योग को मिलेगी अंतरराष्ट्रिय मान्यता

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संदर्भः- संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस मनाए जाने पर 130 देशों का समर्थन।

प्रमोद भार्गव

 

शायद आने वाले 10 दिसंबर को योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिल जाएगी और हरेक साल 21 जून को योग दिवस मनाए जाने का अंतरराष्ट्रिय स्तर पर सिलसिला शुरु हो जाएगा। अंतरराष्ट्रिय योग दिवस मनाए जाने के बावत इसी साल सिंतबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने पहले भाषण में योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव की पुरजोर पैरवी करते हुए कहा था कि योग जीवनशैली को बदलकर और मस्तिष्क की चेतना को जगाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है। याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। शायद इसीलिए मोदी के इस प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में से 130 देशों ने समर्थन दे दिया है। इस समर्थन में सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य देश रूस, चीन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन तो शामिल है ही ईराक, ईरान, मिश्र और बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देश भी शामिल हैं।

योग शब्द अपने भावार्थ में आज अपनी सार्थकता पूरी दुनिया में सिद्ध कर रहा है। योग का अर्थ है जोड़ना। वह चाहे किसी भी धर्म जाति अथवा सम्प्रदाय के लोग हों,योग का प्रयोग सभी को शारीरिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक रूप से सकारात्मक सोच विकसित करता है। योग भारत के किसी ऐसे धर्म ग्रन्थ का हिस्सा भी नहीं है, जो बाइबिल और कुरान की तरह पवित्र आस्था का प्रतीक हो। योग की आसनें प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ पतंजली योग सूत्र के प्रयोग हैं। जो हिंदु अथवा अन्य भारतीय धर्मों में धर्म ग्रन्थों की तरह पूज्य नहीं है। पतंजली योग सूत्र का सार इस एक वाक्य ‘‘योगष्तिवृत्ति निरोधः‘‘ में निहित है। इसका भावार्थ है चित्त अथवा मन की चंचलता को स्थिर करना अथवा रखना। जिससे मन भटके नहीं और इन्द्र्रियों के साथ वासनाएं भी नियंत्रित हों। लेकिन योग केवल वासनाओं को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं है। योग के नियमित प्रयोग से मधुमेह, रक्तचाप तो नियंत्रित होते ही हंै,कमोवेश मोटापा भी दूर होता है। यदि बाबा रामदेव की बात पर विश्वास करें तो कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों को भी योग नियंत्रित करता है। शायद इसीलिए मोदी ने योग को जीवन की चेतना का मंत्र बताया है।

हालांकि योग शिक्षा को लेकर एक समय अमेरिका और ब्रिटेन के धर्मगुरुओं में भय व्याप्त हो चुका है क्योंकि वे योग को धार्मिक शिक्षा के रुप में देखते हैं। उन्हें आशंका है कि यदि योग की शिक्षा दी जाती रही तो उनके बच्चे भारतीय धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इसी शंका के चलते केलिर्फोनिया नगर में तो विद्यालयों में योग की शिक्षा से जुड़े पाठों को हटाने की मांग भी की जा चुकी हैं। अकेले इस शहर की पाठशालाओं में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे योग सीखकर स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे है।

धार्मिक पूर्वाग्रह के चलते ही योग के पाठ पर इग्ंलैण्ड की दो चर्चों ने पाबंदी लगा दी थी, जबकि योग के रहस्यों को स्वास्थ लाभ से जोड़कर बाबा रामदेव ने जबसे सार्वजानिक करना शुरू किया है,तभी से योग की महत्ता को पूरे विश्व ने स्वीकारा, न कि किसी धार्मिक प्रचार प्रसार के चलते ? योग ध्यान,और प्राणायाम मस्तिष्क को एकाग्र कर शरीर को चुस्त – दुरूस्त व निरोग बनाए रखने की धर्मनिरपेक्ष वैज्ञानिक आसनें हैं, न कि हिंदु धर्म के विस्तार के उपाय।

दरअसल भारत अथवा पूर्वी देशों से जो भी ज्ञान यूरोपीय देशों में पहुंचता है, तो इन देशों की ईसाइयत पर सकंट के बादल मंडराने लगते हैं। इसी तरह भगवान रजनिश ने जब अमेरिका में गीता और उपनिषदों को बाइबिल से तथा राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर को जीसस से श्रेष्ठ घोषित करना शुरू किया और धर्म तथा अधर्म की अपनी विशिष्ट शैली में व्याख्या की तो रजनिश के आश्रमों में अमेरिकी लेखक ,कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक और प्राध्यापकों के साथ आमजनों की भीड़ उमड़ने लगी थी। उनमें यह जिज्ञासा भी पैदा हुई कि पूरब के जिन लोगों को हम हजारों ईसाई मिशननरियों के जरिए शिक्षित करने में लगे हैं उनके ज्ञान का आकाश तो कहीं बहुंत ऊंचा है। यही नहीं जब रजनिश ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन जो, ईसाई धर्म को ही एक मात्र धर्म मानते थे और वेटीकन सिटी में पोप को धर्म पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी तो ईसाइयत पर संकट छा गया और देखते ही देखते रजनिश को उनके तामझाम समेत अमेरिका से बेदखल कर दिया गया।

लेकिन अब लगता है मोदी के प्रभाव के चलते दुनिया में सद्भाव और सहिष्णुता का वातावरण नये ढंग से निर्मित हो रहा है। वरना महज दो माह के भीतर योग दिवस के प्रस्ताव पर 130 देशों का समर्थन मिलना मुश्किल था। सह प्रायोजक के रुप में इतने देशों का समर्थन मिलना आश्चर्य है। इस मसौदे को एल डाक्यूमेंट का नाम दिया गया है। यदि इस प्रस्ताव को 10 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा की बैठक में मान्यता मिल जाती है तो इसे स्वास्थ्य एवं कल्याण के प्रति ऐतिहासिक दृष्टिकोण मुहैया कराने वाला प्रस्ताव माना जाएगा।

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