ये है दिल्ली मेरी जान

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लिमटी खरे 

राबर्ट की जमानत पर छूटे सलमान

विकलांग बच्चों के खाते की मद के पैसों का घालमेल करने के आरोपी केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की बिदाई लगभग तय ही थी। इसी बीच कांग्रेस के अघोषित तौर पर राष्ट्रीय दामाद बन चुके राबर्ट वढ़ेरा का डीएलएफ घोटाला सामने आ गया। मीडिया ने खुर्शीद को छोड़ राबर्ट को पकड़ लिया। वढ़ेरा का मामला तूल पकड़ ही रहा था कि अचानक भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी का गड़बड़झाला मीडिया की सुर्खियां बन गया। राष्ट्रीय स्तर पर वढ़ेरा और गड़करी के मामले उछलने से खुर्शीद के घालमेल की टीआरपी मानो समाप्त ही हो गई। वहीं गड़करी ने वढ़ेरा को मीडिया की सुर्खियों से बाहर आने में मदद कर दी। इसी बीच हरियाणा सरकार ने कांग्रेस के राष्ट्रीय दामाद राबर्ट को आनन फानन क्लीन चिट दे दी। इस खबर ने भी घोटालों के बीच दम तोड़ दिया। रही सही कसर मनमोहन सरकार के विस्तार ने पूरी कर दी। लोगों का ध्यान राबर्ट वढ़ेरा, सलमान खुर्शीद और गड़करी की तरफ से हट गया। माना जा रहा है कुछ सालों में इन तीनों को भी क्लीन चिट मिल ही जाएगी।

बापू नहीं हैं राष्ट्रपिता!

कांग्रेस द्वारा आधी लंगोटी पहनकर ब्रितानियों को अहिंसा के बल पर खदेड़ने वाले मोहन दास करम चंद गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई थी। सालों साल सरकारी तौर पर बापू को राष्ट्रपिता ही कहा जाता रहा है। बापू के सम्मान में भारत गणराज्य की मुद्राओं पर भी बापू के चित्र अंकित कर दिए गए। आरटीआई में यह बात उभरकर सामने आई है कि भारत के संविधान में सेना और शिक्षा से जुड़ी उपाधियों के अलावा और कोई उपाधि देने का प्रावधान ही नहीं है। आश्चर्य तो इस बात का है कि नेहरू गांधी के नाम पर सालों साल राजनीति कर सत्ता की मलाई चखने वाली कांग्रेस ने आधी लंगोटी वाले संत को राष्ट्रपिता की उपाधि देने के संबंध में संविधान में संशोधन तक करने की जहमत नहीं उठाई। वहीं अपने खुद के स्वार्थों के लिए जनसेवकों ने संविधान में संशोधन के विधेयक लाए और सदन की मेजें थपथपाकर उसे पारित भी करवाया। लगने लगा है कि अब जनसेवा के मायने ‘निहित स्वार्थ सेवा‘ हो चुके हैं।

जुगाड़ तंत्र में माहिर हैं मनमोहन!

भारत गणराज्य के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह को कोई कहता है कि वे भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक हैं तो कोई उन्हें मौन मोहन सिंह कहता है। इन सारी खूबियों के अलावा मनमोहन सिंह के पास एक और नायाब खूबी है। मनमोहन सिंह तिकड़मबाज भी हैं। जी हां, पीएमओ के सूत्रों ने मनमोहन सिंह की इस खूबी का खुलासा किया। सूत्रों के अनुसार भले ही मनमोहन एक भी चुनाव ना जीते हों पर जब परमाणु करार के वक्त सरकार संकट में आई तब मनमोहन सिंह ने अमर सिंह व संत चटवाल सिंह की मदद ली। अब ममता बनर्जी ने हाथ खींचा और मायावती गरजीं तो सीबीआई की चाबुक से मायावती शांत हो गईं और मुलायम सिंह यादव तथा नितीश कुमार आदि को साधने के लिए सुनील भारती मित्तल तथा मुकेश अंबानी सक्रिय बताए जा रहे हैं। चाहे मनमोहन सिंह को सभी राजनेता ना मानें पर अपनी तिकड़मी ताकतों के चलते उन्होंने कम से कम गैर नेहरू गांधी परिवार से इतर सबसे अधिक समय तक पीएम होने का गौरव तो पा ही लिया है।

कौन हैं सोनिया के सलाहकार!

देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की वर्तमान निजाम हैं सोनिया गांधी। सोनिया गांधी इटली मूल की हैं। भारत से उनका लगाव कितना है यह तो वे ही जानें पर उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने जिस तरह अपनी दिशा और दशा बदली है उससे देश का सर्वनाश आरंभ हो गया है। देश में घपले घोटाले चरम पर है। रियाया बुरी तरह कराह रही है। शासक अब जनसेवक से जनरल डायर की भूमिका में आ चुके हैं। घोषित तौर पर सोनिया गांधी को सियासी सोच समझ देने के लिए पाबंद अहमद पटेल भी प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव जीते नहीं हैं। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा, महासचिव राजा दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला आदि सभी जनता को फेस कर चुनाव जीते नहीं हैं। यूपी जो कि सोनिया और राहुल का संसदीय क्षेत्र है वहां भी सोनिया राहुल कांग्रेस को नहीं जिला (जिन्दा कर) पाए हैं। कुल मिलाकर अब यूपीए का ‘लूट लो इंडिया‘ का अभियान चरम पर है।

निर्मोही ममता

ममता शब्द का उच्चारण करते ही एक निश्चल मां का चेहरा ही सामने आता है। पश्चिम बंगाल की निजाम भी हैं ममता बनर्जी। ममता बनर्जी का साधारण स्लीपर और पुरानी कार में चलते देख लोग उनकी दिल से इज्जत किया करते हैं। पश्चिम बंगाल में इन दिनों जो कुछ हो रहा है वह सब निश्चित तौर पर उनके निर्मोही होने का ही प्रमाण माना जा सकता है। केंद्र सरकार से अलग हुए आधा दर्जन मंत्री अपने घटते रसूख से परेशान थे। ममता बनर्जी ने नया इतिहास रचते हुए इन सांसदों को राज्य में मंत्रियों से ज्यादा ताकतवर कर दिया है। अभी तक आपने प्रधानमंत्री की एडवाईजर काउंसिल के बारे में सुना होगा पर अब पश्चिम बंगाल में सीएम एडवाईजरी काउंसिल का गठन कर दिया गया है। ममता बनर्जी ने मुकुल राय को परिवहन, सौगत राय को उद्योग, दिनेश त्रिवेदी को पर्यटन, शिशिर अधिकारी को ग्रामीण विकास, चौधरी मोहन को सुंदरवन विकास, सुल्तान अहमद को अल्प संख्यक विकास, सुदीप बंदोपाध्याय को नगर विकास का एडवाईजर सीएम एडवाईजर काउंसिल में बनाया है।

मोगली की कर्मभूमि को टापू बनाने की तैयारी

कहा जाता है कि जहां पहुंचने में कठिनाई का अनुभव हो वहां जाकर बड़ी शांति मिलती है। हिन्दु धर्म में चाहे अमरनाथ यात्रा हो या माता वेष्णो देवी की यात्रा। जब श्रृद्धालु पैदल कठिन मार्ग से उनके दर्शन को जाते हैं तो उनकी श्रृद्धा कई गुना बढ़ जाती है। प्रसिद्ध ब्रितानी घुमंतू और पत्रकार रूडयार्ड किपलिंग की ‘जंगल बुक‘ के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हीरो ‘मोगली‘ की मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर स्थित कर्मभूमि को अब सड़क और रेल मार्ग से अलग करने का ताना बाना बुना जा रहा है ताकि देश विदेश से आने वाले सैलानी इस जगह जाकर अपने आप को धन्य समझें। पहले उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में पर्यावरण का फच्चर फसाया गया जिससे सड़क पर चलना अब बाजीगरों के बस की ही बात बची है। वहीं दूसरी ओर अब यहां से गुजरने वाली नेरोगेज रेल लाईन को ब्राडगेज में तब्दील करने की कवायद पर मंदी का ग्रहण लग गया है। आने वाले दिनों में मोगली की कर्मभूमि टापू में तब्दील हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

खुल गया शिव का तीसरा नेत्र!

मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान के राज में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। हाल ही में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार और बिच्छू डॉट काम के संपादक अवधेश बजाज द्वारा अपने स्वयं के बारे में जो खुलासा किया है उससे देश भर के पत्रकारों के रोंगटे खड़े हो जाना स्वाभाविक ही है। उनका कहना है कि एक विषकन्या ने उन्हें बार बार फोन और एसएमएस कर किसी स्थान पर बुलाने का जतन किया। इसकी सूचना जब पुलिस की अपराध शाखा को दी गई और उस विषकन्या के काल रिकार्ड पता किए गए तो वे चंबल अंचल के शार्प शूटर्स के निकले। महामाई एमपी में राज कर रही हैं। अगर सच लिखने पर पत्रकार को इस तरह रास्ते से हटाने का प्रयास किया जा रहा है तो इससे बेहतर है कि मीडिया का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि जनता की रक्षा के लिए बना जागरूक विपक्ष तो केंद्र और राज्यों में पूरी तरह सैट ही नजर आ रहा है। वैसे भी दुकानदार मीडिया वालों ने मीडिया के अस्त्तिव को ही समाप्त करने का बीड़ा उठा लिया है। चहुंओर लूट मची है पर सुनवाई कहीं नहीं हो पा रही।

बज गई गड़करी की बिदाई की डुगडुगी!

भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी को दूसरा कार्यकाल मिल गया है, पर उनकी बिदाई की डुगडुगी दूर सुनाई देने लगी है। गड़करी पर लगे गंभीर आरोपों के बाद भाजपा का पित्र संगठन अब हरकत में आ चुका है। दिल्ली के झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय ‘केशव कुंज‘ के सूत्रों ने बताया कि गड़करी पर लगे आरोपों से संघ का शीर्ष नेतृत्व सकते में है। केशव कुंज के सूत्रों का कहना है कि संघ के शीर्ष नेतृत्व ने अब गड़करी का विकल्प तलाशना आरंभ कर दिया है। वैसे संघ मुख्यालय नागपुर के सारे अतिआवश्यक दायित्वों का भोगमान गड़करी सालों से भोगते आए हैं इसलिए संघ का नेतृत्व गड़करी को काफी पसंद करता है। अब जबकि गड़करी पर आरोपों की बौछारें हो चुकी हैं तब संघ के नेताओं ने भी गड़करी के खिलाफ तलवारें पजाना आरंभ कर दिया है। माना जा रहा है कि गड़करी के भविष्य का फैसला जल्द ही हो सकता है।

हुड्डा ने दी राबर्ट को क्लीन चिट

कांग्रेस के अघोषित तौर पर राष्ट्रीय दामाद बन चुके राबर्ट वढ़ेरा को हरियाण सरकार ने आनन फानन क्लीन चिट प्रदान किए जाने की चर्चाएं सियासी गलियारों में जमकर हो रही हैं। गुड़गांव, फरीदाबाद, पलवल और मेवात के उपायुक्तों ने वाड्रा के जमीन सौदों की जांच के बाद जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें कहा गया है कि जमीन सौदों में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है। जांच के बाद जो रिपोर्ट दी गई है उसमें कहा गया है कि रॉबर्ट वाड्रा की एनसीआर एरिया से जुड़े जमीन के सौदों में किसी भी तरह की अनियमितता नहीं बरती गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जिलों में खरीदी गई सभी जमीनों में वाड्रा ने स्टाम्प ड्यूटी का पूरा भुगतान किया है। हरियाणा सरकार के एक आला अधिकारी ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि राबर्ट अगर कांग्रेस के अघोषित तौर पर राष्ट्रीय दामाद ना होते तो जांच इतनी जल्दी पूरी ना हो पती। उन्होंने कहा कि हुड्डा के कार्यकाल में पहली जांच इतने कम समय में पूरी हुई होगी।

मां बेटे का औपचारिक मिलन

जब भी कोई मां बेटा आपस में मिलते हैं तो उनके बीच बहुत ही स्नेह के साथ वार्तालाप होता है। कांग्रेस के राजपरिवार की इतालवी बहू सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी जब भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में एक दूसरे से मिलते हैं तब उनके बीच का संवाद आश्चर्यजनक ही होता है। जब भी सोनिया राहुल सार्वजनिक समारोहों में पहुंचते हैं वे छूटते ही एक दूसरे से पूछते हैं -‘‘हाउ आर यू?‘‘ फिर मुस्कुराकर दोनों एक दूसरे से कहते हैं -‘‘आई एम गुड?‘‘ पहले पहल तो लोगों को यह बात समझ में नहीं आई, किन्तु अब इसकी चर्चा जमकर हो रही है। लोग कहते हैं कि क्या मां बेटे के बीच घर पर अनबोला (बातचीत बंद) है, जो लोगों को दिखाने के लिए एक दूसरे से इस तरह औपचारिकता का निर्वाह कर रहे हैं। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अंग्रेज चले गए . . . .। माना सोनिया गांधी की हिन्दी काफी कमजोर है, पर राहुल तो राष्ट्रभाषा हिन्दी का सम्मान कर सकते हैं।

भाजपा की नजरें दिल्ली पर

अगले आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने स्टार प्रचारकों और आला नेताओं को देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से उतारने का मन बना रही है। भाजपा के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि अगर आला नेताओं को अलग अलग जगह से चुनाव लड़वाया गया तो भाजपा के सेंट्रल वार रूम खाली खाली रह जाएगा। सूत्रों ने कहा कि संघ ने भाजपा के नेताओं को सुषमा स्वराज को नई दिल्ली, अरूण जेतली को कपिल सिब्बल के खिलाफ, नवजोत सिंह सिद्धू को महाबल मिश्र के खिलाफ तो संदीप दीक्षित के सामने कीर्ति आजाद को उतारने से बनने वाले समीकरण टटोलने को कहा है। इस तरह भाजपा अपने आला नेताओं को दिल्ली में ही रखकर उनका उपयोग देश भर में हवाई जहाज से करवाकर शाम ढलते दिल्ली वापस बुलाकर अपने अपने संभावित संसदीय क्षेत्र में कर सकती है।

पुच्छल तारा

ममता बनर्जी के सरकार से बाहर होने, मायावती की धमकियों के बाद अब यही कयास लगाया जा रहा है कि यह सरकार कब तक चलेगी, कब गिरेगी सरकार! इसी बात का हवाला देकर रूड़की उत्तराखण्ड से अमिता खरे ने ईमेल भेजा है। अमिता लिखती हैं कि आजकल सोशल नेटवर्किंग वेब साईट फेसबुक पर एक ही बात छाई हुई है और वह है कब गिरेगी केंद्र सरकार! इस बात को सभी अपने अपने तरीके से लिख रहे हैं जिसमें सुपर डुपर हिट हो रहा है यह जुमला -‘‘और कितना गिरेगी केंद्र सरकार!!‘‘

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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