एक बंगारू तो पकड़ा गया बाकी पर न्यायतन्त्र की आंखों पर पट्टी क्यों ?

–  अन्‍तर्यामी  

चोर तो हज़ारों-लाखों में हैं पर जो पकड़ा गया वह चोर, जिस पर हाथ नहीं डाला वह सब साध। यही कहानी है बंगारू लक्ष्‍मण की। एक बंगारू तो पकड़़ा गया पर बाकी बंगारूओं का क्‍या जो दिन-दहाड़े सब की आंखों के सामने वह सब कुछ कर रहे हैं जो बंगारू ने भी नहीं किया, पर छाती तान कर फिर रहे हैं अपनी ईमानदारी का तग़मा पहने?

यही तो हमारे कानून का करिश्‍मा है। अंग्रेज़ तो चले गये पर जाते समय अपने अंधे कानून की बेडि़यों से हमें न वह मुक्‍त कर गये और न हमने ही अपने आपको उससे मुक्‍त कराने की चेष्‍टा की।

बंगारू लक्ष्‍मण के साथ न्‍याय हुआ है या नहीं यह तो तब ही पता चल पायेगा जब उनको हुई सज़ा के विरुद्ध अपील पर ऊपरी अदालत अपना निर्णय सुनायेगा।

फिल्‍में आज हमारी जि़न्‍दगी का अभिन्‍न अंग बन चुकी हैं। अब तो लगता है कि वह हमारे जीवन को प्रभावित भी बहुत कर रही हैं। पर बंगारू लक्षमण के मामले में हुये निर्णय ने तो यह साबित कर दिया कि न्‍याय भी हमारी फिल्‍मों पर अपनी अमिट छाप छोड़ता जा रहा है। यह ऐसा ही लगता है जैसा कि कोई न्‍यायधीश किसी फिल्‍म में फिल्‍माये गये बलात्‍कार की घटना को देख कर बलात्‍कारी को सज़ा सुना दे।

अदालत स्‍वयं मानती है कि बंगारू ल्‍क्षमण का सारा किस्‍सा मनगढ़न्‍त है क्‍योंकि पैसे देने वाला भी फर्जी है, फर्म भी फर्जी है, माल भी फर्जी और रिश्‍वत देने वाला भी फर्जी। अदालत ने यह साफ नहीं किया कि जो एक लाख रूपये दिये गये वह सचमुच के नोट थे या वह भी उसी तरह फर्जी जैसे कि फिल्‍मों में दिखाये जाते हैं क्‍योंकि न पुलिस ने वह नोट बरामद किये और न पेश ही किये गये।

रिश्‍वत के मामले में यह आवश्‍यक होता है कि जो धनराशि अपराधी को दी जाती है उसके नोटों के नम्‍बर पुलिस के पास पहले ही दर्ज होते हैं। फिर उन नोटों पर एक विशेष किस्‍म का पाउडर भी छिड़क दिया जाता है ताकि जब अभियुक्‍त उन नोटों को पकड़े तो उसके हाथ में वह पाउडर लग जाये। पुलिस पैसे पकड़ने के बाद अभियुक्‍त के हाथ भी धुलवाती है जब उसके हाथों पर वह रंग लग जाता है। इस प्रकार पुलिस और अदालत को दोहरी तसल्‍ली हो जाती है कि वह धनराशि अपराधी ने ही पकड़ी थी और जो धनराशि उसके पास से मिली है वह भी वही है जिसका पूरा ब्‍यौरा पुलिस के पास पहले ही दर्ज है। यह इसलिये किया जाता है कि कोई निर्दोष व्‍यक्ति के उसकी ही जेब से निकले पैसों को रिश्‍वत बना कर उसे फंसा दिया जाये।

इस में तो कोई दो राय नहीं कि बंगारू के विरूद्ध तो एक पूर्वनियोजित सोचा-समझा एक षड्यन्‍त्र था। उन्‍हें एक चक्रव्‍यूह रचना बना कर फंसाया गया था। जब अदालत के सामने वह धनराशि पेश ही नहीं की गई तो अदालत किस आधार पर इस निष्‍कर्ष पर पहुंची कि वह राशि एक लाख ही थी और जो नोट स्टिंग आप्रेशन में दिये दिखाये गये वह सच्‍चे थे न कि नकली नोटों की झलक मात्र।

हमारे कानून के अनुसार रिश्‍वत देना भी अपराध है और रिश्‍वत लेना भी। पर न्‍यायधीश महोदय ने रिश्‍वत लेने को तो बहुत बड़ा अपराध मानते हुये रिश्‍वत लेने वाले को बहुत बड़ी सज़ा दे दी पर अपने विवेक का इस्‍तेमाल करते हुये रिश्‍वत देने वाले अपराधी के पाप को पुण्‍य करार दे दिया।

यह बात समझ नहीं आती कि न्‍यायधीश महोदय ने इस बात को कैसे नज़रअन्‍दाज़ कर दिया कि बंगारू लक्ष्‍मण को फंसाने के लिये एक चक्रव्‍यूह की रचना कर उन्‍हें फंसाने की साजि़श की गई थी। क्‍या किसी व्‍यक्ति के पास अपनी गलत पहचान प्रस्‍तुत कर उसे कोई ठीक या ग़लत काम करने के लिये प्रेरित करे तो क्‍या यह अपराध नहीं है? यदि अपने आपको आयकर अधिकारी या सांसद या नेता बता कर लोगों को गुमराह करना अपराध है तो बंगारू लक्षमण जैसे को अपना गलत परिचय दे उनसे छलकपट करना पुण्‍य कैसे हो सकता है? धन्‍य हो ऐसा महान न्‍यायतन्‍त्र।

कोई महिला किसी महानुभाव के पास जाये और बताये कि वह एक संभ्रान्‍त महिला है जो एक एनजीओ चलाती है जिसमें वह अनेक अनाथ महिलाओं की सेवा-सहायता की जाती है। वह व्‍यक्ति से उस के लिये आर्थिक सहायता की याचना करे। इस पर वह व्‍यक्ति उसे सहायता दे दे पर बाद में पता चले कि वह तो एक वेश्‍या थी तो क्‍या यह उस महानुभाव पर यह आरोप बन जायेगा कि उसने तो एक वेश्‍या को पेशगी फीस दी थी?

बंगारू लक्षमण के खिलाफ मामला तो बिल्‍कुल ऐसा ही है जैसाकि किसी सीडी से यह साबित हो जाये कि एक व्‍यक्ति की हत्‍या के लिये एक साजि़श रची गई, सुपारी दी गई और हत्‍या हो गई। उसके लिये अपराधी व षड़यन्‍त्रकारी पकड़े भी जायें। उनके विरूद्ध अपराध भी साबित हो जाये पर बाद में पता चले कि जिसकी हत्‍या हुई वह तो फर्जी था और वस्‍तुत: हत्‍या तो किसी की हुई ही नहीं। तो क्‍या फिर भी अभियुक्‍त को फांसी पर लटका दिया जायेगा?

कल को तो कोई न्‍यायालय सिंघवी के बारे सोशल मीडिया में दिखाई जा रही सीडी का संज्ञान लेकर उनके विरूद्ध भी सज़ा सुना सकता है क्‍योंकि उसमें भी किसी महिला को एक प्रलोभन देकर उसका उत्‍पीड़न किये जाने का आरोप बन सकता है मात्र उस सीडी के आधार पर और किसी गवाही या शिकायत की आवश्‍यकता ही नहीं।

बोफोर्स का भूत बार-बार जीवित होता जा रहा है। 64 करोड़ रूपये की रिश्‍वत ली और दी गई। क्‍वातरोची को तो देश से बाहर भागने दिया गया। उस अपराध के लिये कोई दोषी नहीं। किसी को सज़ा नहीं। स्‍वर्गीय राजीव गांधी पर आरोप लगा। संप्रग सरकार की सीबीआर्इ इतनी चुस्‍त निकली कि मामला ही खारिज कर दिया यह कह कर कि सबूत नहीं मिल पाये।

एक और तर्क दिया जा रहा है। बोफोर्स तोप सफल साबित हुई है। तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या इस कारण कमीशन या रिश्‍वत लेना इस कारण वैध बन जायेगा?

 

सद्दाम हुसैन के समय में ईराक से एक वाऊचर कांग्रेस और एक नटवर सिंह के नाम जारी हुआ। नटवर सिंह को तो विदेश मन्‍त्री का पद छोड़ना पड़ा। उनके विरूद्ध कानूनी कार्रवाई का तो कुछ ड्रामा भी हुआ पर बात आगे न बढ़ी। पर जो वाऊचर कांग्रेस के नाम जारी हुआ, उसकी कमाई कहां गई? न कोई खुलासा हुआ, न कार्रवाई। करोड़ों का लेनदेन था इस में।

कामनवैल्‍थ खेलों में, 2जी स्‍पैक्‍ट्रम, आदर्श हाऊसिंग सोसाईटी जैसे अनेक मामलों में क्‍या होगा कुछ नहीं कहा जा सकता। आदर्श हाऊसिंग मामले में अफसर अवश्‍य पकड़े गये हैं पर बड़ी मछलियां तो मज़े कर रही हैं। जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों-करोड़ों रूपये राहुल गांधी और सोनिया गांधी के विदेशी दौरों और इलाज के लिये खर्च कर दिये गये पर जनता को कुछ भी जानने का अधिकार नहीं है।

वाह रे भारत के जनतन्‍त्र। वाह रे भारत के न्‍यायतन्‍त्र। यहां फंसेंगे तो बंगारू क्‍योंकि वह दलित हैं, उनके पीछे कोई नहीं है। बड़ी मच्‍छलियां सब कुछ करेंगी, मौज करेंगी पर हाथ नहीं आयेंगी। आयेंगे तो बस बंगारू।

(लेखक प्रवक्‍ता डॉट कॉम के नियमित लेखक हैं। अन्‍तर्यामी उनका छद्म नाम है)

3 COMMENTS

  1. अपराध के तत्व पूरे न होने पर भी सजा देने का यह अपवादात्मक उदहारण है. पकड़े जाने और न्यायलय से सजा देने के बाद भी छत्तीसगढ़ के पंचायत विभाग ने अभियंता जे. एल.पाटनवार को सेवासे पृथक करने की कार्यवाही नहीं की है,जांजगीर के प्र.क्र.२१०/०७ में ४ वर्ष की सजा होने पर भी यह इंजी. एफ.आइ.आर. दर्ज कराने वाले अधिकारी को ही तंग कर रहा है.क्या छ.ग. प्रशासन इस पर भी ध्यान देगा.ऐसी घटनाओं से गलत सन्देश जाता है.यदि कोई विशेष मज़बूरी न हो तो तुरंत कार्यवाही होना चाहिए.अफजल गुरु,कसाब आदि को सजा की बिडम्बना झेलते हुए हमें इस सम्बन्ध में आवाज बुलंद करना चाहिए.न्याय का प्रवर्तन न होने से अविश्वास की स्थिति बनती है,अतः इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए.

  2. एक महान रस्त्र्वादी और भरास्ताचार्मुक्त शासन dene ki सोचने wali बीजेपी के पीछे दुष्ट LOG पड़े हैं.खुद तो मोका मिलते ही खूब धन बटोरते हैं पर जब बीजेपी के देश भगत थोडा बहुत आनंद लें या चुनाव खर्च निकाले तो उनकी CD तैयार कर लेते हैं.मजबूरन बीजेपी वालों को चारण भाट टाइप कलम GHISU लोगों को छवि सुधारने के लिए भाड़े पर लेना पड़ता है.

  3. “चोर तो हजारों लाखों में हैं,पर जो पकड़ा गया वह चोर जिस पर हाथ नहीं डाला ,वह सब साधू.” आपका यह कथन एकदम सही है,पर इससे बंगारू लक्ष्मण जैसे लोगों को निरपराध तो नहीं कहा जा सकता.

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