विधवाओं को सिलाई मशीन और जवानों को जय हिन्द ?

-डॉ. अरविन्द कुमार सिंह-   indian-army
कल मुम्बई में एक कार्यक्रम हुआ। अवसर था ‘‘ऐ मेरे वतन के लोगों’’ गीत के 51 वीं जयन्ती का। राष्ट्र कवि प्रदीप का लिखा और सुर सामाग्री लता का गाया यह गीत वास्तव में  कालजयी गीत है। इस गीत की पंक्तियां सुनकर अक्सर मैं कुछ कहना चाहता था। पर हर बार मन के संकोच के कारण बहुत कुछ अनकहा रह गया। आज मैं कम्प्यूटर को आधार बना रहा हूं और आपतक अपने विचारों को प्रेषित कर रहा हूं। उस माध्यम से अपनी बात कह रहा हूं जो अपनी बात सम्पूर्ण राष्ट्र को प्रेषित करने में सक्षम है। चाय पीने में आपको जितना वक्त लगेगा उस से कम वक्त में आप मेरा यह लेख पढ़ लेंगे।
सुनना पहली प्रक्रिया है, विचार करना दूसरी तथा एक्शन अन्तिम प्रक्रिया। विगत कुछ वर्षों के अनुभव के उपरान्त मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आज का व्यक्ति सुनने को ही तैयार नहीं। यदि वो चुप है तब भी वो अन्दर से बोल रहा है, बेचैन है, सामने वाला कब चुप हो और वो अपनी बात कहे। नतीजा, आज के दौर में मात्र खोखले वायदे देश की नियत बन गये हैं। राजनेता मात्र सुनाने को तैयार बैठे हैं, कुछ सुनने को नहीं। यदि ऐसा नहीं होता तो राजनेता बोलने से ज्यादा करने पर अपना ध्यान केंद्रित करते। अक्सर कुछ प्रश्नों पर मैं अपने आपको बहुत असहज महसूस करता हूं। उत्तर नहीं मिलता है, मन व्यथित होता है। उन प्रश्नों को आपके सामने रखना चाहूंगा। कारणों की तफसील में, बाद में चलूंगा –
  •  कुछ अपवादों को यदि छोड़ दें तो आज तक किसी आतंकी घटनाक्रम में राजनेता आतंकियों के निशाने पर नहीं। लाशें गिरती हैं आम जनता की ।
  • देशभक्ति की बातें करने वाले राजनेताओं के पुत्रों की पसंद सेना की नौकरी नहीं। जबकि इंग्लैण्ड के प्रिंस चार्ल्स सेना में शामिल होकर अपने देश के लिये उदाहरण पेश करते हैं।
  • 1947 से आजतक कश्मीर समस्या का समाधान नहीं – किश्तों में जितने लोग मरे उतनी संख्या में कश्मीर की समस्या नहीं पाकिस्तान निपट जाता ।
  • आज देश में कोई राष्ट्रीय नेता नहीं – जो हैं, किसी धर्म, किसी जाति, किसी समुदाय, किसी क्षेत्र के नेता हैं। ऐसे में राष्ट्रीय समस्याओं पर राष्ट्रीय एकता कैसे सम्भव है ?
  • देश के अन्दर भ्रष्टाचार, घोटाला, बेईमानी, सब चलेगा पर हम चाहेंगे देश की सेना ईमानदार रहे, देश के लिये जान देती रहे। विधवाओं को सिलाई मशीन और शहीदों को जयहिन्द। आखिर कब तक ? जनता और राजनेता देश के लिये जान कुर्बान करना कब सीखेंगे ?
देश जब आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हमने देश को आजाद कराने के सन्दर्भ में बहुत कीमत चुकाई। कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को खोया – जुझारू नौजवानों का मातृभूमि की बलिवेदी पर न्यौक्षावर होना हमारी अपूर्णिय क्षति है, लेकिन इससे भी कड़वा सच यह है कि देश के आजाद होने के बाद हम देशभक्ति को ही खो बैठे। राष्ट्र व्यक्तिगत स्वार्थ की चहारदीवारी में कैद होता चला गया। राजनेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये देश को धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्र के रूप में बंटवारा कर दिया। इस बंटवारे से राजनेताओं को व्यक्तिगत फायदा तो हुआ पर  धीरे-धीरे राष्ट्रीयता गुम होती चली गयी, अगर ऐसा नहीं होता तो आज महाराष्ट्र राष्ट्रीयता के सवाल पर जूझता नजर नहीं आता।
वोट की राजनीति ने इंसानियत को भी दांव पर लगा दिया। तभी तो कभी किसी राजनेता ने बड़े गर्व से कहा था ‘‘मुम्बई के आतंकवादियों का इरादा पांच हजार लोगों को मारने का था’’। अल्फाजों के चयन से यह अर्थ ध्वनित होता है, शायद नेता जी को अफसोस है, इतने कम लोग क्यों मरे। देशभक्ति की इससे बड़ी मिसाल राजनेताओं की और क्या मिलेगी कि जनता की सुरक्षा में आरक्षण वाली पुलिस तथा खुद इनकी सुरक्षा के लिये एनएसजी कमांडो।
किसी भी राष्ट्र की सबसे मजबूत धुरी उस राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली होती है जहां से देश के नौनिहालों का चरित्र निर्माण होता है। यही चरित्र निर्माण, देश के विकास तथा सुरक्षा की गारन्टी  बनता है। आज हम बहुशिक्षा प्रणाली  के चौराहे पर खड़े होकर खुद दिग्भ्रमित अवस्था में हैं। नकल की बैसाखी से चलकर शिक्षा की डिग्रियां हासिल करने वाला नौजवान, आगे चलकर किस चारित्रिक दृढ़ता का परिचय देगा, यह सहज ही समझा जा सकता है, पर राजनेताओं को इससे क्या लेना। उसके लिये नौजवान देश का मुस्तकबील नहीं, मात्र एक वोट बैंक है। सारी वर्जनायें वोट के लिये तोड़ दी। अब तो इसकी आंच सेना को भी झुलसाने लगी है।
एक और बात विशेष रूप से कहना चाहूंगा । सम्पूर्ण राष्ट्र किसी भी सर्न्दभ में सहायता की अपेक्षा सेना से करती है। बाढ़ आ जाय, सेना को बुलाईये, भूकम्प आ जाये, सेना को बुलाईये ,बच्चा बोरवेल में गिर जाय, सेना को बुलाईये आतंकवादियों ने कहीं हमला कर दिया, सेना को बुलाईये – दो आतंकी 150 व्यक्तियों को जान से मार देंगे – ढाई सौ लोग बिल्डिंग में घिरे रहेंगे, तब तक बाहर नहीं निकल सकते, जब तक सेना उन्हें बाहर नहीं निकालें। दो व्यक्ति ढाई सौ पर भारी ? आखिर क्यों ? अगर वो आतंकी, प्रशिक्षण लेकर ढाई सौ को बधंक बना सकते हैं तो ढाई सौ व्यक्तियों  सम्पूर्ण राष्ट्र  के लिये सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य क्यों नहीं ? हर व्यक्ति अपनी सुरक्षा स्वयं करने में सक्षम हो तभी राष्ट्र ज्यादा मजबूत हो सकेगा तथा आतंकियों का असर जाता रहेगा । विश्व में कई ऐसे राष्ट्र है जहां सैन्य प्रशिक्षण सबके लिये अनिवार्य है।
1977 में देश के हालात को देखते हुये आपातकाल की उद्घोषणा की गयी। कुछ ने सराहा – कुछ ने कंडम किया। कहीं सदुपयोग हुआ तो कहीं दुरूपयोग, पर ये आवाज कभी नहीं उठी कि चूंकि इस कानून का दुरूपयोग हुआ है, अतः इसे समाप्त किया जाय।
पोटा कानून के अर्न्तगत बहुत ही दिलचस्प रवैया तत्कालीन सरकार का देखने को मिला था। कानून के दुरूपयोग के डर से सरकार इसे लागू ही करने को तैयार नहीं थी। कुछ उसी प्रकार जैसे कोई ये कहे कि एके 47 राईफल का दुरूपयोग हो सकता है, अतः इसे सेना को दिया ही न जाय। अन्धेरा अपना साम्राज्य कायम करता जा रहा है और हम रौशनी के तलबगार नहीं। सच तो ये है –
                           जिन बेटों ने पर्वत काटे है अपने नाखूनों से
                          उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के कानूनों से।
इन सारी समस्याओं का समाधान राजनेताओं की दृढ़ इच्छाशक्ति में छिपा हुआ है । राष्ट्र को सबसे उपर रखना होगा तथा राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत एक दृढ़ चरित्र निर्माण युवा वर्ग का करना होगा। तभी हम समस्याओं से जूझने में सफल हो सकेंगे। समाधान तो है –
  • एक शिक्षा प्रणाली
  • शिक्षा के अर्न्तगत चरित्र निर्माण
  • चरित्र निर्माण में राष्ट्रीयता की भावना पर बल
  • सम्पूर्ण नागरिकों के लिये सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य
  • राजनेताओं के लिये विशेष सैन्य प्रशिक्षण
  • सैन्य प्रशिक्षण, चुनाव लड़ने के लिये आवश्यक अर्हता में शामिल हो
  • कमांडो सुरक्षा मात्र राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, तथा रक्षा मंत्री को
  • अत्याधुनिक हथियारों से पुलिस, सेना को सुसज्जित किया जाय
  • आतंकवादियों के संदर्भ में कठोर कानून का प्रावधान किया जाय
और अन्त में यही कहना चाहूंगा हर व्यक्ति राष्ट्र के लिये सोचे न कि चन्द व्यक्ति राष्ट्र के लिये सोचें। राष्ट्र जिन्दा रहेगा तभी हमारा वजूद जिन्दा रहेगा। राष्ट्र के प्रति हमारा योगदान राष्ट्र की अमूल्यतम थाती है और इस थाती पर हमे गर्व होना चाहिये।

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