यहां महिलाएं सुरक्षित हैं

 जिगमत ल्हामो

एक शोध के अनुसार महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित माने जाने वाले देशों में भारत चौथे स्थान पर है। शोध में कहा गया कि यहां महिला हिंसा, भ्रूण हत्या, और मानव तस्करी बड़े पैमाने पर होते हैं। इस रिपोर्ट पर काफी हंगामा मचा था और यह तर्क दिया गया था कि इसके पीछे भारत की छवि को बिगाड़ने की साजिश है। हालांकि यह रिपोर्ट पिछले साल जारी की गई थी। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो रिपोर्ट जारी होने के एक वर्ष बाद भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है। देश में आज भी महिलाओं के प्रति हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्‍ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भी भारत में 35 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं। चिंता की बात तो यह है कि हिंसा के सबसे अधिक मामले देश की राजधानी दिल्ली जैसे महानगरों और शहरों में अधिक पाए गए हैं। दिल्ली में देर रात काम से लौटने वाली महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा तो जैसे आम बात होती जा रही है। शायद ही किसी दिन ऐसा होता है जब समाचारपत्रों में महिलाओं के प्रति यौन हिंसा की खबरें प्रकाशित न होती हों। आलम यह है कि राजनेता हिंसा को खत्म करवाने और महिलाओं के लिए देष को सुरक्षित बनाने की बजाए उल्टे महिलाओं को ही नसीहत देकर न सिर्फ अदूरदर्शिता का परिचय दे रहे हैं बल्कि विश्‍व में भारत की छवि को भी खराब कर रहे हैं।

देश में आए दिन महिलाओं के प्रति हिंसा की खबरें चिंताजनक स्थिती तक पहुंचती जा रही है। जिसने सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इसका इलाज क्या है? क्या देश में कहीं महिलाएं सुरक्षित भी हैं? यह बात मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि लद्दाख इस देश का ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाओं के प्रति हिंसा न के बराबर है। जम्मू कश्‍मीर में स्थित लद्दाख एक ऐसा इलाका है जो कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओं पर होने वाले अन्य अत्याचारों से अनछुआ और पाक है। वैसे तो इस क्षेत्र का वातावरण शुष्‍क है लेकिन यहां महिलाओं की स्थिती एक रंगीन लकीर के समान है। अत्याधिक उंचाई पर स्थित इस इलाकें में पहला कदम रखते ही लद्दाखी महिलाओं की सुंदर और दुनिया की कृत्रिमताओं से परे मुस्कुराहट आपका स्वागत करती है। यहां महिलाएं घरों में घूंघट की आड़ से झांकती हुई नहीं बल्कि खेतों में मर्दों के साथ कदम से कदम मिलाकर मजबूती के साथ काम करती यह दर्शाती हैं कि उनकी महान संस्कृति में महिलाओं का क्या स्थान है। परंपरागत रूप से लद्दाख में घरेलू कामकाज ही इसकी मूल अर्थव्यवस्था है और इस ओर काफी ध्यान दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि अनौपचारिक रूप से इस घरेलू अर्थव्यवस्था की कमान महिलाओं के ही हाथ में है। आज भी यह परंपरा स्वंय सहायता समूहों की सूरत में मौजूद है। यह समूह दूर दराज के देहातों में जबरदस्त रूप से सक्रिय है। इसे चलाने में समूचा दिशा निर्देश महिलाओं द्वारा ही दिया जाता है।

लद्दाख में 6 से 15 तक की संख्या वाले महिलाओं के छोटे-छोटे समूह बदलते समय में महिलाओं को सशक्त बनाने, स्वदेशी संस्कृति, अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में योगदान देने तथा कृषि को मजबूत बनाने के मकसद से सामने आई है। चूंकि अधिकतर महिलाएं घरेलू हैं और उनकी घरेलू जिम्मेदारियां भी हैं। इसलिए वह रोजाना के अपने घरेलू कार्य को प्राथमिकता देती हैं। इसके बाद समूह की अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं। यह महिलाएं बड़े ही परंपरागत तरीके से ऊन कातने, उनकी बुनाई (स्वेटर, टोपियां, दस्ताने आदि) करने और उन्हें खूबसूरत रंगों में ढ़ालने का कार्य करती हैं। कृषि कार्यों में महिलाओं और उनके स्वंय सहायता समूह का योगदान बढ़चढ़ कर होता है। कड़ा परिश्रम करने वाली यह महिलाएं खेती किसानी में भी प्राथमिकता का दर्जा प्राप्त कर लेती हैं। क्योंकि कृषि उत्पाद कई स्वंय सहायता समूह उत्पादों का आधार निर्धारित करते हैं। एप्रिकॉट का जैम और सी-बकथॉर्न (एक प्रकार का लद्दाखी फल) का रस वो उत्पाद है जिनसे सबसे अधिक आमदनी होती है। इसके अतिरिक्त घरेलू सजावट के सामान और सर्दी के लगभग सभी स्थानीय कपड़े इन्हीं स्वंय सहायता समूहों के द्वारा ही तैयार किए जाते हैं। इससे होने वाली आमदनी का उपयोग समूह के सदस्यों के कल्याण और बड़े पैमाने पर समाज के हित के लिए किया जाता है।

महिलाओं के ऐसे ही एक छोटे से समूह का नाम है ‘शशि स्वंय सहायता समूह‘। लेह में स्थित चाशुत गांव में छह महिलाओं ने मिलकर यह समूह शुरू किया था। वर्तमान में इस समूह में 15 महिलाएं हैं जो सक्रिय रूप से संगठन की गतिविधियों में भाग लेती हैं। इन स्वंय सहायता समूहों की सबसे प्रेरणादायक भूमिका यह है कि इससे केवल समूह से जुड़ी महिलाओं को ही लाभ नहीं पहुंचता है बल्कि समुदाय को भी फायदा मिलता है। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों से समर्थन प्राप्त यह समूह इस ठंडे रेगिस्तान इलाके में जातीयता को पुनर्जीवित करने की दिशा में अनवरत प्रयास कर रही है। बूढ़ी महिलाएं भी पूरे उत्साह के साथ विभिन्न सामाजिक कार्यों में भाग लेती हैं। इस तरह नई पीढ़ी को उनकी प्राचीन प्रथाओं और परंपराओं का ज्ञान होता है। महिलाएं किसी भी काम में पुरूषों के साथ भी बेहतर तालमेल करती हैं। क्योंकि यहां का समाज कुप्रथाओं से परे है।

हालांकि दूर-दराज इलाकें में होने, संसाधनों की कमी और कच्चा माल न मिलने के कारण यह आत्मनिर्भर समूह अपने इरादों में पूरी तरह सफल नहीं हो पाता है। ऊन, पश्‍मीना, एप्रिकॉट और सी-बकथार्न स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। लेकिन उनके द्वारा तैयार किया गया माल केवल स्थानीय बाजारों तक ही बिक पाता है। हालांकि उनके उत्पाद की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है परंतु वह देश और बाहर के मुल्कों में नहीं जा पाता है। इसकी प्रमुख वजह कच्चे माल और संसाधनों की कमी है जिसके कारण वह इतना कम उत्पाद तैयार कर पाते हैं कि उनके लिए राष्‍ट्रीय स्तर पर होने वाले मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं है। शशि स्वंय सहायता समूह की प्रशिक्षिका ज़ारा बानो ने बताया कि उसने हस्तकला का सामान बनाना अपने एक दक्षिण भारतीय मित्र से सिखा था। जब मैं अपने गांव लौटी तो मैने अपने इस कौशल की मदद से समूह में अच्छा योगदान दिया। लेकिन यहां हस्तकला के विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए हमें अधिक मात्रा में कच्चा माल प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि इस कमी को दूर कर लिया जाए तो यहां के उत्पाद राष्‍ट्रीय और अंतर्राराष्‍ट्रीय स्तर पर बिकेंगे।

लद्दाख में पीढि़यों से महिलाओं को पुरूषों के समान अवसर और अधिकार प्राप्त हैं। यहां उन्हें दहेज के नाम पर तो सताया जाता है और न ही अपना जीवनसाथी स्वयं चुनने पर उनके साथ मारपीट की जाती है। लड़के की तरह लड़की के जन्म पर भी खुशियां मनाई जाती हैं। उन्हें भी लड़कों की तरह समान रूप से शिक्षा का अधिकार प्रदान किया जाता है। घर आई बहू को बेटी का दर्जा दिया जाता है। महिलाओं के साथ अभद्रता करने वाले का सामाजिक बहिष्‍कार किया जाता है। यही कारण है कि यहां इस प्रकार की हिंसा नहीं के बराबर सुनने को मिलेगी। भले ही हमारे देश में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता हो परंतु यह एक कड़वा सच है कि यह बातें केवल किताबों तक सीमित होकर रह गई है और महिलाएं स्वंय को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। लेकिन लद्दाख में महिलाएं आज भी सुरक्षित हैं और उन्मुक्तता के साथ हवा में साथ लेती हैं। क्या देश का दूर-दराज यह क्षेत्र अन्य इलाकों के लिए प्ररेणास्त्रोत नहीं बन सकता है? (चरखा फीचर्स)

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