“गोरक्षा के लिए आपको गाय पालनी चाहियेः डा. सोमदेव शास्त्री”

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मनमोहन कुमार आर्य

श्रीमद्दयानन्द ज्यातिर्मठ आर्ष गुरुकुल, पौन्धा-देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन 2 जून, 2018 को ‘गोकृष्यादि रक्षा सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में पहला व्याख्यान आर्य विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई का हुआ। उन्होंने कहा कि सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन का आधार विदेशी अग्रेजों द्वारा कारतूसों में गोमाता की चर्बी का प्रयोग करना था। इस स्वतंत्रता आन्दोलन के कारण ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया को यह घोषणा करनी पड़ी थी कि वह भारत की खुशहाली चाहती हैं। ईसाई धर्म को मानने वाला कोई अंग्रेज अधिकारी भारत देशवासियों को ईसाई बनाने का प्रयत्न नहीं करेगा। आचार्य जी ने बताया कि ऋषि दयानन्द ने इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया की उस घोषणा का खण्डन किया था। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में रानी विक्टोरियां की घोषणा का खण्डन करते हुए कहा कि कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मतमतान्तर के आग्रहरहित अपने और पराये का पक्षपातशून्य प्रजा पर पिता माता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। आचार्य सोमदेव जी ने बताया कि ऋषि दयानन्द सन् 1866 में अजमेर में एक अंग्रेज अधिकारी से मिले थे और उन्हें गोहत्या की हानियां बताई थी और उनसे मांग की थी वह देश में गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने में अपने प्रभाव का सदुपयोग करें। ऋषि दयाननन्द ने गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के लिए देश भर से 2 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर कराने का एक अभियान भी चलाया था। शास्त्री जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने अपनी लघु पुस्तक गोकरुणानिधि में गायों से होने वाले आर्थिक लाभों की विस्तार से चर्चा की है जो उस समय में उनसे पूर्व किसी विद्वान व समाजसुधारक आदि ने नहीं की थी। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द द्वारा स्थापित गोकृष्यादिरक्षिणी सभा का भी उल्लख किया। उन्होंने कहा कि गोकृष्यादिरक्षिणी सभा की स्थापना का उद्देश्य गाय के दुग्धादि की प्राप्ति सहित उसके बछड़ो से खेती द्वारा किसान को अन्न उत्पादन आदि अनेक आर्थिक लाभ निहित थे। वेदों में गाय की बड़ी महिमा है। गाय सदा हमारा हित करने वाली है।आचार्य डा. सोमनाथ शास्त्री ने कहा कि गाय के घृत में सोने का अंश पाया जाता है। आचार्य जी ने आर्यसमाज के उच्च कोटि के विद्वान एवं गुरुकुलों के सस्थापक एवं संचालक स्वामी जी का उल्लेख किया और बताया कि उनके अनुसार गाय के दुग्ध की मलाई में पीला रंग सोने के विद्यमान होने के कारण से है। देशी गाय के घृत में सर्प आदि अनेक विषों का नाश करने की शक्ति है। आचार्य जी ने कहा कि सांप काटे व्यक्ति को गोघृत पिलाकर उसके प्राणों की रक्षा होती है। गोमूत्र में भी विष का नाश करने की शक्ति है। गाय का गोबर भी चौका-चूल्हा लगाने में काम आता है। उन्होंने कहा कि गाय के बिना कृषि कार्य करना भी कृष्कों के लिए सम्भव नहीं है। बैलों से हल जोतते व अन्य कार्य करते समय उनका मूत्र खेतों में गिरने से अन्न के लिए हानिकारक किटाणुओं का नाश होता था।  डा. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि गोरक्षा के लिए हमें गायों को पालना होगा। गाय के गोबर मात्र से ही गाय पर होने वाले व्यय की प्राप्ति उसके स्वामी को हो जाती है। आचार्य जी ने कहा कि गाय के गोबर की खाद तीन वर्ष तक काम करती है और खेत की मिट्टी उर्वरा बनी रहती है। गाय के गोबर की खाद से भूमि हल्की उपजाऊ बनती है। आचार्य जी ने कहा कि गाय होगी तभी हमें व हमारी सन्तानों को उसका दूध, घी, छाछ, मट्ठा, मिल्क केक आदि नाना प्रकार के पौष्टिक पदार्थ मिलेंगे। उन्होंने कहा कि गाय का दूध अधिक मात्रा में प्रयोग करने से मल कम बनता है। इस कारण मल के निमित्त से होने वाला वायु व जल प्रदुषण भी कम होता है जिससे रोगोत्पत्ति भी न्यून होती है। आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री ने बताया था कि महर्षि दयानन्द ने प्रेरणा देकर अपने शिष्यों से रेवाड़ी में एक वृहद गोशाला की स्थापना कराई थी।डा. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि वाममार्ग ने पशु हिंसा और मांसाहार को प्रचलित किया व उसे बल दिया। गोमेध के नाम पर प्राचीन भारत में गाय व कुछ अन्य पशुओं पर अत्याचार किया गया। आचार्य जी ने कौशिक नाम के एक प्राचीन आचार्य का उल्लेख कर बताया कि उसने कर्मकाण्ड में मन्त्रों का विनियोग किया है। सायण ने अपनी अज्ञानता के कारण यज्ञ में यजमान द्वारा गाय का वध करने का ही उल्लेख किया। यज्ञ में यजमान की पत्नी मृतक गाय पर जल की छींटे दे, ऐसा विधान किया गया। ऐसा करने से यज्ञ का फल सुख व शान्ति प्राप्त होना बताया जाता है जो कि सर्वथा असत्य है। आचार्य जी ने कहा कि पौराणिक ग्रन्थों में यज्ञों में हिंसा का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि वाममार्गी पौराणिक याज्ञिक कहते हैं कि वैदिक हिंसा हिंसा नहीं होती। डा. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि वाममार्गियों ने यज्ञों में पशुओं की हिंसा चलाई। गांधी जी का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि गोधी जी ने कहा था कि स्वराज्य मिलते ही मैं गोहत्या बन्द करा दूंगा। वह और उनके अनुयायी अपना वचन पूरा नहीं कर पाये। आचार्य जी ने कहा कि हम गोमाता की जय बोलते हैं परन्तु गो को पालते नहीं है। गो को पालेंगे नहीं तो गोरक्षा नहीं हो सकती। आचार्य जी ने गोरक्षा आन्दोलन का भी उल्लेख किया। आचार्य जी ने बताया कि शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ मानते थे कि वेदों में गोरक्षा का विधान है परन्तु वह कभी वह मन्त्र व शब्द दिखा नहीं सके जिसमें यह विधान था। आचार्य जी ने बताया कि ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य में गोरक्षा के विधेय अनेक मन्त्रों का तो उल्लेख है व उनके अर्थ भी दिये गये हैं परन्तु गोहत्या व गो के प्रति हिंसा का कहीं एक शब्द भी नहीं है। महीधर ने यजुर्वेद के मन्त्रों के मिथ्या अर्थ कर गोहत्या किये जाने का उल्लेख किया है। ऐसा महीधर की अज्ञानता आदि के कारण हुआ है। आचार्य जी ने कहा कि पौराणिक जगत के अन्य विद्वान ऋषि दयानन्द के वेद भाष्य को ही प्रामाणिक मानते हैं वा उसका अनुगमन करते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार एक पत्रकार द्वारा शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ से आर्यसमाज से जुड़े गोहत्या पर प्रश्न करने पर उसने कहा था कि यह आर्यसमाज और पौराणिक समाज दोनों की आपसी व घर की लड़ाई है। आर्य विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री ने ऋषि दयानन्द की गोकरुणानिधि पुस्तक में लिखे उन वचनों का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होने कहा है कि जब गाय आदि पशु समाप्त हो जायेंगे, उनका मांस नहीं मिलेगा तो तब तुम क्या अपने परिवार के लोगों को मारकर उनका मांस खाया करोगे? आचार्य जी ने दिल्ली के पास हुए निठाई काण्ड की चर्चा की और बताया कि उस व्यक्ति ने सौ से अधिक बच्चों को मारकर उनका मांस खाया था। आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि ऋषि दयानन्द की हत्या के षडयन्त्र में अंग्रेज सरकार का भी बहुत बड़ा हाथ था। ऋषि दयानन्द जी यदि कुछ वर्ष और जीवित रहते तो वह गोरक्षा के कलंक को देश से दूर कर देते। परमात्मा से प्रार्थना करते हुए डा. सोमदेव शास्त्री ने गोभक्तों को गोमाता की रक्षा की शक्ति देने को कहा। उन्होंने सभी हिन्दुओं व आयसमाजियों को अपने घरों में देशी गाय पालने की प्रेरणा की।डा. सोमदेव शास्त्री के बाद गोरक्षा पर स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती और डा. रघुवीर वेदालंकार जी के विद्वतापूर्ण एवं सारगर्भित व्याख्यान हुए। इन्हें हम पृथक से प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम्।

 

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