‘बिहार’ क्यों ढो रहा है आतताई ‘बख्तियार’ को !

शिवशरण त्रिपाठी
आखिर हम कब तक उन विधर्मी आक्रांताओं को ढोते रहेंगे जिन्होने न केवल हमारी अकूत धन दौलत को जमकर लूटा खसोटा वरन् हमारी महान संस्कृति को नष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। खून की नदियां बहाने वाले इन आक्रांताओं द्वारा हमारे धार्मिक स्थलों को नेस्तनाबूद करने दृष्टि से तोड़ा व ढहाया गया। हमारे ज्ञान के मंदिरों को बुरी तरह जलाया व तहस-नहस किया गया। लाखों सनातन धर्मियों का ऐन-केन-प्रकारेण धर्म परिवर्तन कराया गया। नामालूम कितनी भारतीय नारियों को सतीत्व की रक्षा के लिये अपने को अग्नि के हवाले करना पड़ा।
ऐसे जिन विधर्मी आक्रांताओं ने क्रूरता, निर्ममता की सारी हदें पार कर दी थी उनमें ही एक तुर्क लुटेरा सम्प्रति कुतुबुद्दीन ऐवक का सेनापति बख्तियार बिन खिलजी भी था। भारतीय इतिहास में बख्तियार की कू्ररता, निर्ममता अन्य खूंखार विधर्मी आक्रांताओ की तुलना में इसलिये कहीं अधिक जघन्य, अक्षम्य मानी जाती है कि उसने न केवल सैकड़ों मूर्धन्य शिक्षकों व हजारों विद्यार्थियों को मौत के घाट उतार दिया था वरन् उसने दुनिया के महानतम शिक्षा केन्द्र नालंदा विश्व विद्यालय को तहस-नहस कर उसके ज्ञान के केन्द्र तीन पुस्तकालयों को जलाकर खत्म कर दिया था।
भारतीय राजधानी पटना से करीब १२० किलोमीटर व राजगीर से करीब १२ किलोमीटर की दूरी पर उसके एक उपनगर के रूप में स्थिति नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना ४५०-४७० ई० के बीच गुप्त शासक के कुमार गुप्त प्रथम ने की थी। इसमेें देश ही नहीं दुनिया के अनेक देशों से विद्यार्थी विभिन्न विषयों में अध्ययन हेतु आया करते थे। जिस समय ११९९ ई० में बख्तियार बिन खिलजी ने कोई २०० घुड़ सवार आतताई लुटेरों के साथ नालंदा विश्व विद्यालय पर हमला बोला था उस समय वहां कोई २० हजार छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे थे और कोई २०० महान शिक्षक उन्हे शिक्षा देने में लगे थे। देखते ही देखते उसके खूंखार साथी लूटेरों ने निहत्थे शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को गाजर-मूली की तरह काट डाला और तीनों पुस्तकालयों को आग के हवाले कर दिया। इन पुस्तकालयों में उस समय कितनी पुस्तके रही होगी इसकी परिकल्पना सिर्फ  इससे की जा सकती है कि उपरोक्त पुस्तकालय ६ महीने तक घूरे की तरह सुलगते रहे थे।
दुनिया का कोई और देश होता तो हमारे ज्ञान की थाती को राख कर देने वाले आतताई बख्तियार का नाम लेना तो दूर उस पर थूकता तक नहीं। पर आजादी के ७० सालों बाद भी उसके नाम पर स्थापित ‘बख्तियारपुर’ रेलवे जक्शन उसकी क्रूरता की न केवल चीख-चीख कर गवाही देता है वरन् वो हमारे शासकों के राष्ट्र प्रेम व राष्ट्र के प्रति समर्पण पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।
जो बिहार की धरती कभी शक्ति, ज्ञान का केन्द्र हुआ करती थी। जिस धरती ने यदि कुमार गुप्त, चन्द्र गुप्त, अशोक जैसे सम्राट, चाणक्य जैसे महान विद्वान दिये तो उसी धरती ने महात्मा बुद्ध जैसे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भी दिये।
देश की आजादी के बाद इसी धरती ने देश को जहां डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जैसा राष्ट्रपति दिया तो इसी धरती ने देश में समग्र क्रांति के दूत के रूप में बाबू जय प्रकाश नारायण को भी। रामधारी सिंह दिनकर, देवकी नन्दन खत्री तथा नागार्जुन जैसे साहित्य शिरोमणि बिहार की धरती की देन रहे है।
अंतत: अपने एक सहायक के हाथो मौत के घाट उतारे गये आतताई बख्तियार ने जीते जी सोचा भी न होगा कि जिस बिहार धरती को उसने खून से लाल कर दिया था उसी बिहार की धरती एक दिन उसे गाजी बाबा मान पूजा अर्चना करेंगी व हिन्दू महिलायें उसकी भटकती, अशांत रूह से अपने बाल बच्चों के कल्याण की मन्नते मांगेंगी।
आजादी के बाद बिहार में न जाने कितनी सरकारें आई गई।  कितने मुख्यमंत्री बने बिगड़े पर किसी ने भी क्रूरता की सभी सीमायें लांघने वाले आतताई बख्तियार के नाम पर बने ‘बख्तियारपुर रेलवे जक्शन का नाम बदलने की जहमत नहीं उठाई।
विगत कई वर्षो से बिहार की सत्ता का केन्द्र बिन्दु बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की न केवल कर्मभूमि ‘बख्तियारपुर बनी हुई है वरन् इनका यही जन्म स्थान भी है। भारतीय इतिहास को कलंकित करने वाले इस क्रूरतम लुटेरे व हत्यारे बख्तियार के बारे में उन्हे जानकारी न हो यह सोचा भी नहीं जा सकता। पर यदि उन्होने भी बख्तियार के नाम पर बने बख्तियारपुर रेलवे जक्शन का नाम बदलने का प्रयास तक नहीं किया तो नि:संदेह यही माना जायेगा कि उन्हे राष्ट्र के खासकर बिहार के मान-सम्मान की कोई चिंता नहीं है।
अब भी समय है नीतीश जी बिना क्षण गंवाये आतताई बख्तियार के नाम पर उसकी कू्ररता की याद दिलाने वाले बख्तियारपुर रेलवे जक्शन का तत्काल नाम बदलने की घोषणा कर दें वरन् ऐसा मौका शायद ही कभी उनके हाथ आयेगा। यह सुकृत्य करने में उन्हे इसलिये और भी आसानी होगी कि उनकी सत्ता में वो भाजपा भागीदार है जो राष्ट्रवाद के नाम पर उन्हे समर्थन व सहयोग देने में पीछे न हटेगी।

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