11 जुलाई : विश्व जनसंख्या दिवस

World Population Dayडा. राधेश्याम द्विवेदी
दुनिया में हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का महत्त्व तेजी से बढ़ती जनसंख्या से सम्बन्धित बिन्दुओं , चिन्ताओं तथा सम्भावनाओं पर सारी दुनिया के विकसित तथा विकासशील देशों के लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। पहली बार यह कार्यक्रम सन् 1987 में मनाया गया था। यह तारीख इतिहास में विशेष स्थान रखती है क्योंकि इसी दिन दुनिया की जनसंख्या ने 500 करोड़ के आँकड़े को छुआ था। सन् 1950 में दुनिया की आबादी 250 करोड़ थी जो मात्र 37 सालों में दो गुनी हो गई। सन् 1987 में मनाए विश्व जनसंख्या दिवस का फोकस आपात परिस्थितियों से पीड़ित जनसंख्या (Vulnerable Populations in Emergencies) था। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुमानों के अनुसार दुनिया की कुल आबादी 702.3 करोड़ के आँकड़े को पार कर चुकी है। इस आबादी का 60 प्रतिशत एशिया महाद्वीप में निवास करता है। चीन और भारत की संयुक्त आबादी विश्व की आबादी का लगभग 37 प्रतिशत है। आबादी का सबसे अधिक दबाव चीन और भारत पर है। तीसरी दुनिया की बढ़ती आबादी के सामने अनेक गम्भीर चुनौतियाँ हैं। मौजूदा समय में 200 से अधिक देश, छोटे परिवार तथा सेहतमन्द जीवन के लिये लोगों को जागरूक कर रहे हैं। विश्व जनसंख्या दिवस का प्रमुख सन्देश है- परिवार नियोजन का महत्त्व, पुरुष महिला प्रसूताओं की सेहत और मानव अधिकार। गौरतलब है तीसरी दुनिया में उपर्युक्त चुनौतियों को पर्यावरण, पानी और सेहत सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इस कारण विश्व जनसंख्या दिवस के सन्देश को लोगों तक पहुँचाने के लिये अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। भारत में भी उसे मनाया जाता है।
जनगणना के आँकड़े हमारे लिये रिपोर्ट कार्ड की तरह होते हैं। वे हमारी प्रज्ञा के प्रहरी और उपलब्धियों की हकीकत होते हैं। इसलिये भारत जैसे देश में जहाँ 10.69 करोड़ लोगों के सामने दो जून की रोटी जुटाने की समस्या हो, विश्व जनसंख्या दिवस का सन्देश बेहद महत्त्वपूर्ण है। जनगणना रिपोर्ट 2011 के आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत में नगरीय तथा ग्रामीण परिवारों की कुल संख्या 24.39 करोड़ हैं। इनमें से 17.91 करोड़ परिवार ग्रामों में निवास करते हैं। उनमें से 10.69 करोड़ अति गरीब की श्रेणी में हैं। लगभग 54 प्रतिशत के पास एक या दो कमरे का मकान और 13.25 प्रतिशत के पास केवल एक कमरे का मकान है। लगभग 5.37 करोड़ ग्रामीण भूमिहीन आबादी मेहनत -मजदूरी पर निर्भर है। इन आँकडों की मदद से गरीब तथा अति गरीब परिवारों की सुविधाओं, जीवनस्तर तथा जीवन के अधिकार की हकीक़त का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नगरों में यदि एक ओर बढ़ती नागरिक सुविधाएँ हैं तो दूसरी ओर तेजी से पैर पसारते स्लम हैं। प्रदूषित गटर और नाले हैं जिनके किनारे बसे लोग लोग अभिशप्त नारकीय जीवन जीने के लिये मजबूर हैं। प्रदूषित होती नदियाँ और खाद्यान्न हैं तथा हड़बड़ी में किये अविवेकी विकास के साइड इफेक्ट से उपजी वह गरीब तथा अल्पशिक्षित आबादी है जो सही पुर्नवास के अभाव में बरसों से विस्थापन का दंश भोग रही हैं।
विश्व जनसंख्या दिवस हमें याद दिलाता है कि भारत के सुविधा विहीन गरीब परिवारों की राह में नागरिक सुविधाओं की गम्भीर कमी है। इस आबादी को पीने का साफ पानी, जल जनित एवं पर्यावरण जनित बीमारियों, सेनेटरी सुविधाओं, खुले में शौच की समस्याओं, इलाज की सुविधा, आजीविका के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं।
यह अवसर है असली चुनौती को आईना दिखाने का। यही 11 जुलाई 2016 के विश्व जनसंख्या दिवस का सन्देश है जो समाज, सरकार, योजनाकारों तथा जनप्रतिनिधियों के मन में संवेदना जगाने और नई इबारत लिखने को प्रेरित करता है। उनका प्रजातांत्रिक दायित्व उन्हें संकल्पित करता है। वंचित आबादी के सपने पूरे करने के लिये हौसले भरता है।
विश्व की जनसंख्या :- संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना ब्यूरो द्वारा विश्व की जनसंख्या अनुमानित तौर पर 7.307अरबों में है।संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना ब्यूरो द्वारा प्रकाशित पत्रों के अनुसार, विश्व की जनसंख्या 24 फ़रवरी 2006 को 6.5 अरब के आंकड़े तक पहुँच गई थी। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने अक्टूबर 12,, 1999 को सबसे क़रीबी दिन के तौर पर नामित किया है जिस दिन विश्व की जनसँख्या 6 अरब तक पहुँच गई थी। यह 1987 में विश्व जनसंख्या के 5 अरब तक पहुँचने के लगभग 12 साल बाद और 1993 में विश्व जनसंख्या के 5.5 अरब तक पहुँने के 6 साल बाद हुआ। हालाँकि, नाइजीरिया और चीन जैसे कुछ देशों की जनसंख्या लगभग लाख के पास भी ज्ञात नहीं है, इसलिए इस प्रकार के अनुमानों में बहुत ज़्यादा त्रुटियों के होने की गुंजाइश है। 17 वीं शताब्दी के बाद जैसे जैसे औद्योगिक क्रांति तेज़ गति से बढ़ती गयी, वैसे वैसे जनसंख्या वृद्धि में भी काफ़ी बढ़त देखने को मिली पिछले 50 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि की दर और भी ज़्यादा तेज़ हुयी है। इसकी मुख्य वजह है चिकित्सा जगत में हुयी तरक़्क़ी और कृषि उत्पादकता में होने वाली महत्वपूर्ण बढ़त, ख़ास तौर से वर्ष 1960 से 1995 के बीच हरित क्रांति के कारण हुई प्रगति। सन् 2007 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2055 में दुनिया की आबादी 10 अरब के आँकड़े को पार कर जाएगी। भविष्य में, उम्मीद है कि दुनिया की आबादी में वृद्धि शिखर तक पहुंचेगी और उसके बाद आर्थिक कारणों, स्वास्थ्य चिंताओं, भूमि के अंधाधुंध प्रयोग और उसकी कमी और पर्यावरणीय संकटों के कारण आबादी कम होने लगेगी। इस बात की भी 85% संभावना है कि इस सदी के अंत से पहले दुनिया की आबादी बढ़नी बंद हो जायेगी। 60% संभावना है कि दुनिया की जनसंख्या वर्ष 2100 से पहले 10 अरब लोगों से अधिक नहीं होगी और करीब 15 % संभावना है कि सदी के अंत में विश्व की जनसंख्या आज की तिथि में विश्व की कुल जनसंख्या से कम हो जाएगी। विभिन्न क्षेत्रों के लिए, सर्वाधिक जनसंख्या के तारीख़ और आकार में काफ़ी भिन्नता होगी।
जनसंख्या नियंत्रण:- जन्म दर को कम करके जनसंख्या वृद्धि में कटौती करने को ही आम तौर पर जनसँख्या नियंत्रण माना जाता है| प्राचीन ग्रीस दस्तावेजों में मिले उत्तरजीविता के रिकॉर्ड जनसँख्या नियंत्रण के अभ्यास एवं प्रयोग के सबसे पहले उदाहरण हैं| इसमें शामिल है उपनिवेशन आन्दोलन, जिसमे भूमध्य और काला सागर के इर्द-गिर्द यूनानी चौकियों का निर्माण किया गया ताकि अलग- अलग राज्यों की अधिक जनसँख्या को बसने के लिए पर्याप्त जगह मुहैया कराई जा सके| कुछ यूनानी नगर राज्यों में जनसँख्या कम करने के लिए शिशु हत्या और गर्भपात को प्रोत्साहन दिया गया| अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की एक ही बच्चे की नीति जिसमें एक से ज्यादा बच्चे होना बहुत बुरा माना जाता है| इस नीति के परिणाम स्वरुप जबरन गर्भपात, जबरन नसबंदी और जबरन शिशु हत्या जैसे आरोपों को बढ़ावा मिला| देश के लिंग अनुपात में 114 लड़कों की तुलना में सिर्फ 100 लड़कियों का जन्म ये प्रदर्शित करता है कि शिशु हत्या प्रायः लिंग के चुनाव के अनुसार की जाती है|
यह बात उपयोगी होगी अगर प्रजनन नियंत्रण करने को व्यक्ति के व्यक्तिगत निर्णय के रूप में और जनसंख्या नियंत्रण को सरकारी या राज्य स्तर की जनसंख्या वृद्धि की विनियमन नीति के रूप में देखा जाए| प्रजनन नियंत्रण की संभावना तब हो सकती है जब कोई व्यक्ति या दम्पति या परिवार अपने बच्चे पैदा करने के समय को घटाने या उसे नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाये| अन्सले कोले द्वारा दिए गए संरूपण में, प्रजनन में लगातार कमी करने के लिए तीन पूर्वप्रतिबंध दिए गए हैं: (1) प्रजनन के मान्य तत्व के रूप में परिकलित चुनाव को स्वीकृति (भाग्य या अवसर या दैवीय इच्छा की तुलना में), (2) कम किये गए प्रजनन से ज्ञात लाभ और (3) नियंत्रण के प्रभावी तरीकों का ज्ञान और उनका प्रयोग करने का कुशल अभ्यास. प्राकृतिक प्रजनन पर विश्वास करने वाले समाज के विपरीत वो समाज जो कि प्रजनन को सीमित करने की इच्छा रखते हैं और ऐसा करने के लिए उनके पास संसाधन भी उपलब्ध हैं| इन संसाधनों का प्रयोग बच्चों के जन्म में विलम्ब, बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने, या उनके जन्म को रोकने के लिए कर सकते हैं| संभोग (या शादी) में देरी, या गर्भनिरोध करने के प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके को अपनाना ज्यादा मामलों में व्यक्तिगत या पारिवारिक निर्णय होता है, इसका राज्य नीति या सामाजिक तौर पर होने वाले अनुमोदनों से कोई सरोकार नहीं होता है| दूसरी ओर, वो व्यक्ति, जो प्रजनन के मामले में खुद पर नियंत्रण रख सकते हैं, ऐसे लोग बच्चे पैदा करने की प्रक्रिया को ज्यादा योजनाबद्ध बनाने या उसे सफल बनाने की प्रक्रिया को और तेज़ कर सकते हैं|
सामाजिक स्तर पर, प्रजनन में गिरावट होना महिलाओं की बढती हुई धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का एक अनिवार्य परिणाम है| हालाँकि, यह ज़रूरी नहीं है कि मध्यम से उच्च स्तर तक के प्रजनन नियंत्रण में प्रजनन दर को कम करना शामिल हो| यहां तक कि जब ऐसे अलग अलग समाज की तुलना हो जो प्रजनन नियंत्रण को अच्छी खासी तरह अपना चुके है, तो बराबर प्रजनन नियंत्रण योग्यता रखने वाले समाज भी काफी अलग अलग प्रजनन स्तर (जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या के सन्दर्भ में) दे सकते हैं, जो कि इस बात से जुड़ा होता है कि छोटे या बड़े परिवार के लिए या बच्चों की संख्या के लिए व्यक्तिगत और सांस्कृतिक पसंद क्या है|
प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण के विपरीत, जो मुख्य रूप से एक व्यक्तिगत स्तर का निर्णय है, सरकार जनसँख्या नियंत्रण करने के कई प्रयास कर सकती है जैसे- गर्भनिरोधक साधनों तक लोगों की पहुँच बढाकर या अन्य जनसंख्या नीतियों और कार्यक्रमों के द्वारा। जैसा की ऊपर परिभाषित है, सरकार या सामाजिक स्तर पर ‘जनसंख्या नियंत्रण’ को लागू करने में “प्रजनन नियंत्रण” शामिल नहीं है, क्योंकि एक राज्य समाज की जनसंख्या को तब भी नियंत्रित कर सकता है जबकि समाज में प्रजनन नियंत्रण का प्रयोग बहुत कम किया जाता हो| जनसंख्या नियंत्रण के एक पहलू के रूप में आबादी बढाने वाली नीतियों को अंगीकृत करना भी ज़रूरी है और ज़रूरी है कि ये समझा जाए की सरकार जनसँख्या नियंत्रण के रूप में सिर्फ जनसख्या वृद्धि को रोकना नहीं चाहती| जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार न केवल अप्रवास का समर्थन कर सकती है, बल्कि जन्म समर्थक नीतियों जैसे कि कर लाभ, वित्तीय पुरस्कार, छुट्टियों के दौरान वेतन देना जारी रखने और बच्चों कि देख रेख में मदद करने द्वारा भी लोगों को अतिरिक्त बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है| उदाहरण के लिए हाल के सालों में इस तरह की नीतियों फ्रांस और स्वीडन में अपनाई गयीं| जनसंख्या वृद्धि बढ़ने के इसी लक्ष्य के साथ, कई बार सरकार ने गर्भपात और जन्म नियंत्रण के आधुनिक साधनों के प्रयोग को भी नियंत्रित करने की कोशिश की है| इसका एक उदाहरण है मांग किये जाने पर गर्भनिरोधक साधनों और गर्भपात के लिए 1966 में रोमानियामें प्रतिबन्ध लगा |
कई बार जनसंख्या नियंत्रण पूरी तरह सिर्फ परभक्षण, बीमारी, परजीवी और पर्यावरण संबंधी कारकों द्वारा किया जाता है| एक निरंतर वातावरण में, जनसंख्या नियंत्रण भोजन, पानी और सुरक्षा की उपलब्धता द्वारा ही नियंत्रित होता है| एक निश्चित क्षेत्र अधिकतम कुल कितनी प्रजातियों या कुल कितने जीवित सदस्यों को सहारा दे सकता है उसे उस जगह की धारण क्षमता कहते हैं| कई बार इसमें पौधों और पशुओं पर मानव प्रभाव भी इसमें शामिल होता है| किसी विशेष ऋतू में भोजन और आश्रय की ज्यादा उपलब्धता वाले क्षेत्र की ओर पशुओं का पलायन जनसंख्या नियंत्रण के एक प्राकृतिक तरीके के रूप में देखा जा सकता है| जिस क्षेत्र से पलायन होता है वो अगली बार के लिए पशुओं के बड़े समूह हेतु भोजन आपूर्ति जुटाने या पैदा करने के लिए छोड़ दिया जाता है| भारत एक और ऐसा उदाहरण है जहाँ सरकार ने देश की आबादी कम करने के लिए कई उपाय किये हैं| तेज़ी से बढती जनसँख्या आर्थिक वृद्धि और जीवन स्तर पर दुष्प्रभाव डालेगी, इस बात की चिंता के चलते 1950 के दशक के आखिर और 1960 के दशक के शुरू में भारत ने एक आधिकारिक परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किया; विश्व में ऐसा करने वाले ये पहला देश था|

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