धर्मांतरण पर दोहरा मापदण्ड क्यों?

religious conversion
सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत में धर्मांतरण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों द्वारा हमेशा ही दोहरा मापदण्ड अपनाया जाता है। किसी मुसलमान द्वारा जब घर वापिसी की जाती है, तब देश में कोहराम मच जाता है, इसके अलावा जब हिन्दुओं को धर्मांतरित किया जाता है, तो सारे राजनीतिक दल और मीडिया आंखें बन्द करके बैठ जाता है। हम जानते हैं कि भारत के मुसलमानों के पूर्वजों को मुगलकालीन शासकों द्वारा भय दिखाकर या तलवार के दम पर धर्मांतरित किया गया। लेकिन जब कोई मुसलमान अपने मूल धर्म में वापस आता है, तो उसकी प्रशंसा की जाना चाहिए। अगर यह भी नहीं कर सकते तो कम से कम इस विषय पर राजनीति तो बिलकुल नहीं होना चाहिए।
विश्व के जितने भी देश धर्मांतरण के दंश को झेलने को मजबूर हैं, वह किसी न किसी तरीके से अराष्ट्रीयता की ओर ही चलते जा रहे हैं। भारत देश में यह समस्या वर्षों से चली आ रही है, हम जानते हैं कि आज हमारे देश में जितने भी मुसलमान हैं, वे सभी हिन्दुओं की संतानें हैं। उनके पूर्वज हिन्दू ही थे। कई मुसलमान इस बात को खुले रूप में गौरव के साथ स्वीकार करते हैं। लेकिन कुछ कट्टरपंथी मुसलमान विदेशी शक्तियों के हाथों में खेलकर गुमराह करने का खेल खेल रहे हैं। यही खेल देश में एक बार विभाजन के रूप में हमारे सामने उपस्थित हो चुका था, जिसमें भारत से टूटकर पाकिस्तान नाम का नया का नया देश बना। जहां तक सांस्कृतिक परिवेश की बात की जाए तो पाकिस्तान का अपना कोई सांस्कृतिक परिवेश नहीं है। पाकिस्तान की मूल और पुरातन संस्कृति में हमेशा भारत ही दिखाई देगा। इस सत्य को भले ही पाकिस्तान के कट्टरपंथी राजनेता भुलाने का प्रयास करने का नाटक करें, लेकिन सत्य तो यही है कि पाकिस्तान का इतिहास भारत के सांस्कृतिक वातावरण से ही जन्मित होता है। इस बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का जन्मदाता भारत है। अब सवाल यह है कि क्या कोई भी देश या व्यक्ति अपने जन्मदाता को भूल सकता है, अगर उसने भुलाने का प्रयास किया तो एक दिन वह स्वयं स्वयं ही विनाश के मार्ग पर चला जाएगा।
भारत के मुसलमानों को यह सत्य स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यही उनका सांस्कृतिक इतिहास है, और यही उनकी संस्कृति है। कई स्थानों पर भारत के मुसलमान इस सत्य को खुले रूप में स्वीकार कर भी रहे हैं तो भारत के मुस्लिम परस्त राजनीतिक दलों को अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर खतरा दिखाई देने लगा है। राजनीतिक दलों द्वारा इस प्रकार का खेल सामाजिक एकता के भाव को समाप्त करने का षडय़ंत्र ही कहा जाएगा। आज की स्वार्थ भरी राजनीति का अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत के कुछ देश घाती राजनीतिक दल पूर्णत: अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का ही अनुसरण कर रहे हैं। वास्तव में इस प्रकार की राजनीति का खेल बन्द होना चाहिए। भारत के सांस्कृतिक वातावरण के विरोध में उठने वाली आवाज का हर स्तर से विरोध ही होना चाहिए, लेकिन हमारे देश में तुष्टीकरण का खेल प्रारंभ हो जाता है।
आजादी के पूर्व से ही धर्मांतरण को झेल रहे भारत देश में इन राजनीतिक दलों द्वारा उस समय आवाज नहीं उठाई जाती, जब ईसाई संस्थाएं लोभ के सहारे हिन्दुओं को धर्मांतरित करतीं हैं, इतना ही नहीं कई मुस्लिम संस्थाएं भी विदेशों से अनाप शनाप धन लेकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का कुचक्र चला रहीं हैं। हम जानते हैं कि जिस अनुपात में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ रही है, उस अनुपात में मुसलमान पैदा नहीं हो रहे हैं। इसे साफ तौर कहा जाए तो यही कहा जा सकता है कि जब सौ मुसलमान पैदा होते हैं तब नए मुसलमानों की जनसंख्या डेढ़ सौ से दो सौ के बीच बढ़ जाती है। सवाल यही है कि सौ के अलावा जो मुसलमान बढ़े हैं वह कहां से आए। क्या यह धर्मांतरित मुसलमान नहीं हैं? या फिर किसी और देश से घुसपैठ करके आते हैं। यह सत्य है कि भारत में घुसपैठ भी हो रही है, तो धर्मांतरण भी किया जा रहा है। इस सत्य को राजनीतिक दलों को स्वीकार करना ही होगा।
आगरा में हुए घरवापिसी कार्यक्रम के सहारे भारत में धर्मांतरण के मुद्दे पर बहस का विषय मिल गया है। यह कार्यक्रम पूरी तरह से घरवापिसी का ही था, क्योंकि जिन मुसलमानों ने उस कार्यक्रम में भाग लिया, वे सभी पूर्व में लालच में आकर मुसलमान बन गए थे, इस कार्यक्रम के माध्यम से वे वापस अपने समाज में आना चाह रहे थे। एक बात और इस कार्यक्रम के बारे में कहा यह जा रहा है कि उनको राशनकार्ड बनवाने का लालच दिया गया। लेकिन इसमें एक बात साफ दिखाई देती है कि जो फोटो और वीडियो समचार माध्यमों में प्रकाशित और प्रसारित किए गए, उनको देखने से कहीं भी यह नहीं लगता कि उनसे जबरदस्ती की गई है, वे सभी स्वेच्छा से हवन करते देखे गए। लेकिन जैसे ही इस कार्यक्रम के बाद वे घर पहुंचे एक घण्टे बाद ही उस बस्ती में कट्टरपंथी मुसलमान और समाजवादी पार्टी के नेताओं सहित हिन्दू विरोधी मानसिकता वाले लोग पहुंचे तब घटनाक्रम का पूरा कथानक ही बदल गया। सवाल यह आता है कि इन लोगों के पहुंचने के बाद ही स्वर क्यों बदल गए। बस यहीं से शुरू होता है इस घटना का राजनीतिक खेल। मेरा मानना तो यही है कि घरवापिसी के कार्यक्रम का विरोध करने से पहले इस बात की जांच होना चाहिए कि उस बस्ती में इन नेताओं और कट्टरपंथियों ने क्या किया। लोगों ने अपने बयान क्यों बदले?
आज भारत देश का कोई भी मुसलमान इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि उनके पूर्वज मुसलमान थे। क्योंकि यह सर्वथा सत्य है कि इन सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। इनके पूर्वजों को कभी न कभी मुसलमान बनाया गया, यह भी सत्य है कि यह स्वेच्छा से मुसलमान नहीं बने। मुगलकालीन शासकों का इतिहास पढऩे से यह स्वत: ही प्रमाणित हो जाता है कि इनको तलवार के दम पर जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया। कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने मुसलमान बनना स्वीकार नहीं किया, उन पर मुगल शासकों ने अमानवीय अत्याचार किए, उनसे अपने घर का मैला तक उठवाया गया। आज जिन लोगों को हम बाल्मीकि के रूप में जानते हैं, धन्य हैं वे लोग जिन्होंने मैला उठाना स्वीकार किया लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ा। ये हमारे बन्धुजन हमेशा ही समाज के लिए अभिनन्दनीय पात्र बने रहेंगे।
यह बात सही है कि हिन्दुओं ने हमेशा ही पूरी वसुधा को अपना परिवार माना है। भारत के पुरातन इतिहास के अध्ययन करने पर पता चलता है कि हिन्दुओं ने कभी भी तलवार के दम पर किसी का दमन नहीं किया। भारत ने सबको ज्ञान का उपदेश दिया। यही हिन्दू दर्शन की विशेषता है। इसके विपरीत मुसलमान मारकाट को ही अपना धर्म मानता है, हालांकि यह बात भारत के संदर्भ में नहीं है, क्योंकि यहां के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। इसके लिए मुस्लिम देशों का उदाहरण हमारे सामने हैं, वहां बंदूक के सहारे पूरा खेल खेला जा रहा है। वर्तमान में जो लोग मुसलमान से हिन्दू बन रहे हैं, उनके प्रारब्ध के संस्कार हिन्दू हैं। जब वह संस्कार जाग्रत होंगे, तो स्वत: ही उनके अंदर हिन्दुत्व की हिलोर उठेगी। हम जानते हैं कि अनुवांशिक संस्कार कभी मिटते नहीं हैं। वह कभी न कभी प्रस्फुटित होकर ही रहते हैं। आज जब धर्मांतरित मुसलमानों के अंदर इस बात का प्रस्फुटन हो रहा है, तब सभी को इस बात का स्वागत करना चाहिए और सांस्कृतिक भारत बनने की दिशा में अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।

1 COMMENT

  1. विभाजन के बाद पाकिस्तान को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि उस की और भारत की विरासत एक है । वह विभाजन के बाद गौण और अप्रासंगिक हो गई । पाकिस्तान अब अपने इतिहास और संस्कृति को अरब जगत से जोडता है । उस के लिए भारत से अधिक अरब जगत या मुसलमानी देश अधिक प्रासंगिक हैं ।

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