यौगिक जीवन शैली बिहार योग पद्धति का महत्वपूर्ण पक्ष

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कुमार कृष्णन

इस साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ऐसे समय में मनाया जाना है जब पूरी दुनिया संक्रामक कोविड-19 की चपेट में है। हालां‍कि, यह तथ्‍य अत्‍यंत महत्वपूर्ण है कि योगाभ्यास के ‘स्वास्थ्य बेहतर करने और तनाव को कम करने वाले’ प्रभाव इस कठिन परिस्थिति में लोगों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक हैं। इसका मुख्य कारण मनोदैहिक पक्ष है। योग सिर्फ दिवस के दिन नहीं करने का नहीं, बल्कि जीवन शैली के रूप में अंगीकार करने का है। शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग की प्रभावशाली भूमिका  विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध किया जा चुका है। कोविड—19 के संदर्भ में चिकित्सकों ने प्रतिरोधक शक्ति मजबूत करने की बात कही है। आसन, प्राणायाम, योगनिद्रा और मंत्र अभ्यास न केवल श्वसन ​तंत्र को मजबूत बनाता है, बल्कि पूरे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।

आज योग की तरह—तरह की पद्धतियां हैं, लेकिन योग की बिहार योग पद्धति में मनुष्य के शरीर  तथा बुद्धि को नहीं,समग्र व्यक्तित्व को एकीकृत करने की शिक्षा दी जाती है। मौजूदा समय की मांग के अनुरूप बिहार योग विद्यालय,गंगा दर्शन मुंगेर मोबाइल एप के माध्यम से सरल विधियों को लाया है,जिसके नियमित अभ्यास से शारीरिक मानसिक और भावनात्मक तनाव को कम किया जा सकता है। इसे करने में 15 से 20 मिनट का समय लगता है। इन अभ्यासों में आसन और प्राणायाम कैप्सुल का समावेश किया गया है। इसे एनरायड मोबाइल पर एफएफएच के माध्यम से देखा जा सकता है। दूसरा सत्यम योग प्रसाद है। इसमें समग्र यौगिक जीवन शैली  को  प्रस्तुत किया गया है, जिसमें संयम, यम, नियम,मंत्रपाठ,आसन,प्राणायाम,शिथिलीकरण,जप और ध्यान की विधियां शामिल है। हमारी संस्कृति में मंत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। मंत्रों में दिव्य शक्ति है। मंत्रों के प्रभाव को वैज्ञानिक स्तर पर भी स्वीकार किया गया है। जब सम्रग जीवन शैली की बात करते हैं तो योग के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती दैनिक जीवन का शुभारंभ मंत्रों के साथ करने की ही बात करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र का 11 पाठ और तीन बार दुर्गा जी के 32 नामों का पाठ दिनचर्या मेें शामिल करते हैं तो साकारात्मक परिवर्तन आता है। महामृत्युंजय मंत्र, आरोग्य, उर्जा एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि में सहायक होता तो गायत्री मंत्र का पाठ विवेक, आंतरिक स्पष्टता,अंतरप्रज्ञा, विद्या,बुद्धि के सुषुप्त क्षेत्रों को जागृत करने में सहायक होता हैै। इसी प्रकार दुर्गा जी के 32 नाम का तीन बार पाठ जीवन के दुर्गति को दूर करता है।ये तीन मंत्र बीज-स्वरूपी संकल्प हैं, जो हमारे अवचेतन मन में उस समय आरोपित किए जाते हैं जब आपका मन शांत और इंद्रिय-विषयों से पृथक रहता है। दरअसल में कीर्तन और जप, मंत्र योग का हिस्सा हैं, योग शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं । प्राचीन काल में शब्दों और संगीत का प्रयोग एक परिवर्तनशील स्थिति को प्राप्त करने के लिए किया गया था । संगीत मन, आत्मा, भावनाओं और संवेदनशीलता को विकसित करने के लिए एक सहायता थी । इस आधुनिक युग में संगीत के विभिन्न रूपों का विकास हुआ है, जैसे रॉक, भारी धातु, जैज आदि., लेकिन हाल के समय तक संगीत का उपयोग मन को खुश करने के लिए नहीं बल्कि मन के आंदोलन को शांत करने के लिए किया गया था ।मंत्र का अर्थ ‘शक्ति का शब्द’ नहीं होता । यह कुछ है जो आप अंदर से महसूस करते हैं, कुछ ऐसा है जो चेतना की गहराई से आपके मन की सतह तक आता है । मंत्र हृदय की अनकही भाषा है । मंत्र का उचित उपयोग एक विशेष भावना पैदा कर सकता है और मन को आंतरिक और बाहरी दोनों अनुभवों के लिए ग्रहणशील होने के लिए संवेदनशील कर सकता है ।s

इसके लिए बिहार योग पद्धति को जानना जरूरी है। बिहार योग परंपरा विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती एवं उनक शिष्य परमहंस निरंजनानंद सरस्वती द्वारा विकसित एवं प्रतिपादित योग की प्रणाली है, जो प्राचीन सन्यास परंपरा से प्राप्त सांख्य, वेदांत, योग और तंत्र के बाडंमय पर आधारित है। बिहार योगप्रणाली की जड़ें हिमालय की तराई में अवस्थित ऋषिकेश में है, जहां प्रख्यात योगगुरू स्वामी शिवानंद ने योग की सामंजस्यपूर्ण अवधारणा की ​शिक्षा दी। स्वामी शिवानंद के आदेश और प्रेरणा के स्वरूप मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की 1963 में स्थापना की। 57 वर्षों के दौरान बिहार योग विद्यालय मुंगेर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता पूर्ण योग शिक्षा के क्षेत्र में पहचान कायम की है। इसे प्रधानमंत्री योग पुरस्कार से पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

 बिहार योग प्रणाली, योग की ऐसी परंपरा है जो शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है। बिहार योग में ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग,हठयोग राजयोग,कुण्डलिनी योग और क्रियायोग के प्रति समेकित दृष्टिकोण है, जिसके आधार पर योगाभ्यासी जीवन के विभिन्न पहलूओं को सुगठित कर सकता है। दरअसल में साकारात्मक परिवर्तन एक स्वभाविक प्रकिया है,जो नियमित अभ्यास से घटित होता है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती और उनके उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती यह स्थापित किया कि योग मनुष्य की समस्याओं का समाधान और आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे कर सकता है। बिहार योग पद्धति शास्त्रानुगत हठयोग और राजयोग की तकनीकों द्वारा शारीरिक एव मानसिक संतुलन एवं स्वास्थ्य के विकास में सहायक होता है। वही प्रत्याहार, घारणा, ध्यान, मंत्रयोग, कर्मयोग,राजयोग एवं भक्तियोग के क्रमवद्ध विकास द्वारा मानसिक एवं भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है। शास्त्रीय क्रियाओं और कुडलिनी योग द्वारा आत्मान्वेषणत्मक और अंत:जागरण में सक्षम बनाने में सहायक होता है। वैज्ञानिक प्रयोग और अनुसंघान बिहार योग पद्धति की धुरी रहे हैं। योग का विज्ञान,दर्शन और अभ्यास सार्वभौमिक है। यह किसी संस्कृति, परंपरा या धर्म के दायरे में सीमित नहीं है। योगभ्यास प्रत्येक मनुष्य के अस्तिव से संबध रखता है। उसका सम्बन्ध प्रार्थना, भक्ति तथा विश्वासों से नहीं है। योगाभ्यास हमारे संपूर्ण अस्तित्व,हमारे शारीरिक,मानसिक, भावनात्मक आत्मिक गुह्य शक्तियों से सम्बधित है।हमारा शरीर अस्वस्थ् है, हमारे स्नायु तंत्र में असंतुलन है,हमारा रक्तचाप घट—बढ़ रहा है,हमारा रक्त विषाक्त हो  गया है,हमारी ग्रंथियों में असंतुलन आ गया है,तब योग का कायिक पक्ष चुनाव तथा अभ्यास महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत,अमेरिका, फ्रांस,पोलैण्ड,जर्मनी और जापान के शोध वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष दिया है कि योगाभ्यास से शारीरिक क्रियाकलापों — स्नायुतंत्र, श्वसन तंत्र, निष्काषन तंत्र और अंतस्त्रावी ग्रंथियों को नियंत्रित किया जा सकता है। शोध के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि  प्राणायाम द्वारा न सिर्फ शरीर को प्राणवायु से भर लेते हैं ​बल्कि मस्तिष्क के दोनेा गोलाद्धों के उतार चढ़ाव पर नियंत्रण प्राप्त करते हैं,फेफड़े स्वच्छ करते हैं और इससे हमारा स्नायु तंत्र संतुलित होता है। वायीं नासिका से श्वसन करते हैं तो मस्तिष्क के दक्षिणी गोलाद्ध की गतिविधियां तेज हो जाती है और दायीं नासिका  से  करते हैं तो बायें गोलाद्ध के क्रियाकलाप में तीब्रता आ जाती है।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार अपने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ते से पहले आसन और प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। एक सामान्य व स्वस्थ व्यक्ति के लिए कुछ ही आसन पर्याप्त है। पहला है ताड़ासन। ताड़ासन के अभ्यास से अस्थियों और मेरूदंड में जमा तनाव और दबाव मुक्त हो जाता है। यह खिंचाव का अभ्यास है, जिससे विभिन्न प्रकार के जोड़ों से दबाव दूर होता है। दूसरा आसन निर्यक् ताड़ासन है। यह एक सरल पर बेहद लाभदायक अभ्यास है। इसमें पीठ की एक तरफ तो खिंचाव होता है और दूसरी ओर दबाव पड़ता है, जिससे दोनों तरफ का तनाव मुक्त हो जाता है। यह अभ्यास मेरूदंड की गड़बड़ियों को ठीक करने और उसे सीधा करने के लिए उत्तम है। तीसरा आसन है कटि-चक्रासन, जिसमें हम अपने मेरूदंड को मोड़कर शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को निचोड़ते हैं। इससे शरीर के प्रत्येक अंग, पेशी और जोड़ में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है। चौथा अभ्यास है सूर्य नमस्कार, जिसमें मुख्यत: आगे और पीछे झुकने वाले आसन हैं। इन चार अभ्यासों द्वारा हम शरीर को पांच तरह की अवस्थाओं में लाते हैं – सीधा तानना, पार्श्व की ओर झुकना, मोड़ना, आगे झुकना और पीछे झुकना।

इन सब अभ्यासों के बाद केवल एक ही आसन करने की जरूरत रहती है – शरीर को उल्टा करने वाला आसन। यह शरीर पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को विपरीत करने के लिए किया जाता है। लेकिन इस समूह के आसन थोड़े कठिन होते हैं। इसलिए इन्हें किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्ग-दर्शन में ही सीखना चाहिए। पांच आसनों के अभ्यास के बाद प्रतिदिन दो प्राणायाम जरूरी हैं। पहला है नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसमें दोनों नासिकाओं से बारी-बारी से श्वास लिया और छोड़ा जाता है। यह तंत्रिका प्रणाली की गतिविधियों को संतुलित करने के लिए बहुत प्रभावशाली अभ्यास है, क्योंकि इसके द्वारा अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में संतुलन आता है और प्राणिक अवरोध दूर होते हैं।दूसरा अभ्यास है भ्रामरी प्राणायाम, जिसमें कंठ से भौरे जैसा गुंजन पैदा किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है जिससे मस्तिष्क, स्नायविक तंत्र और अंत:स्रावी तंत्र के विक्षेप दूर होते हैं और व्यक्ति शांति व संतोष का अनुभव करता है।इस प्रकार तीन मंत्र, पांच आसन और दो प्राणायाम – इन सबके योग से प्रात:कालीन अभ्यास बनता है। रात में सोने से पहले दस मिनट का एक छोटा-सा अभ्यास किया जाना चाहिए। दस मिनट की इस अवधि में घर-परिवार या नौकरी-पेशे से संबंधित कोई विचार नहीं आना चाहिए। अपने आपको आंतरिक शांति और आनंद पर केंद्रित रखा जाना चाहिए।इस प्रकार हम धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या में योग की छोटी-छोटी साधनाएं और अनुशासन सम्मिलित कर सकते हैं। इस कैप्सूल का सोमवार से शुक्रवार तक सेवन करें। शनिवार को नेति जैसे षट्कर्म अथवा अजपा-जप, अंतर्मौंन या त्राटक जैसे किसी ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं।

पूर्व में प्राणायाम की क्रियाएं कुछ गिने चुने लोगों को उच्च योग साधना के लिए सिखायी जाती थी, परन्तु स्वामी सत्यानंद ने प्राणायाम को दैनिक योग  साधना का एक भाग बनाकर उसे प्रस्तुत किया। आज अनेक विद्यालयों में प्राणायाम को जिस श्रृंखलावद्ध विधि से सिखाया जाता है, वह बिहार योग परंपरा द्वारा विकसित की गयी विधि है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने मुद्रा एवं बंध के कार्यों का वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण किया। मुद्राओं एवं बंधों को विभिन्न आसानों,प्राणायामों एवं ध्यान की तकनीकों का बिहार योग पद्धति में समावेश किया, जिससे प्राणिक प्रभावों में बृद्धि होती है।

1964 के आरंभ में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने प्राचीन एवं परंपरागत तांत्रिक अभ्यासों से  योगनिद्रा का अवष्किार किया, जिसका योग जगत पर व्यापक प्रभाव है। योगनिद्रा व्यवस्थित विधि से पूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्राम की अवस्था उत्पन्न करती है। मानसिक तनाव से जनित व्याधियों हेतु एक महत्वपूर्ण उपचार पद्धति में योग ​निद्रा व्यापक रूप से स्वीकृत है।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने तंत्रशास्त्रों से ध्यान की विभिन्न तकनीकों को विक​सित किया, जिसे उन्होंनं अंतर्मौन, अजपाजप, त्राटक, चिदाकाश धारणा  और प्राणविद्या के रूप में सिखाया है। उपनिषदों, तंत्रों एवं अन्य परंपराओं से प्रत्याहार,धारणा और ध्यान की साधना को प्राप्त कर वर्गीकरण कर प्रशिक्षित किया।

बिहार योग पद्धति में सजगता के सामर्थ्य के विकास पर वल दिया जात है, जिससे साधना से अधिकतम लाभ प्राप्त कर स्वयं की चेतना के क्रमिक विकास में सहायक हो। जैसे आसनों के अभ्यासी धीरे—धीरे अपनी सजगता का विस्तार स्थूल से सूक्ष्म स्तर तक कर लेते हैं  सजगता विस्तार क्रम में भौतिक  सजगता के पश्चात श्वसन की सजगता, मानसिक सजगता और प्राणिक सजगता विस्तृत होती है। बिहार योग पद्धति  का महत्वपूर्ण पक्ष यौगिक जीवन शैली को अंगीकार करना है।यौगिक जीवन शैली ही व्यक्ति के चरित्र में आशावादिता और रचनात्मकता का विकास करता है।

योग जीवन का विज्ञान है शरीर का विज्ञान नहीं

कुमार कृष्णन

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती दुनिया के एकमात्र ऐसे योग मनीषी हैं जिन्होंने अपने गुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए कभी सत्ता या ग्लैमर का सहारा नहीं लिया।  कभी प्रचार पाने के लिए न तो अखबारों के दफ्तर तक गए और न ही चैनलों का चक्कर लगाया।उनका काम मौन क्रांति की तरह है।आज जबकि योग व्यापार बन चुका है, वैसे में विशुद्ध योग और अध्यात्म के कामों में तल्लीन इन योग गुरुओं की त्याग-तपस्या का ही प्रतिफल है कि उनके मिशन में कभी भटकाव नहीं आया और आज मुंगेर आध्यात्मिक चेतना का विकासस्थल बना हुआ है। मुंगेर का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा चुका है। आधुनिक युग में यह दुनिया की प्रमुख योग नगरी है। इसी धरती पर परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती को यह दिव्य संदेश प्राप्त हुआ था कि योग भविष्य की संस्कृति है। इसी प्रेरणा के तहत उन्होंने विश्व योग आंदोलन शुरू किया था और यहां की उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे गंगा दर्शन विश्व योगपीठ की स्थापना की थी। बाद के दिनों में परमहंस जी ने कहा था, ‘दानवीर कर्ण यहां सोना बांटा करते थे। अब यहां से दुनिया के कोने-कोने में योग बंट रहा है।

गुरू स्वामी सत्यानंद के अनुसार—’स्वामी निरंजन ने मानवता के कल्याण के लिए ही जन्म और सन्यास लिया है। वह सक्षम और प्रतिभासंपन्न है। जब वह चार साल का था,तभी मैंने उसे चुन लिया था और इसी लक्ष्य के अनुरूप उसकी शिक्षादीक्षा आरंभ कर दी थी। पर उसे मालूम नहीं कि था कि एक दिन वह मेरा उत्तराधिकारी बनेगा। उसका व्यक्तित्व नए युग क अनुरूप है, वह नई पीढ़ी से सहजता से व्यवहार कर लेता है। मेरी सोच पचास साल पहले की है,लेकिन वह आज की पीढ़ी की तरह सोच सकता है।

अपने मिशन में जुटे स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जी को जब पद्म भूषण सम्मान दिए जाने के बारे में बताया गया तो उनका शांत भाव यह बयां करने के लिए काफी था कि सन्यासियों के लिए भौतिक चीजें कोई मायने नहीं रखती और महापुरुषों के आगे सम्मान ही सम्मानित होता है। शायद यही वजह है कि जब स्वामी जी पद्मभूषण लेने राष्ट्रपति भवन नहीं गए तो मुंगेर स्थित बिहार योग विद्यालय के परिसर में ही उन्हें यह सम्मान वहां के जिलाधिकारी ने दिया था। स्वामी जी बार-बार कहते भी हैं, ‘योगी-सन्यासी का सत्ता के चकाचौंध से क्या वास्ता?’पेश से उनसे बातचीत

योग क्या है?

मेरी दृष्टि में योग के चार मुख्य सोपान हैं जिसमें पहला है योग का अभ्यास।आपकी कोई अपेक्षा कामना या महत्वाकांक्षा रहती है जिसकी पूर्ति के लिए आप योग सीखते हैं। यह कामना तनाव से मुक्ति पाने,शरीर को लचीला बनाने,एकाग्रता बढ़ाने या पीठ दर्द से छुटकारा पाने की हो सकती है। जब आप अपनी किसी कामना या आवश्यकता को पूरा करने के लिए योग की शरण में जाते हैं तो यह योगाभ्यास कहलाता है। विश्व स्तर भर में योग का यही आयाम प्रचलित है। दूसरा सोपान है साधना का है, जहां आप योग के लक्ष्यों का अनुशरण करते हैं। हठ योग का क्या लक्ष्य है? इडा और पिंगला नाड़ियों का संतुलन। अगर हठ योग के अभ्यास से इडा—पिंगला की सामंजस्य पूर्ण स्थिति की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो आप हठ योग का लक्ष्य सिद्ध कर रहे हैं। राजयोग का लक्ष्य क्या है? चितवृतिनिरोध:मन की चंचल वृतियों पर नियंत्रण। आपका राजयोग का अभ्यास इसी दिशा में ले जाए तो यह राजयोग की साधना है। क्रिया योग का लक्ष्य क्या है? प्राणों, चक्रों और कुंडलिनी शक्ति की क्रमवद्ध ढंग से जागृति। जिस क्षण आप योग के लक्ष्यों को सिद्ध करने का प्रयास करते हैं,आपका प्रयास योग साधना बन जाता है, लेकिन जैसे ही आप अपनी मर्जी या पसंद को प्राथमिकता देते हैं तो वह मात्र योगाभ्यास रह जाता है।साधना के तीसरे चरण में प्रवेश करते हैं जहां योग एक जीवन शैली,एक अभिव्यक्ति एक व्यवहार बन जाता है, और जीवनशैली के तीसरे सोपान से अंतत: चौथे सोपान में आते हैं तो जहां योग संस्कृति बन जाता है। योग एक व्यवहारिक पद्धति है जिसके द्वारा हम शरीर,मन भावना और आत्मा,इन चारों को संतुलित कर पाते हैं। इनमें से एक भी बिगड़ गया तो पूरा जीवन बिगड़ जाता है।शरीर के भीतर ढ़ेरों अंग होते हैं,अगर इनमें कोई अंग खराब या गड़बड़ हो जाए तो शरीर साथ नहीं देता है। हमारे व्यक्तित्व के एक आयामों में से एक खराब हो जाए तो सोचो क्या होगा? योग का पहला हिस्सा है शारीरिक, दूसरा है मानसिक और भावनात्मक तथा तीसरा है आध्यात्मिक। योग के शारीरिक पक्ष का संबध है हठयोग से, मानसिक पक्ष का संबध है राजयोग से और आध्यात्मिक पक्ष का संबध है क्रियायोग से। गुरूदेव स्वामी सत्यानंद सरस्वती इन तीनों को लेकर चले।

योग का वैज्ञानिक आधार क्या है?

विज्ञान समझने का प्रयास करता है जबकि योग अनुभव दिलाता है,दोनों में यही अंतर है। आप आसमान में डूबते हुए सूर्य की लालिमा को देखते हो,जो बादलों को विभिन्न रंगों में लाती है और आप सूर्यास्त के सौंदर्य का बखान करते हैं, लेकिन बैज्ञानिक जब उस सूर्यास्त को देखता है तो यही देखता है कि किस प्रकार सूर्य की किरणें वायुमंडल के हवा के कणों के साथ टकराकर अलग—अलग रंगों को उत्पन्न कर रही है। विज्ञान के दायरे में सौंदर्य की कल्पना एटोमिक स्तर के प्रखंडों और प्रक्रिया में बंट जाती है। सौंदर्य का आभास होता नहीं है,लेकिन विज्ञान के द्वारा इस बात को समझ पाते हैं कि सूर्यास्त का क्या कारण है? विज्ञान के द्वारा जान पाते हैं कि योग की उपयोगिता क्या है? बिहार योग विद्यालय के माध्यम से बहुत से चिकित्सात्मक और वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं कि कौन सा अभ्यास किस रोग में सहायक हो सकता है। योग के आसन और प्राणायाम से शरीर को किस प्रकार व्यवस्थित,सशक्त और उर्जावान बना सकते हैं। बिहार में मेडिकल कॉलेज के छात्रों को योगाथेरेपी की ट्रेनिंग दी जा रही है। जो अनुसंधान कार्य संसाधन या व्यवस्था की कमी से भारत में नहीं हो सकता है,उन्हें बाहर के देशों में किया। आस्ट्रेलिया में छह कैसर मरीजों को एक साल योग की शिक्षा दी गयी तो पाया गया कि उनका कैंसर रिमिशन में चला गया है। इंगलैंड में एचआईवी के मरीजों पर प्रयोग किया गया। मनोरोग में योग के प्रयोग हुए हैं। तनाव या मनोरोग मानसिक असंतुलन और चंचलता का कारण होता है। स्ट्रेस मैनेजमेंट के अनेक कोर्स चलाए गए हैं,जिसके साकारात्मक परिणाम आए हैं।योग जीवन का विज्ञान है शरीर का विज्ञान नहीं।

पिछले कुछ वर्षों में योग को लेकर कई विश्वविद्यालय खुल गए हैं। बिहार योग विद्यालय उनसे किस रूप में अलग है?

यहां तीन पंरपराओं का समावेश होता है। एक परंपरा है योग की जिसके लिए बिहार योग विद्यालय  या बिहार योग पद्धति विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।ऐसी इसमें पद्धति में व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का मार्ग निर्देशित किया गया है। भारत और विश्व के विभिन्न योग केन्द्रों को देख लें तो पाएगें कि अधिकांश योग केन्द्र केवल आसन और प्राणायाम की शिक्षा देकर योग का प्रचार करते हैं।कुछ योग केन्द्र ज्ञान योग को माध्यम बना कर उसके सिद्धांतों का आशिंक प्रयास करते है। कुछ योग केन्द्र भक्ति योग को माध्यम बनाकर मनुष्य को अपने आराध्य से जोड़ने का प्रत्यन करते हैं। कुछ योग केन्द्र सेवा का मार्ग अपना कर कर्मयोग को अपनाकर लोकोत्थान में संलग्न रहते हैं। लेकिन विभिन्न योग केन्द्रों की विविधता योग की पूर्णता को लक्षित नहीं करती है। योग की पूर्णता होती है मनुष्य के जीवन का उत्थान, मनुष्य के व्यक्तित्व सर्वांगीण उत्थान। योग को माध्यम बनाकर अपने जीवन में प्रवीणता को,रचनात्मकता को लाना है ताकि जीवन शांतिपूर्वक, संतोषपूर्वक और प्रतिभासम्पन्न व्यतीत हो सकता है। स्वामी शिवानंद जी ने योग को माध्यम बनाया मनुष्य को दिव्य जीवन की ओर प्रेरित करने के लिए। उनकी मान्यता थी कि मनुष्य जीवन में दिव्यता तब आती है जब मनुष्य अपने शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक सीमाओं का अतिक्रमण करके अपनी चेतना को जागृत कर पाता है। स्वामी शिवानंद जी की शिक्षा में सभी योगों का समावेश है। अपने गुरू की इस शिक्षा को स्वामी सत्यानंद जी ने इस पद्धति को व्यवहारिक,सरल और वैज्ञानिक रूप में समाज को प्रदान किया।यहां केवल योग के आसनों पर या घ्यान पर जोर नहीं दिया जाता है बल्कि जीवन की प्रतिभाओं को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। एक अभ्यास को करते समय चाहे आसन हो या प्राणायाम हो, क्रिया योग हो, कुंडलिनी हो, अंतर्मौन हो,चाहे धारणा हो, इन सभी अभ्यासों में शरीर का, मन का और प्राणों का संबध स्थापित करना जरूरी रहता है। कोई भी अभ्यास यंत्रवत नहीं रहता है।आसन भी करते हैं तो करते समय श्वांस की क्रिया,गति एकाग्रता सजगता जुड़ी रहती है। सभी योगों की शिक्षा दी जाती है। हठयोग से लेकर आसन,प्राणायाम,षठकर्म राजयोग में प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,यम,नियम, कुंडलिनी योग,क्रिया योग, मंत्र योग सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती है। केवल सिखलाने के दृष्टिाकोण से नहीं बल्किआपके प्रगति और आवश्यकता को देखते हुए  जो उपयुक्त है, बताया जाता है।

देश-दुनिया में योग को लेकर जागरूकता देखने को मिल रही है। इसपर आपकी क्या राय है?

योग के विश्वव्यापी उत्कर्ष ने दो घटनाक्रमों को जन्म दिया है। पहला योग की विभिन्न शैलियों और किस्मों का बहुत तेजी से प्रचार हुआ है। आज दुनिया भर में 75 से अधिक ब्रैंड हैं जिसमें डाग योगा,कारेयोकी योगा,हिल्ली बिल्ली योगा और एरियल योगा जैसे नाम प्रचलित हैं। योग की ये शैलियां केवल आसनों पर आधारित हैं। ऐसे आसन जो बिना किसी पारंपरिक श्रोत या समझ के बेतरतीब ढंग से इस्तेमाल किए जाते हैं ।समय के साथ योग ने बृहत और आंदोलन का रूप ले लिया, पर साथ ही इसके विशुद्ध स्वरूप में कुछ विकृतियां भी प्रवेश कर गयी है।’चाइनीज व्हिस्पर’ नामक एक खेल है जिसमें एक बच्चा दूसरे के कान में बुदबुदाता है और इस तरह यह बाक्य आगे बढ़ता जाता है। जब तक बाक्य चौथे पांचवें तक पहुंचता है,वह पूरी तरह बदल गया होता है। स्वामी सत्यानंद ने हमें योग में प्रशिक्षित किया,हमने दूसरों को सिखाया,उनलोगों ने आगे सिखाया और इस तरह से योग शिक्षकों की अनेक पीढ़ियां उभरी हैं। सभी अपने को सत्यानंद योग शिक्षक कहते हैं। भले ही उनका यौगिक पंरपरा के मौलिक सिद्धांतों से कोई संबध न हो।अमेरिका में योग पर सालाना 27 अरब डालर खर्च किए जाते हैं।वहां के छह फीसदी से अधिक नागरिक यानी दो करोड़ लोग योग का अभ्यास करते हैं। यही रफ्तार रही तो 2032 तक वहां का हर नागरिक योग कर रहा होगा। पिछले पांच सालों के दौरान योग पर हुए खर्च में 87 फीसदी बृद्धि हुई है। भारत में योगाभ्यासियों की संख्या में 30 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। हजारों योगकेन्द्र और न्यूट्रिशनल कंपनियों 27 अरब डालर के कारोवार में काफी मुनाफा कमाया है।ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से मुंगेर का जो संदेश पूरी दुनिया में गया कि योग की प्राचीन आध्यात्मिक विद्या के वास्तविक स्वरूप और लक्ष्य को बनाए रखने के लिए इस दिवस का प्रयोजन होना चाहिए कि लोग योग को केवल एक शारीरिक अभ्यास के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवन शैली के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित हों।

इन दिनों आप किस प्रयोग में जुटे हैं?

यौगिक विधियां किस प्रकार लोगों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। योग प्रशिक्षण का अगला चरण कैसा होना चाहिए। यौगिक अनुभव को गहन बनाना यही मुख्य ध्येय बिंदु के रूप में उभर कर समाने आया है। लोगों की भावी अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मैंने योगपीठ में प्रचलित पाठ्यक्रमों को संशोधित और संवद्धित किया।  इस बात का ख्याल रखा गया है कि योग का मूल लक्ष्य और उद्देश्य दृष्टि से ओझल न हो जाए। हमारा प्रयोजन योग का विकास है।

बिहार योग विद्यालय का लक्ष्य क्या है?

बिहार योग विद्यालय ने योग का हर देश,हर धर्म,जाति,संस्कृति, समाज और समुदाय में प्रचार किया गया, योग का व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण प्रदान किया गया और योग के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक,शैक्षणिक एवं सामाजिक पक्षों पर व्यापक अनुसंधान किया गया। दूसरे दौर मे जो संकल्प रहेंगे वे हमें योग के वास्तविक ज्ञान एवं लक्ष्यों से, योग की विद्या से और योग की जीवनशैली से जुड़ने का अवसर प्रदान करेंगे।इसका उद्देश्य समाज में एक सकारात्मक,रचनात्मक,प्रेरक और सद्भावपूर्ण वातावरण का निर्माण है।

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