बाजार का आंवला एवं त्रिफला असर क्यों नहीं करता?

डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
आयुर्वेद की अधिकतर दवाइयों में आंवले के पाउडर का मिश्रण होता है। त्रिफला में तीन औषधीय फल हर्र, बहेड़ा और आंवला, बीमारी के अनुसार निर्धारित अनुपात में मिलाये जाते हैं। मुझे अनेक पेशेंट शिकायत करते हैं कि उनको त्रिफला या आंवले का उपयोग करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ या उतना फायदा नहीं मिला, जितना कि त्रिफला और आंवले का सेवन करने पर मिलना चाहिये था। अनेक पुराने वैद्य भी इस बात से बहुत परेशान हैं।
आज आपको इसका कारण बतला रहा हूं। जो लोग आंवले का व्यापार करते हैं, उनका पहला मकसद धन कमाना होता है। अत: उन्हें आंवले का पाउडर बनाने या आंवले के खोल यानी गिद्दे से गुठली को अलग करने हेतु परम्परागत घियाकस पद्धति खर्चीली एवं परिश्रमपूर्ण यानी मंहगी पड़ती है। अत: वे निष्ठुरतापूर्वक मशीनों का उपयोग करते हैं। आंवले से जुड़े ऐसे कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं, जिनसे अधिकतर पेशेंट और बहुत से वैद्य तक अनजान हैं:-
1. किसानों द्वारा खेतों के किनारे आंवले के जो वृक्ष उगाये जाते हैं, अकसर उन खेतों में साल में दो फसलों की उपज भी होती हैं। फसलों में उर्वरक एवं कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इस कारण आंवला ऑर्गेनिक या जैविक (Organic) नहीं रह पाता है।
2. अधिकतर व्यापारी किसान से मात्र 5 रुपये किलो में आंवला खरीदते हैं। अत: अधिक उपज बढाने हेतु किसान आंवले के पेड़ों में भी उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग करते हैं।
3. कच्चे आंवले को परम्परागत रीति से गुठली से अलग करने हेतु आंवले को घियाकस करना होता है, जो व्यापारी को बहुत महंगा पड़ता है। अत: व्यापारी आंवले को पानी में उबालता है। जिससे आंवले की गुठली और आंवले के ऊपरी हिस्से/खोल के टुकड़े अलग-अलग हो जाते हैं।
4. आंवले को पानी में उबालने में उसका अर्क/रस उबलने वाले पानी में निकल जाता है, लेकिन इससे आंवला रस रहित होने के साथ ही गुण रहित भी हो जाता है। आंवले से गर्म पानी में निकले इस अर्क के मिश्रण से अनेक औषधियों के सीरप/द्रव्य बनाये जाते हैं। अत: अर्क को व्यापारी औषधि निर्मातों को बेच देता है या खुद ही द्रव्यीय औषधियों में उपयोग क्र लेता है!
5. परम्परागत विधि में आंवले को घियाकस करने के बाद आवंले के गिद्दे को छाया में या सूर्य की धीमी धूप में सुखाकर औषधीय उपयोग किया जाता रहा है। मगर व्यापारी आंवले को पानी में उबालने के बाद आंवले के खोल के जो टुकड़े गुठली और अर्क से अलग होते हैं, उन्हें इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों से दो मिनट में सुखाकर और फिर सामान्य यानी ठंडे करके इसी रूप में या पाउडर बनाकर थैलियों में भरकर विक्रताओं को उपलब्ध करवा देते हैं।
 इस प्रकार का आंवला बाजार में मिलता है। जिससे त्रिफला बनाया जाता है। यह काफी सस्ता भी होता है, लेकिन ऐसे आंवले से बीमारियों का उपचार कैसे संभव है? यह भारत के आदिवासियों के पूर्वजों की खोज अनमोल देशी-जड़ी बूटियों के विरुद्ध व्यापारियों का खुला अत्याचार और रोगियों का सरेआम शोषण है। मगर यह स्थिति अनियंत्रित हो चुकी है, क्योंकि सरकार इस बारे में मौन है। आम लोग इसके विरुद्ध संघर्ष करने की स्थिति में नहीं हैं।
इसके विपरीत मुझ जैसे छोटे जड़ी-बूटी उपचारक, उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग किये बिना अथक परिश्रम से आंवले के देशी वृक्ष तैयार करते हैं। जिनमें तुलनात्मक रूप से आंवलों की उपज कम होती है। आंवलों का आकार भी छोटा होता है। आंवले को घियाकस करके उसको रस सहित छाया में सुखाने पर रस या अर्क से होने वाली अतिरिक्त आय नहीं मिल पाती है। अत: पेशेंट को ऑर्गेनिक आंवला पाउडर या ऑर्गेनिक आंवला पाउडर से बना त्रिफला कई गुना महंगा पड़ता है। मगर सबसे बड़ी बात परिणाम मिलते हैं। कम से कम मैं मेरे यहां उपलब्ध सभी जड़ी बूटियों को इसी प्रकार से तैयार करवाता हूं। इसी कारण मेरे पास औषधीय पाउडर बिक्री हेतु (For Sale) यानी व्यापारिक उपयोग हेतु नहीं होकर, केवल मेरी सेवा लेने वाले रोगियों के उपचारार्थ औषधीय उपयोग हेतु ही मुश्किल से पूरे पड़ते हैं।
एक सलाह: अपने घर में ऑर्गेनिक रीति से एक देशी आंवला वृक्ष अवश्य उगायें!

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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