महिला उत्पीड़न : इंसाफ ! ढूंढते रह जाओगे – डा.गोपा बागची

1
259

महिला दिवस के मौके पर हम महिलाओं के अधिकारों और जागरुकता के लंबे चौडे समारोह-भाषण करके अपनी गिनती कुछ खास लोगों में कर लेते हैं। आधी आबादी के सरोकारों पर चर्चाएं सभी को पसंद आती हैं। नये दौर में महिलाओं के पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने की मिसालें रखने में हम पीछे नहीं हटते। महिलाओं के शिखर पर पहुंचने और विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों को गिनाकर गौरव का अनुभव करते हैं। सरकारें भी महिला अधिकारों के संरक्षण और उनके जागरुकता के लिये कार्यक्रम गिनाने में देर नहीं करती। गैर-सरकारी संगठन भी इन सरकारों के पीछे-पीछे महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा प्रस्तुत करते हैं। बालीबुड की बालाओं का आकर्षण और तथाकथित आधुनिकता की हवा में सांस लेती महिलाओं की फैशनपरस्ती से यह लगता है कि महिलाएं काफी आगे निकल चुकी हैं। महिलाएं, अब अबला नहीं रह गई हैं। यह एक भ्रम हो सकता है, सच्चाई नहीं।

पिछले कुछ सालों में महिलाओं के प्रति बढ़ती बर्बरता और अत्याचार के किस्सों ने सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हम वाकई सभ्य समाज का हिस्सा हो चुके हैं। यह तो गर्व की बात हो सकती है कि देश के सर्वोच्च पद पर एक महिला को राष्ट्रपति होने का सम्मान मिला। लोकसभा की अध्यक्ष भी एक महिला है, नेता प्रतिपक्ष भी एक महिला है। देश में सत्ता की प्रमुख पार्टी की कमान भी एक महिला के हाथों में है। कुछ राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री के पदों पर आसीन हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी महिलाएं सेवाएँ दे रही हैं। शायद स्त्री विमर्श का सबसे बड़ा पहलू भी यही है कि इतने विविध और महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं के होने के बावजूद महिलाओं के उत्पीडन-प्रताडना के मामलों में गिरावट क्यों नहीं आई, इसका ग्राफ बढ़ता ही क्यों गया। घर से लेकर आफिस तक, आंगन से खेतों तक महिलाओं के उत्पीडन के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ताजा चौंकाने वाला मामला जबलपुर के एक मेडिकल कालेज में लड़कियों को पास कराने के नाम पर कालेज के अधिकारियों द्वारा यौन-शोषण को लेकर सामने आया है। शहरों की पाश कालोनियों और कुछ खास किस्म के साइबर कैफे, ब्यूटी पार्लर, होटल्स आदि ऐसी जगहें जहां महिलाओं के शोषण के मामले तेजी से उभर रहे हैं। यह उत्पीड़न किसी एक प्रकार का नहीं है, इस उत्पीड़न में दहेज, अश्लीलता, लज्जा भंग, व्यपहरण, अपहरण, नारी के प्रति क्रूरता, मानसिक कष्ट देना, ब्लात्संग, प्रकृति विरुद्ध अपराध के लिये विवश करना, अशिष्ट रुपण, औद्योगिक क्षेत्रों में नारी की दशा आदि आते हैं। कार्यस्थल पर होने वाले कुछ व्यवहारों से भी महिलाएं स्वयं को असहज और असुरक्षित पाती हैं। कुछ मामलों में अनेक ख्यातिलब्ध महिलाओं ने भी अपने साथ होने वाले कतिपय व्यवहारों पर गहरा असंतोष जताया है। ब्यूरोक्रेसी वाले सिस्टम में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी अतिक्रमण होता रहा है। कई शैक्षणिक संस्थानों का माहौल भी महिलाओं के सम्मान की रक्षा को लेकर उपेक्षा रखता है।

ऐसा क्या है कि हम महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा और संरक्षण में किसी कारगर कदम की तरफ नहीं बढ़ पाते। कुछ दिनों पहले कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन का विधेयक तैयार किया गया है, इस विधेयक में महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के कुछ बिन्दुओं पर विचार चल रहा है। अभी इसे कानून बनने में वक्त लग सकता है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के उत्पीडन के मामले में कोई कानून नहीं है। भारतीय कानून और हमारे धर्म समाज में महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिये कई व्यवस्थाएं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार विशाखा एक्ट के तहत महिलाओं को यौन उत्पीड़न के मामलों में गंभीरता से लेने की बात कही गई है। जिसमें जिलों के कलेक्टर और ऐसी समस्त संस्थाओं में जो विधि सम्मत हैं उन्हें अपने विभागों में यौन उत्पीड़न समिति गठित करके महिलाओं को न्याय दिलाने के निर्देश है। दुर्भाग्य यह है कि इस कानून के प्रति गंभीरता किसी सरकार में नहीं है। फिर समस्या यह भी है कि इन व्यवस्थाओं में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिये संवेदनशीलता की कमी है। महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने में मीडिया जितनी आवाज उठाता है, उतना ही न्याय महिला के हिस्से में आता है। मीडिया चुप्प, तो न्याय भी खत्म।

महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों को सुनने और समुचित न्याय दिलाने के लिये राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग की सक्रियता से कुछ आस बनती है। किन्तु इन आयोगों की सुनवाई और निर्णयों को गंभीरता से नहीं लिया जाता हैं। महिला उत्पीड़न के मामलों में महिला संगठनों की स्थिति शून्य की तरह है, ये संगठन कभी सक्रिय नहीं हो पाते और न ही किसी मामले का संज्ञान स्वयं से लेते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां नक्सली अत्याचारों से पुलिस महकमों के शहीद परिवारों की महिलाओं और मारे जाने वाले आदिवासी पुरुषों की महिलाओं की सुध लेने वाले नारी संगठन का अभाव कष्टप्रद है। छत्तीसगढ़ में ही ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें टोना टोटका के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है, इन पीड़ित ग्रामीण महिलाओं की सुध लेने का भी काम नहीं होता है। पुलिस में शिकायत देने पर कार्रवाई के नाम पर हीला हवाला समझ से बाहर है और यदि शिकायत किसी अधिकारी की हो तो न्याय की उम्मीद ही छोड़ दीजिये। सही मायनों में महिलाओं के साथ होने वाले प्रताड़ना के मामलों पर प्राथमिकता से कार्रवाई होना चाहिये, क्योंकि कोई महिला किसी शिकायत को लेकर पुलिस थाने तक आती है तो उसे कितने अवसाद से गुजरना पड़ता है वह पीड़ा कोई दूसरा महसूस नहीं कर सकता है। एक महिला होने का अर्थ उसके बच्चे, परिवार और माता-पिता के समूचे अंग से होता है, एक महिला की पीड़ा से उसके पूरे परिवार की पीड़ा और दर्द का रिश्ता होता है। एक महिला की प्रताड़ना पर उसके कई अंगों पर हमला होता है, इसलिये ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की उदासीनता बरतना या उसे सामान्य मामला समझकर छोड़ देना सबसे बड़ा अपराध है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जहां किसी लड़की या महिला पर छींटाकशी या टीका-टिप्पणी उसे आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर देती है। इसके उदाहरण में कई रुचिकाएं हैं।

बहरहाल ये सच है, कि महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसक घटनाएं उन सभी दावों को खारिज करती हैं कि महिलाएं आगे बढ़ रही है। आधी आबादी का संघर्ष अभी आधा है। महिलाओं में चेतना आई है लेकिन उनके संरक्षण के प्रयासों में सरकारें असफल हैं। महिलाएं अधिकारों के प्रति सजग हुई हैं किन्तु वातावरण उसके अनुकूल नहीं है। महिलाएं स्वतंत्रता में जीना चाहती हैं परन्तु मुश्किलें कम नहीं है। प्रचलित कानून और न्याय व्यवस्था में खासे सुधार की जरुरत है, जो यह तय करने के लिये बनें कि महिलाओं को उनके सम्मान से जीने का अधिकार सुनिश्चित हो सके। वर्तमान में महिलाओं पर बढ़ते प्रताड़ना और अत्याचारों के मामलों में इंसाफ का रास्ता काफी दुर्गम है। इंसाफ मांगने का मतलब किसी सुरंग में घुसकर रोशनी की किरण को तलाश करना है। जो समाज और सरकारें महिलाओं के प्रति सेवा और सम्मान का भाव नहीं रखती हैं वहां सृजन के फूल कभी खिल नहीं सकते हैं। महिलाओं के प्रति श्रद्धा का कोमल भाव ही समाज और राष्ट्र की संस्कृति को संवर्धन प्रदान कर सकता है।

 

– डा.गोपा बागची

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

पता : ए-48, नेचर सिटी, उस्लापुर, बिलासपुर छ.ग.

 

1 COMMENT

  1. हमारी जीवन शैली में अपना कम छोड़ कर दूसरो का कम करने की आदत पड़ गई है प्रकृति की प्रक्रिया से कटना ही विनाश का कारन है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here