लखनऊ की कथा के लिए मशहूर इतिहासकार योगेश प्रवीन नहीं रहे….

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  • अनिल अनूप

लखनऊ हम पर फ़िदा है हम फ़िदा-ए-लखनऊ

आसमां की क्या हकीकत जो छुड़ाए लखनऊ।

आप को लखनऊ के गली-कूचों के बारे में जानना हो या लखनऊ की शायरी या लखनऊ के नवाबों या बेगमातों का हाल जानना हो, ऐतिहासिक इमारतों, लडा़इयों या कि कुछ और भी जानना हो योगेश प्रवीन आप को तुरंत बताएंगे। और पूरी विनम्रता से बताएंगे। पूरी तफ़सील से और पूरी मासूमियत से। ऐसी विलक्षण जानकारी और ऐसी सादगी योगेश प्रवीन को प्रकृति ने दी है जो उन्हें बहुत बड़ा बनाती है। लखनऊ और अवध की धरोहरों को बताते और लिखते हुए वह अब खुद भी एक धरोहर बन चले हैं। उन का उठना-बैठना, चलना-फिरना जैसे सब कुछ लखनऊ ही के लिए होता है। लखनऊ उन को जीता है और वह लखनऊ को। लखनऊ और अवध पर लिखी उन की दर्जनों किताबें अब दुनिया भर में लखनऊ को जानने का सबब बन चुकी हैं। इस के लिए जाने कितने सम्मान भी उन्हें मिल चुके हैं।

अवध और लखनऊ के इतिहास का इनसाइक्लोपीडिया माने जाने वाले पद्मश्री डॉ.योगेश प्रवीन का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया।  82 वर्षीय डॉ योगेश प्रवीन की तबीयत आज कुछ खराब लग रही थी। उनके परिवार के लोग प्राइवेट वाहन से उनको लेकर अस्पताल ले जा रहे थे, कि रास्ते में उनका निधन हो गया। 

सोमवार को दिन में अचानक उनकी तबीयत खराब होने पर स्वजन उनको लेकर बलरामपुर अस्पताल जा रहे थे। रास्ते में अचानक उनका निधन हो गया। उनकी तबीयत खराब होने पर एंबुलेंस 108 को सूचना दी गई। बहुत देर तक एंबुलेंस नहीं आई और निजी वाहन से उन्हेंं ले जाना पड़ा। इसके बाद अस्पताल पहुंचते ही उन्हेंं मृत घोषित कर दिया गया।

लखनऊवा नफ़ासत उन के मिजाज और लेखन दोनों ही में छलकती मिलती है। उन्हें मिले दर्जनों प्रतिष्ठित सम्मान भी उन्हें अहंकार के तराजू पर नहीं बिठा पाए। वह उसी मासूमियत और उसी सादगी से सब से मिलते हैं। उन से मिलिए तो लखनऊ जैसे उन में बोलता हुआ मिलता है। गोया वह कह रहे हों कि मैं लखनऊ हूं ! लखनऊ पर शोध करते-करते उन का काम इतना बडा़ हो गया कि लोग अब उन पर भी शोध करने लगे हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की हेमांशु सेन का योगेश प्रवीन पर शोध यहां कबिले ज़िक्र है। लखनऊ को ले कर योगेश प्रवीन के शोध तो महत्वपूर्ण हैं ही, लखनऊ के मद्देनज़र उन्हों ने कविता, नाटक आदि भी खूब लिखे हैं। लखनऊ से यह उन की मुहब्बत ही है कि वह लिखते हैं :

लखनऊ है तो महज़, गुंबदो मीनार नहीं

सिर्फ़ एक शहर नहीं, कूच और बाज़ार नहीं

इस के आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते हैं

इस की गलियों में फ़रिश्तों के पते मिलते हैं

इतिहासकार योगेश प्रवीन लखनऊ के इतिहास को जानने-समझने का सबसे बड़ा माध्यम थे। बीते वर्ष पद्मश्री सम्मान मिलने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था कि पद्म पुरस्कार मिलना उनके लिये देर से ही सही मगर बहुत खुशी की बात है। उन्होंने कहा कि अक्सर इंसान को सब कुछ समय पर नहीं मिलता। भावुक हुए इतिहासकार ने कहा था कि अब सुकून से अगली यात्रा पर चल सकूंगा।

योगेश प्रवीन ने न सिर्फ़ लखनऊ के बसने का सिलसिलेवार इतिहास लिखा है बल्कि लखनऊ के सांस्कृतिक और पुरातात्विक महत्व का भी खूब बखान किया है। कई-कई किताबों में। दास्ताने अवध, ताजेदार अवध, गुलिस्ताने अवध, लखनऊ मान्युमेंट्स, लक्ष्मणपुर की आत्मकथा, हिस्ट्री आफ़ लखनऊ कैंट, पत्थर के स्वप्न,अंक विलास आदि किताबों में उन्हों ने अलग-अलग विषय बना कर अवध के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। जब कि लखनऊनामा, दास्ताने लखनऊ, लखनऊ के मोहल्ले और उन की शान जैसी किताबों में लखनऊ शहर के बारे में विस्तार से बताया है। एक से एक बारीक जानकारियां। जैसे कि आज की पाश कालोनी महानगर या चांदगंज किसी समय मवेशीखाने थे। आज का मेडिकल कालेज कभी मच्छी भवन किला था। कि फ़्रांसीसियों ने कभी यहां घोड़ों और नील का व्यापार भी किया था। कुकरैल नाले के नामकरण से संबंधित जनश्रुति में वफ़ादार कुतिया को दंडित करने और कुतिया के कुएं में कूदने से उत्पन्न सोते का वर्णन करते हुए दास्ताने लखनऊ में योगेश प्रवीन लिखते हैं, ‘ जिस कुएं में कुतिया ने छलांग लगाई उस कुएं से ही एक स्रोत ऐसा फूट निकला जो दक्षिण की तरफ एक छोटी सी नदी की सूरत में बह चला। इस नदी को कुक्कर+ आलय का नाम दिया गया जो मुख सुख के कारण कुक्करालय हो गया फिर प्रयत्न लाघव में कुकरैल कहा जाने लगा।’

वह कहते थे कि उनका कोई भी काम, शोध सिर्फ लखनऊ के लिए ही होता है। कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता समेत तमाम विधाओं में लिखने वाले डॉ. योगेश प्रवीन विद्यांत हिन्दू डिग्री कॉलेज से बतौर प्रवक्ता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने चार दशक से पुस्तक लेखन के अलावा अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया। अवध और लखनऊ का इतिहास खंगालती कई महत्वपूर्ण किताबों के लिए उन्हेंं कई पुरस्कार व सम्मान भी किे। उनकी अब तक 30 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो अवध की संस्कृति और लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हैं। उनका बेहद चर्चित शेर ”लखनऊ है तो महज गुंबद-ओ-मीनार नहीं, सिर्फ एक शहर नहीं, कूचा-ए-बाजार नहीं, इसके आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते हैं, इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं…।

यह अनायास नहीं है कि जब कोई फ़िल्मकार फ़िल्म बनाने लखनऊ आता है तो वह पहले योगेश प्रवीन को ढूंढता है फिर शूटिंग शुरु करता है। वह चाहे शतरंज के खिलाड़ी बनाने आए सत्यजीत रे हों या जुनून बनाने आए श्याम बेनेगल हों या फिर उमराव जान बनाने वाले मुजफ़्फ़र अली या और तमाम फ़िल्मकार। योगेश प्रवीन की सलाह के बिना किसी का काम चलता नहीं। ज़िक्र ज़रुरी है कि आशा भोसले, अनूप जलोटा, उदित नारायण, अग्निहोत्री बंधु समेत तमाम गायकों ने योगेश प्रवीन के लिखे भजन, गीत और गज़ल गाए हैं।

आइएएस अधिकारी और पद्मश्री स्वर्गीय योगेश प्रवीन को बेहद करीब से जानने वाले पवन कुमार इन दिनों चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक के रूप में असोम में हैं। उनको जैसे ही पद्मश्री योगेश प्रवीन के निधन की सूचना मिली, वह अवाक रहे गए। उन्होंने कहा कि इतिहासकार योगेश प्रवीन जी लखनऊ हम पर फिदा है हम फिदा के लखनऊ….. की जिंदा मिसाल थे। जब भी मिलिए तो लगता था कि सामने जीता जागता लखनऊ सामने हो। इस शहर के शफ्क के एक एक रंग से उनकी गहरी वावफियत रही। उनकी किताबों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति लखनऊ को अच्छे से समझ सकता है। 

नफासत और विनम्रता की इंतिहा यह कि आला दर्जे के लेखक और इतिहासकार होने के बावजूद वह अपने आपको आखिर वक़्त तक अवध की संस्कृति का शोधार्थी ही मानते रहे। लखनऊ की तहजीब को ओढऩे बिछाने वाले काबिल इतिहासकार योगेश प्रवीन को सादर नमन।

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