ये बंधन क्यों?

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डॉ. सतीश कुमार

मैं प्रश्न क्यों ना करूँ
मैं बहस क्यों ना करूँ
प्रश्न करना, बहस करना
जरूरी है
जानने के लिए
समझने के लिए

गूंगी गुड़िया से
बोलने वाली गुड़िया
बनने तक का सफर
असहनीय दर्द
कांटों भरा रहा।

यूँ ही स्वीकार
नहीं किया, दुनिया ने
मेरा यह रूप
बहुत सहा
बस अब और नहीं।

अच्छा है तुम्हारे लिए,
मैं चुप रहूं ,
आज्ञाएं ढोंऊं तुम्हारी,
शासित मैं बनी रहूँ,
तुम्हारी सदा,
तुम शोषक बने रहो।

है उन्मुक्त आकाश,
चाहे जितना उड़ू मैं,
है सागर अथाह,
चाहे जितना,
गहरे पैठूं मैं,
है खुली जमीन,
चाहे जितना मैं,
दौड़ लगाऊँ,
फिर चाहते हो क्यों?
बंधन में मुझे बांधना,
जब प्रकृति ही नहीं चाहती,
मुझे किसी बंधन में बांधना।

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