क्या यूपी चुनाव में होगा ‘वन टू वन’ मुकाबला

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                                    संजय सक्सेना


      लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासी बिसात गई चुकी है। सभी दलों के नेता बेहद सधे हुए अंदाज में अपनी ‘चाल’ चल रहे हैं। बात चार बड़े दलों की कि जाए तो समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि वह कोई बड़ा गठबंधन नहीं करेंगे और अकेले अपने दम पर भाजपा यानी योगी सरकार को उखाड़ फेकेंगे। भाजपा विपक्ष की चुनौती से भागने वाली नहीं है।यह बात सब जानते हैं। इससे भी खास बात यह है कि विपक्ष के बिखराव के कारण चुनावी माहौल भाजपा के पक्ष में बनता दिख रहा है। भाजपा के लिए इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता था कि यूपी विधान सभा चुनाव के मुकाबले में उसके सामने बिखरा हुआ विपक्ष खड़ा हो। विपक्ष एकजुट नहीं होगा तो, बीजेपी आधी लड़ाई तो वैसे ही जीत लेग। इस बात का अहसास सभी गैर भाजपा दलों को भी है, फिर भी विरोधी दलों के नेता अलग-अलग राप अलाप रहे हैं, यह थोड़ा चौंकाने वाला लगता है। इस तरह से तो भाजपा को ‘वॉक ओवर’ ही मिल जाएगा। 
     फिर भी बात मौजूदा सियासी चहलकदमी के आधार पर गैर भाजपा दलों के नेताओं के बयानबाजी की कि जाए तो उससे जरूर यह लगता है कि विधान सभा चुनाव में मुकाबला ‘कांटे’ का रहेगा? यूपी चुनाव में  कांग्रेस की भूमिका भी नये सिरे से तय होगी। 2014, 2017 और 2019 की तरह इस बार भी कहीं ‘वोट कटुआ’ पार्टी बन कर तो नहीं रह जाएगी ? या फिर प्रियंका की लीडरशिप में कांग्रेस बड़ी खिलाड़ी बनकर उभरेगीं। उधर, उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का मिशन-2022 के तहत फिर से सत्ता पर काबिज होने का है,लेकिन इनत माम कयासों के बीच भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक बयान ने सियासदारों के दिलों की धड़गन बढ़ा दी है। 
   दरअसल,भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने गत दिवस अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक अजीब तरह की भविष्यवाणी कर दी थी,जिसमें उनके द्वारा कहा गया था कि अलग-अलग चुनावों में हाथ मिलाकर ताकत आजमा चुकी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस अभी भले अलग-अलग पाले में खड़ी होकर एक-दूसरे पर हमलावर हों, लेकिन चुनाव के कुछ समय पूर्व यह सभी दल एकजुट हो जाएंगे। 2019 लोकसभा चुनाव के समय प्रदेश के प्रभारी रहे नड्डा की बात को इस लिए भी गंभीरता से लिया जा रहा है क्योंकि की वह यूपी की सियासी नब्ज से वाकिफ हो चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को ‘अर्जुन’ की आंख से दिख रहा है कि यूपी में विपक्ष का गठबंधन लगभग तय है। नड्डा ने पार्टी को इसी के मुताबिक तैयारी करने के लिए भी कहा है।
     इसके पीछे नड्डा का अपना अनुभव है। यूपी में सपा-बसपा को हमेशा सियासी ही नहीं व्यक्तिगत दुश्मन भी माना जाता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब नड्डा ने प्रदेश प्रभारी के रूप में चुनावी कमान संभाली थी, तब अप्रत्याशित ढंग से सपा-बसपा के बीच गठबंधन हो गया था। दोनों दल मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े थे। उससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन किया था। हालांकि, गठबंधन की संभावनाओं को जताने के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंत्रियों से यह भी कहा कि गठबंधन से चिंतित कतई नहीं होना है। 2017 और 2019 में भाजपा ने जिस तरह विजय हासिल की, वैसे ही फिर करेगी। फिर भी तैयारी इस चक्रव्यूह को ध्यान में रखते ही करनी है। ध्यान रहे कि किसी भी वर्ग-समाज को छोड़ना नहीं है। सभी को साथ लेकर चलना होगा।
      बहरहाल, भाजपा अध्यक्ष दो दिन के दौरे के दौरान प्रदेश की सियासत को अपने हिसाब से देखने में सफल रहे होंगे। दो दिन के प्रवास पर उत्तर प्रदेश आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का यूपी प्रवास गत दिवस खत्म हो चुका है। अपने प्रवास के दौरान रविवार को नड्डा आगरा में थे। उससे पहले शनिवार को उन्होंने लखनऊ में मैराथन बैठकें कीं थीं। लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में विधानसभा प्रभारियों और जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुखों को चुनावी गुरुमंत्र देने के बाद प्रदेश मुख्यालय में वह पार्टी के वरिष्ठजनों के साथ प्रदेश के राजनीतिक हालात को परखते रहे। मंत्रियों के साथ अलग बैठक की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कोर कमेटी के साथ मंथन किया। फिर देर रात तक राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष, प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल के साथ चुनावी परिस्थितियों पर चर्चा करते रहे।
    सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मंत्रियों और पदाधिकारियों को नड्डा ने अपना आकलन बता दिया है। चूंकि, अपनी-अपनी ताल ठोंक रहे सभी दल कुछ शर्तों के सहारे गठबंधन की गुंजाइश की खिड़की खोले हैं, इसलिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लग रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी विपक्षी दल मिलकर ही भाजपा से लड़ने के लिए मैदान में उतरेंगे। उनका मानना है कि अभी सभी पार्टियां छोटे दलों को शामिल करने की बात कह रही हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे तो बड़े दल भी भगवा दल की विचारधारा के खिलाफ एकजुट होने में संकोच नहीं करेंगे।
    लब्बोलुआब यह है कि नड्डा को योंहि नहीं लग रहा है कि विपक्ष एकजुट हो जाएगा।पिछले कुछ महीनों के गैर भाजपा दलों के नेताओं के बयान भी भाजपा अध्यक्ष के दावे की पुष्टि करते नजर आ रहे हैं। अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा भी था कि बसपा यह तय कर ले कि उसे सपा से लड़ना है या भाजपा से। इसी तरह से कांग्रेस की लीडरशिप भी सपा-बसपा के प्रति नरम रूख अख्तियार किए हुए हैं। वैसे भी कांग्रेस की मंशा तो शुरू से ही गठबंधन करने की थी,यह और बात है कि सपा-बसपा ने उसे इसका मौका ही नहीं दिया।बात बसपा सुप्रीमों मायावती की कि जाए तो उनके बयानों से तो यह लगता है कि बसपा सुप्रीमों मायावती के लिए भाजपा और समाजवादी पार्टी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वह जितना भाजपा को कोसती हैं,उतना ही उलहाना समाजवादी पार्टी को देती हैं। इसके चलते समाजवादी पार्टी के नेता मायावती पर आरोप भी लगा रहे हैं कि उनकी भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही हैं,लेकिन मायावती अपनी चाल से आगे बढ़ती जा रही हैं। उनके मन में जो आ रहा है,वही कर रही हैं।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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