‘हां मैं कहता हूं यह हिन्दू राष्ट्र है’

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-अतुल तारे-

hinduराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने क्या आज ही कोई नए ऐतिहासिक तथ्य का प्रगटीकरण किया है? संघ अपनी स्थापना काल (1925) के पहले दिन से यह उद्घोषणा कर रहा है और वह यह कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। संघ पर समय-समय पर आरोप लगते हैं कि संघ की कार्यपद्धति एवं विचार अत्यंत कट्टर है, पर उसने समयानुकूल हमेशा स्वयं को देश हित में बदला है। लेकिन भारत एक हिन्दू राष्ट्र है इस धारणा पर वह पहले भी कायम था आज भी है और कल भी रहने वला है। पराधीन भारत में संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार से भी यह प्रश्न किसी ने किया था कि कौन कहता है यह हिन्दूराष्ट्र है? तब डॉ. हेडगेवार ने गर्जना की कि ”हां मैं केशवराव बलिराम हेडगेवार कहता हूं कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’। इतिहास साक्षी है कि आज से लगभग 90 साल पहले जब डॉ. हेडगेवार ने यह कहा था तब देश के कथित बुद्धिजीवियों  ने इसे हास्यास्पद कहकर महत्व नहीं दिया था और आज 90 साल बाद यही स्थापित सत्य श्री भागवत दोहरा रहे हैं, तो देश के राजनीतिक वातावरण में एक उबाल है। प्रश्न फिर उपस्थित हो सकता है कि क्या डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना के साथ क्या देश की पहचान को एक नया स्वरूप देने का प्रयास किया था? क्या भारत 1925 से पहले हिन्दू राष्ट्र नहीं था या फिर आज श्री भागवत कोई अनूठी बात कर रहे हैं? यहां फिर संघ के तीसरे पू. सरसंघचालक स्व. बाला साहेब देवरस का कथन रेखांकित करने योग्य है। वे कहते हैं कि संघ जो सोए हुए हैं. उन्हें जगाने का प्रयास कर सकता है पर जो सोने का उपक्रम कर रहे हैं, अभिनय कर रहे हैं, उनमें अपनी ऊर्जा का अपव्यय नहीं करेगा।

स्व. श्री देवरस के इस वाक्य के आलोक में जो वाकई सोए हैं उनके लिए निवेदन यह है कि भारत आज से नहीं 1925 से नहीं बल्कि अपने अस्तित्व में आने के साथ से ही एक हिन्दू राष्ट्र है और इसके ऐतिहासिक पौराणिक प्रमाण है। हम सब जानते हैं यह पृथ्वी, जल एवं थल दो तत्वों में वर्गीकृत है। प्राचीन काल से ही सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। भारत का पौराणिक नाम जो आज भी धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है, वह है जम्बूद्वीप। जम्बूद्वीप के मध्य में हिमालय पर्वत की शृंखला है, जिसकी सर्वोच्च चोटी, सागरमाथा या गौरीशंकर है, जिसे अंग्रेजों ने 1835 में एवरेस्ट नाम देकर भारत की पहचान बदलने का पहला कूटनीतिक षड्यंत्र किया था। ब्रहस्पति आगम का श्लोक देखिए-
हिमालयम् समारम्भ्य यावद इन्दु सरोवरम्
तं देव निर्मित देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।
अर्थात हिमालय से लेकर इन्दू (हिन्द) महासागर तक देव पुरुषों द्वारा निर्मित इस भूगोल को हिन्दुस्तान कहते हैं।
अत: भारत एवं हिंदुस्तान कोई अलग-अलग शब्द नहीं है दोनों का सांस्कृतिक भाव एवं भूगोल एक ही है। इसकी पुष्टि के लिए विष्णु पुराण का यह श्लोक पढऩा उचित होगा।
उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्
वर्ष तद भारतं नाम भारती यंत्र संतत
अर्थात हिन्द महासागर के उत्तर में एवं हिमालय के दक्षिण में जो भू-भाग है उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारतीय।
लिखने की आवश्यकता नहीं कि संघ किसी नए समाज की रचना नहीं कर रहा न ही वह भारत की पहचान को संकुचित या विकृत कर रहा है, अपितु वह भारत या हिन्दुस्तान को उसका वही गौरव एवं उसकी विस्तारित परंतु आज के दौर में विस्तृत पहचान को पुन: स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। संघ की 90 वर्ष की यह साधना कितनी परिणाम मूलक है, इसका एक छोटा सा संकेत हाल ही में गोवा सरकार के एक मंत्री जो महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी के सदस्य है, फ्रांसिस डिसूजा के बयान में मिलता है। वे आत्म विश्वास से कहते हैं कि हां भारत प्राचीन काल से एक हिंदू राष्ट्र है और यहां रहने वाले सभी हिंदू हैं।

हिंदू अर्थात क्या? क्या हिंदू एक पूजा पद्धति है? सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंदू एक उपासना पद्धति नहीं है, यह एक जीवन शैली है। एकम् सत्य विप्रा: बहुदा वदंति अर्थात सत्य एक ही है विद्वान इसकी परिभाषा उसका परिचय अलग-अलग शब्दों में करते हैं। हिंदू वह है, जो मूर्ति की पूजा करे, हिंदू वह भी है जो मूर्ति पूजा न करे। हिंदू धर्म में आस्तिक को भी स्थान है तो नास्तिक का भी अनादर नहीं है। हिंदू वह है जो सर्वे सुखिना संतु, सर्वे संतु निरामया: की ही बात करे। यह हिंदू धर्म का वैशिष्ट्य ही है, कि जिस प्रकार सागर में सभी नदियों का जल विलीन होने के बाद भी सागर अपने गांर्भीय को बनाए रखता है ठीक उसी प्रकार हिंदू धर्म में निषेध है ही नहीं न ही अस्वीकार का कोई प्रश्न है। इसलिए यह प्रश्न ही बेमानी है कि हिंदू राष्ट्र में मुस्लिमों का क्या होगा क्रिश्चन समुदाय का क्या होगा, बौद्ध कहां जाएंगे, सिखों की चिंता कौन करेगा, जैन पंथ का क्या भविष्य है? वस्तुत: यह सवाल नहीं है न ही यह चिंताएं है। यह सवालों की शक्ल में षड्यंत्र के तीर हैं, जो भारत की हिन्दुस्तान की मूल ताकत को विखंडित कर रहे हैं। राष्ट्रघाती शक्तियाँ यह समझती है कि भारत या हिन्दुस्तान को उसकी जड़ों से काट कर ही वह अपने लक्ष्य में सफल हो सकते हैं। इसलिए वे बार-बार हिन्दू शब्द को एक योजनापूर्वक संकुचित दायरे में प्रस्तुत करते हैं। जबकि सच यह है कि हिन्दू वह है जो इस भू-भाग को अपनी जननी मानता है और उससे पुत्रवत रिश्ता रखता है। हिंदू वह है, जो भारत के सनातन सांस्कृतिक जीवन मूल्यों में अपनी उदात्त आस्था रखता है। यह जीवन मूल्य क्या है? यह जीवन मूल्य है पिता के वचन का मान रखने के लिए 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार करना, यह जीवन मूल्य है,

मांगने वाले को पहचान कर भी उसका भेद एवं हेतु जानकर भी अपना सर्वस्व अर्पण करना, यह जीवन मूल्य है, रक्त की अपनी अंतिम बूंद तक भी न्यौछावर कर एक पक्षी के जीवन की रक्षा करना यह जीवन मूल्य है, युद्ध में जीत कर सैनिकों द्वारा लाईं गई मुस्लिम रानियों में अपनी मां की छवि देखना यह जीवन मूल्य है- ऐश्वर्य एवं समृद्धि की याचना करते समय यही भूल कर वैराग्य एवं विश्व कल्याण की कामना करना? लिखने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि इन्हीं जीवन मूल्यों का नाम हिंदू दर्शन है? भारत की पहचान इसी दर्शन के कारण है। आज विश्व में जो अशांति है उसके पीछे मूल कारण सह अस्तित्व को नकार कर स्वयं को स्थापित करने का भाव है। यही कारण है शिया सुन्नी आपस में झगड़ रहे हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट आपस में और ये चारों मिलकर दुनिया में संघर्ष कर रहे हैं। हिंदू जीवन पद्धति मे भी गुलामी की दासता के चलते विकृतियाँ आई कुरीतियाँ आई यहां भी पंथ को लेकर जाति को लेकर संघर्ष हो रहे है पर इसका निदान इनकी छोटी-छोटी पहचान को और पोषित कर इन्हें तुष्ट करना नहीं है अपितु इन्हें इनके वास्तविक स्वरुप से परिचित कराना है। संघ सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के हाल ही में दिए गए बयान कोई नए-नए नहीं है।

प.पू. स्व. डॉ. हेडगेवार से लेकर स्व. सुदर्शनजी तक सभी ने यह एक बार नहीं बार-बार कहा है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। श्री भागवत ने वही बात दोहराई है। पर आज संघ पर जो चौतरफा हमले हो रहे हैं, उसके पीछे वजह सिर्फ यह बयान नहीं है। देश में परिवर्तन की लहर है। राष्ट्रघाती शक्तियाँ यह जानती है कि देश में आए बदलाव का सूत्रधार कौन है। यह ताकतें आज घबराहट में है। वे इस षडयंत्र में है कि संघ पर हमले और तेज किए जाएं। यह हमले बयानों की शक्ल में तक ही सीमित नहीं है। हाल ही में संघ पर संघ के जीवन व्रती प्रचारकों पर मर्यादा की सीमा लांघ कर स्तहीन आरोप लगाने का भी सिलसिला शुरू हुआ है। यह बात अलग है कि समाज का चिंतन-अप्रभावित है और वह परिवर्तन के सूत्रधार को और अधिक विश्वास की निगाहों से देख रहा है। वह समझ रहा है कि अगर संघ में हिटलर पैदा होते तो आज दिग्विजयों का अस्तित्व ही नहीं होता। कारण यह संघ का ही दर्शन है, संघ का ही मंत्र है कि आज का विरोधी कल का स्वयंसेवक है यह मानकर हमें समाज में व्यवहार करना है।
वह जानता है कि हिटलर ने विरोधियों का नर संहार कर दिया था पर संघ ने गांधीजी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद आक्रोषित दिग्भ्रमित देश की जनता को अभय दिया था। वह देख रहा है कि जिन्हें वह फांसीवादी कट्टर कह रहा है वह देश में सेवा कार्यों में, आपदा के समय अग्रणी है, वह यह भी अनुभव कर रहा है कि आज के सांस्कृतिक प्रदूषण में जब परिवार, समाज टूट रहे हैं, संघ के ही वह संस्कार हैं, वह समरसता है, जो देश को एक तानेबाने में जोड़ रही है। अत: वह अब मान रहा है कि संभव है- इस जीवनकाल में ही और नहीं तो अगले जीवन में पूरा देश एक स्वर में कहेगा, हाँ भारत एक हिंदू राष्ट्र है।

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अतुल तारे
सहज-सरल स्वभाव व्यक्तित्व रखने वाले अतुल तारे 24 वर्षो से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। आपके राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और समसामायिक विषयों पर अभी भी 1000 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से अनुप्रमाणित श्री तारे की पत्रकारिता का प्रारंभ दैनिक स्वदेश, ग्वालियर से सन् 1988 में हुई। वर्तमान मे आप स्वदेश ग्वालियर समूह के समूह संपादक हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तक "विमर्श" प्रकाशित हो चुकी है। हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी व मराठी भाषा पर समान अधिकार, जर्नालिस्ट यूनियन ऑफ मध्यप्रदेश के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराजा मानसिंह तोमर संगीत महाविद्यालय के पूर्व कार्यकारी परिषद् सदस्य रहे श्री तारे को गत वर्ष मध्यप्रदेश शासन ने प्रदेशस्तरीय पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया है। इसी तरह श्री तारे के पत्रकारिता क्षेत्र में योगदान को देखते हुए उत्तरप्रदेश के राज्यपाल ने भी सम्मानित किया है।

15 COMMENTS

  1. इस पोस्ट पर मेरी अंतिम टिप्पणी-
    मै न विदुषी हूँ न हिन्दुत्व की विद्वान , न मैने धर्म ग्रंथ पढ़े हैं , न पढने की इच्छा है। मै धर्म से जुड़े आडम्बर और कर्मकांडो मे विश्वास नहीं रखती। हिन्दू शब्द की व्याख्या अब तक समझ चुकी हूँ। ठीक है आप सबकी बात मान कर हिन्दुस्तान के सभी रहने वालों को हिन्दुस्तानी मान सकते है, पर हिन्दू नहीं क्योंकि सही हो या ग़लत हिन्दू शब्द धर्म से जुडा है।
    विदेश मे कई दशक गुज़ारने के बाद अगर कोई भारत को अपनी कर्मभूमि कहे, भले ही वो कितना ही विद्वान हो, मै उनके तर्क का उत्तर देना ज़रूरी नहीं समझती।

  2. जब प्रवासी भारतीय छात्रों ने प्रश्न किया था; तो मैं ने,
    फलक पर निम्न समीकरण लिखके प्रतिप्रश्न पूछा था।

    प्रश्न:
    भारत-हिंदुत्व = ?—उत्तर दीजिए।
    ===================================
    छात्रों ने दो उत्तर दिए थे।
    (१) भारत- हिन्दुत्व = पाकिस्तान
    (२) भारत-हिंदुत्व = ० (शून्य) ===> भारत = हिंदुत्व
    छात्रों में सिख, हिन्दू, मुस्लिम, इसाई प्रवासी भारतीय छात्र सम्मिलित थे।
    Wisconsin University में व्याख्यान हुआ था, प्रवासी भारतीयों के बीच।
    कारण: क्यों कि, हिन्दुत्व समन्वयवादी है। अन्य उपसना पद्धतियाँ वरचस्व वादी हैं। कुछ व्यक्तिगत अपवाद अवश्य हैं। पर अपवाद ही तो नियम सिद्ध करते हैं।(Exceptions prove the rule)
    उचित हिंदू राष्ट्र में ही सभी भाईचारे से समन्वय सहित बस सकते हैं।
    उदाहरण पाकिस्तान का देखिए।
    हमारे अपने कश्मिर के हिंदुओं की अवस्था देखिए।
    सारा समझ में आ जाएगा।
    ***भारत को *पुण्यभूमि,*मातृभूमि,*पितृभूमि, *कर्म भूमि, *धर्मभूमी —-में से कम से कम एक संकल्पना से जुडना ही राष्ट्रीयता का (हिन्दुत्वका) लक्षण है।
    ***भोगभूमि** नहीं।

    • भारत-हिन्दुत्व= मुसलमान + ईसाई+ सिख+ जैन+ पारसी

      • आदरणीया विदुषी जी —निम्न भी लिखा गया था। उस पर भी विचार व्यक्त करने का आप से, अनुरोध है। क्या आप निम्न से असहमत हैं? इस पर क्यों मौन है?
        —->
        ***भारत को *पुण्यभूमि,*मातृभूमि,*पितृभूमि, *कर्म भूमि, *धर्मभूमी, या अन्य समान —-में से कम से कम एक संकल्पना से जुडना ही राष्ट्रीयता का (हिन्दुत्वका) लक्षण है। भोगभूमि माननेवाले (भ्रष्टाचारी) जन्मतः हिन्दू भी, अराष्ट्रीय मानता हूँ।
        ——————————————–
        (२) -सिखों की और जैनियों की धर्म भूमि, पुण्य भूमि, कुछ की कर्म भूमि, पितृभूमि भी उनकी ही मान्यता के अनुसार भारत ही है। पारसी के लिए कर्म भूमि है भारत।
        (३) यदि इसाई और मुसलमान भी ऐसा मानते हैं, तो उन्हें राष्ट्रीय ही माना जाएगा।
        (४) हमीद दलवाई का सत्य शोधक मण्डल, कोट्टायम के प्रों जॉह्‌न, इत्यादि अनेक उदाहरण है, जो राष्ट्रीयता का व्यवहार से परिचय देते हैं।
        सादर आप के विचारार्थ प्रेषित। संवाद चाहता हूँ।
        सावरकर की हिन्दुत्व पुस्तक पढी ना हो, तो, पढने का अनुरोध।
        मधुसूदन

    • भारत-हिनदुत्व= मुलमान + ईसाई+ सिख +पारसी,+ जैन+ बौद्ध +नास्तिक

      • ​दिक्कत सिर्फ मुसलामानों को सेकुलर जमात को है बीनू बहन और किसी ​को नहीं चाहे वो सिख हो पारसी हो जैन हो या कुछ और। खाम्खा के जबरदस्ती के समीकरण मत बनाइये।

        सादर

  3. Just to say that India is a Hindu Rashtra doe snot mean nothing.It makes no difference if some one howsoever powerful or famous he may be and declares that India is a Hindu Rashtra amongst his or her followers.
    The bottom line is to declare officially by the government of the day that India is Hindusthan the land of Hindus is a Hindu Rashtra and its state religion is Hindu Dharma or well known as Hinduism all over the world and then only the country would be known as Hindu Rashtra and make them silent those who oppose or criticise the very idea of Hindurashtra.
    This declaration will bring enormous energy , boldness and strength in 80% of the population and lead to discipline and responsibility in all .
    Once declare this then many good things will follow with this for the better of all.
    Let Hindus first say that they are Hindu. When you ask a Hindu are you a Hindu he says I am a secular so this cancer of secularism has to be destroyed as well.

    Let us say with pride that we are Hindu.

  4. लेखक ने जो तर्क दिये हैं, उनको मानकर चलें तो किसी फार्म मे धर्म के स्थान पर सभी भारतीयों को हिन्दू लिखना चाहिये अर्थात हिन्दू राष्ट्रीयता हुई।इसका अर्थ है भारतीय और हिन्दू एक ही बात है, पर नेपाली भी हिन्दू होते हैं , यह तो भ्रम पैदा करने वाली स्थिति हो जायेगी। अतः हिन्दू राष्ट्र की बात करके बेवजह विवाद खड़ा करना क्या उचित है?

    • वीनूजी, आप का अनुमान सत्य है ! एक विदेश यात्रा के अनुभव को आप के साथ साझा कर रहा हूँ. हम लोग उत्तरी आयरलैंड की बेलफ़ास्ट स्थित Ulster University के संकुल में आवासित थे. वहां के एक आचार्य ने शिष्टाचार भेंट पर मुझसे मेरा Religion पूंछा. प्रचलित धारणा के अनुरूप मैनें कहा “हिन्दू”: उन्होंने मुझे तुरंत टोका ” नहीं हिन्दू आपकी राष्ट्रीयता है. मैं आपका रिलिजन जानना चाहता हूँ.” मैनें उनसे कहा कि मैं वैष्णव हूँ तथा निम्बार्क परंपरा से हूँ.” तब वह संतुष्ट हो गए. विडम्बना है कि हम हिन्दू हो कर यह अंतर नहीं समझते. और हाँ मैंने सदा ही अपनी राष्ट्रीयता हिन्दू ही लिखी है और कोई भी आवेदन अस्वीकृत नहीं हुआ.

      • यदि हम मान ले कि हिन्दू हमारी राष्ट्रीयता है तो हमारा धर्म सनातन या वैष्णव (जैसा कि आपने कहा) होना चाहिये, परन्तु ये धर्म संविधान मे मान्य नहीं है। कुछ समय पहले जैन धर्म को स्वतन्त्र धर्म के रूप मे मान्यता मिली थी। बहुत से ऐसे धार्मिक समूह हैं जो सनातन या वैष्णव धर्म से बहुत दूर जा चुके हैं पर अभी भी हिन्दू ही हैं उदाहरण राधास्वामी मत।

    • तो दिक्कत कहाँ है? धर्म में लिखे “हिन्दू”, राष्ट्रीयता में अपने देश का नाम दे। और वैसे भी मुस्लिम बंधु लिख सकते हैं “मोहम्मदी हिन्दू “, ईसाई “ख्रीस्त हिन्दू ” .

      सादर,

    • आपके विचार को ठीक तरह समझने हेतु मैंने आपकी टिप्पणी को दो चार पढ़ा है| परिणामस्वरूप मुझे खेद है कि आप अतुल तारे जी के लेख को भलीभाँति समझ नहीं पाईं हैं अन्यथा लेखक के मुंह खोलते आप विवाद न खड़ा करतीं| सोचता हूँ कि यदि मनोविज्ञान की शिक्षा ग्रहण किए आप स्वयं ही अपनी भावनाओं में बह भारतीय राष्ट्रवाद को नहीं समझ पा रहीं हैं तो विषय के प्रति समाज में साधारण नागरिक का मार्गदर्शन कौन करेगा? मैंने प्रवक्ता.कॉम के इन्हीं पन्नों पर आपके लेख “धर्म, हिंसा और आतंक” को आपकी भावनाओं की अभिव्यक्ति बता आपको राजनैतिक तथ्य से अवगत कराया था| मेरा अनुरोध है कि आप प्रस्तुत निबंध को खुले मन बार बार पढ़ें, विशेषकर “हिंदू अर्थात क्या?”, और लौट कर आ पाठकों को अपने विचार कहें|

  5. निश्चय ही यह पूर्ण्तः सत्य, न्याय एवं युक्ति सङ्गत है कि यदि इङ्गलैण्ड का निवासी इंग्लिश, अम्रीका का अम्रीकी, जर्मनी का जर्मन होता है तो हिन्दुस्तान का हिन्दु कैसे नही है और हो सकता है अथवा होगा और होना चाहिये? परन्तु यह कथमपि सत्य नहीं कि “हिन्दु एक पूजा पद्धति है”। कारण पूजा सभी लोग नहीं किया करते। ऐसी स्थित्ति में सभी हिन्दु कैसे होंगे और हो पायँगे?

    वैसे भी संघ में जिस हिन्दु की चर्चा इस पद द्वारा यहाँ की जा रही है वह धर्माभिप्रेत नहीं वरन् राष्ट्राभिप्रेत है।

    वेदमन्त्र भी ‘एकम् सत्य विप्रा: बहुदा वदंति’ नहीं अपितु ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’ है। और उसका अर्थ भी वह नहीं जो मान्य लेखक ने लिखा है, अर्थात् “सत्य एक ही है विद्वान इसकी परिभाषा उसका परिचय अलग-अलग शब्दों में करते हैं”। यह ध्यान रखने योग्य है।

    लेखक ने जो यह लिखा कि “भारत का पौराणिक नाम जो आज भी धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है, वह है जम्बूद्वीप” यह भी सत्य नहीं। मान्य लेखक को इसका भी शोधन करना होगा। यदि हमारी बात स्वीकार्य न हो तो इसे शास्त्र प्रमाण द्वारा पुष्ट करना होगा।

    निवेदक,

    डा० रणजीत सिंह

  6. अतुल जी, एक सांस में आपके आलेख को पढ़ते मैं रोमांचित मन अपने में हिंदुत्व का गौरव अनुभव करता हूँ| जिस सरलता से आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रवादी उद्देश्य को समझाया और भारतीय उप महाद्वीप में भारतीय क्षेत्र को हिन्दूराष्ट्र बताया है, मैं समझता हूँ कि कोई भी शांति-प्रिय भारतीय इससे अछूता न रह पायेगा| आपका आलेख १२५ करोड़ भारतीयों में आत्म-विश्वास व राष्ट्रप्रेम जगाते उन्हें संगठित रूप से एक पग लेते भारत-पुनर्निर्माण के लिए आगे बढ़ने को अवश्य प्रोत्साहित करेगा| इस महत्वपूर्ण आलेख को भारत की सभी प्रांतीय भाषाओं में अनुवाद कर समस्त भारत में यह सर्वप्रथम राष्ट्रवादी संदेश पहुँचाना होगा| अतुल तारे जी को मेरा साधुवाद|

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