राष्ट्रीय पर्वो पर धर्म की ‘दीवार’ का पहरा

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15 अगस्त नहीं मनाने वाले मदरसों पर योगी सख्त

  संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश का निजाम बदल गया है। योगी सरकार बार-बार कह रही है कि वह ध्यान सबका रखेगी, लेकिन तुष्टिकरण किसी का नहीं करेंगी। मगर यह बात उन चंद लोंगो के समझ में नहीं आ रही है जो एक वर्ग विशेष का होने के कारण सपा-बसपा सरकार और उससे पहले कांगे्रस की सरकारों में कृपा कें पात्र बने रहते थे। अपने वोट बैंक की ताकत से तमाम सरकारों को घुटनों के बल पर खड़ा कर देने वाले इस वर्ग के लोंगो को यह बात हजम नहीं हो रही है कि उनकी मनमानी, हठधर्मी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर कोई लगाम लगाये। योगी राज में भी ऐसा कई बार देखा जा चुका है, लेकिन हद तो तब हो गई जब योगी सरकार के सख्त फरमान के बाद भी कुछ मदरसों और मुस्लिम संगठनों नेे बड़ी बेशर्मी के साथ राष्ट्रगान और आजादी का जश्न  मनाने से न केवल इंकार कर दिया, बल्कि ऐसा कर भी दिखाया। इसमें कई मदरसे ऐसे भी थे जो सरकारी सहायता फलफूल जरूर रहे हैं लेकिन सरकार की सुनते नहीं हैं। एक तो सबसे शर्मनाक स्थिति यही है कि आजादी के 70 वर्षो के बाद भी सरकार को स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिये सर्कुलर जारी करना पड़ता है, दूसरे इसके बाद भी इस आदेश का कुछ लोग गंभीरता से संज्ञान नहीं लेते हैं। स्वंतंत्रता दिवस नहीं मनाने वाले मदरसों और मुस्लिम संगठनों को उम्मीद थी कि उनके राजनैतिक आका उन्हंे बचाने के लिये सामने आ जायेंगे, मगर योगी सरकार की सख्ती के चलते अब ऐसे राष्ट्र विरोधी ताकतें निशाने पर आ गई हैं।
देश की सवा सौ करोड़ की जनता में से किसी को भी नहीं भूलना चाहिए कि 26 जनवरी और 15 अगस्त आम हिन्दुस्तानी के लिये  विशेष दिवस भर नहीं है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो 26 जनवरी 1950 को संविधान बनाकर तय किया गया कि देश को कैसे चलाया जायेगा,मगर दुख की बात यह है कि ऐसा होता नहीं है। यहां हम बात 15 अगस्त की कर रहे हैं। यह दिन देश की आन-बान और शान के लिये कुबार्नी देने वालों को याद करने का मौका होता है। याद उन शहीदों को किया जाता है, जिनके शौर्य की वजह से देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिली। हम अगरं आजादी की खुली हवां में सांस ले रहे हैं तो इसका पूरा श्रेय देश की आजादी के लिये जान निछावर करने वाले शूरवीरों को जाता है,जिनकी गाथाओं से इतिहास पटा पड़ा है तो ऐसे शूरवीरों की भी संख्या कम नहीं है जिन्हें इतिहास के पन्नों में भले ही जगह नहीं मिल पाई हो, लेकिन उनका सम्मान कभी किसी हिन्दुस्तानी के दिल में कम नहीं रहा। तमाम ऐसे जाने-अंजाने आजादी के मतवालों को याद करना हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है,जिससे किसी भी तरह से बचा नहीं जा सकता है। चाहें हमारा कोई धर्म, कोई भाषा, कोई क्षेत्र हो,लेकिन देश के लिये जान देने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानी सबके लिये पूजनीय और वंदनीय होना चाहिए। देश के लिये कुर्बानी देने वालों का सम्मान के लिये बहुत ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता है। उनकी याद में कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम और राष्ट्रगान बज जाये, यही बहुत होता है,परंतु जब ऐसा करने में भी कुछ लोंगो को परहेज होने लगे तो प्रश्न उठना तो लाजिमी है। सवाल यही है कि क्या हम अपने शहीदों को वह सम्मान दे पाते हैं जिसके वह हकदार हैं ?
बात 15 अगस्त की हो या फिर गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की, कई वर्षो से अक्सर ऐसी खबरे आती रहती हैं कि कुछ शैक्षिक और सामाजिक संस्थाएं राष्ट्रीय पर्वो को मनाने में भी गुरेज करती थीं। कभी धर्म की आड़ में, तो कभी विचारधारा के नाम पर  राष्ट्रीय पर्वो से किराना करने वालों की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को हमेशा नजरअंदाज किया जाता रहा। सिर्फ इस लिये क्योंकि सत्ता में बैठे दलों को लगता था कि अगर ऐसे राष्ट्र विरोधी तत्वो के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई तो उनकी पार्टी का वोट बैंक नाराज हो जायेगा। कई बार राष्ट्र विरोधी तत्वों की ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कुछ जिम्मेदार लोंगो ने अदालत का  दरवाजा भी खटखटाया, मगर कभी सरकारी रूख के लचीलेपन के कारण तो कभी धर्मनिरपेक्षता,साम्प्रदायिकता के नाम पर ऐसे लोंगो की आवाज दबा दी गई।
ऐसी राष्ट्र विरोधी शक्तियों का विरोध अगर किसी दल और संगठन ने किया तो वह भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) तथा अन्य कुछ हिन्दूवादी संगठन शामिल थे। इसकी इन्हीं कीमत भी चुकानी पड़ी। दरअसल, हमारे देश की यह विडंबना रही है कि यहां का हिन्दू कभी वोट बैंक नहीं बन पाया। जब भी उसे वोटिंग करने का मौका मिला, उसने अपने विवेक का इस्तेमाल किया, जबकि देश का मुसलमान हमेशा से अपने विवेक की जगह फतवों और धर्म गुरूओं की मंशा के अनुरूप ही वोटिंग करने वालों के रूप में जाना जाता रहा। यह सिलसिला आजादी के 70 साल बाद भी बदस्तूर जारी है। इसका फायदा लम्बे समय तक कांगे्रस और उसके बाद मुलायम सिंह यादव, लालू यादव,मायावती जैसे जातिवाद की राजनीति करने वाले नेताओं ने खूब उठाया। मुसलमानों को बीजेपी का भय दिखाकर अपने पाले में खड़ा करने में कामयाब रहने वाले नेताओं के कारण देश का मुसलमान अपनी मूल समस्याओं से कभी बाहर ही नहीं निकल सका। आज भी देश का मुसलमान अन्य बिरादरियों से शैक्षिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। तीन तलाक, हलाला जैसी बुर्राइंयां उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं,,जिसने मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रख दिया है।
यह देश का दुर्भाग्य है कि यहां की 20 प्रतिशत आबादी के  एक धड़े में आज तक देश प्रेम की भावना नहीं जागी है। धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं और धर्म को सबसे ऊपर मानते हैं। इस्लाम के आड़ में तमाम गुनाहों पर पर्दा डालने की साजिश रची जाती है। इसी लिये तो इन लोंगो को राष्ट्रगान गाने में शर्म लगती है। वंदे मातरम का तराना गाकर आजादी के समय कई मुस्लिम क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी थी, लेकिन आज वंदे मातरम साम्प्रदायिक हो गया है। समझ में नहीं आता पहले वाले सही थे या आज वाले मुलसमान सहीं हैं। यह छोटी सी हकीकत है,जबकि बड़ी हकीकत यह है कि तमाम मदरसों में हर साल पहले से आजादी से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है।
दुख की बात यह है कि देश की बड़ी आबादी के एक छोटे से धड़े की राष्ट्र विरोधी सोच के कारण इस बार भी 15 अगस्त विवादों में घिरा रहा,लेकिन अबकी बार निजाम का मिजाज बदला हुआ था। इस लिये इन लोंगो (राष्ट्रगान गाने से परहेज करने वालों की) की मनमानी अबकी से इनके ऊपर भारी पड़ती दिख रही है। योगी सरकार के प्रवक्ता और उर्जा मंत्री श्रीेकांत शर्मा ने राष्ट्रगान नहीं गाने वाले मदरसों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत दिया है। उन्होंने सपा नेता आजम खान के गृह जिला रामपुर के मदरसे सहित अन्य कई जिलों में सरकार के आदेश का अनुपालन न करने पर सवाल खड़ा करते हुए कहा अब तक जो लोग सत्ता में रहे उन्होंने सपा का दोहन किया और एक वर्ग विशेष  को सिर्फ वोट बैंक की नजर से देखा,परंतु अब कोई कानून तोड़ेगा तो निश्चित ही कानून अपना काम करेगा।
गौरतलब हो, हाल ही में योगी सरकार ने सर्कुलर जारी किया था, जिसके अनुसार सभी शैक्षणिक संस्थाओं और मदरसों को 15 अगस्त के कार्यक्रम धूमधाम से आयोजित करने थे, जिसमें शहीदों के बारे में छात्र-छात्राओं को जानकारी देने के अलावा राष्ट्रगान गाना भी जरूरी था। यह भी कहा गया था कि सभी शैक्षणिक संस्थाएं कार्यक्रम की वीडियोग्राफी करायेंगी,लेकिन योगी सरकार का इकबाल सब जगह काम नहीं आया और  उत्तर प्रदेश के कुछ मदरसों में न तो राष्ट्रगान हुआ और न ही शहीदों को याद किया गया। कई जगह तो इसको लेकर बवाल भी हुआ,जिसकी छींटे सियासी दलों पर भी पड़ी। सहारनपुर के ग्राम मर्वीकला स्थित मदरसे में राष्ट्रध्वज फहराये जाने एवं राष्ट्रगान गाने को लेकर मदरसा कमेटी और सपा नेता आपस में भिड़ गये। आरोप है कि सपा नेता एवं एक शिक्षक ने अपने दर्जनों साथियों के साथ मिलकर मदरसे में मौजूद लोंगो पर फायरिंग कर दी, जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गये। यह लोग ध्वजारोहण कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे। हालात ज्यादा बिगड़ने पर पुलिस को मदरसा कमेटी के उपाध्यक्ष हाजी यामीन की तहरीर पर आरोपी सपा नेता सहित 21 लोंगो के खिलाफ राष्ट्र गौरव अपमान एवं बवाल का मामला दर्ज करना पड़ा। इसी प्रकार योगी सरकार के आदेश के खिलाफ 12 अगस्त को बरेली शहर के काजी मौलाना असजद रजा खान ने जिले के मदरसों को फरमान जारी कर दिया था कि 15 अगस्त को राष्ट्रगान न गाया जाये। एक न्यूज चैनल को दिये इंटरव्यू में भी आरोपी मौलाना ने कहा कि राष्ट्रगान  गाना या न गाना उनका निजी मामला है। हांलाकि अब रजा खान का राष्ट्र विरोधी फरमान अदालत की चैखट तक पहुंच गया है,जहां अंतिम फैसला होगा।
इसके अलावा कानपुर, बरेली समेत कई जिलों के कुछ मदरसों में राष्ट्रगान न गाकर इकबाल का तराना-सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गाया गया।लखनऊ के कुछ मदरसों में भी राष्ट्रगान से परहेज किया गया। हालांकि अंबेडकरनगर, श्रवस्ती, अमेठी, गोंडा, बहराइच, फैजाबाद और रायबरेली के मदरसों में ध्वजारोहण के साथ ही राष्ट्रगान गाया गया, लेकिन कानपुर के अधिकांश मदरसों में ये कहकर वीडियोग्राफी भी नहीं कराई गई कि हमें देशभक्ति का प्रमाण देने की जरूरत नहीं है। बरेली मंडल के मदरसों में तिरंगा फहराने के बाद इकबाल का तराना गाया गया। कई जगह पुलिस ने वीडियोग्राफी कराने की कोशिश की तो विरोध आड़े आ गया। दरगाह आला हजरत के फरमान का असर सुन्नी मदरसों में दिखा। इनमें राष्ट्रगान नहीं हुआ। हालांकि, शिया और देवबंदी मसलक के मदरसों में राष्ट्रगान हुआ। दरगाह ने दावा किया कि वाराणसी, गोरखपुर, गाजियाबाद, बदायूं, मुरादाबाद से लेकर देशभर के सुन्नी मदरसों में राष्ट्रगान के बजाय तराना गूंजने की रिपोर्ट पहुंची है।
इस सबके बीच अच्छी खबर यह आई कि स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाने वाले दारूल उलूम में 40 साल के बाद तिरंगा फहराया गया। इस अवसर पर मदरसा छात्रों ने देशभक्ति के तराने पेश कर वतन से मोहब्बत का इजहार किया। हाॅ, योगी के आदेश ने राजनैतिक दलों को जरूर सियासत चमकाने का मौका दे दिया। सपा,बसपा और कांगे्रस एक सुर में योगी सरकार पर हमलावर हो गईं।
लब्बोलुआब यह है कि योगी सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस कैसे मनाया जाये, इसको लेकर शैक्षणिक संस्थाओं के लिये  जारी किये गये फरमान को कुछ मदरसों ने ठंेगा दिखा दिया। ऐसे मदरसों की हठधर्मी, योगी सरकार के आदेश पर भारी पड़ती दिखी। अब गंेद योगी सरकार के पाले में है। वह क्या कदम उठाते हैं। फिलहाल, ऐसा लगता नहीं है कि योगी सरकार अपने कदम पीछे खींचेगी। सरकार का रूख भांप कर तमाम जिलों के प्रशासन ने स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाने वालेे मदरसों की सूची तलब की है। देखना होगा कि सरकार का फरमान नहीं मानने वाले मदरसों के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई होती है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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