सजायाफ्ता जन प्रतिनिधियों को क्यूँ मिले सरकारी पेंशन…

0
172

politiciansसजायाफ्ता जन प्रतिनिधि ले रहें हैं सरकारी पेंशन का मज़ा…

हिमांशु डबराल

अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है जब शहाबुद्दीन सिस्टम के नाकारेपन और राजनितिक सांठगांठ के चलते जमानत पर बाहर आ गया था। वो तो मीडिया में हल्ला मचा तो वापस जेल जाना पड़ा। इस बीच शहाबुद्दीन की डॉनगीरी, माफियागीरी और वोटों की ठेकेदारी पर तो खूब चर्चा हुई, लेकिन सबसे आश्चर्यजनक तथ्य ये है की 11 साल से जेल में रहने के बावजूद वो 20,000 रुपये से ज्यादा मासिक सरकारी पेंशन पा रहा है। ये वो पेंशन है जो सांसदों अथवा विधायकों को जनता की ‘बहुमूल्य सेवा’ करने के लिए मिलती है। अब ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि तमाम समाज विरोधी विशेषणों के हक़दार शहाबुद्दीन को ये पेंशन जनता की किस ‘सेवा’ के लिए मिल रही है। क्या ये ‘सेवा’ वो है जो उसने हत्या के मुकदमों के एवज में दी है जिनमे से दो मुकदमों में उसे उम्रकैद की सजा भी हो गयी है। अथवा उन कुल 58 मामलों में की गयी ‘सेवा’ है जिनके आपराधिक मुकदमे उसपर चल चल रहें हैं।  इतना ही नहीं लालू यादव जिन्हें शहाबुद्दीन अपना नेता बताता है, वो  भी चारा घोटाला में सजा पाने के बावजूद लोकसभा से हर महीने 35,000 रूपये सरकारी पेंशन पा रहें हैं।

उल्लेखनीय है कि किसी आपराधिक मामले में दो साल से आधिक सजा हो जाने पर कानूनन कोई भी नेता सजा ख़तम होने के छ: साल बाद तक चुनाव लड़कर संसद या विधानसभा में नहीं आ सकता। इन कड़े प्रावधानों के बावजूद अपनी पिछली कथित जनसेवा और विधायी सदन में काटे गये कार्यकाल के एवज में वही नेता आराम से उसी जनता की गाढ़ी कमाई को पेंशन के रूप में हड़प सकता है जिसपर कथित आपराधिक अत्याचार के लिए वह सजायाफ्ता घोषित होता है।

सरकारी कर्मचारी आमतौर पर सरकारी विभागों में 20-30 साल काम करने के बाद पेंशन के हक़दार बनते हैं। लेकिन हमारे सांसद-विधायक शपथ लेते ही पेंशन के भागी बन जाते हैं (केवल पंजाब में टर्म पूरा करने पर ही पेंशन का प्रावधान है)। उसके बाद चाहे उन्हें किसी अपराध में सजा ही क्यूँ न मिल जाये। जेल में रह कर भी उन्हें पेंशन मिलती रहती है। कांग्रेस, बीजेपी, आरजेडी, शिवसेना आदि पार्टियों के सांसद और एमएलए चुनाव के लिए अयोग्य करार दिए जा चुके हैं । लेकिन पेंशन बंद नहीं होती। हैरान करने वाली बात यह है की हरियाणा में जूनियर शिक्षक भर्ती में रिश्वतखोरी की सजा काट रहे पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला 2 लाख, 15 हजार, 430 रुपये और उनके पुत्र अजय चौटाला 50 हजार,100 रुपये प्रति माह पेंशन, सफ़ेद धन के रूप में जेल में बैठकर भी ले रहें हैं।

हांलाकि वरिष्ठ वकील एच सी अरोड़ा ने जनता के धन की इस बर्बादी को रोकने और रिकवरी के लिए पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी।  याचिका में उनकी दलील थी की हरियाणा लेजिस्लेटिव एसेंबली एक्ट, 1975 के तहत यदि विधानसभा के किसी सदस्य को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जाता है तो अयोग्यता अवधि के दौरान उसे पेंशन नहीं दी जा सकती, लेकिन फिर भी कई पूर्व अयोग्य एमएलए पेंशन का मज़ा ले रहें हैं। जिसके बाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को इस मामले का निपटारा करने का निर्देश भी दिया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप में उनकी पेंशन जारी है। इसे क्या माना जाये, राजनितिक गिरोहबंदी कहें या नौकरशाही की लाचारी की मुख्य सचिव ने ये फैसला सुना दिया की सजायाफ्ता पूर्व विधायकों की पेंशन भी नहीं रोकी जा सकती। ये फैसला करते हुए मुख्य सचिव ने विधायक वेतन-भत्ते एवं पेंशन एक्ट की धारा 7 (1-ए) के तहत उन्हें पेंशन के हकदार माना क्यूंकि पूर्व विधायकों की सदस्यता न तो कभी दलबदल कानून के तहत रद्द की गई और न ही इन्हें कभी जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्य ठहराया गया। मुख्यसचिव के फैसले से असंतुष्ट एडवोकेट अरोड़ा इस मामले को दुबारा हाईकोर्ट ले गयें हैं। दरअसल उन्होंने ही लालू यादव को अदालत से सजा मुकर्रर होने के बाद लोकसभा से मिल रही पेंशन की जानकारी पाने के लिए आरटीआई दाखिल की थी। जिसके जवाब में पता चला की पूर्व रेल मंत्री लालू यादव हर महीने 35,000 रूपये की पेंशन सिर्फ लोकसभा से भी पा रहे हैं। बिहार विधानसभा से बतौर पूर्व विधायक और बिहार सरकार के बतौर पूर्व मुख्मंत्री भी ज़ाहिर है की वे मोटी रकम हर महीने पेंशन के रूप में पा रहें होंगे। इससे ये साफ़ ज़ाहिर हो रहा है की नेताओं ने अपने दोनों हाथों में लड्डू रख लियें हैं, वे सार्वजानिक पदों पर रहते हुए विभिन्न घोटालों के ज़रिये तो जनता को चूना लगाते ही हैं ऊपर से सरेआम सारी उम्र पेंशन की मोटी रकम भी पाते हैं।

पेंशन पाने वाले अयोग्य जनप्रतिनिधियों की लिस्ट भी बहुत लम्बी है। पूर्व सांसदों में कांग्रेस के रशीद मसूद, आरजेडी के लालू यादव, शहाबुद्दीन और जगदीश शर्मा, शिवसेना के बबनराव घोलप और बीजेपी के पूर्व एमएलए सुरेश हल्वंकर और आशा रानी सहित लम्बी लिस्ट है। मोटे अनुमान के हिसाब से 162 वर्तमान सांसदों पर विभिन्न मामलों में  आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं और इनमें से 76 तो ऐसे मामलें हैं, जिनमे पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है। 1460 विधायकों पर आपराधिक मामलों में अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से 30 फीसदी मामलों के पांच साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है। इसी साल जुलाई में दो साल से अधिक लम्बी सजा पा चुके सांसदों और विधायकों की सदस्यता तुरंत रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ा रुख अख्तियार किया था। गौरतलब है कि दोषी ठहराए जाने के तत्काल बाद सांसद या विधायक अयोग्य हो जाते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि पेंशन के लिए अयोग्यता के लिए न केंद्र और न ही राज्य में ऐसा कोई कानून है। राजनीति में साफ़ छवि और अपराधियों को टिकट न देने की बातें करने वाली पार्टियों और नेताओं ने आज तक इस मुद्दे पर शायद ही ध्यान दिया हो।

शहाबुद्दीन हो, ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय हों अथवा लालू प्रसाद यादव या कोई और, इन सभी को सार्वजानिक पदों पर रहते हुए अपनी गैरकानूनी गतिविधीयों के ज़रिये जनता से विश्वासघात करने के आरोप में विभिन्न आपराधिक धाराओं में अदालतों द्वारा सजा सुनाई गयी है। तो फिर क्या इनसे सार्वजानिक पदों के कार्यकाल के दौरान मिले वेतन भत्तों और सजा के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित होने के बावजूद मिल रही सरकारी पेंशन की वसूली नहीं की जानी चाहिए और आगे के लिए उसपर रोक नहीं लगनी चाहिए। ये ऐसे सवाल हैं जो इस देश के विधायी सदनों के साथ ही साथ उच्च अदालतों को भी मुह चिढ़ा रहें हैं। उम्मीद है की जनसेवा के नाम पर पूर्व निर्वाचित विधायी प्रतिनिधियों को आजीवन दी जाने वाली पेंशन और भत्तों पर कम से कम उन मामलों में तो देश के विधायी सदन रोक लगायेंगे, जिनमे सार्वजानिक पदों पर रहते हुए विधायी प्रतिनिधियों को अदालतों ने जनता से विश्वासघात का दोषी घोषित कर सजा सुनाई हो।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here