अंक से ज्यादा आप महत्वपूर्ण हैं !

देवेंद्रराज सुथार

स्कूल की परीक्षाओं का दौर थम चुका है। अब वक्त है परीक्षा परिणाम को जानने का। परिणाम को लेकर हर किसी के मन में चिंता होती हैं, ऐसा होना स्वाभाविक है। जिन बच्चों ने अच्छे से मेहनत की हैं, उन्हें भी थोड़ा ही सही अपने परिणाम को लेकर डर सता रहा होगा। चिंता और डर हो भी क्यों ना? एक पूरे साल का सवाल जो है। कुछ बच्चों के लिए परिणाम अच्छा रहेगा तो कुछ के लिए अपेक्षाकृत उतना अच्छा नहीं रहेगा। कुछ बच्चें अनुत्तीर्ण भी होंगे। यानी की अप्रैल का जाता हुआ महीना कुछ के जीवन को खुशियों से भर देगा तो कुछ को उदास कर देगा। लेकिन ऐसे समय में अपने निराशात्मक परिणाम से कतई हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है। जिन बच्चों के अंक अच्छे नहीं आए हैं और जो अनुत्तीर्ण हो गए हैं उन्हें जल्दबाजी में आकर कोई गलत कदम उठाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आप केवल और केवल एक परीक्षा में फेल हुए है, वो भी इसलिए कि आपने पढ़ाई नहीं की। आपका पूरा जीवन बाकी है। एक परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आने से और अनुत्तीर्ण हो जाने से आप जीवन को नहीं खो देते है।

 

परीक्षा परिणाम तो केवल आपका वर्तमान तय करता है, न कि भविष्य। ऐसे कई लोग हैं जो स्कूल में हमेशा टॉप रहे लेकिन वे आगे चलकर कोई बड़ा काम नहीं कर पाएं। जबकि इसके विपरीत जो बच्चें स्कूल में हमेशा पीछे वाली सीट पर बैठे रहते थे और जिनको हमेशा डांट पड़ती थी। वे जीवन की बुलंदियों को छू गए। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम मेहनत करना छोड़ दे और पीछे बैठकर डांट खाएं। कहने का तात्पर्य यह है कि परिणाम से ज्यादा आप महत्वपूर्ण है। अंक की आड़ में आकर जीवन से छेड़छाड़ करना किसी भी हालात में सही नहीं ठहराया जा सकता है। विगत के सालों में यह देखने को मिला है कि देश में अधिकत्तर परीक्षार्थियों के परीक्षा परिणाम अच्छा नहीं रहने के कारण उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त कर लीं। राजस्थान का कोटा तो इस मामले में सबसे आगे है। महज एक दो अंक कम आने के कारण पढ़े लिखे विद्यार्थियों के द्वारा ऐसा कदम उठाना हमारी शिक्षा प्रणाली और खुद के कायर होने पर सवाल खड़ा करता है। जीवन में प्रतिस्पर्धा होना आम है। लेकिन प्रतिस्पर्धा से कुछ नया सीखने की बजाय खुद को हीन मानने वाली मानसिकता से घेर लेना कहां तक ठीक है।

जिंदगी में मुसीबतें कभी कम नहीं होगी। आपको मुसीबतों को पछाड़कर आगे बढ़ना होगा। एक परिणाम को लेकर खुद को कमजोर मानकर बैठे रहना बुजदिली है। संसार में ऐसे कई महान लोग हुए जो बचपन में मेधावी नहीं रहे। लेकिन आगे चलकर दुनिया में क्रांति लाकर उन लोगों ने अपने अतीत को भी मिसाल बना दिया। जब कालिदास जैसा महामूर्ख कहे जाना वाला अपनी मेहनत और लगन से आगे चलकर महान साहित्यकार, विद्वान और कवि के रूप में विश्वविख्यात हो सकते है। तो सोचिए ! आप क्यों नहीं हो सकते। महान साहित्य लिखने वाले पाउलो कोएल्हो को बचपन में पागल कहकर उनका मजाक बनाया जाता था। लेकिन एक दिन उसी पागल ने अपने हुनर के दम पर दुनिया को पागल कर दिया। ऐसा ही कुछ बल्ब का आविष्कार करने वाले थॉमस ऐल्वा एडीसन के साथ भी हुआ। जिनकी रात-दिन की एकधुन में की जा रही मेहनत के कारण लोगों ने उन्हें पागल मान लिया था। लेकिन एक दिन हजारों बल्बों को बुझाकर एक बल्ब को प्रदीप्त करके थॉमस एडीसन प्रेरणा की नई मिसाल बन गये। अल्बर्ट आइंस्टीन को कौन नहीं जानता? महान वैज्ञानिक जिन्होंने ”सापेक्षता का सिद्धांत” देकर भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करिश्मा कर दिया। ज्ञातव्य है कि उन्हें अपने बर्ताव के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था। और भी इतिहास टटोले तो नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, सबसे धनी व्यक्ति बिल गेट्स, नोबेल पुरस्कार जीतने वाले और दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गये विंस्टन चर्चिल सहित कई नाम ऐसे मिलेंगे जिन्हें स्कूल की पढ़ाई और परीक्षा रास नहीं आयी।

दुनिया ऐसे कई महान उदाहरणों से भरी पड़ी हैं। जिन्होंने अपनी अटूट मेहनत, लगन और हौंसलों से दुनिया की प्रति अपनी बनी बनायी धारणा को बदल कर रख दिया। लेखक चेतन भगत ठीक ही कहते है कि हम एक बार कीचड़ में गिर जाते है, तो उस कीचड़ से उठकर चलने की बजाय उसमें लेटते रहते है। यानी की एक छोटी-सी हार के बाद हम अपने को हर बार के लिए हारा हुआ महसूस करते है। यह सोच ही हमारे मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। असफलता मिलने का कारण कमजोर योजना और उदासीन रवैया है। हम बड़े सपने तो देख लेते हैं, वो तब जब हमें कोई देखना को कहता है, लेकिन उन्हें पूर्ण करने के लिए उतनी मेहनत कभी हम कर ही नहीं पाते। आपकी जिज्ञासा और जिजीविषा भरी सोच आपके संपूर्ण जीवन को बदल कर रख सकती है। बिलकुल उसी तरह जिस तरह महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने दो साल के बाद मरने की गई भविष्यवाणी को सिरे से खारिज कर दिया था। आकाश में उगते चाँद-तारों को देखकर उन तक पहुंचने का बचपन में संकल्प करने वाली कल्पना चावला की तरह नभ की ऊंचाइयों को छू सकते है। अब सिर्फ आवश्यकता है तो चलने की पूरे जुनून और जोश के साथ। अंकों की आंधी आपको कुछ पल के लिए व्यथित करें तो आप उसके बाद आने वाले सुखद मानसून के स्वप्न को देखकर प्रसन्न हो जाइये। साथ ही अभिभावकों को समझने की आवश्यकता हैं कि बच्चों पर नंबरों का दबाव न डाले। यह दबाव उनकी प्रतिभा को निखारने की बजाय दबाकर नष्ट कर देगा। इस जहान में हर कोई जीनियस होता है। बस, उसे खुद को साबित करने की जरूरत होती है।

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