औरत, तलाक, इस्‍लाम और केंद्र सरकार

केंद्र सरकार ने तीन तलाक को लेकर आज एक नई बहस को जन्‍म दिया है, इसके साथ यह चर्चा भी आम हो गई है कि आखिर इस्‍लाम में महिलाओं की वर्तमान स्‍थ‍िति है क्‍या ?  केंद्रीय विधि, न्याय व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना कि दुनिया के 20 इस्लामिक देशों ने तीन तलाक को नियंत्रित किया है। यदि वहां इसे नियंत्रित किया जा सकता है तो हिदुस्तान में इसे शरीयत के खिलाफ कैसे माना जाए ? एक नजर से देखे तो उनका कहना जायज है। कम से कम भारत की आधी आबादी जो इस्‍लामिक है उसके पक्ष में तो है ही । भारत में स्‍त्री समाज सुधार के प्रयास होते ही रहे हैं, हिन्‍दुओं की कुप्रथाओं के लिए जब राजाराम मोहन राय से लेकर विवेकानन्‍द, ज्‍योतिबा फुले, स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती, डॉ. भीमराव अम्‍बेडर से लेकर जिन्‍होंने भी आवाज उठाई, उनका सभी ओर स्‍वागत होता देखा गया । पर यह स्‍वागत इस्‍लाम के मामले में कभी नहीं दिखा है, जो लोग इस्‍लामिक कुरूतियों के खिलाफ बोलते भी हैं तो उनका स्‍वर इतना धीमा होता है कि समाज उनके पीछे चलने में स्‍वयं को असमर्थ पाता है।

वर्तमान में तटस्‍थ रूप से महिलाओं का धार्मिक आधार पर विवेचन करें तो इस्‍लाम में जितनी अधिक महिलाओं की दयनीय स्‍थति है, शायद ही किसी अन्‍य धर्म में दिखाई देती हो। भारत में सामाजिक बुराइयां विशेषकर महिलाओं से संबंधित जो हैं,  उनमें प्राय: हिन्‍दू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई या अन्‍य पंथ-मजहब के लोगों में देखा यही गया है कि उन्‍होंने समय के साथ अपने यहां की कुरितियों को समाप्‍त करने का प्रयत्‍न किया है और यह निरंतर आगे भी जारी दिखाई देता है , पर इस्‍लाम के बारे में यह बात सही नहीं है । इस्‍लाम महिलाओं के साथ किस तरह पेश आता है, उसे कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं, जोकि सीधेतौर पर महिलाओं पर किया जानेवाला अत्‍याचार है ।

इस्लाम महिलाओं को किसी भी विषय पर क्या सही है अथवा क्या नहीं, इसके लिए वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देता है । इस्लाम के अनुसार जो कुरान और हदीस में  लिखा है वही परम सत्‍य है, सनातनियों की तरह इस्‍लाम अपने धर्म गंथों को तर्क की कसौटी पर कसने की कतई इजाजत नहीं देता । यही कारण है भारत में हिन्‍दू लॉ में  कानून स्‍त्री के पक्ष में खड़े हैं । वहीं अन्‍य स्‍त्री सशक्‍त‍िकरण की  दशा को उन्नत करने के जो कई  कानून संसद द्वारा बनाए जा चुके हैं, उनसे हिन्‍दू स्‍त्री को संरक्षण मिल जाता है ।  किंतु क्‍या मुस्‍लिम महिलाएं आज स्‍त्री पक्ष में बने कानूनों का अधिकतम उपयोग कर पा रही हैं ? वस्‍तुत: इस्लाम में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं, वह अपनी स्‍त्रियों से यही अपेक्षा करता है कि वे  शरिया कानून को मानें, कुरान और हदीस पर अंध विश्‍वास करें और उसके अनुसार अपने जीवन को जिएं ।

स्‍त्रियों के बारे में कुरान कहता है कि निसा-उकुम हरसुल्लकुम फअतु……….।। (कुरान मजीद पारा २ सुरा बकर रुकू २८ आयत २२३) तुम्हारी बीबियाँ तुम्हारी खेतियाँ है । अपनी खेती में जिस तरह चाहो (उस तरह) जाओ । यह अल्लाह का हुक्म है, इस बात को तफसीरे कबीर जिल्द २, हुज्जतस्सलिसा, सफा २३४,मिश्र छापा में और अधिक विस्‍तार से स्‍पष्‍ट किया गया है । औरत के प्रति इतनी घटिया मानसिकता  “औरतें तुम्हारी खेतियाँ है जिधर से चाहो उधर से जाओ“ देखें तो पूरी तरह समझ से परे है। इसे पढ़कर यही लगता है कि इस्‍लाम में महिलाओं को किस तरह काम पूर्ति का साधन माना गया  है।

ऐसे ही एक अन्‍य जगह कुरान में कहा गया है की– या अय्युह्ल्लजी-न आमनू कुति-ब……..।। (कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रुकू २२ आयत १७८) ऐ ईमान वालों ! जो लोग मारे जावें, उनमें तुमको (जान के) बदले जान का हुक्म दिया जाता है| आजाद के बदले आजाद और गुलाम के बदले गुलाम, औरत के बदले औरत ।  इसमें हमारा एतराज इस अंश पर है की “औरत के बदले औरत” पर जुल्म किया जावे | यदि कोई बदमाश किसी की औरत पर जुल्म कर डाले तो उस बदमाश को दण्ड देना उचित है, किन्तु उसकी निर्दोष औरत पर जुल्म ढाना कहां तक सही ठहराया जा सकता है ?

इस्‍लाम गर्भ निरोधक को हराम ठहराता है, जिसे लेकर दारुल उलूम का फ़तवा भी आया और ज़ाकिर नायक का सत्यापन भी है । इनके अनुसार स्त्रियों का यह मजहबी कर्तव्य है कि वे अधिकाधिक संख्या में बच्चे पैदा करें,( इब्न ऐ माजाह खण्ड 1 पृष्ठ 518 और 523 ) । अपने ‘‘ सुनुन ’’ में यह उल्लेख है पैगम्बर ने कहा थाः ‘‘ शादी करना मेरा मौलिक सिद्धान्त है । जो कोई मेरे आदर्ष का अनुसरण नहीं करता, वह मेरा अनुयायी नहीं है । शादियाँ करो ताकि मेरे नेतृत्व में सर्वाधिक अनुयायी हो जांए फलस्वरूप मैं दूसरे समुदायों ( यहूदी और ईसाइयों ) से ऊपर अधिमान्यता प्राप्त करूं । इसी प्रकार मिस्कट खण्ड 3 में पृष्ठ 119 पर इसी प्रकार की एक हदीस हैः कयामत के दिन मेरे अनुयायियों की संख्या अन्य किसी भी संख्या से अधिक रहे । सूरा रूमें सूरा 3 आयत 30 – शारीरिक संरचना को मत बदलो । इतरा सूरा 17 आयत 21 अनाम सूरा 6 आयत 152 आप अपने बच्चों की हत्या मत कीजिए । इससे किसी भी देश की जनसंख्‍या बेतहाशा बढ़ेगी एक बात है, सबसे बड़ी बात यह है कि इस्‍लामिक स्‍त्रियां इसे मानकर चल रही हैं और वे न चाहते हुए भी बार-बार गर्भ धारण करने को मजबूर होती हैं कई बार वे बच्‍चा जनने की मशीन बना दी जाती है और इस चक्‍कर के कई बार उनकी जानतक चली जाती है । ऐसी  स्‍थ‍िति में यहां किसी स्‍त्री के विचार उसकी आवश्‍यकता, उसकी अपनी स्‍वतंत्रता के कोई मायने नहीं हैं, जिसे किसी भी सूरत में जस्‍ट‍िस नहीं किया जा सकता है ।

महिलाओं के मामले में इस्‍लाम यहीं नहीं रुकता है, अब आप इसे देखिए, वल्मुहसनातु मिनन्निसा-इ इल्ला मा………।।  (कुरान मजीद पारा ५ सुरा निसा रुकू ४ आयत २४) ऐसी औरतें जिनका खाविन्द ज़िंदा है उनको लेना भी हराम है मगर जो कैद होकर तुम्हारे हाथ लगी हों उनके लिए तुमको खुदा का हुक्म है …… फिर जिन औरतों से तुमने मजा उठाया हो तो उनसे जो ठहराया उनके हवाले करो । ठहराए पीछे आपस में राजी होकर जो और ठहरा लो तो तुम पर इसमें कुछ उर्ज नहीं | अल्लाह जानकर हिकमत वाला है। इसके अर्थ को जरा समझते हैं,  निर्दोष औरतों को लुट में पकड़ लाना और उनसे व्यभिचार करने की खुली छुट कुरानी खुदा ने दे दी है, क्या यह स्त्री जाती पर घोर अत्याचार नहीं है ? फीस तय करके औरतों से व्यभिचार करने तथा फीस जो ठहरा ली हो उसे देने की आज्ञा देना क्या खुदाई हुक्म हो सकता है ?

जड़वादी सोच का एक प्रमाण यह भी है कि ” अल्लाह ने स्त्रियो पर पर्दे का कानून लागू किया है ” अर्थात उन्हें सामाजिक जीवन में भाग नहीं लेना चाहिए ‘‘ और ईमान वाली स्त्रियों से कहा कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों ( गुप्त इंद्रियों ) की रक्षा करें और अपना श्रृंगार न दिखांए सिवाय उसके जो जाहिर रहे और अपने सीनों ( वक्ष स्थल ) पर अपनी ओढ़नियों के आंचल डाले रहें और वे अपने श्रृंगार किसी पर जाहिर न करें ……. अनुवादक मुहम्मद फारूक खाँ, मकतबा अल हसनात ( देहली ) संस्करण ( अल अन नूर: 31 ) पुनः कुरआन में कहा है हे नबी ! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि वे ( बाहर निकलें तो ) अपने ऊपर चादरों के पल्लू लटका लिया करें । ( 33 अल अहजाब: 59 ) चादरों के पल्लू लटका लेने के साथ साथ , अल्लाह स्त्रियों के कार्यकलाप उनके घरों की चार दीवारों के भीतर ही सीमित कर देता है । ‘‘ अपने घरों के अंदर रहो । और भूतपूर्व अज्ञान काल की सज धज न दिखाती फिरो ’’ ( 33 अल अहजाब: 33 )

यहां एक पुरूष को चार विवाह करने की अनुमति है ।स्त्रियों में से जो तुम्हारे लिए जायज हो दो दो , तीन तीन , चार चार तक विवाह कर लो । ’’( 4 अननिसा 3 ) । पुरुषों को ही इस्‍लाम तलाक का अधिकार देता है महिला को इस विषय में कोई अधिकार नहीं है । इस्लाम में महिला को केवल भरण पोषण का अधिकार दिया गया है । यदि एक महिला के १० बच्चें हैं व पुरूष उसे किसी भी बात पर तलाक की धमकी देता है तो यह विचारणीय विषय है कि उस महिला की क्या हालत हो जाएगी । उसकी हालत उस बकरी की तरह होगी जिसके सामने कसाई सदैव छुरा लिए ‌खड़ा रहता हो । इसका सबसे बुरा पक्ष यह है कि मजाक में भी तलाक कहने  और चैटिंग के दौरान को  भी वैध करार दिया गया है ।

यदि उसके बाद  किसी स्‍त्री को अपने पति के साथ रहना है तो वह पहले हलाला कराकर वापिस आए। यानि कि पुन: अपने पहले पति से निकाह करे। इसमें पति यदि अपनी पत्नि को तलाक दे देता है  व उसके बाद पुनः उससे शादी करना चाहता है तो उस स्त्री को पहले किसी अन्य मर्द से निकाह करके उसके साथ एक रात बितानी होगी,  उसके साथ हमबिस्तर होना होगा फिर दूसरा मर्द उसे तलाक देगा तब वह पहले मर्द के साथ दोबारा शादी कर सकती है । लेकिन इस प्रथा के कारण किसी स्त्री के मन पर क्या बीतती होगी क्या किसी इस्‍लाम में इस बात की भी कल्पना की है ।

इसी तरह  बलात्कार हुई महिला की स्थिति बहुत दयनीय है । किसी महिला का बलात्कार होने की स्थिति में आरोपी को दण्ड तभी दिलाया जा सकता है जब वह आरोपी स्वयं अपना अपराध मान ले या चार पुरूष गवाह मिलें । सामान्यतः ये दोनों ही बातें असम्भव है इसी कारण मुस्लिम देशों में महिलाओं को ही जिना का आरोपी मानकर पत्थर मारकर मारने की सजा सुनाई गयी है । स्पष्ट है कि यह कानून मूर्खता की पराकाष्ठा है लेकिन शरीयत के इस कानून को मुसलमान श्रेष्ठ मानते हैं ।

इस्‍लाम में पत्नि की पिटाई का अधिकार दिया गया है, इससे संबंधित जानकारी आप सऊदी अरब की सरकारी वैबसाइट islamhouse.com के फतवे  पृष्ठ 26 पर  स्‍वयं देख सकते हैं, जिसमें बताया गया है कि पति को चार बातों के होने पर पत्नि की पिटाई का अधिकार है ।पहला श्रृंगार को परित्याग करना जबकि वह श्रृंगर का इच्छुक हो। दूसरा जब वह बिस्तर पर बुलाये और वह पवित्र होने के बावजूद उस के पास न आये। एक स्त्री अल्लाह के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर सकती जब तक उसने अपने पति के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, यदि वह स्त्री ऊँट पर सवारी कर रही हो और उसका पति इच्छा प्रकट करे तो उस स्त्री को मना नहीं करना चाहिए । ( इब्न ऐ माजाह खण्ड 1 अध्याय 592 पृष्ठ 520 ) पुनः यदि एक पुरुष का मन संभोग करने के लिए उत्सुक हो तो पत्नी को तत्काल प्रस्तुत हो जाना चाहिए भले ही वह उस समय सामुदायिक चूल्हे पर रोटी सेक रही हो । ( तिरमजी खण्ड 1, पृश्ठ 428 ) तीसरा नमाज़ छोड़ देना। चौथा उस की अनुमति के बिना घर से बाहर निकलना।  कोई यदि इन चारों बिन्‍दुओं पर गंभीरता से गौर करे तो सीधेतौर पर समझ आ जाता है कि इस्‍लाम में औरत की क्‍या अहमीयत है ? वह कहीं से भी स्‍वतंत्र नहीं है।

ऐसे ही इस्‍लाम दो मुस्लिम औरत की गवाही को एक पुरूष के बराबर होना मानता है । इस्लाम में स्त्री एक वस्तु के समान है जिसे बदला जा सकता है। पैगम्बर की एक प्रसिद्ध परंपरा भी है जो कि कातिब अल वकीदी से संबंधित है । इस शोध आधारित लेख को पढ़कर हो सकता है कुछ लोगों को सीधे-सीधे इस्‍लाम की आलोचना लगे, किंतु  उनसे यही कहना है कि यदि यह सब लिखा गया सत्‍य नहीं है तो वे बताएं कि आखिर इस्‍लाम महिलाओं के लिए क्‍या कहता है ? वास्‍तव में महिलाओं को लेकर इस्‍लाम की बुराईयां इतनीभर नहीं हैं। इन सभी बुराइयों के अलावा भी अन्‍य स्‍त्री दमन के नियम इस्‍लाम में है, जिन्‍हें शरिया कानून में सही ठहराया जाता है, किंतु वे सीधे स्‍त्री के स्‍व की हत्‍या करते हैं। उसके अस्‍तित्‍व को नकारते हैं।

इन सब के बीच तलाक एक विषय है, जिस पर केंद्र सरकार ने अब इतनी गंभीरता से सोचा है ।  यदि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि  केंद्र सरकार समाज के कुरीतियों को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार तीन तलाक का मामला तीन बिंदुओं (न्याय, समानता और सम्मान) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी उठाएगी। तीन तलाक का मामला धर्म से नहीं, महिलाओं के सम्मान से जुड़ा हुआ है तो वे बिल्‍कुल सही कह रहे हैं। चलिए जब जागे तभी सवेरा है । दुनिया का तो पता नहीं लेकिन भारत में यदि 11 करोड़ से ज्‍यादा मुस्‍लिम महिलाओं को भी उनके हक का न्‍याय मिल गया तो निश्‍चित मानिए यह हिन्‍दुस्‍तान में महिला सशक्‍तिकरण की दिशा में एक बड़ी जीत साबित  होगी ।

 

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