है। जर्मनी के एक न्यायालय ने मुस्लिम बच्चों के खतना (सुन्नत) को ‘मजहबी अत्याचार’ कहकर प्रतिबंध लगा दिया है तथा जो डाक्टर उसमें सहायक होगा, उसे अपराधी माना जाएगा। जर्मनी के कोलोन शहर की अदालत ने बुधवार को सुनाए गए एक फैसले में कहा कि धार्मिक आधार पर शिशुओं का खतना करना उनके शरीर को कष्टकारी नुकसान पहुंचाने के बराबर है.और प्राकृतिक नियमों में हस्तक्षेप है

जर्मनी में मुस्लिम समुदाय इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं और वे इस बारे में कानूनविदों से मशविरा कर रहे हैं.

आशा है विश्व के सारे देश जल्द ही जर्मनी का अनुसरण करने लगेंगे.इसी  तरह फ्रांस विश्व का पहला यूरोपीय देश था जिसने पर्दे (बुर्के) पर प्रतिबंध लगाया।

3-मुस्लिम देशों में मुसलमानों की   हालत

विश्व के बड़े मुस्लिम देशों में भी मुसलमानों के मजहबी तथा सामाजिक कृत्यों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध है। तुर्की में खिलाफत आन्दोलन के बाद से ही रूढ़िवादी तथा अरबपरस्त मुल्ला- मौलवियों की दुर्गति होती रही है। तुर्की में कुरान को अरबी भाषा में पढ़ने पर प्रतिबंध है। कुरान का सार्वजनिक वाचन तुर्की भाषा में होता है। शिक्षा में मुल्ला-मौलवियों का कोई दखल नहीं है। न्यायालयों में तुर्की शासन के नियम सर्वोपरि हैं। रूढ़िवादियों की सोच तथा अनेक पुरानी मस्जिदों पर ताले डाल दिए गए हैं। (पेरेवीज, ‘द मिडिल ईस्ट टुडे’ पृ. 161-190; तथा ऐ एम चिरगीव -इस्लाम इन फरमेन्ट, कन्टम्परेरी रिव्यू, (1927)। ईरान व इराक में शिया-सुन्नी के खूनी झगड़े-जग जाहिर हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी यह स्वीकार किया है कि यहां मुसलमान भी सुरक्षित नहीं हैं। यहां मुसलमान परस्पर एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं। उदाहरण के लिए जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान ने अहमदिया सम्प्रदाय के हजारों लोगों को मार दिया। इसके साथ हिन्दुओं के प्रति उनका क्रूर व्यवहार, जबरन मतान्तरण, पवित्र स्थलों को अपवित्र करना, हिन्दू को कोई उच्च स्थान न देना आदि भी जारी है। उनकी क्रूरता के कारण पाकिस्तानी हिन्दू वहां से जान बचाकर भारत आ रहे हैं। वहां हिन्दुओं की जनसंख्या घटकर केवल एक प्रतिशत के लगभग रह गई है। हिन्दुओं की यही हालत 1971 में बने बंगलादेश में भी है। वहां भी उनकी जनसंख्या 14 प्रतिशत से घटकर केवल 1 प्रतिशत रह गई है। साथ ही बंगलादेशी मुसलमान भी लाखों की संख्या में घुसपैठियों के रूप में जबरदस्ती असम में घुस रहे हैं।

अफगानिस्तान की अनेक घटनाओं से ज्ञात होता है जहां उन्होंने हिन्दुओं तथा बौद्धों के अनेक स्थानों को नष्ट किया, वहीं जुनूनी मुस्लिम कानूनों के अन्तर्गत मुस्लिम महिलाओं को भी नहीं बख्शा, नादिरशाही फतवे जारी किए। मंगोलिया में यह प्रश्न विवादास्पद बना रहा कि यदि अल्लाह सभी स्थानों पर है तो हज जाने की क्या आवश्यकता है? सऊदी अरब में मुस्लिम महिलाओं के लिए कार चलाना अथवा बिना पुरुष साथी के बाहर निकलना मना है। पर यह भी सत्य है कि किसी व्यवधान अथवा सड़क के सीध में न होने की स्थिति में मस्जिद को हटाना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं है।

4-भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण,

अंग्रेजों ने भारत विभाजन कर, राजसत्ता का हस्तांतरण कर उसे कांग्रेस को सौंपा। साथ ही इन अलगाव विशेषज्ञों ने, अपनी मनोवृत्ति भी कांग्रेस का विरासत के रूप में सौंप दी। अंग्रेजों ने जो हिन्दू-मुस्लिम अलगाव कर तुष्टीकरण की नीति अपनाई थी, वैसे ही कांग्रेस ने वोट बैंक की चुनावी राजनीति में इस अलगाव को अपना हथियार बनाया। उसने मुस्लिम तुष्टीकरण में निर्लज्जता की सभी हदें पार कर दीं। यद्यपि संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई हैं, परन्तु व्यावहारिक रूप से चुनावी राजनीति को ध्यान में रखते हुए मुसलमानों को अल्पसंख्यक मान लिया गया तथा उन्हें खुश करने के लिए उनकी झोली में अनेक सुविधाएं डाल दीं। उनके लिए एक अलग मंत्रालय, 15 सूत्री कार्यक्रम व बजट में विशेष सुविधाएं, आरक्षण, हज यात्रा पर आयकर में छूट तथा सब्सिडी आदि। सच्चर कमेटी तथा रंगनाथ आयोग की सिफारिशों ने इन्हें प्रोत्साहन दिया।  भारतीय संविधान की चिन्ता न कर, न्यायालय के प्रतिरोध के बाद भी, मजहबी आधार पर आरक्षण के सन्दर्भ में कांग्रेस के नेता वक्तव्य देते रहते हैं।

5-हज  सब्सिडी  में  घोटाले

विश्व में मुस्लिम देशों में हज यात्रा के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। बल्कि मुस्लिम विद्वानों ने हज यात्रा के लिए दूसरे से धन या सरकारी चंदा लेना गुनाह बतलाया है। पर कांग्रेस शासन में 1959 में बनी पहली हज कमेटी के साथ ही सिलसिला शुरू हुआ हज में सुविधाओं का। सरकारी पूंजी का खूब दुरुपयोग हुआ। हज घोटालों के लिए कई जांच आयोग भी बैठे। हज सद्भावना शिष्ट मण्डल, हज में भी ‘वी.आई.पी. कोटा’ आदि की सूची बनने लगी। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के बाद जम्मू-कश्मीर के अब्दुल रसीद ने सरकार द्वारा सदभावना शिष्टमण्डल के सदस्यों के चयन पर प्रश्न खड़ा किया। क्योंकि उसमें 170 हज यात्रियों के नाम बदले हुए पाए गए। आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने दखल दिया तथा ‘अति विशिष्टों की’ संख्या घटाकर 2500 से केवल 300 कर दी।

सामान्यत: प्रत्येक हज यात्री पर सरकार का लगभग एक लाख रु. खर्च होता है, परन्तु सरकारी प्रतिनिधियों पर आठ से अट्ठारह लाख रु. खर्च कर दिए जाते हैं। गत वर्ष राष्ट्रीय हज कमेटी ने यात्रियों को कुछ कुछ अन्य सुविधाएं प्रदान की, जिसमें 70 वर्ष के आयु से अधिक के आवेदक व्यक्तियों के लिए निश्चित यात्रा, चुने गए आवेदकों को आठ महीने रहने का परमिट तथा हज यात्रा पर जाने वाले यात्री के लिए पुलिस द्वारा सत्यापन में रियायत दी गई। इसके विपरीत श्रीनगर से 135 किलोमीटर की कठिन अमरनाथ यात्रा के लिए, जिसमें इस वर्ष 6 लाख 20 हजार यात्री गए, और आने-जाने के 31 दिन में 130 श्रद्धालु मारे गए, जिनके शोक में एक भी आंसू नहीं बहाया गया।

6-भारत   का  इस्लामीकरण

असम में बंगलादेश के लाखों मुस्लिम घुसपैठियों के प्रति सरकार की उदार नीति, कश्मीर में तीन वार्ताकारों की रपट पर लीपा-पोती, मुम्बई में 50,000 मुस्लिम दंगाइयों द्वारा अमर जवान ज्योति या कहें कि राष्ट्र के अपमान पर कांग्रेस राज्य सरकार और केन्द्र की सोनिया सरकार की चुप्पी तथा दिल्ली के सुभाष पार्क में अचानक उग आयी अकबराबादी मस्जिद के निर्माण को न्यायालय द्वारा गिराने के आदेश पर भी सरकारी निष्क्रियता, क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि गत अप्रैल में भारत के तथाकथित सेकुलरवादियों ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में गोमांस भक्षण उत्सव मनाया तथा उसकी पुनरावृत्ति का प्रयास दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में किया गया? मांग की गई थी कि छात्रावासों में गोमांस भक्षण की सुविधा होनी चाहिए। पर सरकार न केवल उदासीन बनी रही बल्कि जिन्होंने इसका विरोध किया, उनके ही विरुद्ध डंडा चलाया गया। इस विश्लेषण के बाद गंभीर प्रश्न यह है कि कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण अथवा वोट बैंक को खुश करने की इस नीति से मुस्लिम समाज का अरबीकरण हो रहा है या भारतीयकरण? क्या इससे वे भारत की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं या अलगावादी मांगों के पोषण से राष्ट्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन रहे हैं? क्या चुनावी वोट बैंक की राजनीति, राष्ट्रहित से भी ऊपर है? देश के युवा विशेषकर पढ़े-लिखे  युवकों को इस पर गंभीरत से विचार करना होगा, ताकि  समाज की उन्नति के साथ राष्ट्र निर्माण में उनका सक्रिय सहयोग हो सके।

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