क्यों खेलती है यह ज़िन्दगी

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alone womenकभी इन आँखों में

नींद और सपने दोनों थे
आज कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी ने करवट ऐसी
ली कि पल में सब
बदल गया।
आँखों में नींद और सपने
तो दूर की बात है
अब शायद कोई एहसास
भी नहीं बचा।
बचा है तो सिर्फ दर्द
कुछ उलझनें और
एक सवाल कि आखिर
क्यों खेलती है यह ज़िन्दगी?
पता नहीं कैसे कब यह हो गया
कि आँखों से सब कुछ खो गया
सपनों की जगह कब दर्द
और अनसुलझे सवालों ने ले ली
कुछ भी पता ही न चला
धीरे-धीरे कब रंग गायब हुए
ज़िन्दगी से
अब तो बेरंग इस जीवन में
बचा है सिर्फ यही एक सवाल
क्यों खेलती है यह ज़िन्दगी?

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