जंगली चुनाव‌

मेरे पड़ोस के जंगल में था

उस दिन बड़ा चुनाव
हुआ चकित जब मैंने देखे
हर वोटर के भाव।

था चुनाव जंगल परिषद‌ का
थे सभी जानवर वोटर
कैसे मत, पेटी में डालें
समझाता था कंप्यूटर।

गुंडा‍ दल से चुनाव में
खड़ा हुआ था कुत्ता
चाह रहा था किसी तरह
हथियायें जंगल सत्ता।

चापलूस दल ने सीधे ही
गीदड़ को लड़वाया था
जीते जाते कैसे चुनाव
यह पूरा पाठ पढ़ाया था।

गधों खच्चरों ने मिलकर‌
घोड़े को टिकिट दिलाया था
जीत सुनिश्चित ही होगी
घोड़े पर दांव लगाया था।

खाऊ दल ने नाम डिक्लेयर
बहुत दिनों के बाद किया
सोच समझकर सुअरराम को
अपने दल का टिकिट दिया।

सियार लगड़बग्गों ने मिलकर‌
लोमड़ियों को बुलवाया
पंच लोमड़ी के पतिदेव को
तुरत ही टिकिट दिलवाया।

चापलूस, गुंडों के दल थे
प्रमुख दलों वाले दल दल
बाकी थे मरियल सड़ियल से
शक्तिहीन निर्बल दुर्बल।

प्लान किया था बड़े दलों ने
वोट फ्री में न लेंगे
आकर खुलकर दो वोट हमें
हम हंसक्रर सौ रुपये देंगे।

एक चींटी जो थी निर्दलीय
खुलकर एलान कर रही थी
ले जाओ हमसे एक हज़ार
वोटर के कान भर रही थी।

वोटर भी सोच रहे थे कि
वे वोट उसी को ही देंगे
जो सबसे ज्यादा पैसे ला
उसके हाथों पर धर देंगे।

लेकर चींटी से एक हज़ार
जब वोट डालने गये वोटर
बूथों पर बैठे उन्हें मिले
गुंडे दादा दाऊ तस्कर।

गुंडों ने सबको धमकाया
कि वोट हमें देना होगा
यदि कुत्ते को न दिया वोट
तो प्राण तुम्हें खोना होगा।

चींटी के द्वारा दिये गये
पैसे गुंडों ने छीन लिये
जब उन्हें उड़ाया धरती पर
सारे कुत्तों ने बीन लिये।

परिणाम निकलकर जब आया
कुत्तों को भारी विजय मिली
उनकी मेहनत हुई फलीभूत
बरसों से थी यह ख्वाहिश दिली।
अब बहुमत था गुंडा दल‌ का
और कुत्ता बना मंत्रीजी
हाथी अफसर सेल्यूट करें
और नमस्कार संत्रीजी।

मंत्री बनते ही कुत्ते ने
सारा मंत्रालय बदल दिया
हर कुर्सी पर कुत्ते बैठे
कुत्ता जाति को सबल किया।

मंत्री का पी. ए. कुत्ता था
और निजी चिकित्सक भी कुत्ता
मुख्य सचिव भी कुत्तेपन में
रचा पचा अड़ियल कुत्ता।
सभी चतुर कुत्तों से सारे
मंत्रालय की सीट भरी
सारे कुत्तों को दिखती थी
अब तो दुनिया ही हरी हरी।

जंगल के पशु जब भी आते
थे किसी काम को करवाने
रोटी पानी की आशा में
कुत्ते लगते थे गुर्राने।

कुत्तों का मुखिया मंत्री भी
अब खाये बिना कुछ न करता
सचिव और पी. ए. तक भी
सीधे मुंह बात नहीं करता।
जब हुई शिकायत कुत्तों की
तो एक जांच आयोग बना।
बाघ और चीते ने मिलकर
सिंह जी को अध्य्क्ष चुना।

अब सिंह रोज जाँच करता
और कुत्तों को डरवाता है
कुत्तों को जो हड्डी मिलती
वह उसे छीन खा जाता है।    

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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