आशीष रावत
भारतीय समाज में हमेशा से ही पुरुषों का प्रभुत्व रहा है। एक तरफ दुनिया में तकनीकी क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है, खुशहाली का स्तर बढ़ रहा है वहीं महिलाओं से अप्राकृतिक यौन संबंध और दुव्र्यवहार में भी वृद्धि हो रही है। आजकल महिलाओं से बलात्कार और उनकी बर्बर हत्या करना एक आम घटना हो गई है। दहेज के लिए हत्या कर देना, जिन्दा जला देना, मारपीट करके घर से बाहर निकाल देना जैसी घटनाएं समाज में हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं। आजाद हिन्दुस्तान में महिलाओं पर होते ये अत्याचार व्यापक स्तर पर फैल चुके हैं। महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास पर भी बुरा असर पड़ रहा है। हमारे समाज में बढ़ती दहेज प्रथा के चलन से यह साफ प्रमाणित है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता। यह एक पेचीदा समस्या बन चुकी है जो हिंसा के कई पहलुओं को समेटे हुई है। दहेज प्रथा ने समाज में नाबालिग लड़कियों के रुतबे तथा प्रतिष्ठा को कम किया है। ऐसा अक्सर देखा जाता है कि अगर शादी के समय ससुराल पक्ष के मन-मुताबिक दहेज न दिया गया तो दुल्हन से ससुराल में दुव्र्यवहार, मारपीट और बदसलूकी की जाती है। प्रतिदिन हजारों लड़कियां इस सामाजिक ‘राक्षस’ का शिकार बन रही हैं।
एनसीआरबी के ताजा सर्वे रिपोर्ट की बात करें तो दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य बन गया है। वर्ष 2011 से 2016 के बीच दिल्ली में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2011 में जहां इस तरह के कुल 572 मामले सामने आए थे, वहीं वर्ष 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। इनमें से 291 मामलों का अप्रैल, 2017 तक समाधान नहीं हो पाया था। निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 132 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस वर्ष अकेले जनवरी में दुष्कर्म के 140 मामले दर्ज किए गए थे। इसके अलावा मई, 2017 तक राज्य में दुष्कर्म के कुल 836 मामले सामने आ चुके हैं। देश के सभी महानगरों में अपराधों के मामले में दिल्ली अव्वल है। महानगरों में कुल अपराधों में अकेले दिल्ली में 38.8 प्रतिशत अपराध दर्ज हुए, दूसरे स्थान पर बेंगलुरू 8.9 प्रतिशत और तीसरे पर मुम्बई 7.7 प्रतिशत रहा। महानगरों में दुष्कर्म के कुल मामलों में अकेले दिल्ली में 40 फीसदी हुए। मुम्बई में दुष्कर्म बलात्कार के 12 प्रतिशत मामले दर्ज हुए। महिलाओं के प्रति होती हिंसा में लगातार इजाफा हो रहा है और अब तो ये चिन्ताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ उनके लिए एक बड़ी जिम्मेवारी भी है। हालांकि महिलाओं को जरुरत है कि वे खुद दूसरों पर निर्भर न रहकर अपनी जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागरूक हो। राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर, 2012 को 23 वर्षीय लड़की से सामूहिक बलात्कार ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भीड़ बदलाव की मांग करती हुई सड़कों पर उतर आई। ऐसी घटनाओं के रोज होने के कारण इससे महिलाओं के लिए सामाजिक मापदंड बदलना नामुमकिन सा लगता है। लोगों के शिक्षा स्तर बढ़ने के बावजूद भारतीय समाज के लिए ये समस्या गंभीर तथा जटिल बन गई है। महिलाओं के विरुद्ध होती हिंसा के पीछे मुख्य कारण है पुरुष प्रधान सोच, कमजोर कानून, राजनीतिक ढांचे में पुरुषों का हावी होना तथा नाकाबिल न्यायिक व्यवस्था है। एक रिसर्च के अनुसार महिलाएं सबसे पहले हिंसा का शिकार अपनी प्रारंभिक अवस्था में अपने घर पर होती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके परिवारजन, पुरुष रिश्तेदारों, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। भारत में महिलाओं की स्थिति संस्कृति, रीती-रिवाज, लोगों की परम्पराओं के कारण हर जगह भिन्न है। उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा दक्षिण भारत के राज्यों में महिलाओं की अवस्था बाकी राज्यों से काफी बेहतर है। भू्रण हत्या जैसी कुरीतियों के कारण भारत में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर केवल 940 लड़कियां ही थीं। इतनी कम लड़कियों की संख्या के पीछे भू्रण-हत्या, बाल-अवस्था में लड़कियों की अनदेखी तथा जन्म से पहले लिंग-परीक्षण जैसे कारण हैं। राष्ट्रीय अपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार महिलाएं अपने ससुराल में बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती क्रूरता में एसिड फेंकना, बलात्कार, ऑनर किलिंग, अपरहण, दहेज के लिए कत्ल करना, पति अथवा ससुरालवालों द्वारा पीटा जाना आदि शामिल हैं। भारत में महिलाएं हर तरह के सामाजिक, धार्मिक, प्रान्तिक परिवेश में हिंसा का शिकार हुई हैं।
दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2016 में दिल्ली में हुए अपराधों पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक दिल्ली में हर चार घंटे में एक महिला बलात्कार की शिकार होती है, हर दो घंटे में एक महिला के साथ छेड़छाड़ की घटना होती है और हर नौ मिनट में एक महिला पुलिस को फोन करके मदद मांगती है। दिल्ली में 2016 में 2015 के मुकाबले 9.48 प्रतिशत अधिक एफआईआर दर्ज की गई। 2015 में बलात्कार के 2,199 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2016 में बलात्कार के 2,155 मामले दर्ज हुए ये एक मामूली गिरावट है। 2015 के दौरान यौन उत्पीड़न के 5,367 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2016 में ये आंकड़ा 4,165 था। 2016 में 3,423 अपहरण के मामले सामने आए, जबकि 2015 में ये आंकड़ा 3,738 था। यानी दिल्ली को अभी और सुरक्षित बनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए हमारे पूरे सिस्टम को जमीनी स्तर पर काम करना होगा। दुनिया में जब भी भारत की बात होती है सबकी नजर सबसे पहले भारत की राजधानी दिल्ली पर जाती है। इसलिए दिल्ली को हर हाल में महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना होगा। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस देश की राजधानी महिलाओं के लिए असुरक्षित होती है पूरी दुनिया में उसकी इज्जत और उसका सम्मान घट जाता है।