रोटी पर इतना बवाल क्यों ?

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-
shivsena roza issue

मुस्लिम समुदाय के पवित्र रमजान माह में महाराष्ट्र सदन में शिवसेना के सांसद द्वारा रोजेदार व्यक्ति के मुंह में कथित तौर पर रोटी ठूंसने के मामले ने संसद में तो हंगामा मचाया ही, घटना की व्याख्या ने इसे सांप्रदायिक रंग भी दे दिया| दरअसल बात पूरी तरह से महाराष्ट्र सदन में अव्यवस्था को लेकर थी| उपेक्षा और सदन में खाने-पीने की व्यवस्था से नाराज सेना सांसदों ने १७ जुलाई को सदन के प्रेस हॉल में बैठक की और उसके बाद ये लोग मैनेजर के साथ पब्लिक डाइनिंग हॉल में पहुंच गए| रोटी की गुणवत्ता से नाराज सांसदों ने आईआरसीटीसी के रेजिडेंट मैनेजर अरशद को एक रोटी खाने के लिए मजबूर किया, जबकि वह रोजे से था| घटना के बाद अगले दिन १८ जुलाई को सांसदों के दुर्व्यवहार के विरोध में कैटरिंग का जिम्मा संभाल रही आईआरसीटीसी ने सदन में अपनी सेवाएं बंद कर दी| आईआरसीटीसी ने महाराष्ट्र सदन के स्थानीय आयुक्त बिपिन मलिक से लिखित शिकायत की कि धार्मिक भावनाएं आहत होने से उसके कर्मचारी अरशद को दुख पहुंचा है| इस पर रेजिडेंट कमिश्नर ने सांसदों के व्यवहार को लेकर न सिर्फ आईआरसीटीसी से माफी मांगी, बल्कि अरशद से मिलकर दुख भी प्रकट किया| मामला यहीं खत्म हो जाता किन्तु घटना का वीडियो मीडिया को प्राप्त हो गया और मामला साम्प्रदायिकता के रंग में रंग गया| जबकि बात सिर्फ इतनी सी थी कि भाजपा सांसदों की आवभगत और अपनी कथित अनदेखी जहां शिवसेना के सांसदों को मुंह चिढ़ा रही थी, वहीं खाने और सेवा की खराब गुणवत्ता ने उन्हें आपे से बाहर कर दिया| हालांकि यह मानने में कोई गुरेज नहीं कि शिवसेना के सांसदों ने गलत किया किन्तु जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांग ली है तो इस मामले को खींचना और इसे साम्प्रदायिक रंग देना कहां तक उचित है? कुछ समय पूर्व महाराष्ट्र सदन के निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए थे| महाराष्ट्र भवन से पृथक महाराष्ट्र सदन का निर्माण यूपीए शासनकाल में हुआ था और ज़ाहिर है, ऐसे में इस पर उठे सवाल और विवाद इसकी स्थापना से ही इसके दामन पर बदनुमा दाग लगाते रहे हैं| फिर, जहां तक यहां के खाने की गुणवत्ता का सवाल है तो इस पर भी अक्सर उंगलियां उठती रही हैं| शिवसेना के सांसदों ने भी महाराष्ट्र सदन के खाने की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लगाए थे तो आखिर उनकी बात तो अनसुना क्यों कर दिया गया? शिवसेना के सांसदों का यह कहना कि हमें मराठी खाना ही चाहिए भी तर्कसंगत है| आखिर जब आंध्रप्रदेश भवन में आंध्र के सांसदों को वहां का खाना दिया जाता है तो महाराष्ट्र के सांसदों को भी यह हक़ है कि वे मराठी भोजन की उपलब्धता प्राप्त करें किन्तु यदि महाराष्ट्र भवन में ऐसा नहीं हो रहा था| ऐसे में शिवसेना के सांसदों का भड़कना स्वाभाविक है| आवेग में आकर उन्होंने आईआरसीटीसी के रेजिडेंट मैनेजर से बदसलूकी की पर यह मीडिया द्वारा दिखाया गया एकतरफा सत्य है कि चूंकि मैनेजर मुस्लिम था और रोजे से था इसलिए सांसदों ने जानबूझ कर उसका रोज तुड़वाया| क्षणिक आवेग में किसी भी व्यक्ति का सोच-समझकर किसी से बदसलूकी करना तर्कसंगत नहीं जान पड़ता| फिर किसी के माथे पर उसका धर्म नहीं लिखा होता| यदि ऐसा है तो मीडिया में अफ़ग़ानिस्तान में पवित्र रमजान माह में मस्जिद में मौलवी द्वारा १० वर्ष की बच्ची के दुष्कर्म का मामला क्यों नहीं दिखाया गया? क्या बंगलुरु में रोजेदार मुस्लिम शिक्षक द्वारा अपने स्कूल की बच्ची के दुष्कर्म की खबर को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश हुई? फिर एक रोटी पर इतना बवाल क्यों?

दरअसल महाराष्ट्र सदन के मामले को महाराष्ट्र सरकार और मीडिया द्वारा एकपक्षीय रिपोर्टिंग द्वारा दिखाया जा रहा है, वह निंदनीय है| एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और राजद के पप्पू यादव ने भी जिस तरह इस मामले को भाजपा से जोड़ा, वह भी आपत्तिजनक है| कांग्रेस समेत कई दलों के सदस्यों ने भी महाराष्ट्र सदन में शिवसेना सदस्यों के व्यवहार के खिलाफ पूरी घटना को धार्मिक रंग देते हुए भाजपा पर निशाना साधा| पूरे मामले को जिस तरह धार्मिक चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत किया, उससे निःसंदेह हिन्दू-मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं| यदि रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र है तो इस वक़्त हिन्दुओं का श्रावण मास भी चलता है और दोनों ही समुदाय इस दौरान अपने धर्म का पालन करते हैं| यही धार्मिक सौहार्द देश की एकता और अखंडता को जीवित रखे हुए है किन्तु जिनकी राजनीति ही साम्प्रदायिकता पर टिकी हो, वे ऐसे घटिया इल्जाम लगाएंगे ही| आईआरसीटीसी के जिस रेजिडेंट मैनेजर अरशद के साथ बदसलूकी की घटना पर देश की राजनीति उबाल मार रही है, उसकी तरफ से अभी तक कोई शिकायत नहीं की गई है| मुस्लिम संगठनों और उलेमाओं की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, ऐसे में ओबीसी से लेकर कांग्रेस तक का शिवसेना और भाजपा पर आंखें तरेरना कुंठा ही है| इस घटना ने ओछी राजनीति का एक और नंगा नाच देश के समक्ष प्रस्तुत किया है| देश में आम चुनाव हुए दो माह बीत चुके हैं और अब तक निर्वाचित नए सांसदों को सरकारी आवास की व्यवस्था नहीं हुई है| कई हारे हुए सांसद अब भी सरकारी दामाद की भांति आवासों पर कुंडली मारे बैठे हैं| नियम चाहे जो हों, पर क्या पूर्व सांसदों को यूं सरकारी दामाद बने रहना चाहिए? हमारे देश की राजनीति में कई झोल हैं और यह प्रवृति भी आज़ादी के साथ से चली आ रही है| यदि पूर्व सांसद सरकारी आवास खाली कर देते और नए सांसदों को रहने हेतु आवास की व्यवस्था हो जाती तो क्या महाराष्ट्र सदन जैसी घटना घटित होती? राजनीति की इन विकृतियों को खत्म कर यह उम्मीद की जा सकती है कि महाराष्ट्र सदन की पुनरावृति न हो अन्यथा शिवसेना के सांसदों ने जो किया, वह किसी भी पार्टी के सांसद दोहरा सकते हैं| इस पूरे घटनाक्रम का चाहे जो हल निकले, पर देश में साम्प्रदायिक राजनीति करने की अनुमति किसी को नहीं मिलना चाहिए|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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