वेब सीरीज क्या समाज के लिए मीठा ज़हर साबित होंगी?

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वर्तमान युग सूचना क्रांति का युग है। सूचना और संचार ने हमारे जीवन को रफ्तार दी है। बिना सूचना के वर्तमान समय में जीवन के संचालन की कल्पना करना नामुमकिन सा है। आज न केवल सूचना का प्रारूप परिवर्तित हुआ है, बल्कि सूचना प्रसारण के स्वरूप भी पूरी तरह से बदल गए हैं। आज चंद पलों में ही सूचना विश्व के कोने-कोने तक पहुंच जाती है। सूचना को प्रसारित करने में इंटरनेट ने अपनी महती भूमिका निभाई है। आज इंटरनेट की पहुंच घर-घर तक हो गई है। ऐसे में यूँ कहें कि पूरी दुनिया एक हथेली में सिमटकर रह गई है, तो यह भी अतिशयोक्ति नहीं होगा। यह सच है कि सही सूचना जीवन को रफ्तार देती है, लेकिन अगर सूचना ही ग़लत परोसी जाएं या ग़लत ढंग से रचकर तथ्यों को सूचना और संवाद के रूप में परोसा जाएं। फ़िर यह सिर्फ़ व्यक्ति-विशेष को ही नहीं प्रभावित करेगी बल्कि पूरे समाज में ही वैमनस्यता फैलाने का काम करेगी। 
       बात करें तो आज इंटरनेट पर सूचनाओं को देखने का स्वरूप भी बदल गया है। साथ ही नए नए प्लेटफार्म उभरकर सामने आ रहे हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म (over-the-top) हॉटस्टार, अमेजॉन प्राइम, नेटफ्लिक्स, बूट, जी-5, सोनी लाइव जैसे प्लेटफार्म भी सामने आ गए हैं। कोरोनावायरस और लॉकडाउन के बाद इन प्लेटफार्म पर दर्शकों की संख्या मे भी तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसे में सवाल यही क्या जिस हिसाब से ये सूचना और संवाद के प्लेटफॉर्म सामने आ रहें, उसी के अनुरूप बेहतर और एक सभ्य समाज का दृष्टिकोण इनकी विषय-वस्तु रखती या नहीं? एक अनुमान के मुताबिक भारत में ओटीटी मार्केट 2023 तक 3.60 लाख करोड़ रुपए पहुंच जायेगा। वोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में यह मार्केट 35 हजार करोड़ रुपए का था। इंटरनेट की बढ़ती रफ्तार से ओटीटी मार्केट 15 फीसदी की रफ्तार से तरक्की कर रहा है। 2025 तक वैश्विक मार्केट 17 फ़ीसदी से बढ़कर 240 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि जब यह मार्केट वैश्विक स्तर पर विकास के नित नए आयाम गढ़ रहा है, तो इस पर दिखाई जाने वाली सामग्री भी विश्वसनीय और सभ्य हो जिससे युवा वर्ग सही दिशा में तरक्की कर सके। वर्तमान दौर की सच्चाई पर नजर डाले तो ये ओटीटी प्लेटफॉर्म वही कंटेंट दिखाते हैं, जो विवादित हो जिससे लोगों की दिलचस्पी इन्हें देखने में बढ़े। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस कंटेंट का समाज के युवा वर्ग पर क्या असर होगा। आज के दौर की कड़वी सच्चाई को अगर देखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हिंदू धर्म विरोधी कंटेंट को ही प्रसारित किया जा रहा है। उनका उद्देश्य मात्र यही रह गया है कि किस तरह से धर्म विशेष की आलोचना करके अधिक से अधिक लोगों तक अपनी पहुंच को बढ़ाया जा सके।
    आज के दौर में वेब सीरीज का चलन बढ़ता जा रहा है और इन वेब सीरीज पर नजर डाले तो यह केवल एक धर्म विशेष के खिलाफ ही एजेंडे के तहत विवादित कंटेंट प्रसारित करते है। वजह शायद यही है कि हिंदुओं को टारगेट करने की ओछी राजनीति बरसों से ही हमारे देश में चली आ रही है। हमारी संस्कृति हमारी आस्था को पश्चिमी संस्कृति ने हमेशा से ही नीचा दिखाने का प्रयास किया है। हिंदू धर्म की व्याख्या को भी सभी धर्मावलंबियों ने अपने- अपने स्वार्थ के अनुसार परिभाषित करने का प्रयास किया है। यही वजह है कि सैकडों  साल पहले जब मुगल भारत आए तो उन्होंने हमारी आस्था पर ही चोट करने का काम किया। हमारे मंदिरों को तोड़ दिया यहां तक कि मूर्ति पूजा की भी निंदा की गई। वही जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने भी हिंदू धर्म को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और एकेश्वरवाद की परिभाषा गढ़ दी। 
             23 जुलाई 2018 को टाईम्स ऑफ इंडिया में छपे आर्टिकल “महाराष्ट्रा गुडमैन फोर्सेज़ मेन इनटू अन नेचुरल सेक्स, हेल्ड” में फकीर आसिफ नूरी के अपराध की कहानी को छापा गया था; लेकिन तस्वीर एक हिन्दू साधु की लगाई गई थी। इस स्टोरी को मोहम्मद आसिफ नाम के एक व्यक्ति ने लिखा था। जिससे साफ पता चलता है कि कैसे हिन्दूओ के विरोध में कुछ वामी मीडिया संस्थान भी काम करते है। वर्तमान दौर में इस प्रकार के मीडिया संस्थानों की भरमार है। आज टेलीविजन धारावाहिकों को ही देखे तो उनमें केवल और केवल धर्म विरोधी कन्टेंट ही प्रसारित किया जा रहा है। यहां तक कि रियलिटी शो को तो बनाया ही इस उद्देश्य से जाता है जो अश्लीलता फैला सकें। इन कार्यक्रमों को संचालित करने वालो के तर्क भी अजीब रहते हैं। उनका मत है कि जिन दर्शकों को कार्यक्रमों में अश्लीलता महसूस हो वे इन कार्यक्रमों को न देखे। वे देश की युवा पीढ़ी को अश्लील कार्यक्रमों को परोसने में कोई गुरेज नही करते है।
           नेटफ्लिक्स पर प्रसारित वेब सीरीज ने तो मर्यादा की सारी हदों को ही पार कर दिया है। नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज “ए सूटेबल बॉय” के एक दृश्य में नायक नायिका को भगवान के मंदिर में अश्लील हरकतें करते फिल्माया गया है। यहां सवाल ये उठता है कि क्या ऐसे दृश्य को मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर फिल्माना जरूरी है। वैसे देखा जाए तो इन मीडिया संस्थानों ने तो जैसे कसम ही खा रखी है कि कैसे हिंदुओं की आस्था पर चोट की जा सके। यह मनोरंजन कम्पनियां किसी और धर्म के खिलाफ कभी कोई विवादित कार्यक्रम प्रसारित नहीं करती। अब इनका दोहरा चरित्र ही कहे कि ये केवल और केवल हिन्दू विरोधी कंटेंट ही प्रसारित करती है। अब यह उनका डर कहे या फिर हिंदू विरोधी मानसिकता कहे यह तो इन कार्यक्रमों को बनाने वाले ही जाने लेकिन जिस तरह से हिंदुओं की आस्था पर चोट की जा रही है। उसे देखकर तो यही लगता है मानो यह संस्थान एजेंडे के तहत इस प्रकार के प्रोग्रामों का प्रसारण करते हैं।
 हमारे देश में सियासत भी अतरंगी है। राजनीति में नित नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं। सियासत के ठेकेदारों ने धर्म को भी अपने राजनीतिक फायदे के अनुसार उपयोग करना सीख लिया है। यहां तक कि हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर भी राजनीतिक रोटियां सेकने में इन्हें कोई संकोच नही होता है। उन्हें तो बस अपना राजनीतिक लाभ दिखता है। फिर चाहे उसके बदले उन्हें अपने धर्म के खिलाफ ही क्यों ना बोलना पड़े। राजनीति में ईमान, धर्म, मान, मर्यादा और आस्था जैसे शब्द बेमानी से लगने लगे हैं। ऐसे में कैसे यह उम्मीद की जाए कि राजनीति के रणबांकुरे हमारी संस्कृति हमारी आस्था को बनाए रखने का, उसे सहेजकर रखने का प्रयास करेंगे। आज के वर्तमान दौर में यह हमें ही तय करना है कि तकनीकी के इस दौर में सकारात्मकता भी है और नकारात्मकता भी। ऐसे में हमें अपने मूल्यों को खुद समझना होगा और यह हमें ही तय करना होगा कि हम समाज को किस दिशा में लेकर जाए। समाज में फैली बुराई को किस प्रकार खत्म कर सके। इस दिशा में हमें और हमारे समाज को ही सोचना होगा।

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