इस्लामिक पीड़ितों को हां, घुसपैठियों को न

हमारे माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने अपनी विशेष कार्यशैली का एक बार पुनः परिचय कराया है। उन्होंने बड़ी कुशलता से लोकसभा में  “नागरिकता संशोधन बिल” प्रस्तुत किया और उसी दिन (9.12.2019) उसे लंबी बहस के बाद पारित करवा दिया। उन्होंने अनेक स्पष्टीकरणों के साथ बड़ी निर्भीकता से निसंकोच यह भी स्पष्ट किया हैं कि “भारत को धर्म के आधार पर कांग्रेस ने ही विभाजित करवाया था”। उनके द्वारा इस अति आवश्यक संशोधन विधेयक पर दिए गए एक-एक तर्क बहुत सारगर्भित है । उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए इस विधेयक और उस पर किये जा रहे तर्क-वितर्क से यह स्पष्ट होता है कि उनका ह्रदय उन लाखों-करोड़ों गैर मुस्लिम भारतीय मूल के लोगों की पीड़ा के प्रति संवेदनाओं से भरा हुआ है। पाकिस्तान, बंग्लादेश व अफगानिस्तान में इस्लाम के नाम पर इन गैर मुस्लिमों पर दशकों से हो रही दरिंदगी पर किसी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्था ने अभी तक कोई संज्ञान नही लिया। उनकी निरंतर घटती जनसंख्या से उनके अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। ऐसे में भारत सरकार का यह सांस्कृतिक, मौलिक व नैतिक दायित्व बन चुका था कि वह अपने मूल के इस्लामिक पीड़ित प्रवासियों के कम से कम सामान्य नागरिक अधिकारों की तो व्यवस्था करें। ऐसे इस्लामिक पीड़ितों को हां और मुस्लिम घुसपैठियों को न का आधार बनना ही चाहिये। हमारे गृहमंत्री जी ने इस समस्या के समाधान का जो अभियान चलाया है वह मानवीय कल्याण की दृष्टि से भी उत्तम है। जब भारत का विभाजन हुआ था तब यह लगभग सुनिश्चित हो गया था कि अगर कोई भी हिन्दू भारत में आना चाहेगा तो उसे भारत में ससम्मान बसाया जाएगा।वैसे भी विश्व में जितने भी हिन्दू धर्म के अनुयायी है उनके भारत में बसने के मौलिक व नैतिक अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती?

यह भी विचार करना चाहिये कि जब देश में मुस्लिम घुसपैठिये  विभिन्न आतंकवादी व आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं तो उनको देश से बाहर निकालने का प्रावधान करना भी राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में होगा। इस विधेयक द्वारा अवैध नागरिकों को बाहर निकालने से  भारतभक्तों की रक्षा, देश की अखण्डता व एकता की रक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी। इन तीनों मुस्लिम देशों से आने वाले मुस्लिम घुसपैठियों के द्वारा नकली करेंसी, अवैध हथियार व नशीले पदार्थों की आपूर्ति होने से भारतीय समाज पर भी नकारात्मक सोच हावी हो जाती है। इसके दुष्परिणामों के कारण हमारी युवा पीढी भटक रही है और उनमें देशभक्ति के स्थान पर असामाजिक व आपराधिक सोच बढ़ रही है। कुछ वर्ष पूर्व आये समाचारों से यह भी ज्ञात हुआ था कि बंग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 15000 करोड़ रुपये बंग्ला देश भेजे जाते आ रहे है। आज सामान्य चर्चा यह भी है कि इन अवैध नागरिकों के कारण हमारे मूल निवासियों के मौलिक अधिकारों पर हस्तक्षेप हो रहा है।  शुद्ध खाद्य पदार्थो व पेयजल आदि के लिए जुझते समाज वायु प्रदुषण, सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण, यातायात व्यवस्था, शिक्षक संस्थाओं व शासकीय  चिकित्सालयों आदि में बढ़ती भीड़ भी इन्ही घुसपैठियों की बढ़ती जनसंख्या के कारण बनी हुई है।

अतः यह नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करने वाली कांग्रेस की स्वामिनी सोनिया गांधी परिवार सहित सभी कांग्रेसियों और उनसे जुड़ें सभी नेताओं से यह अवश्य पूछना चाहिये कि जब धर्म के अनुसार पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना तो उस समय कांग्रेस ने भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नही घोषित किया? क्यों नहीं उस समय हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली को पूरा किया गया? क्या उस समय हिंदुओं के साथ हुए इस विश्वासघात पर कांग्रेस को क्षमा किया जा सकता हैं?

इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य के साथ खडे होना बड़ा साहसिक कार्य है। परंतु असत्य से जुड़ी अनेक देशविरोधी शक्तियां और टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले षड्यंत्रकारी देशवासियों को अपनी मातृभूमि भारत राष्ट्र के प्रति किये जाने वाले पापकर्मों पर एक दिन अवश्य पछताना होगा।
इस नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में कांग्रेस का साथ देने वाले सभी छोटे-बड़े राजनैतिक दलों को वर्तमान भारत में जब राष्ट्रवाद की प्रबल लहर बह रही हो तो उन्हें उसके विरुद्ध जाकर अपने-अपने भविष्य के प्रति गम्भीरता से सोचना होगा। निसन्देह राजनैतिक कर्मज्ञों के लिए सदा सक्रिय रहना उचित है। परन्तु क्या उन्हें केवल विरोध के लिए राष्ट्रघाती मार्ग अपनाना चाहिए ?

अतः मेरा समस्त राजनीति के कर्णधारों से यह विनम्र निवेदन है कि दशकों से पड़ोसी मुस्लिम देशों में अमानवीय अत्याचार झेलते हुए सर्वनाश की ओर बढ़ते जा रहें भारतीय मूल के अपने गैर  मुस्लिम बंधुओं की सुरक्षा के लिए सह्रदयता का परिचय दे। इसके लिये उन्हें “नागरिकता संशोधन विधेयक” का समर्थन करके समस्त देशवासियों के हितार्थ एक स्वस्थ राजनीति का संदेश देना चाहिये।

विनोद कुमार सर्वोदय

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