– डॉ. छन्दा बैनर्जी
जाने अख़बार क्या कहता है,
पढ़कर, पूरा आवाम क्यों मौन रहता है ?
हां, बस्तर का यही है वह गांव
पहचान थी जिसकी, तेंदू और महुआ का छाँव,
उल्लास झलकता था जहाँ मांदर की थाप में
खुशियां बयान होती थी पहाड़ी मैना के आलाप में …
पर अब वहीं खेली जा रही है खूनी होली
जहां मौत झांकती है किवाड़ों से,
लोग अपने ही घरों में कैद होकर
चिपके पड़े हैं घरों की दीवारों से
क्योंकि आज नक्सलियों के बंदूकों की नोक पर
टंगा हुआ है पूरा गांव,
आये दिन समाचारों के
शीर्षक बनते है इनके दर्दनाक घाव ।
ख़ामोशी में भी चीखते ये लोग
हर दिन सोचते है कि कल
जाने क्या समाचार बनेगा, जिसे पढ़कर
पूरा आवाम क्या फिर से मौन रहेगा ?