तुम प्यार करते हो शर्तों में

—विनय कुमार विनायक
मैं उन्मादी हूं
अत्यधिक प्रेम करनेवाला प्रेमी
मैं अनुरागी हूं
पागलपन की हद से गुजरकर
प्यार करनेवाला
मैं सनकी हूं अक्सरा सनक जाता हूं
कि मैं प्यार करता हूं
उन्मादित, अनुरागित,
पागलपन की हद से गुजरकर
और प्रतिउत्तर में पाता हूं
तुम्हें हाथ में पैमाना लिए हुए
कि तुम्हारे प्यार में हदबंदी है
कि तुम प्यार करते हो शर्तों में
कि तुम्हारे हाथ में तुला है
कि तुम्हारे प्यार में घृणा मिलाजुला है
तुम हमेशा नापते हो प्यार में बराबरी
कि तुम्हारे हाथ में है फुट
तुम हमेशा मापते हो इंसानी कद
जबकि इंसान का कद होता साढ़े तीन हाथ
मानव से प्रेम करने के पहले देखते हो पद
जबकि मानव नहीं आसमानी
इंसानी पद जमीन पर आसीन होता
कि तुम्हारे पास इंसान से पहले
पहुंच जाती उसकी जाति धर्म रंग मजहब लिंग
तुम पूछते किसी से शुभनाम
किन्तु नाम को अनसुना कर जानना चाहते हो
उसकी उपाधि,फिर जाति फिर धर्म
लिंग भेद तो खैर ईश्वरीय पैमाना है
और प्यार किस्तों में करते जरूरत के हिसाब से
अगर है विधर्मी तो प्यार नहीं नफरत करते
अगर है स्वधर्मी मगर पराई जाति तो हिकारत करते
अगर है स्ववर्णी मगर अलग उपजाति
तो आवश्यकतानुसार दूरी और नजदीकियां बनाते
अगर गालियां देनी है विधर्मी को
तो मजहबी प्यार जताते पराई मजहब से घृणा दिखाते हो
जहां होता नहीं कोई विधर्मी, विजाति, विपरीत लिंगी
तो स्वजाति को ही सताते हो
अगर नहीं मिलता कोई घृणा का पात्र
तो अपने ही कमजोर बंधुओं को धमकाते हो
वस्तुत: बगैर घृणा के प्यार करते नहीं हो अमैथुनी!
—विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखण्ड-814101.

और सनक जाता हूं
कि तुम नहीं हो मेरा जैसा
कि तुम्हारे प्रेम में

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