क्यों बने आक्रांता का मकबरा?

बाबर कोई मसीहा नहीं अत्याचारी, अनाचारी, आक्रमणकारी और इस देश के निवासियों का हत्यारा है

-लोकेन्‍द्र सिंह राजपूत

सितम्बर में अयोध्या (अयुध्या, जहां कभी युद्ध न हो) के विवादित परिसर (श्रीराम जन्मभूमि ) के मालिकाना हक के संबंध में न्यायालय का फैसला आना है। जिस पर चारो और बहस छिड़ी है। फैसला हिन्दुओं के हित में आना चाहिए क्योंकि यहां राम का जन्म हुआ था। वर्षों से यहां रामलला का भव्य मंदिर था, जिसे आक्रांता बाबर ने जमींदोज कर दिया था। एक वर्ग चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि निर्णय मुसलमानों के पक्ष में होना चाहिए, क्योंकि वे बेचारे हैं, अल्पसंख्यक हैं। उनकी आस्थाएं हिन्दुओं की आस्थाओं से अधिक महत्व की हैं। मुझे इस वर्ग की सोच पर आश्चर्य होता है। कैसे एक विदेशी क्रूर आक्रमणकारी का मकबरा बने इसके लिए सिर पीट रहे हैं। एक बड़ा सवाल है – क्या अत्याचारियों की पूजा भी होनी चाहिए? क्या उनके स्मारकों के लिए अच्छे लोगों के स्मारक को तोड़ देना चाहिए? (कथित बाबरी मस्जिद रामलला के मंदिर को तोड़कर बनाई गई है।), क्या लोगों की हत्या करने वाला भी किसी विशेष वर्ग का आदर्श हो सकता है? (बुरे लोगों का आदर्श बुरा हो सकता है, लेकिन अच्छे लोगों का नहीं। रावण प्रकांड पंडित था, लेकिन बहुसंख्यक हिन्दु समाज का आदर्श नहीं। कंस बहुत शक्तिशाली था, लेकिन कभी हिंदुओं का सिरोधार्य नहीं रहा। हिन्दुओं ने कभी अत्याचारियों के मंदिर या प्रतीकों के निर्माण की मांग नहीं की है। फिर एक अत्याचारी और विदेशी का मकबरा इस देश में क्यों बनना चाहिए? क्यों एक वर्ग विशेष इसके लिए सिर पटक-पटक कर रो रहा है।)

इतिहास-बोध और राष्ट्रभावना का अभाव

काबुल-गांधार देश, वर्तमान अफगानिस्तान की राजधानी है। १० वीं शताब्दी के अंत तक गांधार और पश्चिमी पंजाब पर लाहौर के हिन्दूशाही राजवंश का राज था। सन् ९९० ईसवी के लगभग काबुल पर मुस्लिम तुर्कों का अधिकार हो गया। काबुल को अपना आधार बनाकर महमूद गजनवी ने बार-बार भारत पर आक्रमण किए। १६ वीं शताब्दी के शुरू में मध्य एशिया के छोटे से राज्य फरगना के मुगल (मंगोल) शासक बाबर ने काबुल पर अधिकार जमा लिया। वहां से वह हिन्दुस्तान की ओर बढ़ा और १५२६ में पानीपत की पहली लड़ाई विजयी होकर दिल्ली का मालिक बन गया। परन्तु उसका दिल दिल्ली में नहीं लगा। वही १५३० में मर गया। उसका शव काबुल में दफनाया गया। इसलिए उसका मकबरा वहीं है।

बलराज मधोक ने अपनी पुस्तक ‘जिन्दगी का सफर-२, स्वतंत्र भारत की राजनीति का संक्रमण काल’ में उल्लेख किया है कि वह अगस्त १९६४ में काबुल यात्रा पर गए। वहां उन्होंने ऐतिहासिक महत्व के स्थान देखे। संग्रहालयों में शिव-पार्वती, राम, बुद्ध आदि हिन्दू देवी-देवताओं और महापुरुषों की पुरानी पत्थर की मूर्तियां देखीं। इसके अलावा उन्होंने काबुल स्थित बाबर का मकबरा देखा। मकबरा ऊंची दीवार से घिरे एक बड़े आहते में स्थित था। परन्तु दीवार और मकबरा की हालत खस्ता थी। इसके ईदगिर्द न सुन्दर मैदान था और न फूलों की क्यारियां। यह देख बलराज मधोक ने मकबरा की देखभाल करने वाले एक अफगान कर्मचारी से पूछा कि इसके रखरखाव पर विशेष ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? उसका उत्तर सुनकर बलराज मधोक अवाक् रह गए और शायद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएं। उसने मधोक को अंग्रेजी में जवाब दिया था – “Damned foreigner why should we maintain his mausaleum.” अर्थात् कुत्सित विदेशी विदेशी के मकबरे का रखरखाव हम क्यों करें?

काबुल में वह वास्तव में विदेशी ही था। उसने फरगना से आकर काबुल पर अधिकार कर लिया था। परन्तु कैसी विडम्बना है कि जिसे काबुल वाले विदेशी मानते हैं उसे हिन्दुस्तानी के सत्ताधारी और कुछ पथभ्रष्ट बुद्धिजीवी हीरो मानत हैं और उसके द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर तोड़कर बनाई गई कथित बाबरी मस्जिद को बनाए रखने में अपना बड़प्पन मानते हैं। इसका मूल कारण उनमें इतिहास-बोध और राष्ट्रभावना का अभाव होना है।

लगातार बाबर के वंशजों के निशाने पर रही जन्मभूमि :

पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने पिछले कुछ वर्षों में करीब आठ बार रामलला के अस्थाई मंदिर पर हमले की योजना बनाई, जिन्हें नाकाम कर दिया गया। ५ जुलाई २००५ को तो छह आतंकवादी मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच गए थे। जिन्हें सुरक्षा बलों ने मार गिराया।

12 COMMENTS

  1. गए दिन D.P. Singh Baghel द्वारा लिखी टिप्पणी ने मानो फिर से विषय को हमारे समक्ष रखते प्रस्तुत आलेख की ओर मेरा ध्यान खींचा है और आज मुझे परिवर्तित राजनैतिक स्थिति में लगभग छः वर्ष पहले लिखीं बिल्ली (यूपीए शासन) के गले में घंटी (व्याख्या, समाधान) बांधते उलाहना अथवा विषय के लय को और आगे बढ़ाते अन्य टिप्पणियों में राजनीतिक टिप्पणीकार और प्रवक्ता.कॉम पर “कांग्रेस रेजिडेंट” को पढ़ने का अवसर मिला है| देखता हूँ कि फिरंगी ने हिन्दुओं और मुसलमानों में चिरस्थाई मत-भेद को बनाए रखने के लिए विषय के स्वतंत्रता के बहुत पहले के स्वरूप को १८८६ और तत्पश्चात १९३४ में बनाए रखना सम्भवतः सत्ता के लिए लाभदायक माना था| धर्म आधारित विभाजन के पश्चात भगत सिंह (राजनीतिक टिप्पणीकार) के वट-वृक्ष को आने वाली पीढ़ियों के लिए शीघ्र काटने का उत्तरदायित्व भारतीय सरकार को था जो उसने नहीं निभाया क्योंकि मैं सदैव यह मानता रहा हूँ कि १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस केवल फिरंगी की कार्यवाहक प्रतिनिधि शासक रही है|

    लोकेन्द्र सिंह राजपूत जी के ऐतिहासिक निबंध को राजनैतिक रूप देते क्रूर प्रयासों के फलस्वरूप देश में उठे निरंतर वाद-विवाद विषय की गंभीरता से बहुत दूर ले जा सदैव हमें असहाय बना छोड़ते रहे हैं| पहली बार केंद्र में राष्ट्रीय शासन की स्थापना पर मैं स्वयं उसके द्वारा हिंदुत्व के आचरण का अनुसरण करते सभी के लिए विकास और प्रगति के बीच भारतीय जनता में जागरूकता और विश्वास जगाते श्री राम मंदिर का निर्माण करने के लिए उत्सुक रहूँगा|

  2. -मान्यवर प्रो. दंडवते जी, ईलियट और डोसन के प्रमाणिक प्रमाण के लिए साधुवाद. मेरे विचार में इस पुस्तक और ऐसी अन्य पुस्तकों पर घोषित नहीं अघोषित प्रतिबन्ध है.
    -कैसा अजीब देश बना डाला है भारत को हमारे शासकों ने जहां हमरी दुर्दशा करने वालों के स्मारक बनते हैं. सैंकड़ों महिलाओं के सतीत्व का हार्न करने वाले लार्ड दन्हौज़ी के नाम पर नगर बसा है, गुलामी के प्रतीक क्वीन बैटन को लेकर दौड़ लगाने में शर्म के स्थान पर प्रसन्नता प्रकट कर रहे हैं, मानवता के शत्रु क्रूर बाबर के स्मारक बनाने की वकालत बड़ी निर्लाज्जता से की जाती है.
    -१९४७ में देश की बागडोर उन हाथों में सौंपी गयी जिनके जड़ें भारत में थी ही नहीं. उसी का परिणाम आज की देश की दुर्दशा है. सही लोगों को न्यावास्था परिवर्तन के लिए आगे आना होगा, ऐसे लोग जो भारत की संस्कृति को समझते हों और भारत में जिनकी जड़ें हों.

      • यदि आप रोमन लिप्यान्तरण न कर अपनी टिप्पणी देवनागरी में लिखते तो हमें आप पर भी गर्व करने का अवसर मिलता!

  3. बाबर कत्ल किए काफिरों की खोपडियों का ढेर लगाकर, मैदान में शामियाना तानकर, फिर उस ढेर को फेरे लगाकर खुशीसे मस्त होकर नाचा करता था।
    पर, एक बारकी बात जो (History of India as written by Own Historians)- में पढा हुआ याद है, कि जब खूनसे लथपथ ज़मिन हुयी और बाबर के पैरों तले खूनसे भिगने लगी, तो शामियाने को पीछे हटाना पडा।
    फिर भी मारे हुए काफ़िरों की मुंडियों का ढेर और बढता ही गया, और फिरसे बाबर के पैरोंतले ज़मिन रक्तसे भीगी, तो फिर और एक बार शामियाना पीछे हटाया गया ।
    ऐसे बाबर का मकबरा सोच भी नहीं सकते!
    जिस बाबरने ऐसा काम किया हो, उसका मकबरा तो दुनिया में कहीं भी ना बनना चाहिए।
    यह रपट मैंने एलियट और डॉसन के ८ ग्रंथोंके संग्रह में पढा हुआ है।
    भारत में इन ग्रंथोंपर पाबंदी थी। मैं ने इन किताबोंको मेरे मित्र, जिन्होने इन पुस्तकों को खरिदा था, उनसे लाकर पढी थी।
    शायद आजभी, यह किताबें भारत मे बिकनेपर प्रतिबंध है। यह सारा इतिहास तवारिखें लिखनेवाले दरबारी लेखकोने लिखा है।किसी तीसरे ने लिखा हुआ नहीं, बडा अधिकृत है। भारत की सरकार की हिम्मत हो, तो इन किताबोंपर लगी पाबंदी हटाए।
    ।सत्यमेव जयते।- काहे कहते हो? सच्चायी को क्यों डरते हो ?
    तवारिखोंके के कुछ नाम जैसे, बाबरनामा, जहांगिरनामा, ऐसे करीब ४० एक नाम थे। मैं ने यह टिप्पणी मेरी दृढ स्मृतिके आधार पर लिखी है, कोई संदेह नहीं है।
    ऐसे बाबर का मकबरा??? सोच भी नहीं सकते। बस, हमारी सरकार हमें अंधेरेमें रखकर वोट बॅंक पक्की करना चाहती है।
    हिंदुओं के देश में राम ताले में बंद? क्या उलटा ज़माना आया है।
    Ref: History of India As Told by Own Historians (8 Volumes)
    H. M. Elliot (Author), John Dowson (Editor)
    कहीं लायब्रेरी में मिल जाए तो टिप्पणी देकर जानकारी देनेकी कृपा कीजिए।

  4. kisne kaha ki nirnai hinduo ke packh me ya musalmano ke packh me aana chahiye,yadi yaesa hi he to court ki bat hi kayo karte hain,aur fir aap logo ne to pahle hi kah diya hain ki nainai kuch bhi aaye mandir vahi banega.
    babar ke makbare ki bat aap hi kar rahe hain hindustan me to kisi ne nahi ki.aap log hi kahani gadhte hain fir uske ird gird nafrat ke vatvrakch lagate hain jise aane wali peedhiyo ko katna padta hain.
    ramlala ki pooja tak ke liye aapko mayavati sarkar ki daya par nirbhar rahnapadta hain jinke purvajo ko aapke purvajo ne kabhi mandir par chadne tak nahi diya.ramlala ke kandhe par chadke satta par chadhne wale logo ke liye isse badi sharm ki kaya bat hogi ki ramlala ki poja ke liye chanda nahi kar sakte.
    meharwani karke nafrat feilane ka kam ab to khatam karo kiyo ki kath ki handi bar nar nahi chadhti.ek bar ram ji ke karan dehli ka raj mika ab dubara in prpanco se kuch nahi hone wala.bahi

    • भगत सिंह जी द्वारा किया उपरोक्त रोमन लिप्यान्तरण को पुनः हिंदी में लिख प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि उनकी टिप्पणी को ठीक से पढ़ा जा सके|

      “किसने कहा कि निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में या मुसलमानों के पक्ष में आना चाहिए? यदि ऐसा ही है तो कोर्ट की बात ही क्यों करते हैं और फिर आप लोगों ने तो पहले ही कह दिया है कि निर्णय कुछ भी आए मंदिर वहीं बनेगा|

      बाबर के मकबरे की बात आप ही कर रहे हैं हिन्दुस्तान में तो किसी ने नहीं की| आप लोग ही कहानी गढ़ते हैं फिर उसके इर्द गिर्द नफरत के वट-वृक्ष लगाते हैं जिसे आने वाली पीढ़ियों को काटना पड़ता है|

      रामलल्ला की पूजा तक के लिए आपको मायावती सरकार की दया पर निर्भर रहना पड़ता है जिनके पूर्वजों को आपके पूर्वजों ने कभी मंदिर पर चढ़ने तक नहीं दिया| रामलल्ला के कंधे पर चढ़ के सत्ता पर चढ़ने वाले लोगों के लिए इससे बड़ी शर्म की क्या बात होगी कि रामलल्ला की पूजा के लिए चंदा (इकट्ठा) नहीं कर सकते|

      मेहरबानी करके नफरत फैलाने का काम अब तो ख़त्म करो क्योंकि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती| एक बार राम जी के कारण देहली का राज मिला अब दुबारा इन प्रपंचों से कुछ नहीं होने वाला, भाई|”

  5. क्या आप सच्चे हृदय तल से न्याय में मानते हैं?
    यदि हां तो आगे पढें।
    बहुत सारे पाठक अपने आप को धर्म निरपेक्ष भी मान बैठे हैं।
    निम्न निकष पर आप वास्तव में “धर्म निरपेक्ष”ता की कसौटी कर सकते हैं।
    ॥प्रारंभ॥
    न्यायाधिशको निर्णय ऐसेही करना होता है। न्याय की देवी इसी लिए आंख पर पट्टी बांधकर दिखायी जाती है।
    उसे न हिंदू दिखता है, न मुसलमान। उसे तो एक इन्सान और दूसरा इन्सान दिखायी देता है।
    वह एक को “क्ष” नामसे जानता है, दूसरे को “य”।
    क्या आप ऐसा निर्णय कर सकते हैं?
    यदि हां, तो अब आप पूरे इतिहासको जानते ही हैं। आप को सच्चे हृदयसे सत्य लगे ऐसा निर्णय ले।
    उसमें क्ष=हिंदू डाल दीजिए, और य= मुसलमान, और एक कागज़ पर निर्णय लिखके एक आवरण में बंद करें।
    =================================================
    उसी निर्णय में, अब अदल बदल कर, आप क्ष=मुसलमान और य=हिंदू लिखकर उसी निर्णय को पढिए।
    यदि आप का निर्णय बदलता नहीं है,(क्ष हो या य हो) तो आप सच्चे धर्म निरपेक्ष है, ढोंगी नहीं।

  6. इतिहास के प्रश्न:
    (१) किसने १००० साल राज किया?
    (2) किसने फिर काफिरोंसे जज़िया लिया?
    (२) अन्याय किसने किया?
    (३) किसने, मा बहनो पर अत्याचार गुज़ारे?
    (४) किसने धर्मांधता से धर्मांतरण किया?
    (५)किसने बलात्कार किए?
    (६) १००० वर्ष सुविधाएं किसे मिली?
    (७)१५० साल, अंग्रेजो से भी पक्षपाती सुविधाएं किसे मिली?
    (८) अंतमें पाकीस्तान भी किसे दिया गया?
    और शासनकी कठपुतली उन्हे preferable treatment पर उनका पहला अधिकार होनेकी बात कहती है।
    और हिंदु, हिंदुस्थानमें और वह भी अयोध्यामें मंदिर नहीं बना सकता? तो क्या सौदि अरेबिया में बनाएगा? या अफ्गानीस्तानमें?
    सारे अन्याय तो हिंदुने सहे, और इतना सारा सहनेके बाद, हिंदुओंपर अनगिनत अमानुषि अत्याचार गुज़ारने के बाद किस ऐतिहासिक अन्याय की भरपाईके लिए मुसलमानों को भारतकी सरकार preferential Treatment दे रही है? इतिहास साक्षी है, कि, ७०,००० {एक ऐतिहासिक अनुमान-by Eliot and Johnson} मस्ज़िदे मंदिरोंकी बुनियादों पे खडी है, तो एक राम मंदिर जहांपर राम जन्मा था, वह भी उसे ना मिले? और वह भी हिंदु बहुल हिंदुस्थानमें?
    ” जिन हिंदुओंनें ११५० साल अन्याय सहा है, उसेही और अन्याय सहाते रहो! ऐसा कहने में कुछ लज्जाका अनुभव भी नहीं होता? उसके ७०,००० ध्वस्त मंदिरोंमें से एक भी उसे मत दो। अरे जहां राम जन्मे थे, वह अयोध्या भी ना दो, और वह भी भारतमें, जहां कहा जाता है कि हिंदूको स्वतंत्रता मिली है? कोइ उत्तर देगा, काहेकी स्वतंत्रता? क्या करनेकी स्वतंत्रता? मुसलमानोंको हज सब्सीडी देने की स्वतंत्रता? जरा, “What happened to Hindu Temples?” part 1 and 2 पढो।उसके अंदरके छाया चित्र देखो। कुछ तर्क दो। केवल विधान ना करो। —

  7. संगात संजायते कामह ;कामात क्रोधो अभिजायते .
    क्रोधो भवति सम्मोह ;संमोहात स्मृति भ्रमह .
    स्मृति भ्रमह बुद्धि नाशाय.;बुद्ध्नाशय प्रणश्यति .
    इन भाबुक आकाक्षाओं को वर्तमान क़ानून तो इजाजत नहीं देता .
    कोर्ट के निर्णय को कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता .न अल्पसंख्यक और न विराट
    बहुसंख्यक ..जो समझते हैं की वे ही सच्चे देशभक्त हैं और मंदिर -मस्जिद या मकबरे का मुद्दा उठाये बिना उनकी देशभक्ति घास चरने चली जायेगी तो वे इस मनोवृत्ति से मुक्त होवें .क्योंकि श्रीमद्भागवत गीता का उक्त श्लोक हिदुत्व की मर्यादा है ..और इस लछमन रेखा का उलंघन करने वाला वर्तमान क़ानून से पंगा लेने लायक नहीं रह पायेगा ..यदि कोई अपने घर में शैतान या बाबर का मकबरा
    बनाता है और यदि कोर्ट ने माना की यह उसकी मिलकियत है .उसका विशेषाधिकार है ;तो क्या करोगे ?यदि फैसला नहीं मानोगे तो अस्म्वैधानिकता के दोषी होव्गे .और यदि ऊंची अदालत में जाओगे तो भी वक्त का तो इंतज़ार करना ही होगा .

    वैसे बाबर का मकबरा यदि ठीक उस जगह जहां श्री राम जन्मभूमि चिन्हित की गई है कोई बनाने की सोच रहा है तो ये ख्वाब कभी पूरा अब नहीं होगा .यदि मस्जिद बनाना जरुरी है तो सम्बंधित समिति या समाज अपनी वैयक्तिक भूमि या संस्था गत भूमि पर बनाता है तो किसी को इतराज भले हो किन्तु कानूनन वह गलत नहीं हो सकता .जहां तक राम जन्म भूमि का या मंदिर बनाए जाने का प्रश्न है वह भी इसी संवैधानिक परिधि के दायरे में बनाया जा सकता है .देश का लगभग हर हिन्दू चाहता है की वहां मंदिर बने ;लेकिन यह जरुरी नहीं की वह संघ परिवार का हिस्सा बने या भाजपा को वोट देकर सत्ता तक ले जाए

    • श्रीराम तिवारी जी द्वारा श्रीमद्भागवत गीता से लिए अधूरे श्लोक (२.६२-६३) को समूचे ढंग से प्रस्तुत करते मैं कहूँगा कि तथाकथित स्वतंत्रता से अब तक एक सबसे बड़ा “नियोक्ता,” भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए “कार्य करते” हुए तिवारी जी जैसे भारतीयों ने सदैव हिंदुत्व की मर्यादा का उल्लंघन किया है फलतः आज स्वयं उनकी टिप्पणी में अच्छे बुरे में अंतर का परिहास होते दिखाई देता है|

      ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
      संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥
      क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
      स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥

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