आर्थिक तरक्‍की के लिए हिंदू अर्थशास्‍त्र अपनाना होगा

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वर्ल्ड हिन्दू इकानोमिक फ़ोरम में दोहनकारी वृति की बजाय आर्थिक शुचिता सम्पन्न नये विश्व व्यापी व्यापारिक ढांचा बनाए जाने पर बल

विनोद बंसल 

होंगकोंग जुलाई 1, 2012। वर्ल्ड हिन्दू इकानोमिक फ़ोरम के पहली दो दिवसीय होंगकोंग सम्मेलन में दुनिया से केवल लाभ कमाने की लालसा से आर्थिक संसाधनों का दोहन किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए शोषणकारी वृति की बजाय आर्थिक शुचिता सम्पन्न नये विश्व व्यापी व्यापारिक ढांचा बनाए जाने पर बल दिया गया। विश्व भर के जाने माने अर्थशास्त्रियों, व्यवसायियों, उद्योपतियों, प्रबन्ध विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों के इस अनुपम समागम ने जहां दुनिया में चारों ओर मचे आर्थिक हाहाकार पर चिन्ता व्यक्त की वहीं व्यापार के हिन्दू मॉडल पर काम करने पर बल दिया जिससे धरती को साधन सम्पन्न बनाने के साथ-साथ प्रत्येक मानव को स्वाबलम्बी बनाया जा सके।

होंगकोंग के गोल्डन मिले कोलून नामक स्थान पर स्थित होटल होली डे इन में हुए सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मॉरिशस के उप प्रधान मंत्री श्री अनिल कुमार बचू ने दुनिया में बढती राजनैतिक अस्थिरता और आर्थिक विषमता तथा बढते वित्तीय संकट के लिए वर्तमान व्यापारिक ढांचे को दोषी करार दिया। उन्होंने दुनिया के अर्थशास्त्रीयों से अपील की कि दुनिया के लिए एक ऐसा आर्थिक ढांचा बनाया जाना चाहिए जो गरीबी, भुखमरी व बेरोजगारी का दुश्मन किन्तु पर्यावरण व सतत् विकास का सच्चा मित्र हो।

वर्ल्ड हिन्दू इकानोमिक फ़ोरम की स्थापना आर्थिक संसाधनों को बढा कर जरूरतमंद लोगों तक पहुचाने, जाने माने आर्थिक विशेषज्ञों के तकनीकी ज्ञान को व्यावसायियों के काम का बनाने तथा व्यापारियों, उद्योगपतियों, प्रबन्ध विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों, प्रोफ़ेशनलों, तकनीकी विशेषज्ञों, बेंकरों व निवेशकों को एक मंच पर लाने के लिए की गई। इसका मुख्य उद्देश्य मानव को दयनीय स्थिति से बाहर निकाल कर एक समृद्ध विश्व समाज की स्थापना करना है। सम्मेलन में यूरोप, अफ़्रीका ऐशिया व अमेरिकी महाद्वीप के विभिन्न देशों से आए लगभग 250 विशेषज्ञ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रसिद्ध अर्थ शास्त्री, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर व भारत के पूर्व व्यापार व कानून मंत्री डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि दुनिया को अब लालची व्यापारिक ढांचे से बाहर निकलकर एक सुचिता संपन्न व्यावसायिक मान विन्दुओं में ढालना होगा ताकि विश्व व्यापार को और विस्तृत और प्रभावीशाली बनाया जा सके।

लंदन स्कूल आफ़ इकानामिक्स के प्रोफ़ेसर डॉ. गौतम सेन ने कहा कि दुनिया को यदि आर्थिक आत्म निर्भर बना कर समानता का भाव जगाना है तो हिन्दू अर्थशास्त्र को अपनाना होगा तथा पिछडे समाज व अविकसित देशों को आगे लाने के प्रयास करने होंगे।

भारतीय प्रवन्ध संस्थान, बेंगलोर के प्रोफ़ेसर डा आर वैद्यनाथन दुनिया के बढते आर्थिक संकट के लिए पाश्चात्य देशों में टूटती परिवार व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि इस संकट से प्रेरणा लेकर अब हमें एक ऐसे आर्थिक ढांचे का विकास करना होगा जो पर्यावरण रक्षक तथा पारस्परिक संम्बन्धों पर आधारिक होते हुए समाजोन्मुखी हो।

इसके अलावा वक्ताओं ने तात्कालिक व दीर्धगामी आर्थिक लछ्य निर्धारित करने, उन्हें पूरा करने हेतु एक विश्व व्यापी समर्थ संस्थान बनाने, अन्वेषण व तकनीकी ज्ञान के विस्तार आदि अनेक विषयों पर गहन विचार विमर्श किया। सम्मेलन को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) के पूर्व प्रमुख डा जी माधवन नायर, लंदन चेम्बर आफ़ कामर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज के चेयर मेन श्री सुभाष ठाकरार, परम कम्प्यूटर के अन्वेषक तथा सेन्टर फ़ोर डवलपिंग एडवांस कम्प्यूटिंग के पूर्व निदेशक डा विजय भटकर, जैन ईर्रीगेशन के श्री डी एन कुलकर्णी सहित अनेक वक्ताओं ने सम्बोधित किया।

सम्मेलन में भावी उधमियों की पहचान कर उन्हें हर प्रकार से तैयार करने, उनकी पूंजी का प्रबन्ध करने, प्रशिक्षण् व नेटवर्क से जोडने तथा बाजार का अध्ययन कर उन्हें महत्व पूर्ण आंकडे उपलब्ध कराने हेतु एक यंग हिन्दू बिजनेस लीडर फ़ोरम का गठन भी किया गया जिसकी पहली बैठक जनवरी 2013 में मुम्बई में बुलाई गई है।

वर्ल्ड हिन्दू इकानोमिक फ़ोरम के इस पहले सम्मेलन की चहुंमुखी सफ़लता के लिए फ़ोरम के सभी पदाधिकारियों ने तय किया कि फ़ोरम का अगला सम्मेलन वर्ष 2013 में बैंकाक में होगा।

5 COMMENTS

  1. अभिषेक पुरोहित जी अपने बारे में तो मैं यही कह सकता हूँ कि मैंने साम्यवादियों द्वारा लिखा कोई नहीं इतिहास पढ़ा है.मेरी टिप्पणी भी किसी साम्यवादी के पक्ष में नहीं है.स्पेड को स्पेड कहने की आदत पडी हुई है,अतः यह ध्यान नहीं रहता कि मेरा कथन किसके पक्ष में जा रहा है या वह किसके विरुद्ध है.

  2. चूंकि दोनों सममानियों ने कम्युनिस्थों द्वारा लिखा ही इतिहास पढ़ा है अत: वह तो मानेगेन ही न भारत को हिन्दू ही कमतर वैसे ये तो बता देते की दुनिया मे रॉम मिस्र यूनान जैसे देश एक धक्के से ही एमआईटी गए भारत क्यों खड़ा रहा हजारों सालों तक मुसलमानों से लेकर अंग्रेजों तक के जबड़े हमने तोड़े है प्रत्यक्ष युद्ध में जिनहे दुष्ट कम्यूनिसठों ने फर्जी इतिहास से दबा दिया है पर सत्य कभी नहीं दबता है

  3. श्री आर सिंह साहेब सही फरमा रहे हैं. सारी दुनिया हमें लूटती रही,लातियाती रही,भौंकती रही ,पीटती रही और हम ;-
    हविषाम अग्निः;प्रचोदयात ….के मंत्रोच्चार से ‘अहिंसा,ब्रह्मचर्य,शांति,क्षमा,मैत्री ,अपरिग्रह और त्याग ;;;त्याग…त्याग….चिल्लाते रहे.
    परिणाम ये है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने न केवल भारत भूमि,न केवल राज्य सत्ता,न केवल संपदा बल्कि भारतीयों की आत्मा को भी गुलाम बना डाला. यदि हमारे तत्कालीन अर्थशाश्त्र ,नीतिशास्त्र और दर्शन शाश्त्र वैज्ञानिक दृष्टी से युक्तियुक्त होते तो २१ वीं शताब्दी में उनके प्रासंगिक होने या न होने का विमर्श नहीं करना पड़ता बल्कि दुनिया कहती ‘भारत जिस रस्ते जाएगा उसी राह पर हम चलेंगे’ अभी तो ये आलम है कि श्री लंका और बंगला देश जैसे छुद्र पडोसी भी हमारी नित्य अवमानना में जुटे हैं.
    हमने इतिहास में सिर्फ एक विजय प्राप्त की है जो राष्ट्र गौरव और स्वभिमान को संबल प्रदान करती है और वो है १९७१ का भारत पकिस्तान युद्ध जिसमें भारत सोवियत संघ [तब कम्युनिस्ट] मैत्री के परिणाम स्वरूप न केवल पकिस्तान के दो टुकड़े हुए बल्कि दुश्मन की फौजों को आत्म समर्पण करना पड़ा. उस युद्ध में सोवियत संघ ने भारत के पक्ष में तीन बार ‘वीटो’ का इस्तेमाल किया और अमेरिका ने खुले तौर पर न केवल पकिस्तान को आर्थिक सामरिक मदद दी बल्कि उसके पक्ष में वीटो इस्तेमाल किया. सोवियत संघ के पराभव ने भारत का एक विश्वशनीय कालजयी मित्र खो दिया. तत्कालीन आर्थिक और सामरिक नीति चाहे सोवियत संघ की हो या भारत की दोनों का समिश्रण ही वर्तमान चुनौतियों का मुकाबला करा सकता है.केवल अतीत के भग्नावशेषों में वर्तमान भयावह चुनौतियों का हल खोजना निहायत भावुकता ही कही जाएगी.

  4. श्रीराम तिवारी जी का भड़ास कुछ हद तक जायज है,पर तिवारी जी यह भूल रहे हैं कि विश्व की आर्थिक व्यवस्था ठीक करने में साम्यवाद भी बुरी तरह असफल रहा है.वैसे भी बात जब वर्ल्ड हिन्दू इकानोमिक फ़ोरम में चल रही है तो विचार धारा का केंद्र बिंदु भी वहीं होगा.हिन्दू अर्थ शास्त्र का मूल त्याग है,भोग नहीं ,पर क्या यह प्रासंगिक है?कौन आज त्याग करना चाहता है?तिवारी जी जब इसको सामंत वादी परम्परा कहते है तो उनका कहना भी सही है.
    अब विचारणीय विषय यह है कि आखिर सही क्या है?एक चीज तो सही है कि जब तक भोग के साथ त्याग नहीं आएगा,तब तक कोई भी वाद सफल नहीं होगा.जब तक समाज में भूख और दरिद्रता रहेगी ,तब तक किसी भी वाद को सफल नहीं माना जा सकता.आवश्कता है एक ऐसे पद्धति की जो विकास को आखिर वाले से आरम्भ करे .यानि विकास या व्यापर का आधार समाज का सबसे पिछड़ा व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह हो.

  5. यदि हिन्दू अर्थशाश्त्र को विकल्प स्वीकार करेंगे तो फिर हिन्दू केमिस्ट्री,हिन्दू फिजिक्स,हिन्दू मेथेमेटिक्स,हिन्दू साइंस,हिन्दू तकनीकी,हिन्दू कंप्यूटर और हिन्दू डिफेन्स की भी बात उठेगी. बाकि के बारे में तो में इस वक्त कुछ भी नहीं लिखूंगा किन्तु हिन्दू डिफेन्स के बारे में साफ़-साफ़ बता दूँ की यदि ‘सत्रह बार जीतकर दुश्मन को जिदा छोड़ा दिया और अपने राम एक बार पकडे गए तो आँखे भी फुड्वा बैठे’ और सोने की चिड़िया को हज़ार साल के लिए पिंजरे में गुलाम बना बैठे? यह केवल डिफेन्स का सवाल नहीं सम्पूर्ण कालिमा और धुंध जो अतीत के अज्ञान का परिणाम है दूर से देखि जाने वाली मृगमारिचिका मात्र है. हिन्दू अर्थशाश्त्र केवल भरे हुए पेट वालों की मानसिक ऐयाशी है. वास्तव में पूंजीवाद का विकल्प सामंतवाद नहीं हो सकता और पूंजीवाद का विकल्प पूंजीवाद भी नहीं है.पूंजीवादी अर्थशात्र का विकल्प केवल ‘साम्यवादी’अर्थशात्र ही हो सकता है.

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