योग के बल पर कैंसर पर विजय

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अनुवादक: डॉ. मधुसूदन

yog diwasसकाल (सकार)वृत्तसेवा, सोमवार, २२ जून २०१५
कोल्हापूर- योगद्वारा केवल मनः शांति ही नहीं; पर कैंसर जैसे गंभीर रोग पर भी विजय प्राप्त किया जा सकता है, यह गडमुडशिंगी (ता. करवीर) के निवासी शिवाजी सदाशिव पाटील नामक सज्जन ने सिद्ध कर दिखाया है।
कैंसर के नाम से भी अनेक लोगों के दिल बैठ जाते हैं। जिन्हें इस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, वें रोग की अपेक्षा मन से ही हार जाते हैं, ऐसा गंभीर यह रोग श्री. पाटील ने योगसाधना के साथ साथ देशी गौ के दूध सेवन, और गोमूत्र की सहायता से ठीक किया है।
श्री.पाटील गडमुडशिंगी गाँव के  प्रगति शील कृषक।
कृषि और गाँव की राजनीति में भी सक्रिय रहा करते हैं। उन्हें पेटपर और गर्दन और कान के बीच , द्राक्ष (अंगूर) के गुच्छे जैसी गाँठे उभर आयी थीं।
२८ अक्टूबर २०१० को,  मिरज के शासकीय दवाखाने में रोग परीक्षा  करवाई गयी थी।
इस परीक्षण में ये गांठें कैंसर की होने का निदान किया गया।
कैंसर के निदान से उन्हें और उनके कुटुम्बियों को बड़ा मानसिक आघात पहुंचा था।
किन्तु इस गम्भीर रोग के नाम से हार मानने के बदले आपने उसपर विजय पाने का दृढ़ निश्चय किया।
पहले किमोथॅरेपी जैसा उपचार प्रारंभ किए। इस उपचार पद्धति से  उन्हें पीड़ा होने लगी।
किन्तु उन की दुर्दम्य इच्छा शक्ति उन्हें स्वस्थ (शान्त) बैठने देती न थी।
कैंसर पर जो जो उपाय होंगे, उनका शोध उन्हों ने शुरू किया।
योग साधना द्वारा इस रोगपर विजय प्राप्त किया जा सकता है, ऐसा आपके पढने में आया।
योग साधना के साथ साथ देशी गौ का मूत्र, और दूध भी उसपर गुणकारी होता है, ऐसी जानकारी  उन्हें प्राप्त हुयी। ऐसी जानकारी प्राप्त होते ही उसी दिन से उन्हों ने योगसाधना  प्रारंभ की।
घर में देशी गौ नहीं थीं। उसे खरिदा।
और गत चार वर्षों से प्रतिदिन दो घण्टे योगासन, और साथ साथ देशी गौ का दूध और गोमूत्र से दिन प्रारंभ होता है। देशी गौ ही आपकी गत चार वर्षों से साथी है।
रोज सांझ- सबेरे  पाटील इस गौ के सान्निध्य में व्यायाम और योगासन करते हैं।
बीच बीच में कैंसर के परीक्षण से शरीर में, इस रोगकी तीव्रता का घटती हुयी अनुभव हो  रही है।
इन उपचारों के प्रारंभ करने से “किमोथेरेपी” से बाल झडना भी रुका।
छः महीनो पहले उन्हों ने फिर से शरीर में कैंसर के लक्षणों का परीक्षण किया, और उन्हें “निगेटिव” पाया।
तब उन्हों ने और उनके घरवालों ने भी छुटकारे का श्वास लिया।
पाटील कहते हैं, कैंसर हुआ, इस से मैं डरा नहीं।
घरवाले अवश्य विचलित हुए।
किन्तु उन्हों ने भी मुझे (साथ )आधार दिया।
योग के कारण इस रोग पर विजय प्राप्त किया जा सकता है; जब से यह पढा, तब से मेरा सबेरा और मेरी संध्या बिना योग पूरे होते नहीं है।
आज पूरा हट्टा-कट्टा होकर रोगमुक्त हुआ हूँ, इसके पीछे योगासन के कपालभाती, (अनोलोमीलन?) अनुलोम-विलोम, भ्रस्तिका जैसे योग कारण हैं।
साथ गौ का दूध, गोमूत्र, तुलसी के पत्तों का काढा, कडवे निम के पत्तों का रस इनका प्रयोग भी उपयोगी हुआ ऐसा श्री. पाटील ने बताया।

 

सूचना:
निम्न आलेख एक मराठी समाचार पत्र से अनुवादित है। पूरा पढ़ने पर आप जानेंगे, कि, योग के साथ, गौमूत्र गो-दूध, और अन्य प्राकृतिक एवं आयुर्वैदिक औषधियाँ भी इसमें उपयोगी सिद्ध हुयी हैं। मैं मेडिकल डाक्टर नहीं हूँ-अभियान्त्रिकी का विशेषज्ञ पी. एच. डी. हूँ। मैं ने, मराठी से हिन्दी में मात्र अनुवाद किया है। प्रवक्ता के प्रबुद्ध पाठकों को २१ जून के वैश्विक योग दिवस की शुभकामनाएँ। –डॉ. मधुसूदन

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डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

3 COMMENTS

  1. आदरणीय डा.मधुसूदन जी,
    # देवनागरी….कंकड़ पर लिखा आपका लेख पढ़कर बहुत आनन्द आया। कईयों को वह लेख भेजा है।
    तथ्यात्मक, तीखा, जड़ता को हरने वाला और सोए हुओं को जगाने वाला है।
    # योग से कैंसर की चिकित्सा पर लिखे इस लेख में कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
    अनेक कैंसर रोगी केवल निर्विष फलाहार से ठीक होगये, अनेक गेहूं के ज्वारों के रस से, कई पंचगव्य के प्रयोग से और अनेक रोगी योग व प्राणायाम साधना व प्रकृतिक चिकित्सा से भी पूर्ण स्वस्थ हुए हैं। पर कीमोथिरेपी करवाने के बाद इन उपायों को करने वालों का निरोग होने का प्रतिशत काफी कम है।
    कुछ वर्ष पूर्व जारी आँकड़े सत्य होने पर भी शायद अविश्वसनीय लगें। मुम्बई के टाटा संस्थान के कैंसर रोगियों के स्वस्थ होने का प्रतिशत 0.5 था। 200 में केवल एक रोगी जीवित बचा।
    इसके विपरीत गुजरात के वलसाड़ के निकट पंचगव्य से कैंसर की चिकित्सा के लिये एक हस्पताल चलता है। वहाँ 47% रोगी स्वस्थ हुए, उनकी जीवन रक्षा हुई।
    कहाँ 200 में एक और कहाँ 200 में से 94 रोगी । कितना अद्भुत है यह। एक तथ्य और ग्यातव्य है कि वलसाड़ में अधिकाँश वही रोगी पहुँचते हैं जो सारे इलाज करवाकर मरणासन्न अवस्था में पहुंच चले होते हैं। यदि स्वदेशी चिकित्सा समय पर, बिना कीमोथिरेपी लिये शुरू हो तो शायद एक भी रोगी की मृत्यु न हो और सभी स्वस्थ हो जाएं।
    वलसाड़ में चिकित्सा का स्तर काफ़ी गिरा है पर अब अनेक स्थानों पर पंचगव्य चिकित्सा शुरू हो रही है।
    आगरा में 24 लोग एक ट्रस्ट बनाकर कैंसर पर कैम्प लगाना शुरू कर चुके हैं। लगभग 100 रोगियों को रोज निशुल्क ताजा पञ्चगव्य पिलाया जाता है।
    कैंसर का सीधा सिद्धान्त है, शरीर के विषों को बाहर निकालो व रक्त को क्षारीय बनाने वाला आहार लो।
    अधिक से अधिक प्रणवयु लो अर्थात व्यायाम, आसन, प्राणायाम करो। विचार सकारात्मक रहें।
    स्वदेशी गो का पंचगव्य, न मिले तो गोमूत्र और अल्प गोबर मिला कर, छानकर रोगी को ३०-४०-५० मि.ली. प्रसतः- सायं दें।
    शयुष विभाग, भारत सरकार द्वारा छापे गये ५०० शोधपत्रों के एक प्रकाशन में गोमूत्र के अद्भुत गुणों पर प्रभूत सामग्री उपलब्ध है।
    अभी बस इतना ही।

    • प्रिय मित्र डॉ. राजेश कपूर जी— इस विषय पर एक जानकार एलॉपथिक, आयुर्वैदिक, निसर्गोपचार के तज्ञों की समिति बने।
      और खुले मनसे शोध सामग्री का चयन, परीक्षण करके प्रकाशित करे।
      आप इस विषय को आगे बढाइए। ऐसी अपेक्षा है।
      सादर-धन्यवाद।

  2. भारत के योग को जन जन तक , इतनी ऊचाइयों तक पहुँचाकर विश्व योग गुरु, योग ऋषि बाबा रामदेव , आयुर्वेद गुरु आचार्ये बाल कृष्ण जी और राज ऋषि मोदी जी ने मानवता की बहुत बड़ी सेवा की है ।

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