महिला आरक्षण विधेयक : पक्ष विपक्ष से उठे सवाल

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन बड़े ही जोशोखरोश के साथ राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश कर दिया गया। लेकिन इस विधेयक का उसी जोरदार अनुशासनहीन तरीके से विरोध भी हुआ। डेढ़ दशक से लटके इस विधेयक का कई दलों या उसके सांसदों द्वारा आरक्षण के भीतर पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक आदि तबकों को आरक्षण की मांग के साथ विरोध किया गया।

दलगत भावनाओं से उपर उठकर कांग्रेस व भाजपा के सांसद जहां इसके समर्थन में आए वहीं दलों से परे सपा, राजद, तृणमूल कांग्रेस और जदयू विधेयक के विरोध में खड़े हुए। हालांकि इसका समर्थन करने वाली मुख्य पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के भीतर भी बगावती तेवर सामने आने लगे है। वहीं जदयू, जो पार्टी के तौर पर इसका विरोध कर रही है, के एक प्रमुख नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिल के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं। उनका कहना है कि एक बार बिल पास हो जाए फिर हम आरक्षण के भीतर आरक्षण की लड़ाई लड़ेंगे।

हालांकि यूपीए सरकार और खासकर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के प्रयासों की बदौलत और मायावती की बसपा व ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने के कारण विधेयक अगले ही दिन राज्यसभा में पारित भी हो गया। जबक अभी इसे लोकसभा से पास होना बाकी है, महिला आरक्षण विधेयक का ठंडे बस्ते में जाने की संभावना अधिक है। अब महिला आरक्षण विरोधी पार्टियां तो हैं हीं, समर्थकों में भी विरोधी तेवर हैं। दलें अब महिला आरक्षण विधेयक को वोट बैंक से जोड़ते हुए इसे सियासी मुद्दा बनाने की मुहिम में जुट गए हैं। जहां महिला आरक्षण विधेयक के समर्थक किसी भी तरह महिला आरक्षण के प्रस्ताव को पास कराने पर आमदा है तो विरोधी कोटे के भीतर कोटा की वकालत करते हुए विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध कर रहे हैं।

इसका विरोध एक और मुद्दे को लेकर हो रहा है। वह है रोटेशन पद्धति, जिसकी वजह से ना तो पुरूषों के पास ना ही महिलाओं के पास स्थायी चुनाव क्षेत्र होगा। इससे असुरक्षा का वातावरण तो रहेगा ही क्षेत्र के प्रति समर्पण न होने की बड़ी संभावना रहेगी क्योंकि यह तय होगा कि अगली बार यह चुनाव क्षेत्र उनका न हो। इससे जिम्मेदारी और जवाबदेही घटेगी। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि रोटेशन की वजह से एक ही परिवार के महिला-पुरूष सदस्य बारी बारी से चुनाव लड़ते रहेंगे। हांलाकि इससे एक फायदा यह हो सकता है कि महिलाएं अगले चुनाव में अपनी उसी सीट पर पुरूषों के मुकाबले चुनाव लड़के जीतें जो अब आरक्षित नहीं है। इससे स्वत: महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ेगी। हालांकि इसकी संभावनाएं क्षीण नजर आती है।

भाजपा सांसद मेनका गांधी का मानना है कि यह (महिला आरक्षण विधेयक) नेताओं की बीबी बेटियों के लिए है आरक्षण है। उनका कहना है कि यह राजनेताओं की बीबी और बेटियों के लिए संसद का रास्ता खोलेगा और गरीब वर्ग की महिलाओं के आगे आने के रास्ते बंद हो जाएंगे।

बहरहाल समर्थन, विरोध और सियासी मुद्दों के बीच सबसे अहम् मुद्दा यह है कि वास्तव में महिला आरक्षण विधेयक का स्वरूप क्या है और यह किस तरह आम महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रेरित कर सकता है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि विधेयक के लागू होने के बाद महिलाओं की राजनीति में उपस्थिति बढ़ जाएगी और संसद व कालांतर में विधानसभाओं में उनकी संख्या बढ़ेगी। लेकिन यह संख्या ”किसकी” होगी और क्या सिर्फ संख्या बढ़ने से ही महिलाओं के विकास में मदद मिलेगी?

यकीनन कालांतर में विधेयक का सकारात्मक परिणाम सामने आएगा। महिला आरक्षण विधेयक किसी भी महिला के लिए खुशी की बात और उनमें जोश भरने के लिए काफी है और इसका आधारभूत तौर पर सभी समर्थन कर रहे हैं। लेकिन सबसे अहम् मुद्दा है कि अल्पसंख्यक, पिछड़े, निम्न, मध्य तबके की महिलाओं का क्या? यह एक बड़ा प्रश्‍न चिह्न बना रहेगा।

मौजूदा संसद में लोकसभा में 59 महिलाएं है। इनमें 40 सांसद करोड़पति हैं। स्पष्ट है राजनीति में जो भी महिलाएं आ रहीं है, अधिकतर संपन्न वर्ग से हैं। निचले तबके की जो महिलाएं राजनीति में हैं भी, वो अंतिम कतार में है। तो अगर महिला आरक्षण में पिछड़े निम्न तबकों के लिए अलग से बात नहीं हो तो आम समाज की महिला कैसे आगे आ पाएगी। अगर विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करने वाली राजनीतिक पार्टियां आरक्षण के तौर पर अपने स्तर पर उन्हें टिकट देती भी है तो क्या ये आम उम्मीदवारों के सामने टिक पाएंगी? यह भी एक बड़ा सवाल बना रहेगा।

विधेयक के राज्यसभा से पारित होने के बाद की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो इस सवाल को और भी बल मिलता है।

भले ही महिला आरक्षण विधेयक के विरोधी या समर्थक बिल का समर्थन करने वाली भाजपा की ही इस मुद्दे पर बगावती सांसद मेनका गांधी के उक्त बयान को अपने एक पक्ष के रूप में देख रहें हो, लेकिन इसी दिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा दिया गया रात्रिभोज मेनका गांधी का वक्तव्य ही घटित होता नजर आ रहा है।

महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पेश किये जाने के बाद इसके विरोध में उठे स्वर को देखते हुए अगले ही दिन इसके सदन से पास हो जाने में निश्‍चय ही सोनिया गांधी की सराहनीय भूमिका रही और इसके लिए उन्हें मुबारकबाद भी मिली। पर उन्हें फोन पर मुबारकबाद देने वालों में पार्टी सांसदों से ज्यादा उनकी पत्नियों के फोन थे। यही नहीं इस दिन विधेयक पास होने की खुशी में दिए गए रात्रिभोज में भी अधिकतर सांसद अपनी पत्नी के साथ आए। यह पहला मौका भी था जबकि कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी सांसदों के साथ उनकी पत्नियों को भी आग्रहपूर्वक आमंत्रित किया था। तात्पर्य यह है कि अब महिला आरक्षण विधेयक के मद्देनजर सांसदों में परिवार की महिलाओं को आगे प्रस्तुत करने का काम शुरू हो चुका है।

महिला आरक्षण विधेयक का व्यक्तिगत तौर पर विरोध करने वालों या विरोधी दलों की बात का सम्मान न करते हुए कई राजनीतिक दलों या मीडिया द्वारा सिर्फ उन्हें विधेयक विरोधी कहना भी कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं होता है।

-लीना

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लीना
पटना, बिहार में जन्‍म। राजनीतिशास्‍त्र से स्‍नातकोत्तर एवं पत्रकारिता से पीजी डिप्‍लोमा। 2000-02 तक दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, पटना में कार्य करते हुए रिपोर्टिंग, संपादन व पेज बनाने का अनुभव, 1997 से हिन्‍दुस्‍तान, राष्‍ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी, आउटलुक हिंदी इत्‍यादि राष्‍ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट, खबरें व फीचर प्रकाशित। आकाशवाणी: पटना व कोहिमा से वार्ता, कविता प्र‍सारित। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका ’मीडियामोरचा’ और बढ़ते कदम। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका 'मीडियामोरचा' और ग्रामीण परिवेश पर आधारित पटना से प्रकाशित पत्रिका 'गांव समाज' में समाचार संपादक।

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